मेरठ में हमारा घर गुरुद्वारे के पीछे था इसलिए शबद कीर्तन की आवाज हमारे यहां आती थी। शबद कीर्तन सुनना मुझे बहुत अच्छा लगता है। मेरा जब भी गुरुद्वारा जाना होता है तो मैं शबद कीर्तन के समय जरूर पहुंच जाती हूं। बैसाखी से एक दिन पहले मेरी बेटी उत्कर्षनी वशिष्ठ अमेरिका से अपनी दो बेटियों को छोड़कर जरूरी काम से, 5 दिन के लिए भारत आई थी। रात को ससुराल में रही। 13 तारीख को हमारे घर 3 घंटे के लिए आई थी। शाम को 6:00 बजे उसकी मुंबई की फ्लाइट थी। उसके साथ एक घंटा और बतिया लूं , इसलिए मैं उसे एयरपोर्ट छोड़ने चली गई। वहां से सीधे गुरुद्वारा सेक्टर 12 गई। 7:00 से 8 बजे तक भाई चरणजीत सिंह का शबद कीर्तन था जो मेरे पहुंचते ही समाप्त हो गया था। गुरुद्वारा प्रांगण में नोएडा पंजाबी एकता समिति द्वारा आयोजित बैसाखी उत्सव में बड़ी स्क्रीन लगा रखी थी। गेट के बाजू में खाली सीट देखकर, मैं वहीं बैठ गई। भाई सरबजीत सिंह द्वारा संगीतमय👍 बैसाखी के दिन वर्ष 1699 में दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का बहुत आसान सबको समझ आने वाली भाषा में वर्णन चल रहा था। वे अपने शब्दों को समधुर गायन द्वारा, जिसमें चिमटे और तबले का ग़ज़ब का साथ था, उस समय के दृश्य को आंखों के सामने खींच रहे थे। सिख इतिहास के ऐतिहासिक क्षण की लाजवाब प्रस्तुति ने श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया था। 10:00 बजे उनके समापन पर मेरी तंद्रा टूटी। घर लौटने से पहले मैंने अपने प्रिय छात्र मनिंदर सिंह(सोनू) से कहा,"सिख इतिहास की प्रस्तुति मुझे बहुत अच्छी लगी।"सुनते ही वह हमें उनसे मिलवाने ले गया। धन्यवाद वीरेंद्र मेहता अध्यक्ष (नोएडा पंजाबी एकता समिति) का जिन्होंने हमारी तस्वीर ली और हमें भेजी।