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Thursday 30 May 2024

कोणार्क से भुवनेश्वर! स्वर्णिम त्रिभुज! Golden Triangle! Konark to Bhuvneshwer उड़ीसा यात्रा भाग 24, Orissa Yatra Part 24 नीलम भागी Neelam Bhagi

  



मंदिर में जो फोटोग्राफर हैं, वे भी बखूबी गाइड का काम करते हैं मसलन विद्याधर खटाई। मंदिर से बाहर निकलते ही मुझे उत्तराखंड की रेखा खत्री अपने ग्रुप के साथ मिल गई।  वे सुबह भुवनेश्वर पहुंची थीं। समान रखते ही अपने ग्रुप के साथ घूमने निकल गई। मुझे भी कहा कि आप भी शाम तक पहुंच जाना क्योंकि सुबह 9:00 बजे तो सत्र शुरू है। मैंने कहा," ठीक है।" मंदिर से बाहर निकलते ही अस्थाई मार्केट है, जिसमें सभी तरह का सामान मिलता है। सबसे अधिक काजू और खसखस। काजू ₹300 से शुरू है लोग खरीदते  हैं बाकि खाने पीने के स्टॉल हैं। इसमें पैदल चलना बहुत अच्छा लगता है। बहुत अच्छा है यहां पर स्थाई निर्माण नहीं है, नहीं तो हमारे विश्व धरोहर सूर्य मंदिर को क्षति पहुंचेगी। चलते हुए बस स्टैंड  पहुंची। सामने मो बस खड़ी थी भुवनेश्वर जाने के लिए। मैं उसमें बैठने लगी पर पूछ लिया कि यह बरमूडा बस स्टैंड जाएगी। ड्राइवर ने कहा," नहीं, स्टेशन जाएगी।" तुरंत उतरी। यहां मदद को सभी तैयार रहते हैं। पुलिस वाले ने पूछा," आप भुवनेश्वर के लिए क्यों नहीं बैठी?" मैंने कहा," मुझे बरमूडा बस स्टैंड जाना है।" अस्थाई दुकान के अंदर से आवाज आई," वह लाल कुर्सी उठाइए, उस पर बैठ जाएं।"  अब आपको बस 3:30 बजे मिलेगी जो बरमूडा जाएगी। मैं बैठकर, आने जाने वाले देश दुनिया के पर्यटकों, तीर्थ यात्रियों को देखती रही। कुछ ही दूरी पर चंद्रभागा बीच है। लोग यहां से बीच पर जाते हैं या बीच से पैदल कोणार्क के लिए आते हैं। यह सब देखना भी अपने आप में बड़ा सुखद है क्योंकि एक ही स्थान पर हर प्रांत के देशवासी अपनी पोशाक में दिख जाते हैं। पर मैं बेचैन कोई बस आती,  मैं उठ कर पूछताछ करने चल देती । अब देवराज  राऊ, उठकर मेरे पास आए बोले," मैं सुपरवाइजर हूं, यहां बस सर्विस 

का ध्यान रखता हूं। आप परेशान न हों। आपको बस में बिठाऊंगा। हां कोई काजू वगैरह खरीदने हैं तो ₹10 की ई रिक्शा में बैठकर, याद नहीं आ रहा कौन सा गांव बताया था? वहां काजू भूने जाते हैं। बहुत सस्ते और अच्छे मिलते हैं। वहां आप शॉपिंग करके आ सकती हैं। आपके पास समय है। यह लंच टाइम है, थोड़ा बस सर्विस कम है। अब मैं तसल्ली से  बैठ गई और कोणार्क दर्शन के साथ आसपास का परिचय भी करने लगी और फिर नारियल पानी पिया। पता नहीं ताजा होने के कारण यहां बेहद स्वाद था जैसे ही बस आई,  देवराज राऊ जी ने कंडक्टर से कहकर मुझे विंडो सीट पर ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बिठाया और कहा," दीदी अकेली है, जहां पर यह कहेंगी, वहां ठीक से उतारना।" खूब भरी हुई बस में मुझे सीट मिली। मेरे सामने बस में बहुत सुंदर सा मंदिर बनाया हुआ था। यह बस का रास्ता 66 किमी. का है और आज मैंने गोल्डन ट्रायंगल पूरा करना है। भुवनेश्वर से पुरी,  पुरी से कोणार्क और कोणार्क से भुवनेश्वर। जितनी दूर बस होती जा रही है, रास्ते में खेती शुरू हो गई है। छोटे-छोटे पोखर हैं। लाल मिट्टी है जो बहुत उपजाऊ होती है और हरियाली। नारियल,  सुपारी और काजू के पेड़ हैं। रास्ते में नीमपाड़ा , गोप और पिपली आते हैं। पिपली हैंडीक्राफ्ट, हथ एलकरघा और कपड़े के काम के लिए, पत्थर और लकड़ी पर नक्काशी के लिए मशहूर है। दिल्ली से हमारे साथी भी शाम को पहुंच रहे थे। हमारे प्रवीण आर्य राष्ट्रीय  मंत्री का फोन आ गया था। उनकी आदत में शुमार है जो भी किसी भी सम्मेलन में जाता है, उसके कांटेक्ट में जरूर रहते हैं। उन्होंने मुझे  डॉ. संतोष महापात्र (महामंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद उड़ीसा) का नंबर भेजा कि इनसे कांटेक्ट करो। आपको सम्मेलन स्थल में पहुंचने में आसानी होगी। बस स्टैंड आने से पहले मैंने मी ताजी को फोन कर दिया था। श्री मोहंती ने मुझे पिकअप कर लिया। मीताजी को मैंने बताया था मैं डिनर नहीं करूंगी। पर उन्होंने फिर भी उड़िया के स्थानीय व्यंजन बनाए हुए थे। मैंने उन्हें चखा जो बेहद स्वादिष्ट थे। मैंने मिस्टर मोहंती की डॉक्टर संतोष महापात्र से बात करवा दी उन्होंने बता दिया मुझे कहां पहुंचना है। मीताजी और श्री मोहंती मुझे वहां पहुंच आए। यहां पूरे भारत से आए साहित्य परिषद के प्रतिनिधि एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हो रहते थे। डिनर के बाद मुझे मेरे मैंगो होटल में पहुंचा दिया। अब मुझे कहीं जाना नहीं था। तीन दिन सभी सत्र अटेंड करना है।

https://www.instagram.com/reel/C7mlavgPM7z/?igsh=MXc4MTI5dHN5dWp1cg==

क्रमशः 














Wednesday 29 May 2024

कोणार्क सूर्य मंदिर पुरी! उड़ीसा यात्रा भाग 24, Konark Temple Puri Orissa Yatra Part 24 नीलम भागी Neelam Bhagi

  

अस्थाई बाजार में से होती हुई, मैं टिकट घर पहुंची। यहां ₹40 की टिकट है। टिकट लेकर जांच के बाद मंदिर  परिसर में , विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर लाल बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइट पत्थर से बना उत्कृष्ट नक्काशी के अकेले  विशाल मंदिर को देख कर हैरानी, यह  होती है कि दूर-दूर तक कोई पर्वत नहीं है और फिर भी इतना विशाल मंदिर बनाया गया है। जिसका जिक्र आईने अकबरी में अबुल फजल ने किया है कि यह 1250 ईस्वी में गंग वंश राजा नरसिंह देव ने बनाया है।  मंदिर ई. पूर्व 1236 से 1264 के बीच में बना है। कलिंग शैली में बना यह मंदिर  यूनेस्को ने 1984 में विश्व धरोहर में शामिल किया है। यहां गाइड की सेवा मुफ्त उपलब्ध है और सबसे अच्छा लगा कि लोगों ने गंदगी नहीं फैला रखी बिल्कुल साफ सुथरा परिसर है। चारों ओर  घनी हरियाली है। प्रवेश द्वार पर दो सिंह आक्रामक होते हुए भी है उनके नीचे हाथी हैं, हाथी के नीचे बचाव की मुद्रा में मनुष्य है। सूर्य देव को रथ के रूप में विराजमान किया है जिसमें 12 जोड़ी चक्र के साथ सात घोड़े हैं, जो रथ को खींचते हैं। अब एक ही है। चक्र के आठ अरे दिन के आठ पहर को दर्शाते हैं 12 महीने। यह  मंदिर तीन मंडपों में बना है। बाल्यावस्था उदित सूर्य 8 फीट, युवावस्था मध्यान्ह सूर्य 9.5 फीट, प्रोढ़ावस्था  अपराहन 3.5 फिट। इसके तीन प्रवेश द्वार हैं। तीन भाग हैं सामने नृत्यशाला मंदिर, बीच में आराधना या जगमोहन, तीसरा घर पर गर्भ ग्रह और तीनों एक ही अक्ष में हैं। कहीं-कहीं तो बहुत ही पेचीदा बेल बूटे  उकेरे  हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी तट पर स्थित कोणार्क मंदिर चंद्रभागा नदी से 2 किलोमीटर दूर है। नदी  लुप्त हो चुकी है। हमारी इस सांस्कृतिक विरासत की उत्कृष्ट रचना  को बनाने में 1200 कारीगरों ने 12 वर्ष तक लगातार, अपनी रचनात्मकता का उपयोग किया है। मंदिर के बारे में तरह-तरह की कहानियां प्रचलित हैं।  सबसे अधिक भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब के बारे में। साम्ब ने नारद मुनि का मजाक बनाया। नारद मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया, जिससे उन्हें कुष्ठ रोग हो गया। साम्ब ने सागर और चंद्रभागा नदी के मिलन स्थल पर सूर्य देव की 12 वर्ष तक आराधना की। सूर्य देव ने उन्हें रोग मुक्त कर दिया। वहां पर उन्हें देव शिल्पी द्वारा निर्मित सूर्य देव की प्रतिमा मिली। उन्होंने इसकी स्थापना यहां की, तबसे मंदिर, सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां सूरज की पहली किरण प्रवेश द्वार पर पड़ती है। समुद्र यहां से कुल 3 किलोमीटर दूर है। देश दुनिया के लोग इसे देखने आते हैं। इसमें मूर्ति खंडित है इसलिए यहां पर पूजा नहीं होती। हर वक्त पर्यटकों की यहां भीड़  रहती है। इस रचना को देखकर हैरान हो जाते हैं। ₹10 के नोट पर कोणार्क मंदिर का चक्र है। भुवनेश्वर से यहां तक की दूरी 60 किमी. है। पुरी से 36 किमी. दूर है। मंदिर को देखने में एक से दो घंटे का समय लगता है।  यहां पर कोणार्क नृत्य समारोह भी आयोजित किया जाता है। अगर कोई रुकना चाह तो बजट फ्रेंडली होटल भी हैं ।
https://www.instagram.com/reel/C7UjLvEPscb/?igsh=b3c2Zjh5bGxndHVr

