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Sunday 4 June 2017

कंलगूट बीच, टैण्डर कोकोनट आइसक्रीम, नेवरी और पेड़ से नारियल तोड़ना Goa Yatra 3गोवा यात्रा भाग 3 नीलम भागी










 कंलगूट बीच, टैण्डर कोकोनट आइसक्रीम, नेवरी और पेड़ से नारियल तोड़ना
                                          नीलम भागी
बच्चों की मनपसंद दो चीज़े होती हैं पानी और रेत जिसके सामने उसे किसी खिलौने की जरूरत नहीं होती। चुम्मू का जैसे ही पहला कदम रेत पर पड़ा, उसने झट से दोनों मुठ्ठियाँ रेत से भर ली। पानी को देखकर तो उसकी आँखें फैल गई। आती हुई लहरें उसे बाहर धकेल रहीं थीं और जाती हुई अंदर खींच रहीं थी और पैरों के नीचे से रेत खिसक रही थी। उसने कस के पापा का हाथ पकड़ लिया और लहरों की अठखेलियों को समझना शुरू कर दिया। शायद अब उसे समझ आ गया, उसने पापा का हाथ छोड़ दिया। पैकिट की क्ले(मिट्टी) से खेलने वाले चुम्मू के पास, दूर तक फैली गीली रेत थी। किनारे की गीली रेत पर बैठ कर वो रेत से खिलौने बनाने लगा। कभी कोई लहर आती उसके सारे खिलौने धराशायी कर जाती। ये देखकर वह खिलखिला कर हंसता और वह फिर उसी तरह बनाने में लग जाता। कड़ी मेहनत के बाद भी उसका एक भी खिलौना नहीं टिका पर उसने हिम्मत नहीं हारी। अब वह पीछे खिसकता रहा, रेत  के लड्डू बनाता रहा, लहरें खाती रहीं। उसने वहाँ तक बनाये जहाँ तक रेत गीली थी़़़ लहरें भी वहीं तक लड्डू खाने आई। लेकिन वह दीनदुनिया से बेखबर लहरों से खेलता रहा। जब किनारे पर उसे तीखी धूप लगने लगी, शायद थक भी गया हो, तब वह सागर की ओर पैर करके पेट के बल लेट कर रेत से खेलने लगा। अब लहरें उसे भिगोती हुई जाती थीं। चुम्मू को देसी विदेशी सभी तरह के खिलौने मिले हैं लेकिन रेत पानी से खेलते हुए उसके चेहरे पर जो खुशी थी, ऐसी मैंने कभी नहीं देखी थी। हमने एक एक कर, चुम्मू पर नज़र रक्खी हुई थी। अचानक उठ कर वह पानी की ओर भागने लगा। श्वेता ने झट से उसे पकड़ा। अब उसने तो हाथ छुडा कर लहरों के बीच में जाने का खेल बना लिया। हम थके तो नहीं थे पर धूप बहुत तेज हो गई थी पानी से बाहर आये और गीले कपड़ों से चल दिये। सूखी रेत गर्म हो चुकी थी, उपर से धूप। जल्दी जल्दी रेत से बाहर आये। वहाँ हमने टैण्डर कोकोनट आइसक्रीम खाई जो हमें बहुत पसंद आई। टहलते हुए सबसे पहले हैट खरीदे, जिससे धूप में चलना आसान हो गया। हवा तो वहाँ चलती ही अच्छी है। पता नहीं समुद्र में नहाने से हम बहुत थक गये थे। हम खाने की जगह ढूंढ रहे थे। जो वहाँ बहुतायत में थीं। पर उस समय सब में भीड़ थी, वेटिंग थी। हम गैस्ट हाउस की ओर चल दिये कि रास्ते में खा लेंगे। एक दुकान पर हमें नई मिठाई दिखी हमने ली। उसका नाम नेवरी था, जो नारियल, इलायची, बादाम व चीनी से बनी थी। स्वाद में बहुत अच्छी थी। हमें एक रैस्टोरैंट दिखा, उसमें भीड़ कम थी। हम खाने बैठै। स्वाद में दाल सब्जी सब स्वादिष्ट। मट्ठा लिया उसका स्वाद बहुत लजी़ज था। उन्होंने छौंक लगा कर दिया था। भीड़ का समय था, अभी तो हमको रूकना था। बाद में स्वाद के राज़ का पता लगाउँगी। खाना खाकर हम चल दिये। वहाँ से हमारा गैस्टहाउस पास में ही था। आकर नहाये फिर सो गये। शाम को ढप ढप की आवाज से नींद खुल गई। मैंने बाहर आ कर देखा, नारियल तोड़े जा रहे थे। झट से चुम्मू को जगाया। वह नारियल  गिरते देख खुशी से तालियाँ बजाने लगा। जब तोड़ने वाला उतरा, तो मैं भी बड़ी हैरान हुई। उसने दोनों पैरों के टखनों को रस्सी से बाँध रक्खा था। अब वह दूसरे पेड़ पर भी ऐसे ही चिपक चिपक कर केंचुए की तरह चढ़ने लगा।़ मैंने पेड़ों की मालकिन मार्था से कहा,’’हाय! कितना मुश्किल काम है, पेड़ से नारियल तोड़ना।’’उसका जवाब सुन कर मैं हैरान रह गई। वो बोली,’’ये जो तोड़ रहा है न, इसका परिवार पीढ़ियों से हमारे यहाँ नारियल तोड़ता है। मैं इसे सत्तर रूपये पेड़ के हिसाब से देती हूँ। जबकि बाजार में सौ रूपया पेड़ है। इसके बेटे बहुत पढ़ लिख गये हैं। बाहर अच्छी नौकरियों पर लगे हैं। वे तो चढ़ेंगे नहीं अब पेड़ो पर। ये भी अपनी मर्जी से अपनी सहूलियत के हिसाब से आता है। आज ये आ गया तो मैंने सोचा सभी तुड़वा लेती हूँ, फिर पता नहीं कब ये आये।’’जमीन पर हरे नारियलों  का पहाड़ लग गया। लेकिन मार्था का ट्रक भर नारियल बाजार भाव से गया। नारियल पानी का रेट दिल्ली और गोवा में एक ही था।


4 comments:

Unknown said...

Very live and minutely explained. Enjoyed.

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Unknown said...

गोवा का समुद्री तट ,मिठाई और नारियल की किस्मत का चित्रण,बहुत खूब । धन्यवाद एवं आभार

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार