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Saturday 26 February 2022

गंगूबाई काठियावाड़ी फिल्म ने तो साठ के दशक में पहुंचा दिया!! नीलम भागी

 


हॉल में सबसे पहले जाकर अपनी लास्ट सीट पर बैठ कर, आने वाले दर्शकों को देख रही थी। जिसमें महिलाएं ज्यादा थीं और सीटें भरती जा रहीं थीं। हैरानी इस बात पर कि कोई भी दर्शक फिल्म शुरु होने के बाद नहीं आया, शायद वे भी मेरी तरह कुछ भी मिस नहीं करना चाह रहे होंगे। 

   शिक्षित संपन्न परिवार की नौंवी पास टीनएज़ छात्रा यानि 16 साल की खूबसूरत गंगा अपने पिता के कर्मचारी रमणीक से दिल की गहराइयों से प्यार करती है। पर वह तो प्यार के आड़ में व्यापार कर रहा है। वह गंगा को हीरोइन बनाकर, उसके हिरोइन बनने के सपने को पूरा करने का उसे विश्वास दिलाता हैं। गंगा अपने साथ घर का पैसा जेवर लेकर रमणीक के साथ मुंबई भाग जाती है। मुंबई पहुंच कर इस प्यार को रमणीक ने व्यापार में तब्दील करके मुनाफा कमाया, गंगा के साथ आया धन लेकर और गंगा को बेच कर एक हजार रुपए का। अब गंगा कमाठीपुरा की हजारों बेकसूर तन मन से लुटी महिलाओं के बीच में उन्हीं हालातों को अपनी नियति मान कर रहने लगती है। 

     आसान नहीं था गंगा से गंगू, गंगू से गंगूबाई काठियावाड़ी बनना। 

  बायोपिक फिल्म है तो कोई भी उसके साथ चमत्कार नहीं दिखाया गया है। बहुत कठिन था उसका रास्ता, जिसे दमदार डॉयलाग और एक सीन से दूसरे सीन में धाराप्रवाह दर्शाना जो उचित प्रकाश व्यवस्था के कारण फिल्म को बोझिल नहीं बना रहा है। बल्कि बहुत मनोरंजक ढंग से गंगूबाई की जीवन यात्रा को परोस रहा है।  प्रकाश कापड़िया और उत्कर्षिनी वशिष्ठ  के लिखे गज़ब डॉयलाग, जो हंसाते हुए दिल में उतर जाते हैं। क्रूर ग्राहक से बुरी तरह जख्मीं गंगू जब डॉन की मुहबोली बहन बनती है इसलिए लेडी डॉन का खिताब उसे मिलना ही है। जिनको परिवार भी नहीं अपनाता है। गंगू ने डरा कर नहीं, उन महिलाओं और उनके बच्चों के हक लिए आवाज उठा कर, उनके दिलों में अपने लिए सम्मान और प्यार की जगह बनाई है। उन महिलाओं की जीवन शैली और गंगू की कार्यशैली को बड़ी खूबसूरती से पर्दे पर दर्शाया गया है।

सबसे अच्छा सीन मुझे गंगूबाई का आजाद मैदान में साथ लाए, लिखे हुए भाषण को फाड़ कर, भाषण देना लगा है। जिस जीवन को वह जी रही है। अपनी चार हजार महिलाओं को भोगते हुए देख रही है। उसे कोई कुछ समय विजिट करने वाला कैसे शब्दों में लिख सकता है? गंगू जिस भाव से बोल रही है, वह उसका जिया और आंखों देखा हाल है। उसे भला पढ़ कर किताबी भाषा बोलने की क्या जरुरत? कमाल का लेखन! जो भावुक करने के साथ साथ  हंसाता भी है।

   स्क्रीन प्ले और डॉयलाग लेखन सराहनीय है इसलिए फिल्म में सर्पोट के लिए जरा भी वलर्गर सीन और शरीर दिखाने को अहमियत नहीं दी गई है। कस्ट्यूम डिजाइन का चुनाव फिल्म के अनुरुप और उस दशक के हैं। साउंडट्रैक दिलचस्प और सीन का साथ दे रहा है।

