अब हम रियासी जिले के नौ देवी मंदिर जा रहे थे। ये कटरा से 10 किमी. दूर है। रास्ता शिवखोड़ी का है यानि बहुत खूबसूरत! सड़क से सौ सीढ़ियों नीचे की ओर गुफा तक जाती हैं। आने और जाने की दोनों सीढ़ियों के बीच बहुत तेजी से स्वच्छ पानी बहता है।
बायीं ओर की सीढ़ियों के बराबर प्रशाद, श्रृंगार खिलौनों की दुकानें हैं। शौचालय आदि है। और दायीं ओर की सीढ़ियां जिनसे वापिस आते हैं, उसके बाजू में साथ साथ नदी बह रही है। और हरी वादियां मन मोह रहीं हैं। यहां सफाई उत्तम थी। सफाई संतोष बड़ी लगन से कर रही थी।
अगर सब श्रद्धालु डस्टबिन का प्रयोग करें तो वहां गंदगी नहीं हो सकती। नवरात्रे आने वाले थे। इसलिए मंदिर की सजावट रंगरोगन का काम भी चल रहा था। ये सब देखती मैं गुफा पर पहुंच गई। सोशल डिस्टैंसिंग का ध्यान रख कर सब लाइन में लगे थे।
गुफा में फोटो लेना मना था। पंडित जी ने बताया कि यहां नौ देवियां नौ पिंडिंया स्वरुप में हैं। ये प्राचीन मंदिर द्वापर युग से है। जब वे मानवी रुप में थीं तो इन्होंने यहां तप किया था। ये एक जगह दुर्गा के नौ रुप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारणी, चंद्रघण्टा, कूष्मांडा, स्कन्धमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। सभी यहां पिंडी रुप में विराजमान हो गईं। ताकि आने वाले युग में भक्त एक जगह इनके दर्शन करके धन्य होंगे। नवरात्र में एक जगह और एक साथ पूजा होगीं। गुफा में बहुत अच्छा लग रहा था। हर कोई जयकारे बोलता जा रहा था। गुफा में दर्शन करने के बाद बाहर आकर कुछ लोग अपने को धन्य समझ रहे थे। क्योंकि वे किसी कारणवश अर्द्धकुंवारी की गुफा में नहीं जा पाए थे, यहां जाकर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था। अब मैं ऊपर की ओर सीढ़ियां चढ़ रही हूं। बराबर में कलकल करती नदी बाई ओर बह रही है। दायीं ओर भी किसी ग्लेशियर से तेजी से आता पानी बह रहा है। यहां मेरा बैठने को बहुत मन कर रहा है, थकान से नहीं। बैंच भी हैं साफ सुथरी सीढ़ियों पर भी बैठ कर नेचर एंजॉय कर सकती हूं। लेकिन नहीं कर सकती न। अभी तो कुल दो ही जगह दर्शन किए हैं। इसलिए नहीं बैठती क्योंकि बैठूंगी तो पता नहीं कब तक बैठी रहूं!! ग्रिल के सहारे कुछ देर खड़ी रहती हूं फिर ये सोच कर लौटती हूं कि अगली बार जब माता रानी बुलाएगी तो ज्यादा समय के लिए आउंगी।
और मेरे दिमाग में एक बात आ रही थी कि वैष्णों देवी के भवन पर हर साल लाखो लोग दर्शन करने आते हैं। ज्यादातर लोग सिर्फ दर्शन करके अगले दिन वापिस चले जाते हैं। इतनी दूर आने के बाद यहां न आना!! मुझे हैरान कर रहा था। खै़र मैं आसपास सब घूमने के बाद अपना अनुभव आपसे शेयर करुंगी। और जाकर ऑटो में बैठ जाती हूं। इस समय में मेरे दिमाग में सीढ़ी के दोनों ओर बहता साफ निर्मल पानी था। मैंने अशोक से पूछा,’’मैं जहां भी गई हूं, झील झरने, छोटी बडी पहाडी नदियां देखने को मिली हैं। कटड़ा में कभी पानी की कमी नहीं होती होगी यानि 24 घण्टे पानी आता होगा। सुनते ही अशोक ने जवाब दिया,’’नहीं जी टाइम से आता है। टंकी भर के रखनी पड़ती है। अब हम अगले दर्शनीय स्थल की ओर जा रहे थे। क्रमशः
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