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Sunday, 19 May 2024

इंतजार लायक लंबी कतार है जगन्नाथ मंदिर पुरी , उड़ीसा यात्रा भाग 21, Jagannath Temple Orissa Yatra Part 21 नीलम भागी Neelam Bhagi

  


पंडित जी मुझे मंदिर से संबंधित प्रचलित कहानी सुनाते जा रहे थे  और मैं उन्हें ध्यान से सुनते हुए कलिंग स्थापत्य,शिल्प कला  में बनाए आश्चर्यजनक मंदिर को देख रही थी। मुख्य मंदिर में पहुंचते हैं। वहां भीड़  बाहर की तरह पंक्तियों में नहीं थी। इतने श्रद्धालुओं को देखकर  मुझे लगता है बच्चों को और बुजुर्गों का ध्यान रखना होगा। क्योंकि कोई किसी को नहीं देख रहा था। सबको दर्शन की लालसा थी।  पंडित जी  ले गए और मैंने बहुत अच्छे से दर्शन किए। यहां तीन  लकड़ी से निर्मित बड़े भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा और जगन्नाथ जी के दर्शन के बाद,  हम बाहर आए। मुझे बहुत अच्छा लगा।  अगर यह पंडित जी न मिलते तो इतनी जल्दी मैं कैसे दर्शन  कर पाती! यहां छोटे छोटे 30 मंदिर हैं। मुख्य मंदिर के बाईं ओर, जगन्नाथ जी की रसोई है। यहां मिट्टी के बर्तन में और लकड़ी पर भोग बनाया जाता है। 500 रसोइए और उनके 300 सहयोगी 56 भोग बनाते हैं। जिसका भगवान को 6 बार भोग लगता है। 250 चूल्हों पर 7 बर्तन घेरे में लगते हैं। सबसे पहले ऊपर वाले का प्रसाद बनता है और क्रम से नीचे की ओर बनता जाता है। सदियों से वही स्वाद है। प्रतिदिन 20,000 के लिए और विशेष दिनों पर 50000 तक के लिए बनता है। भगवान को छह बार भोग लगता है। प्रवेश से पहले आनंद बाजार में यहां से बना महा प्रसाद ले सकते हैं। महाप्रसाद खाने के लिए भी यहां जगह दी गई है। मंदिर में प्रतिदिन 800 से अधिक साल से सूर्यास्त के समय झंडा बदला जाता है। और आश्चर्य यह है कि झंडा हवा की विपरीत लहराता है। मंदिर सुदर्शन चक्र जहां से भी देखो, आपको अपनी ओर सामने नजर आएगा। शिखर के आसपास पक्षी उड़ते, बैठते नहीं दिखते हैं और ना ही उसकी परछाई दिखती है। मंदिर के चार द्वार सिंहद्वार, अश्वद्वार, हाथीद्वार, व्याघ्रद्वार हैं। मंदिर देखने में मुझे एक घंटा लगा। पहले मन में भगवान  के दर्शन करने की लालसा थी। अब  पंडित जी की कहानियां बहुत  दिलचस्प लग रही थीं।  

  यह मंदिर हमारे हिंदू धर्म के चार धाम में से एक है। विष्णु के आठवें अवतार यहां जगन्नाथ  कहलाते हैं। बद्रीनाथ में भगवान ने स्नान किया था। गुजरात के द्वारका से राज श्रृंगार  किया। प्राचीन नगरी पुरी में भोजन किया और रामेश्वरम में विश्राम किया। 11वीं शताब्दी में  4 लाख वर्ग फीट में बनना शुरू हुआ। इसकी ऊंचाई 214 फिट है। यह  अनंग भीमदेव तृतीया के शासनकाल में 1230वीं शताब्दी में पूरा हुआ। मंदिरों में देवताओं की स्थापना की गई। विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ जी का मंदिर, रथ यात्रा के लिए मशहूर है। जो आषाढ़ माह के दूसरे दिन निकलती है। उस समय यहां पर 10 लाख के करीब देश दुनिया भर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। भारत में सभी देवी देवताओं के मंदिरों में भगवान  गर्भ ग्रह में स्थापित रहते हैं पर हमारे जगन्नाथ जी मंदिर से बाहर गुढ़िचा  मंदिर मां मौसी घर जाते हैं। वहां 8 दिन रहते हैं। दसवे दिन वापस जिसे  बोहुडा यात्रा कहते हैं। ऐसा मानते हैं  जैसे भगवान  मथुरा से वृंदावन गए थे। भगवान तो सबके हैं लेकिन मंदिर में प्रवेश केवल हिंदुओं को दिया जाता है। अब जगन्नाथ जी की रथ यात्रा में बहन भाई के  तीन सुसज्जित रथ  बाहर आते हैं। भाग्यशाली लोग उनका दर्शन कर सकते हैं।  मंदिर का इतिहास और मूर्ति निर्माण की कथा बहुत दिलचस्प है। विश्ववसु  राजा जगन्नाथ की नीलमाधव के रूप में नीलांचल पर्वत की गुफा में सबसे छुपा कर, रख कर पूजा करता था। ब्रह्मांड के स्वामी विष्णु ने राजा इंद्रधुम्न  को सपने में कहा कि एक भव्य मंदिर बनाकर उसमें मेरे रूप में नीलमाधव को स्थापित करो। राजा के सेवकों ने मिल नीलमाधव को ढूंढा पर सफल नहीं हुए। राजा ने एक ब्राह्मण पुजारी विद्यापति से  अनुरोध किया। वह इस प्रयास में लग गया पर सफलता हाथ नहीं लगी लेकिन उस विद्यापति ने विश्ववसु राजा की पुत्री ललिता से प्रेम कर, विवाह कर लिया। विवाह के बाद उसने अपने ससुर से नीलमाधव के दर्शन की इच्छा प्रकट की। विश्ववसु दामाद की आंखों पर पट्टी बांधकर उसे दर्शन कराने ले गया। चतुर विद्यापति मार्ग में सरसों के दाने बिखेरता गया। बाद में वह मूर्ति चुराने में सफल हो गया और मूर्ति जाकर अपने राजा इंद्रधुम्न को दे दी। मूर्ति चोरी से राजा विश्ववसु बहुत दुखी हुआ। अपने भक्त को दुखी देखकर भगवान भी उसके पास लौट गए और जाते हुए इंद्रधुम्न से कहा कि वह उनके लिए बहुत सुंदर मंदिर बनवाए वे जरूर आएंगे। राजा ने मंदिर बनवाया और विष्णु जी को उसे पवित्र करने के लिए आग्रह किया पर विष्णु जी ध्यान में थे। 9 साल लगे। मंदिर रेत में दबता गया फिर इंद्रधुम्न को नींद में भगवान ने कहाकि द्वारका से दिव्य वृक्ष का लट्ठा पुरी तट पर आ गया है। उससे  मूर्ति बनवाओ। राजा अपने सेवकों सहित  उठाने गया वह तो किसी से हिला भी नहीं। राजा समझ गए कि इसे उनके भक्त राजा विश्व वसु ही उठा सकता है। विश्ववसुदेव से आग्रह किया। वह तुरंत आ गए और वे अकेले ही लट्ठे को उठाकर, राजा के भवन ले गए। अब सवाल था मूर्ति बनाने का। बड़े-बड़े कारीगर आए पर कोई इसमें छेनी भी नहीं ठोक सका। एक दिन बूढ़े के रूप में तीनों लोक के इंजीनियर भगवान विश्वकर्मा आए। राजा ने उनसे अनुरोध किया कि मुझे इस दिव्य लट्ठ से मूर्तियां बनवानी हैं। बूढ़े ने कार्य करने की शर्त रखते हुए कहा,"मैं 21 दिन में मूर्तियां बना दूंगा लेकिन कोई भी झांकने नहीं आएगा अगर किसी ने अंदर देखा तो मैं काम बंद कर दूंगा।" कमरा बंद हो गया, सबको  ठक ठक सुनाई दे रही थी। अब कुछ दिन बाद अंदर से छैनी हथौड़ी की आवाज बंद हो गई। इंद्रधुम्न की रानी गुड़ींचा ने बाहर से कान लगाया। कोई आवाज नहीं। उसने अपने पति से कहा कि काम करते हुए वह बूढ़ा  कारीगर मर तो नहीं गया। राजा ने तुरंत दरवाजा खोला बूढ़ा गायब! वहां तीन अधूरी मूर्तियां थी। भगवान नीलमाधव और बलभद्र के छोटे-छोटे  हाथ बने थे, टांगे नहीं। सुभद्रा के हाथ पांव भी नहीं। राजा ने इसे प्रभु की इच्छा मानकर तीनों भाई बहनों को इसी रूप में स्थापित किया और वे आज तक वैसा ही है।

