सीतामढ़ी जानकी प्रकटया मंदिर, जानकी पुनौरा धाम मंदिर, जानकी कुण्ड
नीलम भागी
रात साढ़े सात बजे हम सीतामढ़ी पहुँचे। थाने के सामने हमने गाड़ियाँ रोक दीं। किसी ने अपने स्थानीय मित्र को फोन कर बुलाया कि हमें होटल का इंतजाम कर दें। पास में ही जानकी प्रकट्या मंदिर था। गाड़ी में बैठे ही मैं देख रही थी कि पुलिस वहाँ बहुत घूम रही थी। हम गाड़ी से उतरे और पैदल चल दिये। मंदिर की ओर । सामने ही बापू की संगमरमर की मूर्ति नज़र आई, जिसके साथ रंग खेला गया था। एक दिन पहले ही दुर्गा पूजा में रंग खेला गया था। अब बापू तो बिहार की आत्मा में बसे हैं और आत्मा तो परमात्मा का रूप है शायद इसलिये माँ र्दुगा के साथ, बापू से भी रंग खेला गया था। लगभग सभी के इष्टदेव की वहाँ मूर्तियाँ थी। हमारा सौभाग्य था कि जिस समय हम वहाँ पहुँचे उस समय आरती चल रही थी। मंदिर प्रांगण में लोग बैठे थे। राम और जानकी की मूर्तियाँ सिंहासन पर विराजमान थीं। मैं भी श्रद्धालुओं की भीड़ में जाकर खड़ी होकर सोचने लगी कि जमींन पर बैठूं या न बैठूं क्योंकि डॉक्टर ने मुझे जमींन पर बैठने और पालथी मार कर बैठने को मना किया है। पर उसी समय वहां भीआरती के लिये सब खड़े हुए। समवेत स्वर में सब आरती में लीन थे। श्रद्धालुओ की श्रद्धा से वहाँ एक अलग सा भाव बना हुआ था। ताल के साथ सब ताली बजा रहे थे। मैं भी सबके साथ आरती गाते, ताली बजाते बिना किसी विचार के भगवान के सामने पहुँच गई। आरती खत्म होने पर मेरी तंद्रा टूटी। मेरे आगे आरती का थाल था। मैंने आरती ली। भगवान को देखती रही। धीरे धीरे प्रांगण खाली होने लगा। हम भी चल दिये। यहाँ ठेलों पर जगह जगह लिट्टी चोखा बिक रहा था। हम गाड़ी के पास पहुँचे तीनो ड्राइवर गाड़ियों के पास ही खड़े थे। मैंने उनसे पूछा कि आप दर्शन करने नहीं जाओगे। उन्होंने जवाब दिया कि आपको और सामान को होटल में पहुंचा कर आयेंगे। देर हो गई तो सुबह सुबह दर्शन कर लेंगे। होटल गये खाना खाकर सोने से पहले मोबाइल पर लगी तो इंटरनेट नहीं, जिसके बिना बड़ा अजीब लग रहा था। होटल वाले कह रहे कि यहाँ दंगा हुआ था। इसलिए बस एक बार कनेक्शन लगेगा। आप टी. वी. देखिये न। सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे मेरी इच्छा रामायण पढ़ने की है और कोई मुझे महाभारत पढ़ने को दे, यह कहते हुए कि ये भी तो धार्मिक है। खैर मैं देर से सोने वाली और देर से उठने वाली मैं, उस दिन रात साढ़े नौ बजे सो गई। सुबह तीन बजे मेरी नींद खुल गई। इंटरनेट आ रहा था। मैं उसमें लग गई। पर ये तो मेरा सोने का समय था। पता नहीं मैं फिर कब सो गई। रक्षा जी ने चाय आने पर जगाया। मैं कप उठाये कमरे से बाहर आई। मैं चाय पीती जा रही थी और एक सज्जन मुझे सुबह खाली पेट चाय पीने के नुकसान और खाली पेट पानी पीने के फायदे बताते जा रहे थे। मेरी चाय और उनका व्याख्यान दोनो एक साथ समाप्त हुए। मैं जल्दी से होटल की सबसे ऊँची छत पर चढ़ कर सीतामढ़ी को देखती रही। हमें यहाँ से नौ बजे निकलना था। जब धूप तेज लगने लगी तो नीचे उतरी। तैयार होकर नाश्ते के लिये गये। इतने में सामान गाड़ियों में रक्खा गया। अब हम पुनौरा धाम की ओर चल पड़े। यहाँ दुकानों के नाम जानकी, मां जानकी सीता जी के नाम से थे। मसलन जानकी मिष्ठान भंडार आदि। पुनौरा जानकी मंदिर के दर्शन किये। जानकी कुण्ड देखा। एक सुंदर सी बनी जगह पर लिखे पत्थर को मैं पढ़ नहीं पाई क्या थी क्योंकि उस पर लोगों ने कपड़े सुखा रक्खे थे। जगह जगह बोर्ड लगे थे। उस पर लिखा था कृपया यत्र तत्र थूकिए नहीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि लोगों को यहाँ इतना थूकना क्यों पड़़ता है?
