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Friday 20 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश पिपरिया से पचमढी Piperiya to Pachmarhi Madhya Pradesh Part भाग 3 तुझसे भी दिल फरेब हैं, ग़म रोज़गार के




पिपरिया से लगभग 52 किमी.दूर हम मध्यप्रदेश के इकलौते हिल स्टेशन, सतपुडा की रानी पचमढ़ी जा रहे थे। आँखे बाहर के खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारों पर टिकी हुई थीं और मन में एक ही प्रश्न बार बार उठ कर खड़ा हो रहा था कि जब रास्ता इतना खूबसूरत है तो, रानी यानि पचमढ़ी कितनी सुन्दर होगी! हल्की हल्की ठंडक बढ़ती जा रही थी। ड्राइवर राजा ने बताया कि यहाँ का तापमान सर्दी में चार से पाँच डिग्री और गर्मी में अधिकतम पैंतीस डिग्री के बीच में रहता है। बरसात में पचमढ़ी बहुत खूबसूरत हो जाती है। रास्ते में जामुन, हर्रा, साल, चीड़, देवदारू,  सफेद ओक, यूकेलिप्टस, गुलमोहर, जेकेरेंडा आदि ने पहाडि़यों को सजा रक्खा था। नीचे लाल धरती को घास और फर्न ने ढका हुआ था। रास्ता इतनी जल्दी ख़त्म हो जायेगा, सोचा न था। पचमढ़ी पहुँचते ही दिमाग को जोर से झटका लगा क्योंकि सड़क के दोनो ओर अवैध निर्माण पर बुलडोज़र चला हुआ था। राजा ने बताया कि यहाँ लोगों की रिहायश और रोज़गार दोनों थी।  अवैध निर्माण के अवशेषों पर, स्थानीय लोगों के चेहरे पर उजड़े रोज़गार से गहरी वेदना थी। उनके बिखरे हुए सामान के पीछे प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा देखते बनती थी। इस नज़ारे  को देख कर  कहीं पढ़ी ये लाइने याद आ गई,’तुझसे भी दिल फ़रेब हैं, ग़म रोज़गार के। ’ं राजा से ही हमने पचमढ़ी घूमाने का तय कर लिया। उसने चार दिन में कैसे कैसे घुमायेगा, इसकी लिस्ट थमा दी। वो बोला,’’ जटाशंकर तो अभी चलते हैं, फिर आकर होटल में आपके रहने का इंतजाम करते हैं। पचमढ़ी से डेढ़ किलोमीटर जटाशंकर की  पवित्र गुफा है। गाड़ी से उतर कर कुछ दूर पैदल चले। कानों में नमः शिवाय की आवाज आने लगी, जिसे एक  आदिवासी महिला कई वर्षों से गा रही है।  गुफा के ऊपर, बिना किसी सहारे के विशाल शिलाखंड है। वहाँ नीचे शिवलिंग है। वहाँ तक जाने का आनन्द ही कुछ और है। दर्शन करके हम होटल तय करने आये। राजा एक होटल में ले गया। मैं और अंजना गाड़ी में ही बैठे रहे। उस सड़क पर होटल ही होटल हैं। एक होटल से चहकता हुआ लडकियों का ग्रुप निकला। ये देखकर हैरानी हुई, उनके साथ कोई आदमी नहीं था। मैं और अंजना भी उस होटल में गये। रेट हजार रू ए.सी., गिज़र, टी.वी. आदि सब। बाहर आये तो गाड़ी से सामान उतारा जा रहा था। मैंने पूछा,’’रूम कितने का?’’ जवाब मिला,’ढाई हजार का।’ मैं बोली,’’जो हम देखकर आयें हैं, एक बार उसे भी देख लीजिए।’’सुनते ही राजा पैर पटकने लगा और क्रोधित होकर बोला,’’कुछ हो गया तो उसकी कोई जिम्मेवारी नहीं।’’पता नहीं उसको कैसे गलतफहमी हो गई थी कि हमने उस पर अपनी जिम्मेवारी सौंपी थी। सब को हमारे देखे रूम पसंद आये, इसमे बालकोनी भी थी। खिड़की से पर्दा हटा कर बैड पर लेटे लेटे प्राकृतिक नज़ारों का आनन्द लिया जा सकता है। राजा को कल आने का बोल कर, सब अपने अपने रूम में चले गये। सोकर उठे और पैदल चल दिये घूमने। ज्यादातर रैस्टोरैंट के आगे गुजराती और महाराष्ट्रीयन खाने के बोर्ड लगे थे। शायद मध्य प्रदेश के पड़ोसी राज्य होने के कारण, वहाँ के खानपान में इनका असर दिखा। एक व्यक्ति अपने मलबे के आगे मेज पर चाय का सामान रख कर बैठा था। मैंने पूछा,’’चाय मिलेगी।’’ जवाब में उसने कुर्सियाँ लगा दी और चाय बनाने लगा। चाय के पहले घूँट में ही हम वाह वाह कर उठे। सड़क पर हम बैठे हुए लोगों का आना जाना देख रहे थे। सैलानी खुशी से खिले हुए थे कि उनका यहाँ आना सार्थक हो गया। वे प्राकृतिक सौन्दर्य को कैमरे में कैद करने में लगे थे। ये देखकर मुझे बहुत खुशी हुई कि जो लोग वैध जगह में अपना काम चला रहे थे, वे उजड़े हुये अपने साथियों की मदद कर रहे थे। रात हमने महाराष्ट्रीयन खाना झुनका, भाखरी, ढेचा आदि खाया।
  राजा का फोन आया सुबह आठ बजे वह आयेगा। वह हमें पाडंव गुफा, हांडी खोह, प्रियदर्शनी प्वाइंट, ग्रीन वैली, संगम टूर, गुप्त महादेव, महादेव और अंबाबाई घुमायेगा। क्रमशः