 सुनते हुए  कब वहां पहुंच गए! जहां मेरी चप्पल और मोबाइल रखा था। पंडित जी को दक्षिणा देकर प्रणाम किया। उनके कारण मेरा यहां आना सफल हुआ। पंडित जी मुझे बैटरी गाड़ी में बिठाकर लौटे। मंदिर प्रातः 5:30 बजे से रात्रि 9:00 तक खुलता है। यहां से पूरे देश से रेलवे लाइन जुड़ी हुई है। मंदिर का कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। इंतजार लायक लंबी कतार है। स्टेशन से मंदिर की दूरी 2.8 किमी और बस अड्डे से 1.9 किमी है। यहां से खूब ऑटो टैक्सी रिक्शा मिलते हैं।

https://www.instagram.com/reel/C7OMa6-v7f2/?igsh=eTJ0NG9pZmE4NjQ2

https://www.instagram.com/reel/C7KHLH9PC7V/?igsh=MXQzbWN1OXUyaGFodg==

क्रमशः







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Sunday, 31 December 2023

गंगा जी के किनारे!अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'नदी साहित्य' में हरिद्वार यात्रा भाग 2 नीलम भागी

  

रिसेप्शन पर पहुंचते ही डॉक्टर सुनील  पाठक अध्यक्ष अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड मिले। उन्होंने अपना परिचय दिया। उनकी तबीयत कुछ खराब लग रही थी लेकिन सबको बहुत अच्छे से अटेंड कर रहे थे। मुझे तुरंत मेरे रूम में भेजा। यहां चूरू से बहुत लंबा सफर करके  स्नेह लता, सुरेश शर्मा जी एडवोकेट , अनुसूया शर्मा, राजेंद्र शर्मा 'मुसाफिर' कुछ समय पहले ही पहुंचे थे। मेरे पहुंचते सुरेश जी और राजेंद्र जी दूसरे रूम में चले गए। स्नेहलता जी और अनुसूया जी के  साथ, मुझे रूम शेयर करना था। परिचय के बाद दोनों आपस में कहने लगी कि पानी का स्वाद मुंह में नहीं चढ़ रहा है। गर्मी थी जो वह पानी अपने घर से लाई थीं, वह बीकानेर तक खत्म हो गया था। मुझे सुनकर बड़ा अजीब लगा। बाद में पता चला कि वे बारिश का पानी स्टोर करते हैं, बड़े-बड़े टैंक बना रखे हैं और एक बूंद भी बरसात का पानी उनके घर का व्यर्थ नहीं जाता, सीधा टैंक में जाता है जो खराब नहीं होता है, पूरा साल चलता है। सुनकर बहुत अच्छा लगा। जितने भी मेरे दिमाग में इस सिलसिले में प्रश्न खड़े थे। सभी का जवाब बहुत संतोषजनक मिला। फिर हम लंच करने गए ।  बूंदा बांदी हो रही थी। हम बतियाने लगे। 4:00 बजे बारिश के रुकने के बाद हम गंगा जी से मिलने चल दिए। हरिद्वार मैं पहले भी बहुत आई हूं और इस बार मुझे ज्यादा घूमना नहीं था। अपनी चोटों से डरी हुई थी। अपने ब्लॉक के हरिद्वार यात्रा के लिंक लगाऊंगी। क्लिक करके आप पढ़ सकते हैं। 

https://neelambhagi.blogspot.com/2016/12/blog-post.html?m=1

https://neelambhagi.blogspot.com/2021/10/blog-post_8.html

https://neelambhagi.blogspot.com/2021/10/blog-post_7.html

 हम जैसे ही जम्मू यात्री निवास से बाहर रोड पर खड़े हुए, लगातार  20₹ सवारी शेयरिंग ऑटो आ रहे थे। हम पांच तो उसमें बैठे। उसने हमें हर की पैड़ी के पास जो फुटओवर ब्रिज है, वहां उतार दिया। लता जी और सुरेश जी आगे आगे चले गए। अनुसूया, राजेंद्र जी और मैं फोटो सेशन करने लगे। जब हम लता जी के पास पहुंचे तो वे गंगा जी में डुबकी लगा चुकी थीं। सब ने गंगा जी के पास जाकर अपने ऊपर गंगाजल छिड़का। धीरे-धीरे भीड़  बढ़ रही थी। हम भी खूब घूम कर 5:00 बजे धूप में ही खाली जगह देखकर बैठ गए। यहां बैठना ही अपने आप में दूर दूर से आए भारतवासियों की झलक और गंगा जी के प्रति उनका प्रेम दिखाता है। कोई पॉलिथिन बेच रहा है, जिसे ख़रीद कर लोग उस पर बैठ रहे थे। चाय बेचने वाले, सबसे  ज्यादा पूजा करवाने वाले पंडित जी, घूम रहे थे और लोग पूजा करवा रहे थे। जो गंगा के किनारे पूजा के लिए जाता उसे आने जाने की लोग तुरंत जगा देते । आरती से पहले के नजारे भी बहुत अच्छे लगते हैं। कुछ लड़के गंगा जी में गोते मार कर रेत की मुट्ठी भर के और उसमें से जो भी उन्हें मिलता है गंगा जी की तरफ से उसे पाकर  प्रसन्न होते हैं। आरती के लिए दान देने वालों की भी कमी नहीं थी, रसीद कटवा रहे थे। स्वयंसेवक व्यवस्था देख रहे थे। धीरे-धीरे अंधेरा होने लगा और आरती शुरू हुई। इस समय कोई आपस में बात नहीं कर रहा था। चारों ओर आरती का स्वर था और श्रद्धालुओं का भाव! हम आरती खत्म होने से थोड़ा पहले उठ गए, बाद में बहुत भीड़ हो जाती है और आरती का समापन हमारा गंगा जी के किनारे चलते हुए ही हुआ । गंगा जी से सबको कुछ न कुछ मिलता  है। किसी को मानसिक संतोष, कोई आरती करवा कर पुण्य प्राप्त कर रहा है तो कोई पानी में गोते लगाकर, रेत में कुछ पा रहा है। जय गंगा मैया। अब वही शेयरिंग ऑटो ढाई सौ रुपए में था।  जम्मू यात्री निवास में लौटे तो प्राची पाठक अपने सहयोगियों के साथ रजिस्ट्रेशन कर रही थीं।  हमने रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरा और डिनर के लिए गए। कुछ भी नया ट्राई करना, मेरी आदत में शामिल है यहां एक सब्जी थी, उसे खट्टा बोलते थे मोटे मोटे सीताफल के टुकड़े और जो ग्रेवी थी  वह बहुत ही लजीज खट्टी मीठी थी। रूम में लौटे, 

 लता जी  ने अपनी लिखी दो पुस्तकें  'दो दूनी चार  और स्वयंसिद्धा' दी। जो किताबें लिखते हैं, उनका मैं दिल से बहुत सम्मान करती हूं। दो दूनी चार तो मैंने वहीं पर पढ़ ली और लता जी से उस पर बात भी कर ली। क्रमशः 









Thursday, 28 December 2023

हरिद्वार की ओर! नीलम भागी Way to Haridwar Part 1Neelam Bhagi

 

अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड द्वारा हरिद्वार में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'नदी साहित्य' पर 24 और 25 सितंबर को थी  जिसमें मैं भी आमंत्रित थी। एक्सीडेंट के बाद पहली बार यात्रा में जाने का आत्मविश्वास जुटा रही थी। आमंत्रण न होता तो शायद  यात्रा पर निकले को और समय लगता। अंकुर ने शताब्दी एक्सप्रेस में टिकट बुक  करवाई । गाजियाबाद से गाड़ी पकड़नी थी और मैंने पहली बार गाजियाबाद स्टेशन देखना था। वहां गाड़ी से गुजरी तो कई बार हूं पर पहली बार गाड़ी पकड़ रही हूं। अंकुर रात को मुझे अपने घर  ले गया। मैंने उससे कहा, " चिंता मत कर, हरिद्वार में स्टेशन से पिकअप है।" सुबह 7.23  की गाड़ी थी। छोटा अदम्य  साथ में गया। हमेशा की तरह समय से बहुत पहले स्टेशन पहुंचे। जैसे स्टेशन से बाहर कुछ शहरों में गंदगी होती है, वैसे यहां भी थी और स्टेशन भी गंदा था। अदम्य कभी गाड़ी में नहीं बैठा है। उसको  प्लेटफॉर्म टिकट लेना दिखाया। गाड़ी आई अदम्य  को बता रखा था की बोगी नंबर c1 है। वह बड़े ध्यान से एक एक डिब्बा पढ़ रहा था। यहां गाड़ी सिर्फ 2 मिनट रूकती है। मुझे चढ़ा कर अंकुर जल्दी से लगेज उठाकर मेरी सीट नंबर की ओर चलने लगा। मैंने कहा," तू उतर जा अब मैं बैठ जाऊंगी। वह नहीं माना, पीछे पीछे अदम्य भी। सीट पर लगेज  रख, जल्दी से अंकुर ने पैर छुए। कॉपी पेस्ट अदम्य यह देख कर एकदम  वापस मुड़ के पैर छूए। अंकुर जल्दी से उसे लेकर उतरा और गाड़ी चल पड़ी। विंडो  सीट थी। बैठते ही पानी आ गया। कुछ समय बाद जलपान लग गया। यहां शोध पत्र हमें देखकर नहीं पढ़ना था, वैसे ही बोलना था इसलिए थोड़ा पढ़ने लगी। पर गाड़ी में मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता। अपनी आदत के अनुसार मैं बाहर देखती रही और एक डिब्बे का चक्कर लगा आई। आमने-सामने सीट नहीं थी इसलिए बतियाने का भी सवाल नहीं था। बाजू का लड़का कानों में इयरफोन ठूंस कर  बैठा था। टॉयलेट की पाश्चात्य और भारतीय दोनों सीट में पानी भरा हुआ था। एक बात बहुत अच्छी लगी पूरे रास्ते हरियाली थी। रेल की पटरी के पास तक खेती की गई थी। सहारनपुर में गाड़ी 25 मिनट तक रुकी रही, जिन्होंने गाड़ी में नाश्ता नहीं किया था, वे प्लेटफार्म पर कर रहे थे। यहां मैंने डॉ. जगदीश पंत जी प्रदेश महामंत्री  को फोन किया और बताया कि मैं 11:33 पर पहुंच रही हूं। उन्होंने जवाब दिया," स्वागत है, वहां गाड़ी से उतरते ही फोन कीजिएगा, हम आपको ले लेंगे।" अब मेरी बाजू में एक फौजी भाई आ गए। उन्हें देहरादून जाना था। मैंने उनसे पूछा, "आप मेरी हरिद्वार में उतरने में मदद कर देंगे।" उन्होंने जवाब दिया," जरूर।" हरिद्वार स्टेशन आने से पहले ही उन्होंने मेरा लगेज उठाया, गाड़ी रुकते ही पहले उतर कर, मुझे उतारने में मदद की और पूछा," गेट  तक छोड़ दूं ।"मैंने धन्यवाद करते हुए मना  किया। अब मैंने डॉ. जगदीश पंत जी को पहुंचने की सूचना दी। उन्होंने कहा," आप वहीं रहिए, हम आ रहे हैं।" और कुछ ही देर में वे आ गए। मैंने घर में पहुंचने की सूचना दे दी। गाड़ी में बैठते ही हमारे प्रवीण आर्य जी (राष्ट्रीय मंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद) का फोन आ गया। यह जानने के लिए कि मेरा पिकअप हो गया है। अब हम संगोष्ठी स्थल की ओर जा रहे हैं। मैं कई बार हरिद्वार आने पर भी  हरिद्वार से ऐसे परिचय कर रही हूं, जैसे पहली बार आई हूं। जो मेरे साथी बाहर से आए हैं ,उनसे परिचय भी कर रही हूं। क्रमशः 

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Thursday, 2 November 2023

महर्षि वाल्मिकी जयंती पर दिल्ली प्रांत की भव्य संगोष्ठी पश्चिमी विभाग में संपन्न

 महर्षि वाल्मिकी जयंती पर दिल्ली प्रांत की भव्य संगोष्ठी पश्चिमी विभाग में संपन्न


          2 नवंबर,अखिल भारतीय साहित्य परिषद से संबद्ध दिल्ली प्रांत की इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती की ओर से महर्षि वाल्मिकी जयंती के उपलक्ष्य में पश्चिमी विभाग द्वारा संगोष्ठी संपन्न हुई, इस कार्यक्रम में विभाग,जिलों के साथ नगरों पर भी दायित्यों की घोषणाएं हुईं।

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि दिल्ली प्रांत के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.विनोद बब्बर जी ,मुख्य वक्ता तथा अध्यक्ष पश्चिमी विभाग के सेवा प्रमुख  सुरेश कुमार जी थे। मंचासीन महानुभावों में नांगलोई जिला प्रचारक  विजय जी, इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती दिल्ली प्रांत उपाध्यक्ष श्री मनोज शर्मा ' मन ', प्रांत मंत्री  सुनीता बुग्गा जी पूर्व शिक्षा विभाग के उपनिदेशक श्री युत कृष्ण निर्मल जी, राष्ट्रीय गीतकार डॉ.जय सिंह आर्य और प्रांत संयुक्त महामंत्री श्री संजीव सिन्हा जी थे।

कार्यक्रम प्रारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन और मंत्रोच्चार से आरंभ हुआ। अतिथियों के परिचय के साथ उन्हें शॉल और पुस्तकें भेंट करके उनका सम्मान किया गया। डॉ.जय सिंह आर्य जी के द्वारा सरस्वती वन्दना के बाद अमृत वचन,सुभाषित और कविता पढ़ी गई। तत्पश्चात मुख्य वक्ता  सुरेश कुमार जी ने महर्षि वाल्मिकी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके नायक श्रीराम के जीवन आदर्शों का भी उल्लेख करते हुए भारतीय संस्कृति में उनके महत्व को गहरे रेखांकित किया। भगवान श्रीराम के आदर्श हमारी संस्कृति के मानबिंदु हैं। सारगर्भित और भाव-भरे पाथेय से श्रोतागण भाव विभोर हो उठे।डॉ.विनोद बब्बर जी ने महर्षि के जीवन और वाल्मिकी रामायण के श्लोकों को उद्धत करते हुए अराजक राज्य की परिभाषा बताई। उसका उदाहरण आज के समय में धार्मिक अतिवादियों द्वारा हिंसक घटनाओं से देते बुलडोजर रूपी हनुमान जी का आवाहन इन आसुरी शक्तियों के दमन के लिए किया तो श्रोताओं से भरा हॉल तालियों से गूंज उठा। उन्होंने सभी को संस्कृत के कुछ श्लोकों को याद करने पर बल दिया।

अंत में प्रांत के दायित्वों की घोषणा राष्ट्रीय मंत्री श्री प्रवीण आर्य जी ने करते हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद के इतिहास, कार्यों और योजनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डाला।

पश्चिमी विभाग अध्यक्ष डॉ.अखिलेश द्विवेदी ने विभाग महामंत्री के रूप में सुप्रसिद्ध कवि मनोज मिश्र ' कप्तान ', उपाध्यक्ष सुप्रसिद्ध शायर श्री रमाशंकर शर्मा, विभाग कोषाध्यक्ष श्री मनीष खंडेलवाल और मंत्री के रूप में श्री आशीष शर्मा की घोषणा की।

