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Thursday, 14 February 2019

भागलपुर से विक्रमशिला विश्वविद्यालय बिहार यात्रा भाग 20 नीलम भागी

भागलपुर से विक्रमशिला विश्वविद्यालय Bhagalpur, Vikramashila Bihar Yatra 
बिहार यात्रा भाग 20 
    नीलम भागी
सहरसा से हम भागलपुर चल पड़े। इस समय साढ़े सात बजे थे। 133 किमी की दूरी थी। रात में प्राकृतिक सौन्दर्य तो दिखता नहीं था। स्ट्रीट लाइट  शहर कस्बा आने पर ही दिखती थी। साथी महिलाओं का करवाचौथ का व्रत था। मैं आसमान को चाँद के लिये घूरती जा रही थी। अचानक मुझे चाँद दिखा। मैंने दोनो गाड़ियों में भी चाँद निकलने की सूचना दे दी। चाँद भी पेट्रोल पंप के पास दिखा था। फटाफट तीनों गाड़ियाँ रूकवाई गईं। छलनी तो थी नहीं इसलिये बिना फिल्टर चाँद को डायरेक्ट देख अर्घ दिया गया। कथा पूजा का सामान वे लाईं थीं और ये तय किया कि होटल में जाकर कथा कर लेंगीं। चाय पी। वहाँ बैठे लोगों से शार्टकट भागलपुर का रास्ता भी समझा। वहाँ से चले। हम आगे वाली गाड़ी को फॉलो कर रहे थे और तीसरी गाड़ी हमें। मेरी सीट से मैं आगे और पीछे दोनों गाड़ियों को देख सकती थी। कुछ समय बाद न जाने कौन से रास्ते पर आ गये थे बिल्कुल कच्ची सड़क अंधेरा, कहीं कहीं कोई बाइक कभी पास से गुजरती। अचानक रमेश बोला कि हम लोग गलत रास्ते से आ गये हैं। एक मोड़ पर सामने से एक ट्रक दिखा। उससे भागलपुर का रास्ता पूछा तो उसने बताया कि नौगछिया से हाइवे मिलेगा। अब हम जिस रास्ते से जा रहे थे, वह ऊँची बहुत ही उबड़ खाबड़ सड़क थी। कभी कभी गाड़ी की लाइट का रिफलैक्शन साइड में पड़ता यानि पानी होता। कोई कोई गाँव ऐसा आता जहाँ कोई भी इनसान बाहर नजर नहीं आता था। यह देख बड़ी हैरानी होती फिर वैसा ही रास्ता आ जाता। मैंने रमेश से इसका कारण पूछा, उसने बताया कि ये नक्सलाइट ऐरिया है। यहाँ बरसात में कोसी, बागमती, आइसालोटा और नेपाल से पानी आ जाता है। जो बरसात के दो महीने बाद तक रहता है। यहाँ के लोग पेड़ों पर और छतों पर रहते हैं। हैलीकॉपटर से सत्तू और पानी के पैकेट गिराये जाते हैं। मैंने पूछा कि यहाँ नक्सलाइट से खतरा तो नहीं है। वो बोला,’’नहीं नहीं, उनकी तो सरकार से लड़ाई रहती है। अगर जरूरत पड़े तो यहाँ से जाने वालों को लूट लेते हैं।’’ मैं बोली,’’उनको कैसे पता चलता है कि किनको लूटना है?’’रमेश ने जवाब,’’जैसे आप लोगों ने चाय वाले से रास्ता पूछा था न, वहीं कोई उनका आदमी बैठा होगा तो वो बता देगा। पर हमें समझ है कि किससे रास्ता पूछना है।’’अब मुझे तो डर लगने लगा। फिर मैं सोचने लगी कि अगर नक्सलाइट हमें ले गए। तो वो कहेंगे चटाई पर बैठो। मुझे तो डॉक्टर ने नीचे बैठने और पालथी मार कर बैठने को मना किया है। मैं कैसे बैठूंगी? मैंने अपने आप को किसी तरह से समझाया कि जो होगा देखा जायेगा। ध्यान बटाने के लिये मैंने रमेश से पूछा कि तुम भामती आश्रम के रास्ते में बता रहे थे कि तुम पाँचवीं के आगे पढ़ाई़ क्यों नहीं कर पाये? अब उसने अपनी जीवन यात्रा यानि ऑटोबायोग्राफी शुरू की। वह बहुत अच्छे से सुना रहा था। उसमें प्यार और कॉमेडी को छोड़ सब कुछ था। मेरी