शिव जी की 76 फुट ऊँची दर्शनीय प्रतिमा जबलपुर यात्रा भाग 5
नीलम भागी
सुबह नींद खुली, मैंने और डॉ. शोभा ने सोच लिया था कि बाथरूम जब खाली होगा, तब बिस्तर छोड़ेंगे। हम मोबाइल में लग गई। जब हम बाथरूम से निकली, तो महिलाएं जा चुकी थीं। हम भी जल्दी जल्दी तैयार होकर बाहर खड़े एक ऑटो से अधिवेशन स्थल पर पहुँचे। उसी ऑटो वाले मुकेश से हमने 400रू में छूटा हुआ जबलपुर घूमना तय कर लिया। आज लंच टाइम में पास की ही कोई जगह दिखाने को कहा। क्योंकि तीन बजे से शोभा यात्रा थी। उसका मोबाइल नम्बर ले लिया था। नाश्ता उठने वाला था। स्वादिष्ट पकौड़े, पतली पतली सुनहरी जलेबियाँ, पोहा नमकीन और न जाने क्या क्या था। नाश्ता करके साहित्य विर्मश में बैठे। लंच टाइम से थोड़ा पहले मुकेश को फोन कर दिया। उसने कहा कि वह आधे घण्टे में पहुँच जायेगा। नाश्ता बहुत हैवी कर लिया था इसलिये लंच मिस कर दिया। मुकेश के आते ही हम कचनार सिटी स्थित शिव मंदिर गए। चप्पल जमा करवा कर, टोकन सम्भाला। अन्दर 76 फुट ऊँची शिवजी की मूर्ति थी। पास ही नंदी विराजमान थे। हमने मुकेश को फोन कर दिया कि वो हमारा इंतजार न करे। अधिवेशन स्थल मंदिर के पास था इसलिये हमने पैदल जाने का मन बना लिया। भगवान जी तक जाने के लिये दोनो ओर कार्पेट बिछा था। मैं बीच में खड़ी होकर पूजा करना चाहती थी पर मेरे पैर जल रहे थे। हमें यहाँ बहुत अच्छा लग रहा था। हम यहाँ बरामदे में बैठ गये। किसी ने आकर पंखा चला दिया। हम निशब्द भगवान आशुतोष को निहारते रहे। हरियाली भी बहुत अच्छी से मेनटेन की हुई थी। खुले आकाश के नीचे भोले सब को आकर्षित कर रहे थे। जो भी आता पेड़ों की छाँव में, हरी हरी घास पर बैठ जाता और प्रतिमा को देखता रहता। मैंने डॉ. शोभा से कहा कि भगवान के चेहरे की भाव भंगिमा.......मेरी बात को पूरा किया एक स्थानीय सज्जन ने जो अपने मेहमानों को दर्शन कराने लाये थे बोले,’’जिस शिल्पकार के. श्रीधर ने इसे बनाया हैं, उसका भी यही कहना है कि उन्होंने अब तक 12 प्रतिमाएं बनाई हैं पर इस प्रतिमा की बात ही अलग है। उन्होंने बताया कि बिल्डर अरूण कुमार तिवारी 1996 में बेंगलूर में एक बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन देखने गये। वहाँ उन्होने 41 फीट की भोले की प्रतिमा देखी। जिसे वे मन में बसा कर लौटे। सन् 2000 में जब उन्होने कचनार सिटी की शुरूवात की तो सबसे पहले भोले के लिये भूखंड रक्खा। वे बैंगलूर गये। बड़ी मुश्किल से मूर्तिकार का पता लगाया, जो वहाँ से 300 किमी. की दूरी पर शिमोगा में रहता था। उसने भी नार्थ में आने से साफ मना कर दिया। काफी मिन्नतों के बाद, वह अपनी शर्तों पर आने को राजी हुआ। अरूण जी ने के. श्रीधर की सभी बाते मानी क्योंकि उन्होंने तो जबलपुर के गौरव को बढ़ाने में अपना योगदान देना था। शिल्पकार अपने 15 मजदूरों को लेकर आ गये और 2003 में निर्माण शुरू कर दिया। तीन वर्ष यानि 2006 में प्रतिमा तैयार हो गई। हम सुन रहे थे और ये अति सुन्दर भव्य प्रतिमा उनके शहर में होने से, उनके चेहरे से गर्व टपक रहा था ये महसूस भी कर रहे थे। इस परिसर में श्रीधर ने अन्य बेहतरीन प्रतिमाएं भी बनाई हैं। सुबह शाम यहाँ आरती होती है। महाशिवरात्री और मकरसंक्राति को यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है। अब हम यहाँ से पैदल अधिवेशन स्थल की ओर चल पड़े। जब से यहाँ से लौटी हूँ मेरे मन में शिवजी का यही रूप छा गया है। क्रमशः
नीलम भागी