जिलों की घोषणा करते हुए द्वारका जिले से कवियित्री डॉ.सारिका शर्मा, अध्यक्ष,नजफगढ़ जिले से श्री मनोज कुमार मैथिल, अध्यक्ष व्यंग्यकार श्री कृष्ण झा ,उपाध्यक्ष डॉ.नवनीत अग्रवाल को महामंत्री घोषित किया। उत्तम नगर जिले से श्री जितेंद्र सिंह को अध्यक्ष तथा श्री राजेश भारद्वाज को महामंत्री बनाया गया। नांगलोई जिले से श्री भगवान मिश्रा, अध्यक्ष  श्री क्रतिवास तिवारी, उपाध्यक्ष श्री संतोष पाण्डेय, कोषाध्यक्ष श्री सुनील कपूर, मंत्री श्री धीरेन्द्र चौधरी, मंत्री घोषित किए गए।नागलोई जिले के सुंदर विहार नगर से श्री नितेश मेहता को नगर अध्यक्ष, शिवराम पार्क नगर से श्री सर्वेश फौजी को नगर अध्यक्ष,श्री हंसराज भारद्वाज को उपाध्यक्ष,श्री ओंकार गुप्ता को कोषाध्यक्ष,श्री अमरजीत मौर्य,श्री रामकिशोर यादव, श्री नारद प्रसाद,श्री कल्लू कोली , श्री पप्पू बघेल को मंत्री का दायित्व दिया गया। कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष श्री विनोद बब्बर जी और कार्यक्रम अध्यक्ष श्री सुरेश कुमार जी ने अंगवस्त्र डालकर उनका इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती, दिल्ली के परिवार में स्वागत किया।

नगर की घोषणाएं शिवराम पार्क नगर कार्यवाह श्री दिलीप जी और सह नगर कार्यवाह श्री गीतम जी के सानिध्य में हुईं।

कार्यक्रम में गरिमामय उपस्थिति डॉ.राकेश श्रीवास्तव, सरदार श्री जगदीश जी, जिला सेवा प्रमुख श्री राजेश जी, विस्तारक श्री सिद्धार्थ जी, नगर व्यवसाई कार्य प्रमुख श्री राजिंदर जी,परिवार प्रबोधन जिला आयाम प्रमुख महात्मा अरविंद जी, श्री गोविंद राय जी, मजदूर संघ से प्रांत पदाधिकारी श्रीकृष्ण बिल्ला जी की थी।

कार्यक्रम को सफल बनाने में महाराणा प्रताप तरुण प्रभात शाखा के कार्यवाह श्री पुनीत जी समस्त शाखा और महाराणा सांगा शाखा से श्री विवेक जी अपनी शाखा के समस्त स्वयंसेवकों के साथ उपस्थित थे।कार्यक्रम में बच्चों और मातृशक्ति की अच्छी संख्या थी।  मंच का संचालन विभाग अध्यक्ष डॉ.अखिलेश द्विवेदी ने किया।

- रिपोर्ट - अभय द्विवेदी 🙏🏼🚩#AkhilBhartyaSahityaParishad


















Sunday, 24 September 2023

राष्ट्रीय बेटी दिवस और नदी दिवस नीलम भागी



मेरी  दादी  जिनके प्रदेश का नाम भी नदियों पर  है पंजाब। आपने नदियों पर गीत, चालीसा, कविताएं सुनी होंगी। पदमश्री विलक्षण लोक गायिका मल्लिका ए नौटंकी गुलाब बाई का एक बहुत मशहूर गाना "नदी नारे न जाओ श्याम पैया परूं" जिसे  फिल्म में लिया पर उस पहली नौटंकी वाली महिला को क्रेडिट तक नहीं दिया। नदियों की आरती भी सुनी होगी। पर नदी से संबंधित गाली नहीं सुनी होगी। जो मेरी दादी पंजाबी में हम  बहनों को नाम से नहीं बुलाती हमेशा आवाज लगती  

नी रूड़ जानिए 

रूड का मतलब होता है, बह जाना और बहाके तो नदिया ले जाती हैं। मतलब अरी मैंने सुना तुम बह गई हो। लेकिन उन्हें पूरे भारत की नदियों के नाम याद थे क्योंकि घर में पलने वाली गाय का नाम नदी के नाम पर होता । बछिया के जन्म लेते ही उसका नाम गोदावरी, कावेरी, गोमती, गंगा, यमुना आदि रखती। उनका मानना था कि जैसे इन नदियों में पानी सदा बहता है। इस तरह नदी नाम की गाय दूध से परिवार का पोषण करेंगी। पर हमारा नाम नी उड़ जानिए ही रहता। लेकिन आज बेटियां कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं और नदियां प्रदूषित और विलुप्त हो रहीं हैं।