क्रमशः 








Wednesday 22 May 2024

पुरी से कोणार्क सड़क मार्ग! उड़ीसा यात्रा भाग 23, Puri to Konark by road Orissa Yatra Part 23 नीलम भागी Neelam Bhagi

 


मुफ्त की बैटरी बस से उतरते ही, मैं बस स्टैंड के अंदर गई। वहां कोणार्क के लिए सवारियों से लदी बस, जाने को तैयार खड़ी थी और दूसरी बिल्कुल खाली। मैंने खाली बस वाले से पूछा," यह कितनी देर में जाएगी?" उसने कहा," एक घंटे के बाद।" यह सुनते ही मैं भरी हुई बस में चढ़ गई। और किसी तरीके से खड़े होने की जगह बना ली। यहां कोई लेडिज सीट, सीनियर सिटीजन सीट नहीं थी। यानि महिला पुरुष यात्री सब समान। पता नहीं क्या सोच कर कंडक्टर मेरे पास आया, उसने एक लोकल सवारी को मेरी जगह खड़ा कर दिया और मुझे उसकी जगह। उस लोकल आदमी ने कोई विरोध नहीं किया और  बस चलने लगी। बहुत खूबसूरत रास्ता! रास्ता नारियल के पेड़ छोटे-छोटे गांव घर, खेत, घनी हरियाली और ठंडी हवा आदि। मैं जहां खड़ी थी, वहां सीट पर  गुड़गांव की सास बहू बैठी थीं  और पुरी में ठहरी  थीं। उसका पति दूसरी सीट पर था। वह बताने लगी कि यहां के लिए टू व्हीलर, फोर व्हीलर भाड़े पर मिलते हैं 300 ₹400 में। हम तीन लोग हैं पर हम बस में ही आए।  आंखें मेरी बाहर लगी हुई थी, उनकी बातें मैं सुन रही थी। अच्छी बनी सड़क दोनों ओर  घनी बेहद खूबसूरत हरियाली जो देखने लायक थी। पुरी से कोणार्क तक की दूरी 36.2 किमी है, जिसे पूरा करने में 48 मिनट लग जाते हैं। अगर आप निजी वाहन  से आते हैं तो कहीं भी खूबसूरती को निहारने के लिए रुक सकते हैं। अब  बेलेशोर और मां रामचंडी बीच आया। यहां पर मंदिर है और पिकनिक मनाने के लिए किराए का सामान भी मिल जाता है। घनी हरियाली, गांव, ठंडी हवा और पानी के बीच में रेत के टीले  हैं।  यहां वॉटर स्पोर्ट्स और वोटिंग कर सकते हैं। और मैं  साधु वाद देती हूं कंडक्टर को जिसने मुझे बाई ओर की खिड़की के आगे खड़ा कर दिया था। कहीं कम आबादी वाले गांव जो बेहद साफ सुथरे हैं। यह पूरा क्षेत्र वन्य जीव अभयारण्य के रूप में जाना जाता है। इतनी भीड़ में आध्यात्मिकता, संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता को दर्शाती यह अनूठी यात्रा मुझे जरा भी एहसास नहीं होने दे रही कि मैं खड़ी हूं और बस ओवरलोडेड है। पुरी से यहां तक का टिकट ₹50 है। बेहद खूबसूरत चंद्रभागा बीच आता है। यहां पर सवारियां चिल्लाने लग जाती हैं, "भैया थोड़ी देर गाड़ी रोक दो, हम देख तो ले।" ड्राइवर भी भला है। वह रोक देता है और जब यहां से चलता है तो वह गाड़ी की स्पीड बहुत कम रखता है और लोग विस्मय विमुग्ध होकर बाहर देखते हैं। मैं साथ साथ लोगों से बातें भी करती जाती हूं। वे बताते हैं कि यहां सबसे ज्यादा भीड़ होती है अक्टूबर और जनवरी के बीच में। जब कोणार्क फेस्टिवल होता है तब तो देश दुनिया के लोग यहां बड़ी संख्या में आते हैं। माहौल अलग सा हो जाता है। रास्ते में छोटे-छोटे रेस्टोरेंट है, खाने में यहां पर चावल और मछली करी हर जगह मिलेगी बाकि राज्य के व्यंजन भी आपको मिलेंगे। कोणार्क में बस ने  उतार दिया। उतरने से पहले मैंने कंडक्टर से पूछा कि दूसरी बस कब मिलेगी? उसने कहा," पुरी के लिए हर आधे घंटे में और भुवनेश्वर के लिए भी आधे घंटे में लेकिन एक बस स्टेशन जाने के लिए दूसरी बस बरमूडा बस स्टैंड जाने के लिए पूछ कर चढ़ना। उतरते ही मैंने नारियल पानी पिया, कीमत ₹20 और मीताजी को फोन किया। इ

स वक्त एक बजा था।

https://www.instagram.com/reel/C58__BQv8ju/?igsh=NjJwYzJlbHd3bzB1

https://www.instagram.com/reel/C7RHZFYv9q-/?igsh=MWY5MDFpMTV5cGE1aw==

क्रमशः 







Monday 20 May 2024

पुरी के दर्शनीय स्थल उड़ीसा यात्रा भाग 22, Unique Places to visit in Puri Orissa Yatra Part 22 नीलम भागी Neelam Bhagi


 


मेरी मेमोरी को फिर बैक गियर लग गया। जब  हम 1979 में पुरी में 10 दिन तक रहे थे, तब इतनी भीड़ नहीं होती थी। प्रतिदिन दर्शन करना दिलचस्प कहानी सुनना, मेरे ज़ेहन में बस गया था। और आज मैं अकेली आई हूं। हमारे पंडा जी का नाम कलयुग दामोदर है।  सत्यनारायण मंदिर में हमारे पिताजी बहन भाइयों को  प्रणाम करवाने लाए थे। जब उन्होंने बड़ी सी अपनी एक डायरी निकाल के उसमें हमारे खानदान में कौन-कौन पुरी आए थे बताया तो हम बहुत हैरान हुए थे और अब जो आए हैं उनका नाम लिखा।  उनके ही  छोटे पंडित जी महंत  राम ने हमें पुरी में पहली बार स्वर्ग द्वार समुद्र के किनारे लेकर गए। जीवन में पहली बार समुद्र देखा!! कितनी देर तक  विस्मय विमुग्ध सी खड़ी रह गई थी। तब अबकी तरह कुर्सियां,  छतरियां नहीं लगी थी कि कुछ रुपए देकर आराम से बैठो। हम सुबह शाम आते थे। दिन भर धूप कम होने का इंतजार करते थे और रात को पौ फटने का इंतजार करते थे। एक दिन भी अम्मा पिताजी को हमें उठाना नहीं पड़ा था। सूर्योदय और सूर्यास्त के मनमोहक दृश्य देखना। हमारा  उजाला भी समुद्र के किनारे होता था। हम खूब शंख, सीप, घोंघे तड़के रेत से इकट्ठे करते और लाकर कमरे में रखते। बाद में उनमें से भयंकर बदबू उठी क्योंकि उसके अंदर के जीव मर गए थे। शाम को समुद्र की गोल्डन रेत पर कलाकार रेत से कलाकृतियां बनाते, हम उनकी नकल में  बैठकर शिवलिंग बनाते,  समुद्र से उग्र लहरें आती, उन्हें बहा ले जाती। झंडा बदलने की रस्म के हम साक्षी रहते। दिन में महंत राम मंदिर से 5 किलोमीटर दूर लोकनाथ मंदिर दिखाने गए जहां शिवरात्रि से 3 दिन पहले मेला लगता है। रघुराजपुर गांव  यहां की कलाकृतियां लोकप्रिय पटचित्र, पीपर मैच, मुखोटे, पत्थर लकड़ी की कलाकृतियां आदि प्रसिद्ध हैं।  जंबेश्वर मंदिर जिसे मारकंडे शिव मंदिर भी कहते हैं यह 10वीं 11वीं शताब्दी का बना कलिंगा शैली में मंदिर है। यहां शिव की पूजा होती है कहते हैं मां मार्कंडेय ऋषि ध्यान में लीन थे और वह जल में बहने वाले थे। भगवान शिव ने उन्हें बचाया यहां शिवरात्रि को मेला लगता है। श्री गुणीचा  मंदिर जो  मंदिर से 3 किमी दूर कलिंगा शैली में बना है। रथ यात्रा में इसका बहुत महत्व है। पंच तीर्थ पांच ऐसे स्नान कुंड जहां पर स्नान करने से पुण्य मिलता है। नरेंद्र सरोवर पोखरी तीन हेक्टेयर में एक दीप सा है चंदन यात्रा में इसका बहुत महत्व है। पुरी की अपनी अनोखी संस्कृति और प्रकृति है। जून से मार्च तक आना यहां बहुत उत्तम है। वैसे तो वर्ष भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस यात्रा में हमारे पिताजी ने हमें टूरिस्ट की जगह, यात्री बनाया था। हम सब बहन भाइयों को₹100 -100 रुपए दिए बाकि सब खर्च पिताजी के थे। हम अपने ₹100 लेकर दिनभर घूमते रहते थे। रहने को जगह खाने को महाप्रसाद और आसपास इलाकों में जाने के लिए टूरिस्ट बस जिसमें सुबह बैठते थे। शाम को वह हमें कोणार्क ,भुवनेश्वर, चिल्का लेक  आदि घूमा के पुरी में छोड़ देती ।  सस्ता शहर है। अपने पंडा जी को प्रणाम नहीं कर पाई, पंडित जी से मैंने कहा होता, तो वह मुझे जरूर मिलवाते। मुझे बस जल्दी निकलने की आफत थी। ग्रांड रोड वैसे  की वैसी थी। हां विकास बहुत हुआ है। तीर्थ यात्रा में एक स्थान पर हमें देश भर के लोग मिल जाते हैं। उस समय कुछ महिलाएं एक वस्त्रा होती थीं। कई लोग तो नंगे पांव होते थे। और आज खूब सौंदर्यीकरण  हुआ है और हो रहा है। दुकाने सामान से लदी पड़ी ही। खूब खरीदारी हो रही है और बेहतरीन पोशाक में लोग हैं। बहुमंजिले भवन हैं। मेरे जो  बहन भाई यहां से कुछ साल पहले दर्शन करके आए हुए हैं बताते थे कि पुरी में बहुत तरक्की हुई है। आज अपनी आंखों से देखकर सराहना करती हूं। लोगों का और पुरी का विकास प्रशंसनीय  है। बैटरी बस ने बस स्टैंड के पास उतार दिया।

https://www.instagram.com/reel/C7Os6svP9Q4/?igsh=MXE3eG9sbWZyNDN6bw==

क्रमशः






Sunday 19 May 2024

इंतजार लायक लंबी कतार है जगन्नाथ मंदिर पुरी , उड़ीसा यात्रा भाग 21, Jagannath Temple Orissa Yatra Part 21 नीलम भागी Neelam Bhagi

  


पंडित जी मुझे मंदिर से संबंधित प्रचलित कहानी सुनाते जा रहे थे  और मैं उन्हें ध्यान से सुनते हुए कलिंग स्थापत्य,शिल्प कला  में बनाए आश्चर्यजनक मंदिर को देख रही थी। मुख्य मंदिर में पहुंचते हैं। वहां भीड़  बाहर की तरह पंक्तियों में नहीं थी। इतने श्रद्धालुओं को देखकर  मुझे लगता है बच्चों को और बुजुर्गों का ध्यान रखना होगा। क्योंकि कोई किसी को नहीं देख रहा था। सबको दर्शन की लालसा थी।  पंडित जी  ले गए और मैंने बहुत अच्छे से दर्शन किए। यहां तीन  लकड़ी से निर्मित बड़े भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा और जगन्नाथ जी के दर्शन के बाद,  हम बाहर आए। मुझे बहुत अच्छा लगा।  अगर यह पंडित जी न मिलते तो इतनी जल्दी मैं कैसे दर्शन  कर पाती! यहां छोटे छोटे 30 मंदिर हैं। मुख्य मंदिर के बाईं ओर, जगन्नाथ जी की रसोई है। यहां मिट्टी के बर्तन में और लकड़ी पर भोग बनाया जाता है। 500 रसोइए और उनके 300 सहयोगी 56 भोग बनाते हैं। जिसका भगवान को 6 बार भोग लगता है। 250 चूल्हों पर 7 बर्तन घेरे में लगते हैं। सबसे पहले ऊपर वाले का प्रसाद बनता है और क्रम से नीचे की ओर बनता जाता है। सदियों से वही स्वाद है। प्रतिदिन 20,000 के लिए और विशेष दिनों पर 50000 तक के लिए बनता है। भगवान को छह बार भोग लगता है। प्रवेश से पहले आनंद बाजार में यहां से बना महा प्रसाद ले सकते हैं। महाप्रसाद खाने के लिए भी यहां जगह दी गई है। मंदिर में प्रतिदिन 800 से अधिक साल से सूर्यास्त के समय झंडा बदला जाता है। और आश्चर्य यह है कि झंडा हवा की विपरीत लहराता है। मंदिर सुदर्शन चक्र जहां से भी देखो, आपको अपनी ओर सामने नजर आएगा। शिखर के आसपास पक्षी उड़ते, बैठते नहीं दिखते हैं और ना ही उसकी परछाई दिखती है। मंदिर के चार द्वार सिंहद्वार, अश्वद्वार, हाथीद्वार, व्याघ्रद्वार हैं। मंदिर देखने में मुझे एक घंटा लगा। पहले मन में भगवान  के दर्शन करने की लालसा थी। अब  पंडित जी की कहानियां बहुत  दिलचस्प लग रही थीं।  

  यह मंदिर हमारे हिंदू धर्म के चार धाम में से एक है। विष्णु के आठवें अवतार यहां जगन्नाथ  कहलाते हैं। बद्रीनाथ में भगवान ने स्नान किया था। गुजरात के द्वारका से राज श्रृंगार  किया। प्राचीन नगरी पुरी में भोजन किया और रामेश्वरम में विश्राम किया। 11वीं शताब्दी में  4 लाख वर्ग फीट में बनना शुरू हुआ। इसकी ऊंचाई 214 फिट है। यह  अनंग भीमदेव तृतीया के शासनकाल में 1230वीं शताब्दी में पूरा हुआ। मंदिरों में देवताओं की स्थापना की गई। विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ जी का मंदिर, रथ यात्रा के लिए मशहूर है। जो आषाढ़ माह के दूसरे दिन निकलती है। उस समय यहां पर 10 लाख के करीब देश दुनिया भर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। भारत में सभी देवी देवताओं के मंदिरों में भगवान  गर्भ ग्रह में स्थापित रहते हैं पर हमारे जगन्नाथ जी मंदिर से बाहर गुढ़िचा  मंदिर मां मौसी घर जाते हैं। वहां 8 दिन रहते हैं। दसवे दिन वापस जिसे  बोहुडा यात्रा कहते हैं। ऐसा मानते हैं  जैसे भगवान  मथुरा से वृंदावन गए थे। भगवान तो सबके हैं लेकिन मंदिर में प्रवेश केवल हिंदुओं को दिया जाता है। अब जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में बहन भाई के  तीन सुसज्जित रथ  बाहर आते हैं। भाग्यशाली लोग उनका दर्शन कर सकते हैं।  मंदिर का इतिहास और मूर्ति निर्माण की कथा बहुत दिलचस्प है। विश्ववसु  राजा जगन्नाथ की नीलमाधव के रूप में नीलांचल पर्वत की गुफा में सबसे छुपा कर, रख कर पूजा करता था। ब्रह्मांड के स्वामी विष्णु ने राजा इंद्रधुम्न  को सपने में कहा कि एक भव्य मंदिर बनाकर उसमें मेरे रूप में नीलमाधव को स्थापित करो। राजा के सेवकों ने मिल नीलमाधव को ढूंढा पर सफल नहीं हुए। राजा ने एक ब्राह्मण पुजारी विद्यापति से  अनुरोध किया। वह इस प्रयास में लग गया पर सफलता हाथ नहीं लगी लेकिन उस विद्यापति ने विश्ववसु राजा की पुत्री ललिता से प्रेम कर, विवाह कर लिया। विवाह के बाद उसने अपने ससुर से नीलमाधव के दर्शन की इच्छा प्रकट की। विश्ववसु दामाद की आंखों पर पट्टी बांधकर उसे दर्शन कराने ले गया। चतुर विद्यापति मार्ग में सरसों के दाने बिखेरता गया। बाद में वह मूर्ति चुराने में सफल हो गया और मूर्ति जाकर अपने राजा इंद्रधुम्न को दे दी। मूर्ति चोरी से राजा विश्ववसु बहुत दुखी हुआ। अपने भक्त को दुखी देखकर भगवान भी उसके पास लौट गए और जाते हुए इंद्रधुम्न से कहा कि वह उनके लिए बहुत सुंदर मंदिर बनवाए वे जरूर आएंगे। राजा ने मंदिर बनवाया और विष्णु जी को उसे पवित्र करने के लिए आग्रह किया पर विष्णु जी ध्यान में थे। 9 साल लगे। मंदिर रेत में दबता गया फिर इंद्रधुम्न को नींद में भगवान ने कहाकि द्वारका से दिव्य वृक्ष का लट्ठा पुरी तट पर आ गया है। उससे  मूर्ति बनवाओ। राजा अपने सेवकों सहित  उठाने गया वह तो किसी से हिला भी नहीं। राजा समझ गए कि इसे उनके भक्त राजा विश्व वसु ही उठा सकता है। विश्ववसुदेव से आग्रह किया। वह तुरंत आ गए और वे अकेले ही लट्ठे को उठाकर, राजा के भवन ले गए। अब सवाल था मूर्ति बनाने का। बड़े-बड़े कारीगर आए पर कोई इसमें छेनी भी नहीं ठोक सका। एक दिन बूढ़े के रूप में तीनों लोक के इंजीनियर भगवान विश्वकर्मा आए। राजा ने उनसे अनुरोध किया कि मुझे इस दिव्य लट्ठ से मूर्तियां बनवानी हैं। बूढ़े ने कार्य करने की शर्त रखते हुए कहा,"मैं 21 दिन में मूर्तियां बना दूंगा लेकिन कोई भी झांकने नहीं आएगा अगर किसी ने अंदर देखा तो मैं काम बंद कर दूंगा।" कमरा बंद हो गया, सबको  ठक ठक सुनाई दे रही थी। अब कुछ दिन बाद अंदर से छैनी हथौड़ी की आवाज बंद हो गई। इंद्रधुम्न की रानी गुड़ींचा ने बाहर से कान लगाया। कोई आवाज नहीं। उसने अपने पति से कहा कि काम करते हुए वह बूढ़ा  कारीगर मर तो नहीं गया। राजा ने तुरंत दरवाजा खोला बूढ़ा गायब! वहां तीन अधूरी मूर्तियां थी। भगवान नीलमाधव और बलभद्र के छोटे-छोटे  हाथ बने थे, टांगे नहीं। सुभद्रा के हाथ पांव भी नहीं। राजा ने इसे प्रभु की इच्छा मानकर तीनों भाई बहनों को इसी रूप में स्थापित किया और वे आज तक वैसा ही है।

