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Thursday, 6 June 2024

जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ! भुवनेश्वर! Bhuvneshwer उड़ीसा यात्रा भाग 27, Orissa Yatra Part 27 नीलम भागी Neelam Bhagi

 


 

सम्मान समारोह से लौटने के बाद लंच के लिए हाल में  एकत्रित हुए। विश्वविद्यालय से जलपान करके लौटे थे। मैंने  सोचा आख़िर में लंच करूंगी। कार्यक्रम को  छोड़ कर, मेरी आदत है, जब भी खाली होती हूं, मैं कहीं भी मोबाइल खोलकर  उस पर लग जाती हूं और मैं लग गई।  मुझे आसपास का कुछ ध्यान नहीं रहता है। 

 धीरज शर्मा मोंटी(ग्वालियर) मेरे पास बैठे और बोले, "नीलम जी, मोबाइल तो आपके पास हमेशा ही रहेगा लेकिन यह जो आसपास साहित्यकार हैं, अगली बार पता नहीं आपको कब मिलेंगे!"  और मोंटी बहुत व्यस्त  रहते हैं, यह कह कर वे चले गए। मैंने तुरंत मोबाइल पर्स में रखा और मेरे आस-पास जो थे और उनसे परिचय होने लगा। मुझे बहुत अच्छा लगा विभिन्न प्रदेश के साहित्यकारों की अपनी बातें  जो किसी पुस्तक में नहीं हैं। अब तो ब्रेक में अपने रूम में भी नहीं जाती थी। किसी भी मेज  पर जाकर बैठ जाती। मेरा  संकोची स्वभाव पर कुछ देर बाद मुझे लगता ही नहीं था कि मैं उन्हें जानती नहीं हूं ।सब परिचित लगते । ट्रेन में मैं अपने साथ के यात्रियों से आराम से बतियाती आती हूं। साहित्य परिषद में  सभी बहुत विद्वान हैं। वह आपस में किसकी कितनी किताबें  छपी हैं, उस पर चर्चा करते हैं। मेरी तो एक भी नहीं छपी है। मैं यह सोचकर हीन भावना में रहती थी कि कोई मुझसे पूछेगा कि आपकी कितनी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं? तो मैं नालायक लगूंगी शायद इसलिए मैं अलग थलग सी रहती। मैं बैठने लगी तो देखा पुस्तक छपाई की बात तो कुछ देर में ही खत्म हो जाती है और कभी किसी ने भी मुझसे नहीं पूछा कि आपकी कितनी पुस्तक छपी है? इस सबके लिए धीरज शर्मा की  अभारी हूं कि मैं मोबाइल की दुनिया से हटकर इन विद्वानों की चर्चा को शांति से सुनती ।       अगले सत्र में हमारी प्रदेश अनुसार  टोलिया बना दीं। प्रत्येक टोली में  पुरस्कृत साहित्यकारों को भी साथ किया। उनके साथ संवाद किया। उन्होंने अपने अनुभव शेयर किये।  बहुत अलग सा  लगा। इसमें कोई भी अपने मन की बात  कर सकता था और सम्मानित साहित्यकार  उसमें  शामिल थे। चाय का समय हो गया है पर  मस्त बैठें थे। रात्रि  में हमारे लिए जगन्नाथ जी का महा प्रसाद था। वैसे तो हर जलपान, भोजन में उड़ीसा का स्थानीय व्यंजन  जरूर रहता था। पर महाप्रसाद की अलग से खुशी थी। और इसके बाद सांस्कृतिक  कार्यक्रम की प्रस्तुति थी। 

जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ! महाप्रसाद के लिए सबको  नीचे बैठकर खाना था। मैं और मेरे जैसे कुछ नीचे नहीं बैठ सकते तो हमारे लिए मेज कुर्सी लगाई गई। कुछ  ने  मुश्किल से नीचे बैठ कर महाप्रसाद  लिया। केले के पत्ते पर हाथ से महाप्रसाद खाना बहुत अच्छा लगा। महाप्रसाद के बाद हम सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने के लिए हम हॉल में गए। यहां ओडिसी लोक नृत्य और ओडिसी शास्त्रीय नृत्य गजब के प्रस्तुति थी। आज का पूरा दिन समारोह के  आनंद में बीता।  खूब मोटिवेट हुए और रात्रि विश्राम के लिए हमें हमारे होटल में पहुंचा दिया गया। 

क्रमशः 












Sunday, 2 June 2024

कार्यकर्ता प्रबोधन कार्यशाला भुवनेश्वर! Bhuvneshwer उड़ीसा यात्रा भाग 25, Orissa Yatra Part 25 नीलम भागी Neelam Bhagi

 


अखिल भारतीय साहित्य परिषद की तीन दिवसीय कार्यकर्ता प्रबोधन कार्यशाला 19 दिसंबर 2023 को भुवनेश्वर में आरंभ हुई ।  इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न प्रांत से 250 से अधिक साहित्यकार शामिल हुए।  उद्घाटन सत्र के मौके पर तीन पुस्तकों का लोकार्पण किया गया यह पुस्तक हैं  साहित्य में औपनिवेशिकता, नए भारत का साहित्य, संस्कृति की पोषक नदियां, उद्घाटन सत्र में अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंजन जी , अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुशील चंद्र द्विवेदी जी ,अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री राम परिहार जी , परिषद के पूर्व अध्यक्ष बलवंत जानी जी ,  महामंत्री ऋषि कुमार मिश्र जी  ने अपने अपने उद्बोधन दिए ।  स्वागत भाषण प्रकाश बेताला ने दिया, जिन्होंने कार्यक्रम में भारत के कोने-कोने से आए साहित्यकारों का स्वागत करते हुए  कहा कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद एक ऐसा मंच है जो भारत  में भारतीय संस्कृति, भारतीय गौरव और भारत की आत्म चेतना को जागृत करने के लिए कार्य कर रही है। समग्र देश में 550 इकाइयों का कार्य चल रहा है और लगभग देश के सभी प्रांतों  में अखिल भारतीय साहित्य परिषद की इकाइयां हैं। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के  महामंत्री ऋषि कुमार मिश्र जी ने कहा कि कुछ लोग साहित्य  के नाम पर शब्दों का व्यापार करते हैं तो कुछ सचमुच साहित्य से प्यार करते हैं । समाज के लिए कल्याणकारी साहित्य की रचना करना, विचार चिंतन के जरिए देश की संस्कृति को परिभाषित करना साहित्य परिषद का  मूल उद्देश्य है। 

नारायण दास मावतवाल 

भुुवनेश्वर 

अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंजन जी  द्वारा भुवनेश्वर अखिल भारतीय साहित्य परिषद के कार्यकर्ता प्रबोधन कार्यशाला में रखे गए बिंदु

1.कार्य का विस्तार

2.कार्य की गुणवत्ता

3.समाज परिवर्तन का कार्य

परिवार प्रबोधन

सामाजिक समरसता

पर्यावरण का रक्षण

 जल का संरक्षण करे

 जल का दुरुपयोग न हो

जल व्यर्थ न हो

सामाजिक परिवर्तन

 स्वदेशी का उपयोग करें

नागरिक कर्तव्यों का पालन करना

स्वच्छता का विषय

4.हमारा विमर्श कैसे स्थापित हो

जातीय भेदभाव में न बंटने देना

राष्ट्र प्रेम बढ़ाना

भारतीय  परम्परा को बढ़ाना

सनातन की जानकारी देना

स्व की जानकारी देना

गैर धर्मो की भी जानकारियां रखना

समाज को ग्लोबल मार्केट द्वारा संचालित करता है उसके बारे में जागरूक करना

5. सज्जन शक्ति का जागरण

सज्जन शक्ति को जगाना पड़ेगा

सज्जन शक्ति को अपने साथ खड़ा करना

उनको मंच उपलब्ध कराना अपनी बात रखने के लिये

मनोज कुमार,'मन' वरिष्ठ  उपाध्यक्ष दिल्ली प्रदेश

उद्घाटन सत्र के उपरांत अलग-अलग प्रांत को लेकर एक चिंतन मनन बैठक का आयोजन किया गया।

रात्रि में राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य जी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। कुल 4 सत्र आयोजित हुए।

क्रमशः 















Thursday, 30 May 2024

कोणार्क से भुवनेश्वर! स्वर्णिम त्रिभुज! Golden Triangle! Konark to Bhuvneshwer उड़ीसा यात्रा भाग 24, Orissa Yatra Part 24 नीलम भागी Neelam Bhagi

  



मंदिर में जो फोटोग्राफर हैं, वे भी बखूबी गाइड का काम करते हैं मसलन विद्याधर खटाई। मंदिर से बाहर निकलते ही मुझे उत्तराखंड की रेखा खत्री अपने ग्रुप के साथ मिल गई।  वे सुबह भुवनेश्वर पहुंची थीं। समान रखते ही अपने ग्रुप के साथ घूमने निकल गई। मुझे भी कहा कि आप भी शाम तक पहुंच जाना क्योंकि सुबह 9:00 बजे तो सत्र शुरू है। मैंने कहा," ठीक है।" मंदिर से बाहर निकलते ही अस्थाई मार्केट है, जिसमें सभी तरह का सामान मिलता है। सबसे अधिक काजू और खसखस। काजू ₹300 से शुरू है लोग खरीदते  हैं बाकि खाने पीने के स्टॉल हैं। इसमें पैदल चलना बहुत अच्छा लगता है। बहुत अच्छा है यहां पर स्थाई निर्माण नहीं है, नहीं तो हमारे विश्व धरोहर सूर्य मंदिर को क्षति पहुंचेगी। चलते हुए बस स्टैंड  पहुंची। सामने मो बस खड़ी थी भुवनेश्वर जाने के लिए। मैं उसमें बैठने लगी पर पूछ लिया कि यह बरमूडा बस स्टैंड जाएगी। ड्राइवर ने कहा," नहीं, स्टेशन जाएगी।" तुरंत उतरी। यहां मदद को सभी तैयार रहते हैं। पुलिस वाले ने पूछा," आप भुवनेश्वर के लिए क्यों नहीं बैठी?" मैंने कहा," मुझे बरमूडा बस स्टैंड जाना है।" अस्थाई दुकान के अंदर से आवाज आई," वह लाल कुर्सी उठाइए, उस पर बैठ जाएं।"  अब आपको बस 3:30 बजे मिलेगी जो बरमूडा जाएगी। मैं बैठकर, आने जाने वाले देश दुनिया के पर्यटकों, तीर्थ यात्रियों को देखती रही। कुछ ही दूरी पर चंद्रभागा बीच है। लोग यहां से बीच पर जाते हैं या बीच से पैदल कोणार्क के लिए आते हैं। यह सब देखना भी अपने आप में बड़ा सुखद है क्योंकि एक ही स्थान पर हर प्रांत के देशवासी अपनी पोशाक में दिख जाते हैं। पर मैं बेचैन कोई बस आती,  मैं उठ कर पूछताछ करने चल देती । अब देवराज  राऊ, उठकर मेरे पास आए बोले," मैं सुपरवाइजर हूं, यहां बस सर्विस 

का ध्यान रखता हूं। आप परेशान न हों। आपको बस में बिठाऊंगा। हां कोई काजू वगैरह खरीदने हैं तो ₹10 की ई रिक्शा में बैठकर, याद नहीं आ रहा कौन सा गांव बताया था? वहां काजू भूने जाते हैं। बहुत सस्ते और अच्छे मिलते हैं। वहां आप शॉपिंग करके आ सकती हैं। आपके पास समय है। यह लंच टाइम है, थोड़ा बस सर्विस कम है। अब मैं तसल्ली से  बैठ गई और कोणार्क दर्शन के साथ आसपास का परिचय भी करने लगी और फिर नारियल पानी पिया। पता नहीं ताजा होने के कारण यहां बेहद स्वाद था जैसे ही बस आई,  देवराज राऊ जी ने कंडक्टर से कहकर मुझे विंडो सीट पर ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बिठाया और कहा," दीदी अकेली है, जहां पर यह कहेंगी, वहां ठीक से उतारना।" खूब भरी हुई बस में मुझे सीट मिली। मेरे सामने बस में बहुत सुंदर सा मंदिर बनाया हुआ था। यह बस का रास्ता 66 किमी. का है और आज मैंने गोल्डन ट्रायंगल पूरा करना है। भुवनेश्वर से पुरी,  पुरी से कोणार्क और कोणार्क से भुवनेश्वर। जितनी दूर बस होती जा रही है, रास्ते में खेती शुरू हो गई है। छोटे-छोटे पोखर हैं। लाल मिट्टी है जो बहुत उपजाऊ होती है और हरियाली। नारियल,  सुपारी और काजू के पेड़ हैं। रास्ते में नीमपाड़ा , गोप और पिपली आते हैं। पिपली हैंडीक्राफ्ट, हथ एलकरघा और कपड़े के काम के लिए, पत्थर और लकड़ी पर नक्काशी के लिए मशहूर है। दिल्ली से हमारे साथी भी शाम को पहुंच रहे थे। हमारे प्रवीण आर्य राष्ट्रीय  मंत्री का फोन आ गया था। उनकी आदत में शुमार है जो भी किसी भी सम्मेलन में जाता है, उसके कांटेक्ट में जरूर रहते हैं। उन्होंने मुझे  डॉ. संतोष महापात्र (महामंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद उड़ीसा) का नंबर भेजा कि इनसे कांटेक्ट करो। आपको सम्मेलन स्थल में पहुंचने में आसानी होगी। बस स्टैंड आने से पहले मैंने मी ताजी को फोन कर दिया था। श्री मोहंती ने मुझे पिकअप कर लिया। मीताजी को मैंने बताया था मैं डिनर नहीं करूंगी। पर उन्होंने फिर भी उड़िया के स्थानीय व्यंजन बनाए हुए थे। मैंने उन्हें चखा जो बेहद स्वादिष्ट थे। मैंने मिस्टर मोहंती की डॉक्टर संतोष महापात्र से बात करवा दी उन्होंने बता दिया मुझे कहां पहुंचना है। मीताजी और श्री मोहंती मुझे वहां पहुंच आए। यहां पूरे भारत से आए साहित्य परिषद के प्रतिनिधि एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हो रहते थे। डिनर के बाद मुझे मेरे मैंगो होटल में पहुंचा दिया। अब मुझे कहीं जाना नहीं था। तीन दिन सभी सत्र अटेंड करना है।

https://www.instagram.com/reel/C7mlavgPM7z/?igsh=MXc4MTI5dHN5dWp1cg==

क्रमशः 














Wednesday, 31 January 2024

खेती न न न...!दिल्ली से भुवनेश्वर रेल यात्रा भाग 3 नीलम भागी ! Way to Bhuvneshwar Neelam Bhagi Part 3

 


सुधा की एक विशेषता थी कि वह परिचय सबका ले लेती थी। इस नई महिला का भी लिया। महिला का नाम उसने नहीं पूछा उसे दीदी  कहा, अपर्णा जी  को मौसी जी, हमें अब इन सब की आदत नहीं रही। मैं सचमुच इन्हें मौसी भानजी समझती रही। दीदी भुवनेश्वर में कोचिंग सेंटर चलाती हैं। मुझे रास्ते की हरियाली बहुत अच्छी लग रही थी  पानी पोखर ही देखना बहुत भा रहा था। अब सभी लोग उड़ीसा के ही थे। मैंने एक सवाल किया कि यहां की मिट्टी के हर कण में कुछ उगा है पर यहां खेती  कम है। तुरंत जवाब मिल गया कि यहां जो खेती करता है, उसको कुछ नहीं समझते जो पढ़ लिख के या वैसे ही बाहर कमाने गया है उसकी  रिस्पेक्ट है। मुझे बड़ा अजीब लगा कि खेती करना नहीं चाहते। सहयात्रियों ने बताया कि यहां पर ₹2 किलो चावल मिलता है जो गरीब है उनको। अगर कोई खेती करता है तो चावल उगा लेता है, वह भी सरकार को बेचने के लिए मसलन सरकार को 18 रुपए किलो बेचा और ₹2 किलो खरीद लिया यानी ₹16 पर किलो फायदा। इस तरह से कोई खेती को नहीं लेता कि हमें कितनी फसले लेनी हैं। खूब इसी से आमदनी बढ़ानी है ऐसा कुछ नहीं है। अब  मैंने दीदी से पूछा ,"कोचिंग के काम में तो बहुत मेहनत करनी पड़ती है। नौकरी तो है नहीं की कुछ घंटे मेहनत  की और तनख्वाह ले ली। यहां तो रिजल्ट अच्छा देंगे तो अगला  बैच आएगा। दिनभर तैयारी करना क्योंकि यहां बच्चे प्रॉब्लम्स लेकर आते हैं, उसे सॉल्व करना तो घर के काम के लिए मेड वगैरा मिल जाती हैं?" यह पूछ कर तो  मैंने उनकी   दुखती नस पर हाथ रख दिया। इसमें तो अपर्णा जी भी शामिल हो गई। दीदी बोली," मेरी मेड आती है तो मैं पहले उसकी आरती उतारती हूं।" मैं हैरान! तो बोली," मतलब पहले उसको  चाय नाश्ता कराती हूं, अपने हाथ से बना कर फिर वो काम करती है। यहां आप पार्ट टाइम डोमेस्टिक हेल्पर ढूंढोगे तो पहले वह हमसे पूछेगी, कितने लोग हैं, घर में बच्चे कितने हैं? बाहर रहते हैं कि यहां रहते हैं।  उनको ऐसा घर चाहिए जिनके बच्चे बाहर गए हैं। बस सीनियर सिटीजन घर में रह रहे हों। वहां मुंह का स्वाद बदलने को काम करती है और बस कैश के लिए। चावल तो घर में आ ही जाता है इसलिए खाना जो दे दो। अगर हम बनवाते हैं तो इन्हें वही खिलाना है। 

