बगलामुखी देवी के सामने हाथ जोड़े उनकी छवि को दिल में उतार रहीं हूं। पीले वस्त्र आभूषण, पीले रंग के जितने भी शेड के फूल होते हैं, उनसे मां का श्रृंगार किया गया था। प्रशाद और पूजन सामग्री सब कुछ पीला और साधक भी पीले वस्त्रों में। पीताम्बरी देवी को नमन करके मैं भवन से बाहर आई। मंदिर के साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है। जहां श्रद्धालु माता के दर्शन के बाद जलाभिषेक करते हैं। मंदिर परिसर की सफाई सराहनीय है।
करोड़ों लोगों की आस्था के केन्द्र इन प्राचीन मंदिरों में, मुझे यहां बैठने से अलग सा सकून मिलता है इसलिए मैं हमेशा की तरह बैठ गई। पास में ही कोई श्रद्धालु परिवार, यहां अनुष्ठान करवाना चाहता था। यहां के किसी पीली पोशाक पहने साधक से बात चल रही थी। वह वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां की जयंती के दिन हवन करवाना चाहता था। उस दिन साधक शायद वीआईपी के कारण अत्यंत व्यस्त होगा या पहले कई गणमान्यों कोे समय दे रखा होगा। वह उन्हें समझा रहा था कि मां श्रद्धा भाव देखती है दिन और समय नहीं। वह बताने लगा कि इस स्थान की बहुत महिमा है। मां बगलामुखी शत्रुनाशिनी है। शत्रु तो काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह भी हैं। मुकदमें में फंसे लोग, पारिवारिक कलह व जमीनी विवाद को सुलझाने के लिए, वाक सिद्धि प्राप्ति के लिए हवन करवाते हैं और बाधाओं से मुक्ति पाते हैं। स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1977 में चुनावों में हार के बाद यहां अनुष्ठान करवाया था। उसके बाद 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनीं। बतौर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी मंदिर में पूजा करवा चुके हैं। उन्होंने कई नामी सैलीब्रिटी के भी नाम लिए जो यहां पूजा हवन करवा चुके हैं। धीरे धीरे उनके आसपास श्रोता बैठने लगे और वे बताने लगे कि मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठंवा स्थान प्राप्त है। एक राक्षस ने ब्रह्मा जी का ग्रंथ चुरा लिया और जल में छिप गया। ब्रह्मा ने मां भगवति की अराधना की। इससे शत्रुनाशिनी देवी की उत्पत्ति हुई। मां ने बगुले का रुप धारण कर उस राक्षस का वध कर, ब्रह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया। मां का नाम बगलामुखी हो गया। इन्हें त्रेतायुग में रावण की ईष्ट देवी के रुप में भी पूजा जाता था। लंका विजय के दौरान श्री राम को इस बात का पता चला तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की। इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पाण्डवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी। सबसे पहले भीम और अर्जुन ने यहां पूजा की थी। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाथ और परशुराम मां की आराधना करते थे।
करोड़ों लोगों की आस्था के केन्द्र इन प्राचीन मंदिरों में, मुझे यहां बैठने से अलग सा सकून मिलता है इसलिए मैं हमेशा की तरह बैठ गई। पास में ही कोई श्रद्धालु परिवार, यहां अनुष्ठान करवाना चाहता था। यहां के किसी पीली पोशाक पहने साधक से बात चल रही थी। वह वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां की जयंती के दिन हवन करवाना चाहता था। उस दिन साधक शायद वीआईपी के कारण अत्यंत व्यस्त होगा या पहले कई गणमान्यों कोे समय दे रखा होगा। वह उन्हें समझा रहा था कि मां श्रद्धा भाव देखती है दिन और समय नहीं। वह बताने लगा कि इस स्थान की बहुत महिमा है। मां बगलामुखी शत्रुनाशिनी है। शत्रु तो काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह भी हैं। मुकदमें में फंसे लोग, पारिवारिक कलह व जमीनी विवाद को सुलझाने के लिए, वाक सिद्धि प्राप्ति के लिए हवन करवाते हैं और बाधाओं से मुक्ति पाते हैं। स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1977 में चुनावों में हार के बाद यहां अनुष्ठान करवाया था। उसके बाद 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनीं। बतौर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी मंदिर में पूजा करवा चुके हैं। उन्होंने कई नामी सैलीब्रिटी के भी नाम लिए जो यहां पूजा हवन करवा चुके हैं। धीरे धीरे उनके आसपास श्रोता बैठने लगे और वे बताने लगे कि मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठंवा स्थान प्राप्त है। एक राक्षस ने ब्रह्मा जी का ग्रंथ चुरा लिया और जल में छिप गया। ब्रह्मा ने मां भगवति की अराधना की। इससे शत्रुनाशिनी देवी की उत्पत्ति हुई। मां ने बगुले का रुप धारण कर उस राक्षस का वध कर, ब्रह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया। मां का नाम बगलामुखी हो गया। इन्हें त्रेतायुग में रावण की ईष्ट देवी के रुप में भी पूजा जाता था। लंका विजय के दौरान श्री राम को इस बात का पता चला तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की। इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पाण्डवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी। सबसे पहले भीम और अर्जुन ने यहां पूजा की थी। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाथ और परशुराम मां की आराधना करते थे।
यहां आने के लिए हम तो ज्वालामुखी से 22 किमी. दूर वनखंडी नामक स्थान पर आए। मंदिर का नाम ’श्री 1008 बगलामुखी वनखंडी मंदिर’ है। सड़क मार्ग से अगर दिल्ली से जा रहें हैं तो आपको देहरा से 10 किमी. आगे चलना होगा और वहां से बस या टैक्सी से 20 मिनट में पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीक एअरपोर्ट कांगड़ा (गग्गल) है। यहां से टैक्सी या बस से आ सकते हैं। जो श्रद्धालु चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, नगरकोट देवी दर्शन को जाते हैं वे बगलामुखी भी जाते हैं। असंख्य श्रद्धालू प्रतिदिन यहां दर्शन को आते है। हमें अब आगे नगरकोट जाना था। सभी सहयात्री बसों में बैठने लगे मै भी बस में बैठ गई। सब यात्रियों के बस में बैठने पर जल वाले गुरु जी ने चलने को कहा, बस चल रही थी। और मुझे मनमोहक रास्ता मोह रहा था। क्रमशः
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