आँखे नौगछिया को ढूंढ रहीं थी पर चौथम, महेशखूंट, गोगारी जमालपुर, बीहपुर, खारिक सब आये पर नौगछिया नहीं। मोबाइल की चार्जिंग खत्म। कहीं रमेश उतर कर रास्ता पूछने जाता तो मैं उससे पूछती कि तुम्हें कैसे पता कि यह नक्सलाइट का आदमी नहीं है? वह बताता देखिए यहाँ रात में दुकान खुली है। लोग बाहर सो रहें हैं यानि ये इलाका ठीक है। एक जगह डीजल भरवाने लगे। पैट्रोल पंप मालिक ही होगा, वह अंदर से लॉक लगा कर बैठा था। पैट्रोल भरने वाले खुले में थे। वहाँ ट्रक वालों ने रास्ता अच्छे से समझाया कि दस किमी पर नौगछिया है। वहाँ से हाइवे मिलेगा। रमेश की पाँचवी कक्षा से शुरू स्टोरी में, उसके पाँचवे बच्चे के जन्म होते ही नौगछिया आ गया। भागलपुर से पहले डेढ़ बजे रोड साइड ढाबे पर रूके। खाने और चाय के लिए आर्डर किया। धुंआ रहित चूल्हा देख मैं वैसे ही उबलती चाय के पास जाकर खड़ी हो गई, यह देखने की ईंधन क्या है और चूल्हे की बनावट कैसी है? चीनी के डिब्बे पर नजर पड़ी, उसमें काले चींटे ही चींटे। ये देख, मैं तो आकर गाड़ी में ही बैठ गई। थोड़ा सा नमकीन खाकर पानी पी लिया। रात दो बजे कहीं खाना तो मिलना नहीं था। सर ने कहाकि सुबह 5 बजे विक्रमशिला जाना है। जिसने जाना है बताओ। मुझे तो जाना ही था। सब थके थे शायद इसलिये एक गाड़ी जायेगी। सब तैयार रहेंगे। लौटते ही पटना जाना है, वहाँ से सवा सात बजे की राजधानी है। देश का पाँचवा 4.7 किमी गंगाजी का पुल पार कर रात ढाई बजे हम होटल पहुंचे। थोड़ा सोई विक्रम शिला न छूट जाये इसलिये समय पर अपने आप नींद खुल गई। मैं तैयार होकर, लगेज के साथ अपनी सीट पर बैठ गई। महाभारत के समय के अंगप्रदेश कर्ण की राजधानी के बाजार को देखने लगी। सुबह सुबह हलवाइयों की दुकाने सबसे पहलें खुलीं थीं। टसर सिल्क के लिये मशहूर, देश के किसी भी प्राचीन शहर की तरह लगने वाले भागलपुर ने अपना नाम स्मार्ट सीटी में दर्ज करवा लिया है। 800 फीट ऊँचे मंदार पर्वत पर बनी झील को देखना था। हलवाई से पूरी, सब्जी और जलेबी की पैंकिंग करवा ली गई। समय बचाने के लिये खाना हमें गाड़ी में ही था। अब सब जाने को तैयार हो गये। मै बैठी शहर का जगना देखती रहीं। सात बजे हम वहाँ से 38 किमी दूर विक्रमशिला को चले और अमापुर में 3 किमी के जाम में फंस गये। रमेश ने बताया कि एक बजे तक ये जाम खुल जायेगा। विक्रमशिला यहाँ से बस 20 किमी दूर है। न वापिस जाने का रास्ता न आगे जाने का। राजधानी छूटने के आसार देख, तीनों ड्राइवरों ने दूसरों को अपनी समस्या बताई। सबने थोड़ी थोड़ी गाड़ी खिसका कर, हमारी गाड़ी के दायीं ओर कच्चा रास्ता जाता था। उसमें मोड़ने लायक जगह बनाई। दाएं रमेश ने गाड़ी उतारी, पीछे दोनो गाड़ियां उतरी। एकविचारी से मुड़े। क्रमशः 







2 comments:

अंशुमान चक्रपाणि said...

आप भागलपुर होकर विक्रमशिला भी चली गई. मुझे पता भी न चल. मैं आपके फ्रेंड लिस्ट में हूँ. मैंने कई बार भागलपुर पर लिखा भी और मंदार हिल और विक्रमशिला पर भी. जिसे पढकर कई लोग आये. आप आई और चली भी गई. दुखी हुआ... ये आज जानकर... शायद मिल सकता था.

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद