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Thursday 28 October 2021

बाबा जित्तो 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 23 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 

अब मैं बाबा जित्तो के मन्दिर गई। यहां बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी की पूजा की जाती है। जित्तो बाबा का जीवन बहुत प्रेरणादायक है। उन्होंने अन्याय के सामने सिर नहीं झुकाया।   कहते हैं कि कोई साढ़े पांच सौ साल पहले जाजला और रुपचंद ब्राह्मण को भगवान शिव की कृपा से एक पुत्र प्राप्त हुआ। जिसका नाम जितमल रखा गया। मातापिता जित्तो को बचपन में ही उसे छोड़ कर इस दुनिया से चले गए। उनका पालन चाची जो मौसी भी थी वह करने लगी। जित्तो बचपन से ही बहुत चंचल पर धार्मिक प्रवृति के थे। परिवार की खेती में मदद करने के साथ साथ सुबह शाम #राजा मण्डलीक(गुगा वीर) की पूजा करते थे। बड़े होने पर 12 साल तक प्रतिदिन मां वैष्णों के दरवार जाकर स्नान करके दर्शन करने जाते थे। एक दिन माता वैष्णों ने उन्हें कन्या रुप में दर्शन दिए और कहा कि जित्तो मैं तुझसे प्रसन्न हूं, अब तुझे रोज रोज यहां आने की आवश्यकता नहीं है। तूं जहां चाहेगा वहां मेरे चरणों का जल बहेगा। तूं वहीं स्नान करना। उस जल से दुनिया का भला होगा। तुम रोज मेरे दर्शन करना चाहते हो न तो तेरे एक कन्या होगी जो मेरा ही रुप होगी। जित्तो ने शादी न करने का प्रण लिया था। माता रानी ने कहा कि वह आप शक्ति होगी, तूं उसे बेटी की तरह पालना। तुम दोनों का साथ हमेशा होगा पर ज्यादा नहीं होगा लेकिन दोनों का नाम रहेगा।  दूसरे दिन जित्तो ने पहाड़ों पर जहां पानी के लिए खोदा वहां से जल बहने लगा। एक दिन स्नान के बाद जब वह पगडण्डी के पास से गुजर रहा था, उसने कमल के फूल के बीच एक कन्या को खेलते देखा। ऐसा चमत्कार देखकर जित्तो का दिल बाग बाग हो गया।  उसने कन्या का नाम गौरी रखा जो मां वैष्णों का ही एक नाम है। उसे घर लाकर उसका पालन पोषण करने लगे। जित्तो प्यार से उसे कौड़ी पुकारते थे। चाची अब तक तो बहुत खुश थी कि जित्तो की सारी जायदाद उसके सातों पुत्रों को मिल जायेगी पर जित्तो का कौड़ी पर हद से ज्यादा लगाव देख कर वह परेशान रहने लगी। अब वह नित्य नये कलेश करती। वे सब कुछ त्याग कर बुआ कौड़ी और बैलों की जोड़ी लेकर जम्मू की ओर #झिड़ी नामक स्थान पर आ गए। जागीरदार मेहता विरी सिंह से खेती करने के लिए जमीन मांगी। उसकी जमीन पर खेती हो रही थी। कुछ बंजर जमीन ऐसी थी जिस पर कुछ नहीं उगता था इसलिए विरी सिंह ने तय किया की उपज का 75% जित्तो लेगा और 25% विरी सिंह लेगा। जित्तो ने दिन रात उस जमीन पर अपना पसीना बहाया तो उसका फल उसे बम्फर फसल के रुप में मिला। उसने गेहूं को साफ करके ढेर लगाया और विरी सिंह को संदेश भेजा कि तूं आकर अपना हिस्सा ले जा। विरी सिंह ने जब गेहंू का ढेर देखा तो उसके मन में कपट आ गया। उसने अपने नौकरों से कहा कि सब गेहूं मेरे घर पहुंचाओ।

  जित्तो ने जो तय था उतना उठाने को कहा पर उस बेईमान ने एक न मानी। वह जबरन वसूली करने लगा। कहते हैं कि जित्तो ने मां भगवती का स्मरण किया, जिस पर उन्हें यह प्रेरणा मिली कि अन्याय के खिलाफ अपनी जान कुर्बान कर दे। जित्तो ने इतना कहा’ सुक्की कनक नीं खाया मेहतया, अपना लहु दिना मिलाय’( मेहता सूखी गेहूं नहीं खाना, इसमें मैंने अपना खून मिला दिया ) जित्तो गेहूं के ढेर पर चढ़ गए और कटार निकाल कर अपने को मारा उस गेहूं को अपने खून से रंग दिया। बुआ कौड़ी को जब पता चला तो वह अपने पिता की चिता पर कूद गई। उसके बाद सभी इन्हे देव रुप में मानने लगे। इस स्थान पर बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी का मंदिर है। उनकी याद में वार्षिक तीन दिवसीय झीड़ी का मेला लगता है। जिसमें मुख्य आर्कषण खेती बाड़ी से जुड़े स्टॉल होते हैं।




 जम्मू शहर से 15 किमी से दूर है। लाखों लोग यहां पहुंचते हैं, #क्रांतिकारी ब्राह्मण किसान बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी के दर्शन करनें। पवित्र तालाब में स्नान करते हैं। मन की मुरादें होती हैंऔर बालरुप बुआ कौड़ी के लिए गुड़िया लाते हैं। यहां माथा टेकने पर लइया का प्रशाद मिलता है। इस प्रशाद को अपने आप हाथ पहले माथे से लगाते हैं फिर मुंह में जाता है।  मेरे साथ ऐसे ही हुआ मैं विशाल प्रतिमा बाबा जित्तो के पास जाकर खड़ी होती हूं और सोचने लगती हूं कि इस माता वैष्णों के भक्त ने समाज को अन्याय के खिलाफ नई दिशा दी थी।  बाबा जित्तू ने उस समय की सामंती व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे आज सबसे पहले अपने खेत का अन्न बाबा जित्तो को चढ़ाते हैं। बाद में अपने लिए इकट्ठा करते हैं क्योंकि उन खेतों में जाने वाला पानी बाबा जित्तो की ही देन है। क्रमशः 


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