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Wednesday, 20 October 2021

शिवजी के निवास की ओर 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 16 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

अचानक एकदम से सर्दी होने लगी। मैंने शॉल ओढ़ लिया और डर गई कि कंबल वगैरह नहीं लाई। सब के आते ही सेवादारों ने देखा कोई सवारी तो नहीं रह गई। जल वाले गुरुजी को बताया गया कि सभी यात्री हैं फिर उनके आदेश से बस जम्मू की ओर रवाना हुई। 56वीं यात्रा पहली बार बगलामुखी माता के दर्शन को गई और अब पहली बार ही शिवखोड़ी जा रही थी। लेकिन बहुत से यात्री ऐसे थे जो यहां पहले आ चुके थे लेकिन फिर आने पर बहुत खुश थे। ये रात का सफ़र था। सब नाच गा के दिन भर के थके हुए सो रहे थे। जम्मू बार्डर पर हमारी बसें लाइन में लगे ट्रक गाड़ियों के पीछे प्रतीक्षा में लग गईं। मौसम बहुत सुहावना था इसलिए शॉल की भी जरुरत नहीं थी। दोनों वैक्सीनेशन के सर्टीफिकेट की फोटोकॉपी हमसे पहले ही ले ली थी। हमारी बस में सबका वैक्सीनेशन हो चुका था। वहां पूरा कैम्प लगा हुआ था जिसमें यदि किसी ने दूसरी डोज़ नहीं ली तो उसका टैस्ट हो रहा था। लेकिन हमारी बसों के किसी भी यात्री को उतरना तक नहीं पड़ा और बसें जम्मू में प्रवेश कर गईं। सड़क के दोनों ओर लाइटें खूब थीं। यात्री रामलड्डू बहुत मिस कर रहे थे कोरोनाकाल से पहले बसें रुकतीं थीं। सब राम लड़डू खाते थे। अब सबने मन को समझाया कि कोरोना सदा तो रहेगा नहीं फिर देवी मैया के दर्शन को आयेंगे तो खायेंगे। यहां से शिवखोड़ी 180 किमी. दूर है। पौं फटने पर बसें एक जगह रुकीं जहां ढाबे थे और पैट्रोल पंप भी था। सब चाय पीने और फ़ारिग होने चल दिए। यहां चाय बहुत ही मीठी मिल रही थी। मैं ब्राह्मण हूं शायद इसलिए मुझे मीठा बहुत पसंद है। मैं स्वाद से पी रही थी। कइयों को शिकायत थी कि इतनी मीठी चाय से उनके होंठ चिपक रहें हैं। सब बड़े बड़े घेरों में बैठे थे और बतिया रहे थे। हमारे घेरे में बल्ली भी था वो बताने लगा कि देश में चाय कहां कहां बढ़िया मिलती है। मैंने जितनी भी यात्राएं कीं हैं, मुझे गुजरात की चाय सबसे अच्छी लगी और मैंने बताया,’’ लेकिन मिलती पोलियो ड्रॉप जितनी है। मुझे घर में बड़े मग में ज्यादा पीने की आदत होती है पर यात्रा के समापन तक थोड़ी पीने की आदत हो जाती है।’’ मैंने बल्ली से पूछा कि शिवखोड़ी का रास्ता भी नौ देवियों के रास्ते की तरह खूबसूरत है! उसने जवाब दिया,’’आप जा रहीं हैं देखना और बताना। मेरा ध्यान तो सिर्फ और सिर्फ ड्राइविंग पर ही होता है।’’सुधा बोलीं,’’22 दिन की गंगा सागर की यात्रा पर भी यही गाड़ी चला रहे थे। मैं आगे बैठी थी। बहुत सावधानी से गाड़ी चलाते हैं।’’ सुन कर बल्ली कुछ देर चुप रहे फिर एक उसने एक किस्सा सुनाया,’’हम एक बार बारात लेकर बरेली गए। नया कण्डक्टर था। बस में किसी की ओढ़नी पड़ी थी। कण्डक्टर ने ओढ़नी ओढ़ी और जाकर बारात में बैंड के साथ नाचने लगा। जितना बढ़िया बजाने वाला, उतना ही लाजवाब हमारा कण्डक्टर नाचने वाला। बाराती नौछावर उसकी ओढ़नी में डालते जा रहे थे। बाद में बस में आकर उसने पैसे गिने तो दो हजार के करीब थे। पता नहीं ये बात कैसे सब ड्राइवरों में फैल गई। जो भी ड्राइवर कहीं का भी मुझे मिलता जैसे ही पता चलता कि मैं बल्ली हूं। बिना मांगे सलाह देने लगता और कहता,’’यार बल्ली क्या रखा है गाड़ी चलाने में, तूं ढोलक बजाना सीख ले। तूं  बजाना और तेरा कण्डक्टर नाचा करेगा, तुम खूब कमा लोगे।’’ इतने में सीटी बजनी शुरु और सब अपनी बसों में बैठे। सबके बैठते ही अब शंकर जी के भजन शुरु। बस शायद कैंट एरिया से गुजर रही थी। बस में अगर म्यूजिक बंद होता था तो महिलाएं गाने लगतीं थीं। कुछ ही देर में इतना खूबसूरत रास्ता!!


अब मैंने बस के अंदर एक बार भी नहीं देखा कि क्या चल रहा है? अशोक भाटी ने कहा,’’नीलम जी जल लो, प्रशाद लो।’’ मैंने बाहर देखते हुए ही दोनो हाथ फैला कर प्रशाद लिया। विस्मय विमुग्ध सी मैं बाहर देख रहीं हूं।

और मन ही मन अपने भगवान, देवियों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर रही हूं कि उनका वास ऐसे ऐसे स्थानों पर है जहां उनके दर्शन के साथ हम नेचर एंजॉय करते हैं। क्रमशः  

 


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