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Sunday, 1 December 2024

धार्मिक, सांस्कृतिक अनूठी झलक का दिसम्बर

जीवंत सामुदायिक भावना को दर्शाते दिसम्बर के उत्सव, आध्यात्मिक पर्यटन के लिए ज्यादा उपयुक्त है। इन उत्सवों में नृत्य गायन की अनूठी झलक देखने को मिलती है। विद्वानों का मानना है जो जनजातियां नाचती गाती नहीं-उनकी संस्कृति मर जाती है।


नृत्य, गायन उत्सवों की शुरूआत भारत के मंदिरों में हुई थी। लेकिन अब देश विदेश से इन उत्सवों को देखने पर्यटक आते हैं। 

श्री क्षेत्र उत्सव पुरी(30 से 5 दि.) की परंपराओं को जीवित करती ंअर्न्तराष्ट्रीय रेत की कला, रेत के कलाकारों की रचनात्मकता को दर्शाती है। यह महोत्सव कोर्णाक नृत्य महोत्सव के साथ आयोजित किया जाता है। 


 हॉर्नबिल उत्सव(1 से 10 दिसम्बर नागालैंड) नागालैंड की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है तो ज़ाहिर है त्यौहार भी खेती के आसपास ही घूमते हैं। पर हॉर्नबिल उत्सव! ये हॉर्निबल पक्षी के नाम पर है जिसके पंख सिर पर लगाते हैं। धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। बहादुर नायकों की प्रशंसा के गीत गाए जाते हैं। तरह तरह के पकवान, लोकनृत्य और कहानियाँ इस त्योहार का हिस्सा हैं। इस उत्सव पर नागा संस्कृति देखने के लिए देश विदेश से पर्यटक आते हैं। 

कुंभलगढ़ उत्सव(1से 3 दिसम्बर) को कुंभलगढ़ किले में मनाया जाता है। इसमें अलग अलग संस्कृतियों से जुड़े कार्यक्रम को देखने देशी विदेशी पर्यटक भाग लेते हैं।

कार्थिगाई दीपम(6दिसम्बर) नव. मध्य से दिसम्बर मध्य) हिन्दु तमिलों, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और श्रीलंका में इस रोशनी के त्यौहार को कार्तिगई पूर्णिमा कहा जाता है। केरल में इस त्यौहार को त्रिकार्तिका के नाम से जाना जाता है जो देवी कार्तियेनी(चोटनिककारा अम्मा) भगवती के स्वागत के लिए मनाया जाता है। शेष भारत में, कार्तिक पूर्णिमा अलग तारीख में मनाया जाता है। तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में ’लक्षभा’ के नाम से मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के घरों में कार्तिक मासालु(माह) को बहुत शुभ माना जाता है। स्वामीनारायण संप्रदाय भी इस त्यौहार को बहुत उत्साह से मनाता है।

पेरुमथिट्टा थारवाद 6 से 15 दि. केरल के दक्षिण भाग में मनाया जाता है। जहाँ कलाकारों को देवताओं और आत्माओं का अवतार माना जाता है। उनकी नृत्य गायन कला, प्राचीन पौराणिक कहानियों को दर्शाती है।


   श्रीराम जानकी विवाह से पहले जनकपुर नेपाल में जगह जगह मटकोर पूजन आयोजन के पोस्टर लगे देख कर, मन में प्रश्न उठा कि ये मटकोर पूजन क्या है? पता चला कि श्रीराम जानकी का विवाह है। विवाह पंचमी से पहले विवाह की एक रस्म है, कमला नदी पूजन की, उसे मटकोर कहते हैं। मैं विवाह पंचमी की तैयारी देखने लगी। पता चला उत्सव में देश विदेश से लोग आतेे हैं। अयोध्या से श्रीराम की बारात जनकपुर में आती है। होटल, धर्मशालाएं, गैस्ट हाउस सब पहले से बुक रहते हैं। लोक कथा है कि सीता जी के विवाह में मटकोर(कमला पूजन) में कमला माई की मिट्टी लाई गई थी और सीता जी के नेत्र से कमला जी उदय हुई थीं। सीता जी की प्रिय सखी कमला हैं। मटकोर पूजन का प्रश्न उत्तर में एक लोकगीत है, जिसे मिथलानियाँ इस अवसर पर गाती हैं। 

