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Saturday 25 November 2017

सड़क का सम्मान, ट्री गार्ड बना कूडेदान स्वच्छ भारत sadak ka samman Tree Gaurd bana kurey dan नीलम भागी

 सड़क का सम्मान, ट्री गार्ड बना कूडेदान
                                       नीलम भागी
लोगों को तरह तरह के शौक होते हैं। मसलन पड़ोसियों से लड़ना, नौकरानी से इश्क लड़ाना, आधी रात को गाड़ी में कानफोड़ू म्यूजिक बजाते हुए घर लौटना आदि। ये शौक कब आदत में बदल जाते हैं, पता ही नहीं चलता। ऐसे ही मेरा शौक है, सड़क पर पैदल चलना। ज्यादातर मैं चलते चलते कुछ न कुछ खाती भी रहती हूँ। खाने का तरीका भी मेरा अपने जैसे लोगों की ही तरह हैं। अब जैसे मैं चलते हुए मूंगफली खा रहीं हूँ, तो मूंगफली की गिरी मैं अपने मुंह में डालती जाती हूँ और छिलका सड़क पर फैंकती रहती हूँ। ऐसा ही मैं चिप्स, बिस्किट, चॉकलेट, आइस्क्रीम आदि के साथ करती हूँ।  इन सबके रैपर मैं सड़क पर ही फैंकती हूँ। केला खाते हुए, मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखती हूँ कि छिलका बीच सड़क पर न फैंक कर, फुटपाथ पर ही फैंकू। इसके पीछे मेरी एक थ्यौरी है, वो ये है कि  सड़क पर भीड़ होती है। यदि छिलके से कोई फिसला तो गिरने से किसी गाड़ी से टकरा सकता है। जिससे कोई दुर्घटना हो सकती है, लेकिन फुटपाथ पर फिसलने से वह उठ कर, हाथों से कपड़े झाड़ कर चल देगा। साथ ही मेरे जैसे लोग उसे नसीहत दे देंगें,’’भाई साहब देख कर चला करो। भगवान ने आंखे देखने के लिए दी हैं।’’
  हुआ यूं कि मैं अं उत्कर्षिनी के साथ टहलती हुई सड़क पर जा रही थी। फुटपाथ पर बढ़िया संतरों से लदा ठेला देख, मैंने संतरे खरीद लिए।  बैग से एक संतरा निकाल कर, मैंने उत्कर्षिनी को दिया। उसने नहीं लिया, बदले में थैंक्यू कह कर बोली,’’ उसे सड़क पर इस तरह खाते हुए, चलने की आदत नहीं है।’’ पर मुझे तो आदत है न और एक कहावत भी है कि आदत तो चिता के साथ ही जाती है। इसलिए मैं अपनी आदत के अनुसार एक संतरे को छिलती जा रही थी और साथ ही उसके छिलके चारों दिशाओं में फैंकती जा रही थी। मैंने उस संतरे की पहली फली को मुँह में डाल कर, उसके स्वाद का आनन्द लिया और बीजों को सड़क पर थू थू कर दिया। मेरी इस हरकत को देख कर, अं उत्कर्धि्नी उत्कर्षि उत्कर्षिनी को उपदेश देने का दौरा पड़ गया। वह बोली,’’तुम जैसे लोगों के कारण सड़क पर इतनी गंदगी रहती है। अपना घर साफ और कचरा सड़क पर। सड़क को तो डस्टबिन बना दिया है। सड़क पर खाना बुरा नहीं है पर रैपर, छिलके आदि तो कूड़ेदान में फैंकने चाहिए न।’’ अब मैं उसके भाषण से कनविंस भी होने लगी और बोर भी। पर मैं कहां हार मानने वाली!!  मैंने उसे कहा कि इतनी गंदगी क्या मेरे द्वारा ही फैली है? और सामने ट्री गार्ड दिखाया जिसको लोगो ने डस्टबिन की तरह इस्तेमाल किया था। वह बोली ये वो लोग हैं, जो सड़क पर कूड़ा नहीं फैलाना चाहते लेकिन आस पास कूड़ेदान न होने से उन्होंने यही कूड़ेदान बना दिया है। अब उसे प्रशासन पर भी  गुस्सा आने लगा क्योंकि जगह जगह कूड़ेदान न होने से लोगों ने सड़क पर कचरा न फैला कर सड़क का तो सम्मान किया, पर ट्री गार्ड को कूड़ेदान बना दिया।


4 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

सही है कूड़ेदान भरे हुए रहते हैं कूड़ा इधर उधर फैला रहता है

Sanjay Awasthi said...

सफाई अच्छी आदत है।

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार