कहाँ माँ पियर माटी, कहाँ मटकोर रे।
कहाँ माँ के पाँच माटी, खोने जाएं।
पटना के कोदार है, मिथिला की माटी।
मिथिला के ही पाँचों सखी, खोने मटकोर हैं।
पाँच सुहागिने कुदार, तेल, सिंदूर, हल्दी, दहीं लेकर, 5 आदमी नदी के किनारे की मिट्टी खोदते हैं उसमें से मिट्टी निकाल कर, ये सब और पाँच मुट्ठी चने डाल देते हैं। वर वधु नदी में स्नान करते हैं। लौटते समय चने, पान सुपारी बांटते हैं। उस मिट्टी को वर वधु के उबटन में मिला कर हल्दी की रस्म होती है।
मिथला में विवाह संस्कार की शुरुवात ही नदी पूजन से होती है क्योंकि हर नदी वहाँ के स्थानीय लोगो के लिये पवित्र है और उनकी संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ी है।
जनकपुर नेपाल पहुँचते ही प्रदेश सरकार भूमि व्यवस्था, कृषि तथा सहकारी मंत्रालय, जनकपुरधाम धनुषा में, ’अध्यात्म व लोकजीवन में सांस्कृतिक स्रोत कमला नदी’ विषय पर संगोष्ठी में नेपाल के विद्वान वक्ताओं को सुना। मिथिला की जीवन रेखा, कमला नेपाल के चुरे क्षेत्र स्थित सिंधुली से निकलने वाली पवित्र कमला की 328 किमी. की यात्रा में, 208 किमी का सफ़र नेपाल में और 120 किमी. भारत में। कई शाखाओं में विभाजित होती है, कोई बागमती तो कोई कोसी में मिलती हुई अंत में गंगा में समां जाती है। कमला बचाओ अभियान को समर्पित विक्रम यादव ने कहाकि दोनो देशों की संस्कृति, लोकजीवन और जीवन जीने का तरीका एक सा है। मिथला की गंगा कमला ही है। जहाँ इनका जल जाता है उर्वराशक्ति बढ़ती है और ये महालक्ष्मी कहलाती हैं। लेकिन अब साल भर मिट्टी गिट्टी निकालने से, जंगल के विनाश के कारण इसको जल संकट है। पूजन आचमन के साथ इसके आसपास के गाँवों में वृक्षारोपण, सफाई और पर्यावरणीय मेले लगा कर लोगों को जागरुक करना है। जो वे कर रहें हैं। श्याम सुन्दर साहित्यकार, पत्रकार ने कहा कि दोनों ओर के लोगों की कमला पूजा (लोक पर्व) और कमला की गाथाएं एक सी है। तीनों तरफ से नदी से घिरी मिथलाभूमि में मल्लाह बीन(साल में दो बार पूजा) होती है। कमला के किनारे का बासमती चावल और मौलिक मछली यहाँ का मुख्य भोजन है यानि मछली पालन और कृषि मुख्य व्यवसाय है। सुजीत झा साहित्यकार पत्रकार ने बताया कि कोई भी धार्मिक संस्कार मुंडन, विवाह में, मसलन जानकी विवाह में भी कमला प्रसंग है। गोलू झा ने कमला के जन्म की लोक कथा सुनाई। ये ब्राह्मण कन्या थी। इनकी तपस्या के तेज से पर्वतराज ने खुश होकर वरदान मांगने को कहा तो इन्होंने कहा कि मिथिला से गंगा जी दूर हैं। वे गंगा की तरह ही सबका भला करना चाहती हैं। महंत बाबा नवलकिशोर ने कहा कि गंगा कमला में कोई फर्क नहीं है जैसे सियाराम में। जो सीता शिव का धनुष उठा लेती है।ं वो भी मटकोर(कमला पूजन) में अपनी सखि कमला से मांगतीं हैं। मिथिला की जनकदुलारी के कारण ही तो मिथिलानी को अधिकार है कि वो वैवाहिक लोक गीतों में भगवान के बरातियों को हंसी ठिठोला में गाली दे सकती हैं, चरित्र पर अंगुली उठा सकती है।
माता पिता गोरे हैं। आप क्यों काले हैं?
कोहबर में आश्चर्य देखा
मन हरिया के करिया बदन देखो
कनिया तो पूनम का चांद, वर अमावस देखो
संगोष्ठी की अध्यक्षता श्रीधर पराडकर जी ने की। संगोष्ठी के समापन पर आयोजकों ने कहा कि हम पहले धनुषा कमलामाई से मिलने जाएं, हम चल पड़े। क्रमशः