कहाँ माँ पियर माटी, कहाँ मटकोर रे।

कहाँ माँ के पाँच माटी, खोने जाएं।

पटना के कोदार है, मिथिला की माटी।

मिथिला के ही पाँचों सखी, खोने मटकोर हैं। 

पाँच सुहागिने कुदार, तेल, सिंदूर, हल्दी, दहीं लेकर, 5 आदमी नदी के किनारे की मिट्टी खोदते हैं, उसमें से मिट्टी निकाल कर, ये सब सुहागचिन्ह और पाँच मुट्ठी चने डाल देते हैं। वर वधु नदी में स्नान करते हैं। लौटते समय चने, पान, सुपारी बांटते हैं। उस मिट्टी को वर वधु के उबटन में मिला कर हल्दी की रस्म होती है। विवाह पंचमी के बाद से मिथिला में साहे शुरु होते है।ं 

तब से मिथिला में विवाह संस्कार की शुरुवात ही नदी पूजन से होती है।  

गीता जयंती का उत्सव मार्गशीष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष 28 नवम्बर से 15 दिसम्बर अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर कुरुक्षेत्र में ब्रह्म सरोवर के आस पास 300 से अधिक राष्ट्रीय स्टॉल लगाए गए हैं। यहाँ के 75 तीर्थों पर इस दौरान गीता पूजन, गीता यज्ञ, अंतरराष्ट्रीय गीता सेमिनार, गीता पाठ, वैश्विक गीता पाठ, संत सम्मेलन आदि मुख्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। तीर्थयात्री कुरुक्षेत्र की 48 कोस परिक्रमा करके गीता महोत्सव मनाते हैं। महोत्सव के मुख्य कार्यक्रम विशेष तिथियों पर होंगे। गीता पढ़ना, घर में रखना हमारे यहाँ परंपरा है। 18 अध्यायों और 700 श्लोकों में चारों वेदों का संक्षिप्त ज्ञान है। गीता जयंती के दिन श्रीमदभागवत गीता के अलावा भगवान श्री कृष्ण और वेद व्यास की भी पूजा की जाती है। 

  गीता जयंती पौराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता का ज्ञान दिया था। ऐसी भी मान्यता है कि यही ज्योतिसर तीर्थ वह पावन धरती है, जहां भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता रुपी अमृतपान कराया था। यहां एक प्राचीन सरोवर और एक पवित्र अक्षय वट है जो भगवान श्रीकृष्ण के गीता उपदेश का एकमात्र साक्षी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस एकादशी से मोह का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी (11 दिसम्बर) कहते हैं।

चंपा षष्ठी 7 दि. को महाराष्ट्र का प्रमुख त्यौहार भगवान खंडोबा के भक्तों द्वारा मनाया जाता हैं। इस धार्मिक उत्सव में भक्ति के साथ अनुष्ठान, जुलूस, आध्यामिक प्रवचनों के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान खंडोबा को योद्धा देवता के रुप में पूजा जाता है। 

चुम्फा महोत्सव तंगुल नागाओं द्वारा मणिपुर में मनाया जाने वाला चुम्फा उत्सव 10 से 16 दि. सप्ताह भर चलने वाला फसल उत्सव है। इसमें पुरुष और महिलाएं विभिन्न सांस्कृतिक प्रदर्शनों और अनुष्ठानों में एक साथ भाग लेते हैं। उत्सव का समापन भव्य जुलूस के साथ होता है। 