 जैसे हमारे बंगाल में कामकाजी महिला के घर में खूब काम करती हैं। वह बाहर काम करती है। यह घर संभालती हैं। दोनो का काम चलता रहता है। यहां ₹2 किलो चावल ने इनकी काम करने की की जरूरत को खत्म कर दिया है। हां, जिनको बच्चे को बनाने की लगन है, वैसे घर ढूंढते हैं जहां बुड्ढे बुढ़िया हो बस और काम कर लेते हैं। सुधा को भद्रक स्टेशन पर उतरना था। उसमें और बऊ में कुछ उड़िया में वार्तालाप  चल रहा था।  केबिन से स्टेशन आने से काफी पहले वे चली गई। भद्रक प्लेटफॉर्म  पर मैं देख रही थी, सुधा ने साड़ी पहनी हुई, सर पर पल्लू कर रखा था। मैंने चौंक कर देखा। वह मेरी तरफ देखकर हंस पड़ी और मैं भी हंसने लग गई।  दो लोग उनको गांव से लेने आए थे। मैंने सबसे बोला," देखो सुधा  बिल्कुल बदली हुई लग रही है। क्योंकि अंदर वह चूड़ीदार पजामा कुर्ता कार्डिगन पहने बिना दुपट्टे के लड़की सी घूम रही थी। उसने साड़ी किस वक्त पर बांध ली! पता ही नहीं चला।" तो अपर्णा जी बोली कि सास बहू में वार्तालाप चल रहा था कि वहां जैसे मर्जी रहो लेकिन गांव में  तरीके से जाना है। मुझे अच्छा लगा 15 दिन के लिए ही गई है ससुराल, उनके अनुसार रह कर आएगी।  मुझसे पूछा,"आपने कहां जाना है? कैसे जाएंगी? मैंने कहा मुझे लेने आ रहे हैं।  मैंने  पूछा," मुझे 2 दिन में ज्यादा से ज्यादा देखना है क्योंकि मैं जब बीएससी में पढ़ती थी तब परिवार के साथ आई थी। पहली बार मैंने समुद्र पुरी में देखा था। हम लोग 10 दिन तक रहे थे। वहीं से टूरिस्ट बस में भुवनेश्वर कोणार्क वगैरा गए थे। मुझे बहुत अच्छा लगा था। अब मुझे कैसे घूमना चाहिए? वे बताने लगे कि मो  MO बसे चलती हैं, डीलक्स और साधारण। बहुत अच्छी बस सर्विस है। अपनी मर्जी से घूमो और नक्शा समझा दिया। मैंने पूछा आज तो मैं कहीं नहीं जाऊंगी। शाम 6:30 बजे तो घर पहुंचूंगी। कल 17 को भुवनेश्वर देखूंगी। क्या 18 को मैं भुवनेश्वर से पूरी और कोणार्क देखकर भुवनेश्वर आ सकती हूं? क्योंकि 18 की रात को  कार्यक्रम स्थल पर जाना है । 19 को सुबह 9:00 बजे से कार्यक्रम है। भुवन ने एड्रेस देखा, वह खंडगिरि का था। जो रेलवे स्टेशन से दूर था और रेलवे स्टेशन के पास ही हमारा कार्यक्रम स्थल था। उसने कहा आपके घर के पास बरमूडा बस स्टैंड है। भुवनेश्वर, कोणार्क, पुरी यह ट्रायंगल है। आप सबसे पहले सुबह कोणार्क जाना, वहां से पुरी जाना फिर पुरी से भुवनेश्वर आना। आप सब घूम लेंगी। अब कटक आ गया। अपर्णा जी उतर गई। और मेरी आंखें महानदी देखने के लिए बाहर टिक गई क्योंकि जब मैं पहली बार पुरी गई थी मेरे दिमाग में अब तक छाप है गाड़ी उत्कल एक्सप्रेस थी इतनी देर तक पुल पर हम रहे थे किनारा ही नहीं आ रहा था। आज फिर मैं वही देखना चाह रही थी। तब डर लग रहा था नीचे पानी देखकर। भुवनेश्वर प्लेटफार्म पर गाड़ी रुकी। मेरा सामान भी भुवन के साथी ने उतारा। बोगी के आगे ही मीताजी और  मोहंती जी खड़े थे। मैं यह सोच रही थी कि कैसे नीचे उतरूं बिल्कुल सीधी सीधी एक के नीचे दूसरी  सीढ़ी अगला पर पैर कैसे टिकाऊं! ऊपर से कूद नहीं सकती। प्लेटफार्म की तरफ पीठ करके तेजस  से उतरने कोशिश करके उतरी। सामान लेकर तो कोई सीनियर सिटीजन अकेला नहीं उतर सकता। मेरी साथी सवारी मैडम नमस्ते मैडम नमस्ते कर रही थी । मैं पूरी कंसंट्रेशन से प्लेटफार्म पर उतरने की कोशिश कर रही। उतरी मीताजी ने कहा ही आपको नमस्ते कर रहे हैं तो मैंने बाय किया। वे पूछने लग गईं है, ये कौन थे? मैंने कहा कि कोई नहीं सहयात्री। 25 घंटे का सफर, इन सब के साथ बतियाते हुए किया है। अपर्णा जी तो कटक में कहने लगी, आप हमारे पास रहकर जाओ। प्लेटफार्म देखकर मन खुश हो गया। एकदम साफ सुथरा, कोई दुर्गन्ध नहीं। सीनियर सिटीजन के लिए गाड़ी! उस पर हम बैठे, उसने हमें बाहर एग्जिट पर उतार दिया। क्रमशः 












 



Tuesday, 30 January 2024

चॉकलेट ऑफर!दिल्ली से भुवनेश्वर रेल यात्रा भाग 2 नीलम भागी Chocolate offer! Way to Bhuvneshwar Neelam Bhagi Part 2

 


सुबह आंख खुलते ही देखा साइड लोअर सीट खाली थी। मैंने तुरंत सुधा को कहा कि उस सीट पर शिफ्ट हो जाए, जब तक अगली सवारी नहीं आती। मन में सोचा शायद परकाला यहां पर लंबी सीट पर टिकी रहेगी और मैं मैसेज देखने लगी। हमारे प्रवीण आर्य जी (राष्ट्रीय मंत्री) ने डॉ. संतोष कुमार महापात्रा (महामंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद उड़ीसा) का कांटेक्ट नंबर भेजा था। मैंने प्रवीण जी को कॉल किया तो उन्होंने कहा कि कोई परेशानी हो तो इन्हें फोन कर लेना। वे सब लोग 17 को चलकर 18 की शाम को पहुंचेंगे। अब यहां गाड़ी ज्यादा स्टेशनो पर रुक रही थी। दोनों लड़के  अपर सीट पर सो रहे थे। लोअर पर  दो-दो सवारी थीं । अब हमारा बतियाना शुरू हो गया। परकाला लंबी खिड़की पर मस्त हो गई या ऊपर लेटे लड़कों ने उसे डरा दिया। वह ऊपर की तरफ देख ही नहीं रही थी। सुधा कहने लगी, "यह हमेशा फ्लाइट से आती है ना, दिसंबर सीजन होता है, कोस्टल एरिया है, टिकट बहुत महंगी हो गई थी।" हमारे साथी मनोज शर्मा 'मन' ने  नवंबर  में फ्लाइट बुक कराई थी। आयोजन की डेट शिफ्ट होने पर पुरी का चक्कर लगाकर गए। क्योंकि डोमेस्टिक में रिफंड बहुत कम मिलता है तो उन्होंने जगन्नाथ जी का दर्शन कर लिया।  वे कल सबके साथ आ रहे हैं । अब सब मुझसे पूछने लगे मैं भुवनेश्वर क्यों जा रही हूं? मैंने उन्हें बताया कि #अखिल भारतीय साहित्य परिषद के द्वारा आयोजित , 'सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह' में जा रही हूं। अपर्णा मोहंती भी रिटायर्ड टीचर हैं और उनके परिवार में प्रभादेवी मशहूर लेखिका  हैं जो शायद पांचवी तक ही पढ़ी हैं। वे भी  हिंदी का उड़िया में अनुवाद करती हैं। हम बातों में मशगूल थे। एक वेंडर ट्रे में सजा के चॉकलेट लाया और सब के आगे बिना बोले, ट्रे ऐसे कर रहा था मानो ऑफर कर रहा हो।  परकाला ने दोनों हाथों से चॉकलेटें उठाली बाकियों ने उसकी तरफ  देखा ही नहीं। सुधा एकदम बोली," कल भी तुमने ऐसे ही ले ली थी और उसी समय सभी खा ली थीं।"  अब वह चॉकलेट वाला बोला," हम तो बाबू के लिए लाए हैं।" सुधा ने उसके हाथ से लेकर चॉकलेट उसकी ट्रेन में रख दीं। अब बच्चों के पास तो एक ही अस्त्र होता है जो शस्त्र की तरह काम करता है, वह है  'रोना' परकाला ने भी इसका इस्तेमाल किया और चीख चीख  कर रोने लगी। सुधा ने एक ले दी।  यह कल भी हो ऐसे ही लेकर आया था। मैंने नहीं ली थी बाकि सबने तमीज से एक-एक उठा ली थी फिर वह पूरी गाड़ी का राउंड लगा कर आया और सबसे उसके पैसे ले ने आया। खाने वालों ने चुपचाप दे दिए। टिकट के साथ कैटरिंग के पैसे जमा करने के बाद मैं पढ़ लेती हूं कि मुझे क्या-क्या मिलेगा। उसमें चॉकलेट कहीं शामिल नहीं थी। मैंने नहीं ली। बाकियों ने सोचा की महंगी टिकट की गाड़ी है, शायद ऑफर होती हो। बेचने का तरीका मुझे लाजवाब लगा। हर वेंडर कई बार आवाज लगाते, निकल जाते हैं। सावरियां रेट पूछती और लेती थीं। प्लेटफार्म का वेंडर तो इसमें चढ़ ही नहीं सकता है। 24 घंटे के रास्ते में यह सिर्फ दोबारा आया। कल गाड़ी चलने के बाद वह भी बिना बताए, बोले ऑफर मैथड से चॉकलेट बेच गया। इस पर चर्चा चली तो मेरे बाजू  में बैठे भुवन ने उसकी सेल्समैनशिप की प्रशंसा की। वह भुवनेश्वर में बच्चों के साइंस के मॉडल बनाने  का काम करता है इसलिए दिल्ली आता जाता है। वहां  #लाजपत राय मार्केट से इलेक्ट्रॉनिक का सामान लाता है। उसके साथ दो-चार लोग और भी थे अलग-अलग, यह मुझे भुवनेश्वर आने पर पता चला जब उन्होंने अपने बड़े-बड़े बैग उतारे। मुझे रेलवे की एक बात समझ नहीं आई। दिसंबर का महीना है डिनर में भी आइसक्रीम और लंच में भी आइसक्रीम। आधे से ज्यादा लोग तो ठंड में वापस कर देते हैं। क्या भारत में आईआरसीटीसी IRCTC को सिवाय आइसक्रीम के मीठे में और कुछ नहीं दिखाई देता? पश्चिम बंगाल के किसी स्टेशन से एक महिला चढ़ी जो सुधा के साथ लोअर सीट की एक सीट पर बैठकर गई। इतना लंबा सफर था और एक बार भी घड़ी देखने की जरूरत नहीं पड़ी। बहुत अच्छा रास्ता बीत रहा था। क्रमशः