कल हम दर्शन के लिए आए थे तो गर्भगृह चार बजे खुलना था। हमने परिसर में घूमा और कमला बचाओ संगोष्ठी के लिए चले गए और वहाँ से धनुषा गए। आज सुबह ही चैक आउट करके, हम जानकी मंदिर आ गए। कल मैं अपने मन में यहाँ की सफाई को लेकर दुखी थी पर मैंने किसी से ज़िक्र नहीं किया था। आज सुबह यह देख कर बहुत खुशी हुई कि यहाँ तो जबरदस्त सफाई हो रही है और रोज इसी तरह होती है। यहाँ जूता घर भी है और गेट के पास ही खूब शू रैक लगे हैं। पर कुछ श्रद्धालुओं को बिमारी है, नियम तोड़ कर जूता चप्पल पहने मंदिर परिसर में घूमना। जूता चप्पल के साथ बाहर की मिट्टी तो आएगी जिससे सफेद फर्श तो कुछ गंदा होगा ही। खैर इस समय मैं चमचमाते सफेद फर्श पर दर्शन के लिए जा रही हूँ।
मंदिर का नाम नौलखा मंदिर है। पुत्र इच्छा की कामना से टीकम गढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने 9 लाख में इस मंदिर को बनाने का संकल्प लिया था और एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने पु़त्र को जन्म दिया। 4860 वर्गमीटर में मंदिर का निर्माण शुरू हो गया था। बीच में महारानी का निधन हो गया था। स्वर्गीय महारानी के पति से उनकी बहन नरेन्द्र कुमारी का विवाह हो गया। अब नरेन्द्र कुमारी ने मंदिर को पूरा करवाया। इसके निर्माण में अठारह लाख रूपये लगे पर मंदिर नौलखा के नाम से ही मशहूर है। 1657 में सूरकिशोर दास को सीता जी की प्रतिमा मिली, उन्होंने उसकी स्थापना की थी। मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र के लोग भी नेपालियों के साथ दर्शनाभिलाशी थे। उत्तर की ओर ’अखण्ड कीर्तन भवन’ है। यहाँ 1961 से लगातार कीर्तन हो रहा है। एक जगह सीढ़ी पर चलचित्र लिखा था। मात्र दस रूपये की टिकट थी। वहाँ जानकी की जन्म से बिदाई तक को र्दशाने के लिये गीत और मूर्तियां थी। सोहर, विवाह और बिदाई के गीत नेपाली में थे। मैं वहाँ खड़ी महिलाओं से भाव पूछती जा रही थी। एक महिला ने बताया कि यहाँ के रिवाज बिहार और मिथिलंाचल से मिलते हैं। जानकी विवाह के बाद कभी मायके नहीं आईं। हमारी जानकी ने बड़ा कष्ट पाया। इसलिये कुछ लोग आज भी बेटी की जन्मपत्री नहीं बनवाते। न ही उस मर्हूत में बेटी की शादी करते हैं। नीचे गर्भगृह में कांच के बंद शो केस में जेवर, मूर्तियां पोशाकें संभाली गईं थीं। यहाँ ’ज्ञानकूप’ के नाम से संस्कृत विद्यालय हैं। जहाँ विद्यार्थियों के रहने और भोजन की निशुल्क व्यवस्था है। मैं साइड में दर्शन की प्रतीक्षा में खड़ी थी। भीड़ का एक धक्का लगा। अब मैं भीड़ में सबसे आगे मंदिर के सामने खड़ी थी। एक पुजारी ने मेरे माथे पर तिलक लगा दिया। एक ने प्रशाद दिया। चप्पल ले, अब मैं बाहर विवाह पंचमी की तैयारी देखने लगी। इस उत्सव में देश विदेश से लोग आतेे हैं। अयोध्या से बारात आती है। होटल, धर्मशालाएं, गैस्ट हाउस सब पहले से बुक रहते हैं। आप भी लिंक पर क्लिक करके विवाह पंचमी की तैयारी देख सकते हैं। क्रमशः