Thursday, 28 July 2022

श्री जयन्ती देवी मंदिर(सिद्धपीठ), जीन्द भाग 7 नीलम भागी

 


12 जून दोपहर 3 बजे अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, उत्तर क्षेत्रिय अभ्यास वर्ग के समापन के पश्चात  अक्षय कुमार अग्रवाल, भुवनेश सिंगल, राजकुमार जैन और मैं, जयंती देवी मंदिर के लिए निकले। भीषण गर्मी होने से सड़के भी खाली थीं। मन में मंदिर के बारे में जो सुना था वह सब याद आ रहा था। मंदिर के नाम से ही जिले का नाम जींद पड़ा। आज यह प्राचीन मंदिर जिले के आर्कषण का केन्द्र है। लोगों की मंदिर में गहरी आस्था है। हमें दूर से मंदिर का मुख्यद्वार बंद लगा। यह सोच कर गाड़ी से उतरे कि बाहर से ही इस पवित्र स्थान पर माथा टेक कर लौट जायेंगे। बाहर विशाल वट वृक्ष था। उसके चबूतरे पर बैठ कर मंदिर को देखने लगे। प्रवेश द्वार पर दोनो ओर माता की सवारी शेर और ऊपर बंजरंग बली विराजमान हैं। बाएं हाथ पर अन्नक्षेत्र जहां 1.30 बजे तक भोजन मिलता है। एकदम ध्यान में आया कि गेट पर ताला नहीं था। गेट तो हाथ लगाते ही खुल गया। हम विशाल मंदिर प्रांगण में पहुंच गए। और दूर से दर्शन भी किए। मंदिर में शिवजी, गणपति, लक्ष्मी जी और स्थानीय लोकदेव व बालसुंदरी की मूर्तियां भी हैं। यज्ञशाला अलग से है। मंदिर का एक पार्क और जयंती पुरातत्व संग्रहालय भी है।






 मंदिर की स्थापना से जुड़ी कई कथाएं हैं। वामन पुराण, नारद पुराण और पद्म पुराण में भी जींद का उल्लेख मिलता है। यहां कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय भी देव सेनापति जयन्त ने यहाँ दानवों से अमृत कलश पाने के लिए इसी स्थान पर पूजा अर्चना कर विजय का आर्शीवाद मांगा था और अमृत कलश को देवताओं के पास पहुँचाया था। इसके बाद महाभारत काल में पांडवों ने यहाँ पर विजय के लिए जयंती देवी(विजय की देवी) की पूजा की थी। विजयी होने पर जयंती देवी मंदिर का निर्माण करवाया। जयंती देवी मंदिर के नाम से इसका नाम जयंताय प्रस्थः रखा गया था। समय के साथ जयंतीपुरी का नाम बदलकर जीन्द हो गया। 

इसके बाद महाराजा जीन्द ने लजवाना गांव विजय के बाद यहां पर एक राजराजेश्वरी मंदिर का निर्माण करवाया था। 


  एक दंतकथा भी प्रचलित है जो इस प्रकार है यहां के राजा के एक भाई का विवाह कांगड़ा के राजा की बेटी से हुआ। कन्या जयंती देवी की बहुत भक्त थी। विवाह के समय वह बहुत चिंतित थी क्योंकि वह देवी से दूर नहीं जाना चाहती थी। उसने प्रार्थना की और अपना दुख देवी को बताया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर जयंती देवी, उसके सपने में आयीं और कहा कि वह उसके साथ जायेंगी। शादी के बाद जब दुल्हन की डोली चली तो अचानक उसकी डोली बहुत भारी हो गई। दुल्हन ने अपने पिता को अपना सपना बताया। उन्होंने तुरंत दूसरी डोली सजा कर उसमें जयंती देवी की मूर्ति को विराजमान किया। बेटी के साथ उसकी अराध्य जयंती देवी को भी साथ भेजा। राजा ने जयंती देवी मंदिर का निर्माण कर उसमें मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की।    

  आज भी भक्तजन अपने मनोरथों को पूर्ण करने के लिए मंदिर में यज्ञ, पूजा-अर्चना व भण्डारे आदि का आयोजन करते हैं। विशेष दिनों में यहां मेले जैसा माहौल होता है। क्रमशः