सुबह नींद खुली, मैंने और डॉ. शोभा ने सोच लिया था कि बाथरूम जब खाली होगा, तब बिस्तर छोड़ेंगे। हम मोबाइल में लग गई। जब हम बाथरूम से निकली, तो महिलाएं जा चुकी थीं। हम भी जल्दी जल्दी तैयार होकर बाहर खड़े एक ऑटो से अधिवेशन स्थल पर पहुँचे। उसी ऑटो वाले मुकेश से हमने 400रू में छूटा हुआ जबलपुर घूमना तय कर लिया। आज लंच टाइम में पास की ही कोई जगह दिखाने को कहा। क्योंकि तीन बजे से शोभा यात्रा थी। उसका मोबाइल नम्बर ले लिया था। नाश्ता उठने वाला था। स्वादिष्ट पकौड़े, पतली पतली सुनहरी जलेबियाँ, पोहा नमकीन और न जाने क्या क्या था। नाश्ता करके साहित्य विर्मश में बैठे। लंच टाइम से थोड़ा पहले मुकेश को फोन कर दिया। उसने कहा कि वह आधे घण्टे में पहुँच जायेगा। नाश्ता बहुत हैवी कर लिया था इसलिये लंच मिस कर दिया। मुकेश के आते ही हम कचनार सिटी स्थित शिव मंदिर गए। चप्पल जमा करवा कर, टोकन सम्भाला। अन्दर 76 फुट ऊँची शिवजी की मूर्ति थी। पास ही नंदी विराजमान थे। हमने मुकेश को फोन कर दिया कि वो हमारा इंतजार न करे। अधिवेशन स्थल मंदिर के पास था इसलिये हमने पैदल जाने का मन बना लिया। भगवान जी तक जाने के लिये दोनो ओर कार्पेट बिछा था। मैं बीच में खड़ी होकर पूजा करना चाहती थी पर मेरे पैर जल रहे थे। हमें यहाँ बहुत अच्छा लग रहा था। हम यहाँ बरामदे में बैठ गये। किसी ने आकर पंखा चला दिया। हम निशब्द भगवान आशुतोष को निहारते रहे। हरियाली भी बहुत अच्छी से मेनटेन की हुई थी। खुले आकाश के नीचे भोले सब को आकर्षित कर रहे थे। जो भी आता पेड़ों की छाँव में, हरी हरी घास पर बैठ जाता और प्रतिमा को देखता रहता। मैंने डॉ. शोभा से कहा कि भगवान के चेहरे की भाव भंगिमा.......मेरी बात को पूरा किया एक स्थानीय सज्जन ने जो अपने मेहमानों को दर्शन कराने लाये थे बोले,’’जिस शिल्पकार के. श्रीधर ने इसे बनाया हैं, उसका भी यही कहना है कि उन्होंने अब तक 12 प्रतिमाएं बनाई हैं पर इस प्रतिमा की बात ही अलग है। उन्होंने बताया कि बिल्डर अरूण कुमार तिवारी 1996 में बेंगलूर में एक बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन देखने गये। वहाँ उन्होने 41 फीट की भोले की प्रतिमा देखी। जिसे वे मन में बसा कर लौटे। सन् 2000 में जब उन्होने कचनार सिटी की शुरूवात की तो सबसे पहले भोले के लिये भूखंड रक्खा। वे बैंगलूर गये। बड़ी मुश्किल से मूर्तिकार का पता लगाया, जो वहाँ से 300 किमी. की दूरी पर शिमोगा में रहता था। उसने भी नार्थ में आने से साफ मना कर दिया। काफी मिन्नतों के बाद, वह अपनी शर्तों पर आने को राजी हुआ। अरूण जी ने के. श्रीधर की सभी बाते मानी क्योंकि उन्होंने तो जबलपुर के गौरव को बढ़ाने में अपना योगदान देना था। शिल्पकार अपने 15 मजदूरों को लेकर आ गये और 2003 में निर्माण शुरू कर दिया। तीन वर्ष यानि 2006 में प्रतिमा तैयार हो गई। हम सुन रहे थे और ये अति सुन्दर भव्य प्रतिमा उनके शहर में होने से, उनके चेहरे से गर्व टपक रहा था ये महसूस भी कर रहे थे। इस परिसर में श्रीधर ने अन्य बेहतरीन प्रतिमाएं भी बनाई हैं। सुबह शाम यहाँ आरती होती है। महाशिवरात्री और मकरसंक्राति को यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है। अब हम यहाँ से पैदल अधिवेशन स्थल की ओर चल पड़े। जब से यहाँ से लौटी हूँ मेरे मन में शिवजी का यही रूप छा गया है। क्रमशः
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Hardik dhanyvad
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