 सुनते हुए  कब वहां पहुंच गए! जहां मेरी चप्पल और मोबाइल रखा था। पंडित जी को दक्षिणा देकर प्रणाम किया। उनके कारण मेरा यहां आना सफल हुआ। पंडित जी मुझे बैटरी गाड़ी में बिठाकर लौटे। मंदिर प्रातः 5:30 बजे से रात्रि 9:00 तक खुलता है। यहां से पूरे देश से रेलवे लाइन जुड़ी हुई है। मंदिर का कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। इंतजार लायक लंबी कतार है। स्टेशन से मंदिर की दूरी 2.8 किमी और बस अड्डे से 1.9 किमी है। यहां से खूब ऑटो टैक्सी रिक्शा मिलते हैं।

https://www.instagram.com/reel/C7OMa6-v7f2/?igsh=eTJ0NG9pZmE4NjQ2

https://www.instagram.com/reel/C7KHLH9PC7V/?igsh=MXQzbWN1OXUyaGFodg==

क्रमशः







#,  #AkhilBhartiyeSahityaParishad,

Thursday 16 May 2024

वाटी दाल खमन ढोकला khaman Dhokala recipe with /without eno & Baking soda नीलम भागी

यह चने की दाल से लाजवाब बनता है। एक कप चने की दाल को दो से चार घंटे के लिए अच्छी तरह धोकर भिगो दिया। फिर इसे पानी से निकलकर मिक्सी जार में चार चम्मच खट्टा दही दो तीन हरी मिर्च, 1 इंच टुकड़ा अदरक का डालकर पीस लिया। अगर जरूरत हो तो पानी मिला दे। इस मिक्सचर को किसी बर्तन में निका लना। अब इसमें स्वाद अनुसार नमक, दो चम्मच तेल,चार चम्मच खट्टा दही, हल्दी अगर मन करे तो, मिलाया और लगभग एक कप पानी पकोड़े के बेसन की तरह घोल बनाकर  6 से 8 घंटे तक रख दें। रखने से पहले बर्तन के बाहर निशान लगा लें। जब यह घोल लगभग दुगना हो जाए तब एक  थाली या केक टिन में अच्छी तरह तेल लगा कर,  इस बैटर को उसमें  डाल दें। ऊपर तक नहीं भरे, आधा रखें। साथ ही स्टीम में  पकाने के लिए किसी बड़े बर्तन में स्टैंड या रिंग रखकर, दो-तीन कप पानी डालकर उबालने रखते हैं। पानी उबलने पर अब घोल के  बर्तन को पानी में  रखे पर बर्तन में रख दें। ध्यान रखें कि पानी बर्तन को न छुए। आंच मीडियम हाई रखे। इस बर्तन को ढक कर 15 मिनट बाद इसमें चाकू डालकर देखें। चाकू बिल्कुल साफ निकल आएगा। तुरंत बर्तन से निकाल कर ढोकले को बाहर ठंडा होने रखते हैं। थोड़ी देर में ठंडा होने पर इसके किनारे छूट होंगे। चारों तरफ चाकू से अलग करें। मैंने तो थाली से बाहर केक की तरह प्लेट पर उल्टा किया बिल्कुल साफ निकल आया। अब आप बर्तन के अंदर ही इसे मनपसंद की शेप में काट लें।

 तड़का!

