नीलम भागी
दुबई एअरर्पोट से बाहर आते ही बेटी ने फोन किया फिर
मुझसे बोली,’’गाड़ी में फटा फट चढ़ना, गाड़ी आने वाली है। रेहान
को ऑफिस में देर हो गई थी इसलिये वो लेट हो गया है। पार्किंग में जायेंगे तो
एक घण्टा और खराब हो जायेगा, देर तक
यहाँ गाड़ी रूकी तो फाइन लग जायेगा।’’ बात खत्म करते ही बोली,’’चलो माँ।’’दोनो
ने सामान उठाया फटाफट, सामने लाल टॉयटा रूकी, हम उसमें बैठ गये। रेहान
ड्राइविंग सीट पर बैठै, पंजाबी में बोला,’’
पैरी पैना मासी जी।’’ वो पाकिस्तान से है।
परदेश में अपनी भाषा से मेरा आत्मीय संबोधन से स्वागत हुआ जो मुझे बहुत अच्छा लगा।
एक स्टोर के आगे उसने गाड़ी रोकी और मेरे पैर छूकर उतर गया। बेटी ड्राइविंग सीट पर
बैठ गई। रेहान अपनी गाड़ी को वहाँ पार्क करके गया था। अब रात दस बजे, हम माँ
बेटी घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसने एक विशाल स्टोर के आगे गाडी रोकी और बोली,’’उतरो।’’ उसके
पीछे मैं भी उतर गई। वो बोली,’’
जो जो सामान चाहिए ले लो। फिर बोली सामान मैं ले लेती
हूँ, आप
सामने रोटी सैक्शन में जाकर जैसी रोटी, परांठा लेना हो ले लो।’’ मैं वहाँ गई बड़ा हॉल था, उसमें
सब बेकरी सामान और तरह तरह की रोटियां परांठे के पैकिट थे। वहाँ सब सामान के साथ
रोटी परांठे भी ले रहे थे और मुझे समझ आ गया कि बेटी ने मुझे चकला बेलन क्यों नहीं
उठाने दिया। मैं हैरान होकर चारों ओर देखे जा रही थी। इतने में बेटी फल और एक ही
सब्जी, अण्डे, दहीं, दूध के
डब्बे लेकर आई और आते ही बोली कि आपको कोई रोटी पसंद नहीं आई। चलो खबूस ले लेते
हैं। ऐसा कह कर उसने बड़े थाल जितनी चार रोटियों का पैकेट उटा कर ट्रॉली में रख
लिया। और मेरी ट्रेनिंग शुरू, मुझे ट्रॉली देकर बिल काउण्टर पर जाने का बोला और हाथ
में मेरे दरहम पकड़ा दिए। मैंने जाकर बिल बनवाया और उसके आगे मुट्ठी खोल दी, उसने
कुछ दरहम उठाये और पैसे काट कर, बचे हुए मेरी मुट्ठी में रख दिए। बेटी दूर खड़ी
मुस्कुरा कर देखती रही। हम सामान ले गाड़ी में बैठे। बेटी ने समझाया कि ये स्टोर घर
के पास है, पैदल का रास्ता है। याद कर लो इसीलिये मैंने एक ही
सब्जी और एक ही किलो फल लिये हैं। मुझे बचपन से थाली लगा कर वैरायटी खाने की आदत
है। मेरे कारण आप आओगी और आपका मन भी लगा रहेगा। दिसम्बर का महीना था। दिल्ली के
गर्म कपड़े मैंने गाड़ी में बैठते ही उतार दिए। उस समय यहाँ मौसम बहुत ही अच्छा था।
वो मुझे मोड़ याद करवाती जा रही थी, मैं याद करती जा रही थी। यहाँ राइटहैंड ड्राइविंग थी।
मुझे बहुत अजीब लग रहा था, ऐसा लगता था जैसे वह रांग साइड चला रही हो। गाड़ी एक
खूबसूरत विला के आगे रूकी और हम उतरे और सामान उतारा गेट खोला, उस पर
कोई लॉक नहीं था। सामने उसका वन रूम सैट था। बेटी ने दरवाजे में चाबी लगाई वह खुला, दरवाजे
के पास ही स्विच ऑन किया, लाइट जलते ही
घर में डे लाइट रोशनी भर गई। बहुत ही सादगी और हल्के रंगो क्रीम ऑफ वाइट से
व्यवस्थित घर था। मैने किताबों की दुनिया में रहने वाली बेटी की तरफ हैरान होकर
देखा, जिसे
मैंने पाक कला में पारंगत किया था, सुघड़ भी है पर छोटा सा इतना प्यारा घर वह रखेगी, मैंने
सोचा नहीं था। बेटी बोली,’’माँ ये सब कात्या मुले करती है। कुवांरी है बहुत नियम
कायदे वाली, भली लड़की है। वह एक कुत्ते और ग्यारह बिल्लियों के
साथ रहती है। यह लांड्री बैग है, उसमें सारे मैले कपड़े रखने हैं। यहाँ शुक्र, शनिवार
वीकएंड है। वृहस्पति वार उसकी किचन के दरवाजे पर मैले कपड़ों का बैग रख देना। बेटी
ने कभी रूमाल भी नहीं धोया था। यहाँ ये काम कात्या मुले कर रही थी, निश्चय
ही बहुत भली लड़की है। हफ्ते में एक दिन मशीन लगाती साथ ही इसके कपड़े भी धो डालती
है। किचन के नाम पर थोड़ी सी जगह किचलेट थी, जिसमें फ्रिज, माइक्रोवेव और हॉटप्लेट थी। बेटी के पास पकाने की
र्फुसत ही नहीं थी। वह बाहर खाती थी। वीकएंड पर ही कुछ बनाती थी। मुझे सोने को कह
कर वह सामान लगाने लगी। मैं सो गई। क्रमशः
1 comment:
आपने अपने साथ पाठकों को भी दुबे की यात्रा करवा दी सजीव वर्णन
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