नीलम भागी
रात साढ़े सात बजे हम सीतामढ़ी पहुँचे। थाने के सामने हमने गाड़ियाँ रोक दीं। किसी ने अपने स्थानीय मित्र को फोन कर बुलाया कि हमें होटल का इंतजाम कर दें। पास में ही जानकी प्रकट्या मंदिर था। गाड़ी में बैठे ही मैं देख रही थी कि पुलिस वहाँ बहुत घूम रही थी। हम गाड़ी से उतरे और पैदल चल दिये। मंदिर की ओर । सामने ही बापू की संगमरमर की मूर्ति नज़र आई, जिसके साथ रंग खेला गया था। एक दिन पहले ही दुर्गा पूजा में रंग खेला गया था। अब बापू तो बिहार की आत्मा में बसे हैं और आत्मा तो परमात्मा का रूप है शायद इसलिये माँ र्दुगा के साथ, बापू से भी रंग खेला गया था। लगभग सभी के इष्टदेव की वहाँ मूर्तियाँ थी। हमारा सौभाग्य था कि जिस समय हम वहाँ पहुँचे उस समय आरती चल रही थी। मंदिर प्रांगण में लोग बैठे थे। राम और जानकी की मूर्तियाँ सिंहासन पर विराजमान थीं। मैं भी श्रद्धालुओं की भीड़ में जाकर खड़ी होकर सोचने लगी कि जमींन पर बैठूं या न बैठूं क्योंकि डॉक्टर ने मुझे जमींन पर बैठने और पालथी मार कर बैठने को मना किया है। पर उसी समय वहां भीआरती के लिये सब खड़े हुए। समवेत स्वर में सब आरती में लीन थे। श्रद्धालुओ की श्रद्धा से वहाँ एक अलग सा भाव बना हुआ था। ताल के साथ सब ताली बजा रहे थे। मैं भी सबके साथ आरती गाते, ताली बजाते बिना किसी विचार के भगवान के सामने पहुँच गई। आरती खत्म होने पर मेरी तंद्रा टूटी। मेरे आगे आरती का थाल था। मैंने आरती ली। भगवान को देखती रही। धीरे धीरे प्रांगण खाली होने लगा। हम भी चल दिये। यहाँ ठेलों पर जगह जगह लिट्टी चोखा बिक रहा था। हम गाड़ी के पास पहुँचे तीनो ड्राइवर गाड़ियों के पास ही खड़े थे। मैंने उनसे पूछा कि आप दर्शन करने नहीं जाओगे। उन्होंने जवाब दिया कि आपको और सामान को होटल में पहुंचा कर आयेंगे। देर हो गई तो सुबह सुबह दर्शन कर लेंगे। होटल गये खाना खाकर सोने से पहले मोबाइल पर लगी तो इंटरनेट नहीं, जिसके बिना बड़ा अजीब लग रहा था। होटल वाले कह रहे कि यहाँ दंगा हुआ था। इसलिए बस एक बार कनेक्शन लगेगा। आप टी. वी. देखिये न। सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे मेरी इच्छा रामायण पढ़ने की है और कोई मुझे महाभारत पढ़ने को दे, यह कहते हुए कि ये भी तो धार्मिक है। खैर मैं देर से सोने वाली और देर से उठने वाली मैं, उस दिन रात साढ़े नौ बजे सो गई। सुबह तीन बजे मेरी नींद खुल गई। इंटरनेट आ रहा था। मैं उसमें लग गई। पर ये तो मेरा सोने का समय था। पता नहीं मैं फिर कब सो गई। रक्षा जी ने चाय आने पर जगाया। मैं कप उठाये कमरे से बाहर आई। मैं चाय पीती जा रही थी और एक सज्जन मुझे सुबह खाली पेट चाय पीने के नुकसान और खाली पेट पानी पीने के फायदे बताते जा रहे थे। मेरी चाय और उनका व्याख्यान दोनो एक साथ समाप्त हुए। मैं जल्दी से होटल की सबसे ऊँची छत पर चढ़ कर सीतामढ़ी को देखती रही। हमें यहाँ से नौ बजे निकलना था। जब धूप तेज लगने लगी तो नीचे उतरी। तैयार होकर नाश्ते के लिये गये। इतने में सामान गाड़ियों में रक्खा गया। अब हम पुनौरा धाम की ओर चल पड़े। यहाँ दुकानों के नाम जानकी, मां जानकी सीता जी के नाम से थे। मसलन जानकी मिष्ठान भंडार आदि। पुनौरा जानकी मंदिर के दर्शन किये। जानकी कुण्ड देखा। एक सुंदर सी बनी जगह पर लिखे पत्थर को मैं पढ़ नहीं पाई क्या थी क्योंकि उस पर लोगों ने कपड़े सुखा रक्खे थे। जगह जगह बोर्ड लगे थे। उस पर लिखा था कृपया यत्र तत्र थूकिए नहीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि लोगों को यहाँ इतना थूकना क्यों पड़़ता है?
4 comments:
बहुत सुन्दर तस्वीरों के साथ जीवंत यात्रा प्रसंग..साथ मे श्री ओ.पी.गोयल जी ...लाजबाब..
आगे भी भेजते रहे ।हमे अच्छा लगेगा ।
धन्यवाद।
हार्दिक आभार
काफी विस्तारपूर्वक और अच्छा लिखा आपने|
हार्दिक धन्यवाद
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