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Monday 16 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश , भारतीय रेल में हमारी संस्कृति 2 Madhya Pradesh Part 2 इटारसी से पिपरिया Etarsi se Pipariya

                   अगले दिन इटारसी से हमारी पिपरिया के लिये गाड़ी में सीट रिजर्व थी। सड़क मार्ग से हम इटारसी स्टेशन पहुँचे। इटारसी जंगशन है। स्टेशन पर मुझे एक बात ने बहुत हैरान किया। वह यह कि मैं बहुत सफर करती हूँ इसलिये बर्थ पर लेटे लेटे ही, मैं दुर्गंध से बता देती हूँ कि स्टेशन आने वाला है। पर इटारसी के स्टेशन पर बदबू नहीं थी। ट्रेन एक घण्टा लेट थी। यहाँ स्टेशन पर पाव भाजी की प्लेट लगा कर, उस पर नमकीन डालकर देते हैं। जो पावभाजी के स्वाद को और बढ़ा देता है। यहाँ पर पिपरिया के लिये सुबह ग्यारह बजे की ट्रेन में अपनी बोगी में सवार हुए। हमारी रिर्जव सीटों पर और लोग बैठे थे, थोड़ा सा सफर था। इसलिये जिसको जहाँ सीट मिली, वहीं बैठ गया। पर मेरी सीट खिड़की की थी इसलिये मैंने सीट खाली करवाने के लिये उसपर बैठे आधुनिक फैशन के अनुसार तराशी गई मूंछो वाले युवक से सीट खाली करने को कहा। वो कुछ बोलता, उससे पहले दूर साइड सीट की अपर सीट से उसकी माँ बोली,’’बैठा रहने दो न, बच्चा है, खिड़की से नज़ारे देखता हुआ जाना चाहता है। आप उसकी सीट पर बैठ जाइये न।’’मेरे कुछ बोलने से पहले ही कुछ सवारियाँ बोल उठी,’’दाढ़ी मूंछ वाला तुम्हारा छोरा तो बच्चा है, तो ये बहन जी भी बच्ची हैं।’’ बाकि सवारियों की आँखें एक्सरे मशीन की तरह मेरी अवस्था का अंदाज लगाने लगी। उस युवा ने अपने परिवार की इच्छा के विरूद्ध, उन्हें चुप रहने को कहकर मुझे मेरी सीट दी। मैं धन्यवाद कह कर, बैठ गई। उसी महिला ने पूरी आलू की सब्जी आचार निकाल कर काग़ज की प्लेट में डाल डाल कर अपने परिवार के सदस्यों को देना शुरू किया। उसके आचार की खूशबू से पूरा डिब्बा भर गया। बाकि सवारियों के साथ मुझे भी उसने खाने को पूछा, सबके साथ मैंने भी धन्यवाद कर दिया। इसके साथ ही माहौल ही बदल गया। सीट खाली करवाने का गुस्सा भी खत्म। जो भी कुछ खाने को निकालता वह सहयात्रियों से लेने को जरूर कहता था पर बदले में सब धन्यवाद देते। यहाँ किसी ने भी खाना भी एक्चेंज नहीं किया जबकि राजधानी में मिलने वाली खाने की थाली से चावल खाने वाले, सहयात्री को परांठे का पैकेट देकर, बदले में चावल का बाॅक्स ले लेते हैं।
  सीट के नीचे लोगों का सामान भरा हुआ था। इसलिये मेरा बैग मेरी नज़रों के सामने मुझसे दूर, दो पुलिस वालों के पास मैंने रक्खा था। अंजना ने पूछा,’’बैग कहाँ है?’’मैंने जवाब दिया,’’चिंता मत करो पुलिस जी बैठी हैं, बैग उनके पास रक्खा है।’’ पुलिस जी ने मुस्कुराते हुए मुझे कहा,’’मैडम देखिये, वो क्या लिखा है?’’वहाँ लिखा हुआ था ’यात्री अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें।’ अब मैं भी हंस पड़ी। मैंने पुलिस जी से जी.टी.एक्सप्रेस के टू. एसी.में बैग चोरी की घटना को बताया कि ऐसा कैसे संभव हुआ? सभी खाते पीते घरों के सभ्य लोग थे। गाड़ी भी बड़े स्टेशनों पर ही खड़ी होती है। पुलिस जी ने बताया कि इसमें तीन लोग शामिल होते हैं। एक ने सीट रिजर्व करवाई होती है। दो अलग अलग गेट से चढ़ते हैं। एक रेकी करता है, दूसरा ध्यान बटाता है। स्टेशन आते ही, तीसरा बैग लेकर साफ जाता है। इस किस्से को सुनने के बाद यात्रियों का प्रश्न था कि हम कहाँ से आए हैं और कहाँ जा रहे हैं? अंजना ने बताया कि हम नौएडा से हैं और पचमढ़ी जा रहे हैं। पिपरिया उतरने वालो ने पूरा पचमढ़ी का रास्ता समझा दिया। किस तरह से घूमना है। पिपरिया से पचपढ़ी से टैक्सी का किराया, बस का किराया आदि सब बताया। उनका कहना था कि हम परदेसी हैं (जबकि हम सब भारतवासी हैं)हमें कोई लूट न ले। पचमढ़ी में दिनों के हिसाब से कैसे घूमना है। क्या क्या देखना है। टैक्सी के रेट आदि सब समझा दिये। होटल के कमरों का किराया तक। पिपरिया में दो मिनट के लिये गाड़ी रुकती है। सवारियों ने ही सामान उतरवा दिया। यहाँ भी कुली नहीं था।
  स्टेशन पर बाकि लोगों को सामान के साथ छोड़ कर, बाहर आकर टैक्सी तय की। यहाँ सहयात्रियों की दी गई जानकारी बहुत काम आई। अब फोन कर बाकि लोगो को स्टेशन से बाहर बुला लिया। जिप्सी में सामान रख, हम चल पढ़े। सड़क के दोनों ओर गेहूँ की पकी हुई बालियों की सुनहरी चादर बिछी हुई थी। ड्राइवर बोला, ’’आप यहीं लंच कर लीजिये, वहाँ एनक्रोचमेंट हटाने का अभियान चल रहा हैं। जो शाम को पाँच बजे तक चलेगा।’’ वह हमें एक रैस्टोरैंट में ले गया। जहाँ गैस की बजाय लकड़ी पर खाना बन रहा था। यहाँ एक नई सब्ज़ी सेव की मिली। इतने सालो बाद चूल्हे की रोटी खाकर आनन्द आ गया.  अंजना ने स्वादिष्ट खाने का राज चूल्हा बताया\ क्रमशः