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Saturday, 27 August 2022

देवघर से परिचय बैद्यनाथ बाबाधाम यात्रा भाग 3 झारखण्ड नीलम भागी Baba Baidyanath Dham Deoghar Rail Yatra Part 3 Neelam Bhagi



         स्टेशन से बाहर आते ही ग्रुप फोटो लिया गया। बड़े बड़े पंडाल कावड़ियों के विश्राम के लिए हैं। इतना बड़ा तीर्थस्थल है पर स्टेशन के बाहर सफाई ठीक नहीं है। खूबसूरत टाइल्स ऐसी हैं कि जिस पर लगेज़ के पहिए ठीक से नहीं चलते। सीनियर सीटीजन के लिए बैग खींचना बहुत मुश्किल होता है। खूबसूरत टाइल्स के साथ एक पट्टी सीमेंट की ही डाल दें तो महिलाओं और बुर्जुगों को लगेज़ खींचने में परेशानी तो नहीं होगी। वैसे ऑटो स्टैण्ड तक सौर्न्दयीकरण किया गया है। झील के साथ में बैंच लगे हुए हैं। एक बैंच पर कॉलकता के पवन हाथों में कांवड़ यानि कई मिट्टी की मटकियों में गंगा जल लिए सुस्ता रहे हैं। सारा वजन उनकी अंगुलियों में है। बाबा को चढ़ाने का जल नीचे नहीं रखते हैं।


लोगों ने झील में कचरा भी फैंक रखा है। यहां से होटल 7 किमी. दूर है। ऑटो में बैठ कर होटल की ओर चल दिए। हमारे ऑटो ड्राइवर का नाम प्रवीण अग्रवाल है।

वह देवघर के बारे में भी बताता जा रहा है। मसलन बिहार से अलग होकर यहां बहुत विकास हुआ है। बिजली खूब आती है। सड़के दुरुस्त रहतीं हैं। मैंने पूछा,’’चोरी, झपटमारी वगैरह।’’ उसने जवाब दिया,’’अब ऐसा नहीं है।’’जब बताया कि स्टेशन पर गाड़ी से उतरते समय एक महिला की चैन झपट ली गई। वो तुरंत बोला,’’वो झपटमार बिहार का होगा, यहां के लोग ऐसे नहीं हैं।’’ सुबह का समय है सड़कों पर सफाई हो रही है। ताज़ी सब्ज़ियां और फल दुकानदार सजा रहे हैं। फुटपाथ पर तरह तरह की दातुन बिक रही है। साथ में कुछ पत्ते भी लोग खरीद रहे थे। मैंने पूछा,’’ये पत्ते क्यों खरीद रहें हैं?’’ उसने बताया कि ये किरोता के पत्ते हैं। इसको खाने से पखाना ठीक आता है।

ऑटो ने हमें उतार दिया। आगे गलियां हैं। वहां कोई भी सवारी ले जाना मना है। सावन का महीना है। यहां सावन भादों जल चढ़ता है। चारों ओर भगवा रंग ही दिख रहा है और ’बोल बम’ की आवाजें हीं आ रहीं हैं। हम सामान उठा कर होटल की ओर चल दिए। गलियों के दोनों ओर नाश्ते खाने, चाय और पेड़ों की दुकाने हैं। होटल में मुझे जयपुर से आई डॉ. शोभा के साथ रुम मिला। रुम में आते ही मैंने लगेज़ खोला सब कुछ गीला, सामान फैलाया। जो कम गीले हैं वो कपड़े पहने। तैयार होकर हम होटल से बाहर आए। सामने ही रैस्टोरैंट में नाश्ता करना है। खाने के रेट यहां नौएडा के मुकाबले बहुत कम हैं। कई वैराइटी का परांठा साथ में दहीं, सब्जी, सरसों की चटनी और आचार। परांठा भी खूब बड़ा और खूब मसाला भरके और कुरकुरा सेकते हैं यानि लाजवाब।

दहीं में पूछते हैं कि चीनी डालें। हमने मना किया पर वह दहीं मिठास वाला। हमने पूछा,’’भैया आपने दहीं में मीठा क्यों डाला?’’ वो बोला,’’आपके सामने मिट्टी के कुनडे में से दिया है। आपने चीनी डालने को मना किया तो नहीं डाली।’’ बहुत ही स्वाद दहीं। यहां दहीं सप्लाई करने वाले अलग हैं। ठेलों में मिट्टी के कुंडों में दहीं रैस्टोरैंट में आता है। नाश्ते के बाद दूसरी दुकान पर हमें चाय पीनी है। यहां सिर्फ चाय ही बिकती है। चाय बनाने का तरीका भी बिल्कुल अलग है। कुल्हड़ में कड़ा हुआ मीठा दूध भर कर उसमें उबला हुआ चाय का पानी और मसाला डाल कर देते हैं। मुझे खूबसूरत टी सैट में चाय अलग, दूध चीनी अलग वाली चाय कभी मजेदार नहीं लगी। पर इस चाय का गज़ब का स्वाद। अगर मैंने भारी परांठा न खाया होता तो मैं बार बार चाय पीती। वहीं उसके बैंच पर बैठ कर चाय पीते हुए मंदिर जाते हुए श्रद्धालुओं को देखना बहुत अच्छा लग रहा है।

हमने चाय पी कर कुल्हड़ डस्टबिन में डाला। उसने तुरंत हमारी कुल्हड़ पकड़ने से मिट्टी लगी अंगुलियों पर अपने यंत्र से पानी डाला। उसका हाथ धुलाने का यंत्र है, कोलड्रिंक की बोतल में पानी भर कर उसके ढक्कन में छेद किए हुए हैं। उससे फुव्वारे की तरह पानी गिरता है। क्रमशः          

   


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