पचमढ़ी छावनी क्षे़़त्र हैं, यहाँ के जंगल में जाने के लिये विभाग से अनुमति लेनी पड़ती हैं। वे हमें गाइड भी देते हैं। खुली जीप में हम बैठे गाइड और परमीशन स्लिप का इंतजार का रहे थे। इतने में बंदर आ गये। मैंने डरते हुए राजा से पूछा,’’ये काटेंगे तो नहीं?’’राजा ने जवाब दिया,’’नहीं, अगर ये काटेंगे तो पहले हमें ,क्योंकि आप हमारे मेहमान हो।’’सुन कर बहुत अच्छा लगा। तभी समझ आ गया कि यहाँ लड़कियों का ग्रुप बिना भइया, पापा के घूमने क्यों आया हुआ था। जीप चल रही थी और गाइड हमें जंगल के बारे में , वहाँ पाये जाने वाले शेर, तेंदुआ, सांभर, चीतल, गौर, चिंकारा, भालू और भैंसा आदि जानवरों के बारे में बता रहा था। कान उसे सुन रहे थे और आँखें मनमोहक जंगल में उसके बताये जानवरों को तलाश रहीं थीं।
अप्सरा विहार या परी ताल जीप से उतर कर, पैदल खूबसूरत जंगल से होते हुए, हम पहुँचे। 30 फीट ऊँचा तालाब एक छोटे से झरने से बना है। यह सुन्दर ताल तैराकी और गोताखोरी के लिये बहुत उपयुक्त है। गाइड ने बताया कि यहाँ अप्सरायें तैरने घूमने आती थीं इसलिये इसका नाम अप्सरा विहार पड़ गया। मैंने पूछा,’’किसी ने अप्सरा को देखा क्या?’’गाइड बोला,’’नहीं, नहीं अंग्रेजों कि मेम गोरी चिट्टी होती हैं न वो यहाँ के आदिवासियों को परी या अप्सरा सी लगीं, जंगल से घिरा ताल है, तैरती भी होंगी। तो इन्होंने इसे अप्सरा विहार कहना शुरू कर दिया।’’ यहाँ से आधा किलोमीटर की दूरी पर रजत प्रपात है। 350 फीट ऊँचाई से गिरता हुआ झरना, दूधिया लगता है। इसलिये इसे रजत प्रपात कहते हैं। यहाँ से हम सबसे ऊँचाई पर धूपगढ़ गये। यहाँ का सूर्य उदय और अस्त बहुत मनमोहक होता है और दिन में हरी भरी घाटियाँ देख सकते हैं। दूसरी ऊँची चोटी चैड़ागढ़ भी यहाँ से दिखती है। रीछगढ़, पेरासेलिंग, संगम, राजेन्द्रगिरि, लवर्स पाइंट गये। लवर्स पाइंट का प्राकृतिक रूप से प्राप्त लकड़ी में मामूली सा बदलाव कर बना फर्नीचर मुझे अच्छा लगा। राजेन्द्रगिरि बहुत सुन्दर पहाड़ी है। हमारे प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद यहाँ स्वास्थ लाभ के लिये आये थे। उन्हें यह स्थान बहुत पसंद आया। यहाँ एक बहुत सुन्दर उद्यान बनाया गया है, उन्ही के नाम पर इसका नाम राजेन्द्रगिरि रक्खा गया है। उद्यान के बाहर एक महुए का पेड़ था। जिस पर से महुए टपक रहे थे। यहाँ हमने जीवन में पहली बार मीठा मीठा महुआ चखा। यहाँ से हम बी फाल गये। रास्ते में आने वाले पानी से एक बहुत सुन्दर बनाया झरना है। यहाँ, जगह जगह स्टेप में उतरता पानी था। बी फाल तक जाने वाले सबसे पहले यहीं इसकी सुन्दरता में अटक जाते हैं। हम भी अटक गये। मैं एक पत्थर पर पानी में पैर लटका कर बैठ गई। मेरे पैरों में कुछ अजीब सा हुआ, मैंने झट से पैर ऊपर कर पानी में झाँका। जहाँ मेरे पैर थे, वहाँ ढेरो छोटी छोटी मछलियाँ थीं। मेरे पीछे एक अत्याधुनिका लड़की खड़ी थी, वो इतनी खुशी से चिल्लाई कि मैं काँप गई। वो बोली ,’’ये जो फिश हैं न, ये पैरों की डैड सैल खाती है। आपको पता है, इस फिशवाले पैडिक्योर का रेट हजारों रूपये है।’’ वह शार्ट पहने थी फिर उसने पानी में टाँगे लटका कर, मछलियों को डैड सैल का बुफे परोसा। हम बी फाॅल पहुँचे। मधुमक्खी के बीछत्ते के आकार का और वैसी ही आवाज करता झरना था। गाइड ने बताया कि यहाँ शाहरूख और करीना अशोका फिल्म की शूटिंग के लिये आये थे। लोगों में से कोई बोला,’’अब हम आयें हैं।’’सुनते ही सब हंस पड़े। इसकी सुन्दरता ने हमें रोके रक्खा। काफी समय बिता कर हम जीप पर लौटे। शाम होने लगी थी। अब हम झील पर पहुँचे। गाइड और ड्राइवर की छुट्टी कर दी। क्योंकि बोटिंग के बाद हम पैदल होटल जाना चाहते थे। झील में एक घण्टा बोटिंग करने के बाद हम उसके किनारे बैठे हवा का आनन्द लेते रहे। अब हम पैदल होटल की ओर चल पड़े। पता नहीं हवा की ताज़गी थी, हम खूब पैदल चलते पर थकान नहीं थी। रास्ते में कुछ दूरी पर आर्मी आॅकेस्ट्रा की शायद रिहर्सल हो रही थी। उसी रास्ते में एक बहुत ही खूबसूरत पार्क था। हम वहीं जब तक आॅकेस्ट्रा बजता रहा, बैठे रहे। चौथा दिन हमने महादेव के लिये रक्खा था। क्रमशः
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