 तड़का पैन में दो चम्मच तेल, उसमें 1 चम्मच चम्मच राई या सरसों डालकर चटकाने दें फिर एक चम्मच तिल  डालें तीन-चार हरी मिर्च बीच से काट लें। करी पत्ते के साथ  में डाल दें। दो चम्मच चीनी, नमक स्वादानुसार और तीन चौथाई कप पानी डालकर उबलने पर गैस बंद करके, इसमें नींबू का रस डालें। अब इस खट्टे मीठे नमकीन लिक्विड को ढोकले में डालते हैं। चाहे तो थोड़ा हरा धनिया भी  काट के डाल सकते हैं। ढोकले की जाली इस तड़का  रस को पीकर खमन को बहुत स्वादिष्ट कर देती है।

#झटपट खमन ढोकला बनाना

झटपट खमन बनाने के लिए स्टीम करने का बर्तन तैयार रखें। बस इसी घोल को फर्मेंटेशन के लिए रखना नहीं है। इसमें एक चम्मच ईनो  साल्ट या बेकिंग सोडा और पानी मिलाकर, अच्छी तरह मिला कर, तुरंत स्टीम  में रख देना है। बाकि पूरी विधि बनाने की एक सी है। बनाने का समय घोल रखने के बर्तन पर निर्भर करता है। अगर बर्तन गहरा होगा तो समय ज्यादा लगेगा। किनारे वाली ताली में घो ल की  मोटाई कम होगी तो कम समय में बनता है।








Tuesday 14 May 2024

प्याज के छिलकों का बागवानी में उपयोग Onion Peel Fertilizer for Plant नीलम भागी

 

श्याम सब्जीवाला तीन पहिए के ठेले पर आलू, प्याज बेचता है। उसके  ठेले के साइड में एक पॉलिथीन प्याज के छिलकों से भरा लटका  देखकर, मेरी उत्सुकता जागी। मैंने उससे पूछा," यह तुमने छिलके क्यों इकट्ठे कर रखे हैं!" उसने जवाब दिया, "प्याज की बोरी से काफी छिलके निकलते हैं। बाहर फेंको तो सड़क गंदी होती है। छिलके मैं पॉलिथीन में डालता रहता हूं। कोई बहुत शौकीन  बागवानी करने वाले मुझसे मांग लेते हैं।" मुझे भी लालच आ गया पर मेरे पास कोई गमला खाली नहीं था। उसने देखा एक गमले में कोई पौधा नहीं था। वह पीछे को रखा था, जिसे मैं उठा नहीं सकती थी क्योंकि फुटपाथ पर टाइल लगाने वाले उसके आगे टाइल रख गए थे। श्याम ने ही गमला उठाया। उसकी  मिट्टी खाली की। उसने प्याज के छिलके गमले में भर दिए ताकि मैं छिलकों का उपयोग अपनी सुविधा अनुसार करूं और मैंने किया, आप भी करें।

छिलकों का बागवानी में उपयोग रसोई का वेस्ट प्रोडक्ट प्याज का छिलका जो हमारे घरों में  फेंका जाता है, बहुत उपयोगी है। इसमें कैल्शियम, पोटेशियम, कॉपर कई खनिज  मिनरल, फर्टिलाइजर में जो उपयोगी होते हैं, पाए जाते हैं। यह रूटिंग एजेंट है इसमें फ्लेवनैडेस और क्वेरेसरीन  जैसे रोग प्रतिरोधक, बायो एक्टिव और अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह ऑर्गेनिक जीरो बजट खाद बनाने में बहुत आसान है। लिक्विड फर्टिलाइजर तीन-चार मुट्ठी प्याज के छिलके एक लीटर पानी में बंद ढक्कन की बोतल में छाया में रख दे। गर्मी में  24 घंटे में और सर्दी में 48 घंटे में तैयार हो जाती हैं। इसे छानकर लिक्विड में यदि 200 ml तो उसमें 1 लीटर पानी मिलाकर पौधों में डाल दें और छिलकों को कमपोस्ट पिट में डाल दें। ऐसा हम  फल फूलों और सब्जियों वाले पौधों में कर सकते हैं। यह लिक्विड फर्टिलाइजर 10-15 दिन तक स्टोर किया जा सकता हैं। इसे महीने में तीन चार बार दे सकते हैं। लागत तो इसमें कुछ है ही नहीं। टमाटर में बहुत ही कारीगर है। वैसे भी गर्मी है आप पौधे के चारों तरफ इन छिलकों से मल्चिंग कर सकते हैं जिससे मिट्टी में नमी बनी रहेगी और इसे खाद बनाने के लिए बैक्टीरिया अपना नीचे काम चालू रखते हैं जो कुछ दिनों में इसको खाद में बदल देंगे। बदले में आपको स्वस्थ पौधा मिलेगा। एंटीमाइक्रोबियल और मजबूत जड़ के लिए  छिलके बहुत उपयोगी है।