 आलिया भट्ट(गंगूबाई) का अभिनय कमाल का, शांतनु महेश्वरी(अफ़शान) सच्चा प्रेमी लगा, विजय राज (रजिया) की भूमिका में जब भी आए छा गए हैं। अजय देवगन ने रहीम लाला का किरदार बखूबी निभाया। सीमा पहवा (शीला मासी), इंंिदरा तिवारी (कमली), जिम सरभ (फैजी जर्नलिस्ट), अनमोल कजानी (बिरजू) सभी का अभिनय सराहनीय है। हुमा कुरैशी विवाह समारोह में जान डाल गई। शाम कौशल के एक्शन सीन अच्छे हैं।

  संजय लीला भंसाली की फिल्म है इसलिए कमी तो उनकी नजरों से बच ही नहीं सकती है। अलग अंदाज में बनी गंगूबाई काठियावाड़ी फिल्म की सिनेमेटोग्राफी, बैग्राउंड स्कोर, म्यूजिक और डांस बहुत शानदार हैं। इस फिल्म को देखने के बाद मन में आता है कि इसे न देखते तो जरुर कुछ मिस करते।    


3 comments:

Anonymous said...

वैश्या शब्द सुनते ही लोगों के दिल में एक शंका घर कर जाती है कि "वैश्या"इसका मतलब है एक नीच प्रवृत्ति की औरत।मगर गंगुबाई काठियावाड़ी देखने के पश्चात ये ग़लत धारणा लोगों के दिलों से कोसों दूर चली जाएगी,यह मेरा मानना है।एक औरत,औरत ही होती है। उसे समाज के लोग वैश्यावृत्ति करने के लिए मजबूर कर देते हैं।वो करे भी तो क्या करें????
पापी पेट का सवाल जो उनके सामने होता है। वैश्यावृत्ति में होते हुए भी एक औरत मां,बहन, बेटी और सबसे महत्वपूर्ण विषय वह एक सामाजिक कार्यकर्ता होने का दायित्व भी बखूबी निभा सकती है। गंगुबाई ने वैश्यावृत्ति में होते हुए भी समाज की औरतों और बच्चों के हक़ में जो ठोस कदम उठाए वह सराहनीय है।
अंत में मैं यही कहना चाहुंगी कि जिसने भी यह फिल्म न देखी हो ज़रूर देखें। ताकि हम यह समझने की कोशिश करें कि एक वैश्या भी इंसान है उसे भी प्यार की ज़रूरत होती है नफ़रत की नहीं।
समाज के पुरुषों को किसी औरत को बहला -फुसलाकर वैश्यावृत्ति करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए, क्योंकि आपके घरों में भी महिलाएं हैं। महिलाओं की इज्ज़त करें।।
फिल्म तो मेरे दिलोदिमाग में घर कर गई।
फिल्म की पटकथा, संवाद, संगीत, नृत्य अति सराहनीय हैं।

Meena Joshi said...

वैश्या शब्द सुनते ही लोगों के दिल में एक शंका घर कर जाती है कि "वैश्या"इसका मतलब है एक नीच प्रवृत्ति की औरत।मगर गंगुबाई काठियावाड़ी देखने के पश्चात ये ग़लत धारणा लोगों के दिलों से कोसों दूर चली जाएगी,यह मेरा मानना है।एक औरत,औरत ही होती है। उसे समाज के लोग वैश्यावृत्ति करने के लिए मजबूर कर देते हैं।वो करे भी तो क्या करें????
पापी पेट का सवाल जो उनके सामने होता है। वैश्यावृत्ति में होते हुए भी एक औरत मां,बहन, बेटी और सबसे महत्वपूर्ण विषय वह एक सामाजिक कार्यकर्ता होने का दायित्व भी बखूबी निभा सकती है। गंगुबाई ने वैश्यावृत्ति में होते हुए भी समाज की औरतों और बच्चों के हक़ में जो ठोस कदम उठाए वह सराहनीय है।
अंत में मैं यही कहना चाहुंगी कि जिसने भी यह फिल्म न देखी हो ज़रूर देखें। ताकि हम यह समझने की कोशिश करें कि एक वैश्या भी इंसान है उसे भी प्यार की ज़रूरत होती है नफ़रत की नहीं।
समाज के पुरुषों को किसी औरत को बहला -फुसलाकर वैश्यावृत्ति करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए, क्योंकि आपके घरों में भी महिलाएं हैं। महिलाओं की इज्ज़त करें।।
फिल्म तो मेरे दिलोदिमाग में घर कर गई।
फिल्म की पटकथा, संवाद, संगीत, नृत्य अति सराहनीय हैं।
(मीना जोशी.... डिब्रूगढ़....आसाम)

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद मीना जोशी