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Friday 20 September 2019

’ नो मैन विल किस यू।’ विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 6 नीलम भागी



कमरा खुला देख मैं हैरान, देखा बेटी टेबुललैंप जलाये पढ़ रही थी। मुझे देखते ही ठहाके मार कर हंसने लगी। उसने बताया कि जब वह आई कात्या मूले दारूबाजी कर रही थी और आपके हाथ में भी गिलास था और आप भी धीरे धीरे सिप कर रहीं थीं। मैंने सोचा कि मम्मी को एंजाय करने दो और छिप कर आ गई लाइट भी नहीं जलाई। मैंने उसे लस्सी का गिलास दिखाया। उसने मुझसे दिनभर का वृतांत सुना और अपना सुनाया और बतियाते हुए हम सो गई । सुबह वो आँख बंद कर मेरे हाथ से दूध पी रही थी। कात्या मूले आई, वो बहुत गंभीर थी। आते ही वो बोली,’’नीलम मुझे तुम्हारे लिए डेंटिस से एपाएंनमेंट लेना है, बोलो कबका लूं?’’ मैंने जवाब दिया कि मेरे दाँत तो बिल्कुल ठीक हैं। मुझे कोई तकलीफ नहीं है। वो बड़ी गम्भीरता से बोली,’’ तुम्हारे सामने के दाँत पर एक निशान है। जो देखने में अच्छा नहीं लगता। इसलिये नो मैन विल किस यू।’’ यानि कोई पुरूष तुम्हारा चुम्बन नहीं लेगा। सुनते ही बेटी के मुंह का दूध नाक में चला गया, वो हंसती खांसती हुई बाथरूम की ओर दौड़ी। मैं जानती हूं, मैंने कैसे अपनी हंसी रोक कर अपना गंभीर चेहरा बना कर उसे धन्यवाद कर, समझाया कि मैंने इस निशान की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। अब इण्डिया जाते ही इस निशान को दूर करूंगी। वो मुझसे प्रामिस कर चली गई। उसके जाते ही बेटी खूब हंसते हुए बोली कि मैं बचपन से देखती आ रहीं हूं, न घर में किसी ने र्चचा की न मैंने कभी सोचा। हैरान मैं इस बात पर की आपके लिये उसने ऐसा कहा, आपने उसकी तरह ही गंभीरता से जवाब दिया। मैंने कहा कि मैं अपने किसी भी व्यवहार से अपनी इतनी प्यारी हमर्दद दोस्त को खोना नहीं चाहती। बेटी के आफिस जाते ही, मैं नहाने चल दी क्योंकि कात्या मुले के कुत्ता घुमाने का समय होने वाला था। सुबह शाम वो सैर का मेरा एक घण्टा जरूर पूरा करवाती थी। बाकि मैं जो मरजी करूं। नीलम नीलम की आवाज सुनते ही मैं चल दी। आज उसका प्रश्न था कि मेरे दाँत पर यह निशान कैसे पड़ा और कब से है? मैंने बताया कि मेरठ में हमारे आंगन में नीम का पेड़ था। सुबह मेरी दादी एक टहनी तुड़वाती और सबको एक एक दातुन देती। दातुन समझाने में मुझे बड़ी मशक्त करनी पड़ी। दातुन पर टूथ पेस्ट लगा कर सब दांत साफ करते थे। दादी के मजबूत दांत देख, हम इसलिये कड़वी दातुन सब करते थे। मुझे टायफायड हो गया। मुंह का स्वाद गंदा, उपर से कड़वी दातुन मुझसे नहीं होती थी। मैं बाद में करूंगी कह कर, दातुन रख लेती और बाद में फैंक देती। बुखार तो चला गया। एक दांत पर निशान दे गया। कभी किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। पूरी वार्ता सुनकर उसे मेरी मां पर गुस्सा आया, जिसने अपनी ब्यूटीफुल बेटी की, ब्यूटी पर दाग लगाया। मैंने उसे समझाया कि हमारे यहाँ दादी की आज्ञा का पालन होता था। माँ को काम करने का अधिकार था, फैसला लेने का नहीं। अब हम घर लौटे। मैं अपने काम निपटाने में लग गई। कात्या मूले भी तैयार होकर निकल गई। पूरे विला में मैं अकेली और खुला हुआ मेन गेट। यहाँ अकेले डर नहीं लगता था। काम भी खत्म हो गया और बेटी की पसंद की दाल सब्जी और रायता भी बना लिया। अब मैं पढ़ने बैठी फिर सोई। उठी और चाय पी, तब तक धूप कम हो गई फिर मैं स्टोर की ओर चल दी, नया फल और सब्जी की तलाश में अब ये मेरा पसंदीदा काम हो गया था और तरह तरह के दहीं के फ्लेवर लाना। यहाँ के दूध से दहीं नहीं जमता था। इसलिये दहीं खरीदना पड़ता था। नई सब्जी को बनाने की विधि, वहां खरीदारी करने आई किसी भी महिला से पूछती तो वो बड़े प्यार से समझती| उंटनी का दूध,  दहीं भी लाई। बेटी ने नहीं इस्तेमाल किया। मुझे ही खत्म करना पड़ा। कात्या मूले भी अब तक नहीं लौटी थी। अंधेरा होने पर मैंने अपनी तरफ की बाहर की लाइट जला दीं। उसके लॉन वगैहरा का मुझे स्विच नहीं मालूम था। इसलिए वहाँ अंधेरा था। अकेले में मैं पढ़ती थी क्योंकि बेटी जब तक घर में रहती थी, टी.वी. नहीं बंद होता था। साढ़े आठ बजे के करीब कात्या मूले आई। लॉन जगमगा उठा। साढ़े नौ बजे के बाद, नीलम नीलम का स्वर गूंजा, मैं तुरंत उसके सामने। उसका पहला प्रश्न,  तुमने दाल खाई? मेरी हाँ सुनते ही वह खिल गई। अब हम कुत्ता घुमाने चल दीं। आज उसे एक फोन आया। जिसमें वह र्जमन में बात कर रही थी। बीच बीच में लड़ती हुई भी लग रही थी। घर लौटने तक उसका फोन बंद हुआ। हम लॉन में बैठ गये। फोन के  बाद वह काफी तनाव में दिखी। फिर र्नामल होकर मुझसे बोली कि बहन का फोन था। क्रमशः

2 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

मजे दार प्रसंग

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद जी