दत्तात्रेय जयंती(14दिसम्बर) त्रिगुण स्वरुप यानि ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का सम्मलित स्वरुप, इसके अलावा भगवान दत्तात्रेय जी को गुरु के रूप में पूजनीय, की जयंती मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक हैं और माता अनुसूया को सतीत्व के रूप में जाना जाता है। राजा कार्तीवीर्य अर्जुन सहस्त्रबाहु भगवान दत्तात्रेय के अनन्य भक्तों में से एक हैं। ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य सुबह काशी में गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका, दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेेलगाम में स्थित है। देशभर में दत्तात्रेय को गुरु के रूप में मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है। भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। नरसिंहवाडी दत्ता भक्तों की राजधानी के लिए जाना जाता है। कृष्णा और पंचगंगा नदियों के पवित्र संगम पर स्थित, महाराष्ट्रीयन इतिहास के प्रसंगों में इसका व्यापक महत्व है। दक्षिण भारत सहित पूरे देश में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। माउण्ट आबू राजस्थान में श्री गुरु दत्तात्रेय मंदिर शिखर हैं जहाँ हर समय देश विदेश से श्रद्धालू दर्शन के लिए आते हैं।

 शिल्पग्राम महोत्सव(21से 31दिसम्बर) उदयपुर के शिल्पग्राम के उत्सव में एक जगह पर देशभर की संस्कृति की झलक देश भर से आये कलाकारों के आने से देखने को मिलती है। कला, संस्कृति, खानपान और वेशभूषा पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

दिसबंर में आयोजित उत्सव सनबर्न फेस्टिवल (गोवा, 28 से 30दिसम्बर ) संगीत नृत्य और गोअन संगीत के लिए प्रसिद्ध है।

संगीत प्रेमियों के लिए, माउंट आबू विंटर फैस्टिवल (राजस्थान, 29 और 30 दिसम्बर)  लोकनृत्य, संगीत, घूमर, गैर और धाप, डांडिया, शामें कव्वाली का आनन्द लेने पर्यटक पहुँचते हैं। नक्की झील के किनारे बिना किसी मंच के कोई भी अपने वाद्य यंत्र को बजाते हुए मस्ती में गाता मिल जायेगा। कोई भी संगीत प्रेमी पर्यटक साथ देने लग जाते हैं। बिना किसी आयोजन के अच्छा खासा गीत संगीत शुरु हो जाता है।  

रण उत्सव(गुजरात 1नवम्बर से 20 फरवरी) रेगिस्तान में सांस्कृतिक कार्यक्रम गरबा, व्यंजन लोक संस्कृति आदि में शामिल होने पर्यटक पहुँचते हैं। 

पौष मेला शांतिनिकेतन पश्चिम बंगाल में 24 दि. से 26 दि. तक मनाया जाता है। फसल की कटाई का प्रतीक यह मेला, बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। गृरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा शुरु पौष मेला बाउल संगीत, पारंपरिक शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। 

 कोचीन कार्निवाल मनोरंजन कार्यक्रम है जो हर साल दिसंबर के अंतिम दो सप्ताह तक मनाया जाता है। केरल के कोच्चि में र्फोट कोच्चि में वास्कोडिगामा स्क्वायर पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फैहरा कर उद्घाटन किया जाता हैं। एक जनवरी को कार्निवाल का विशाल जुलूस है जिसका नेतृत्व हाथी करते हैं और नृत्य मुख्य आर्कषण हैं।

मंडला पूजा 26 दिसम्बर को केरल के अयप्पा मंदिर में मनाया जाने वाला अनुष्ठान है। 16 नवम्बर से शुरू 41 दिवसीय उत्सव है। इस तपस्या उत्सव का अंत 26 दिसम्बर को मंडला कलम के रूप में जाना जाता है। 41 दिन का उपवास मलयालम महीने के वृश्रिच्कम के पहले दिन से शुरू होता है। पड़ोसी राज्यों से भी श्रद्धालु मंडला पूजा और ’मकर विलक्कु’ सबरीमाला अयप्पा मंदिर में आयोजित दो प्रमुख कार्यक्रमों में पहुँचते हैं। अयप्पा के अनुयायी सूर्य की उपासना करते हैं। तिल और गुड़ का भोग लगाते हैं। भोजन, दान दक्षिणा जरूरतमंदों को देते हैं जिससे समाज में सदभावना बढ़ती है। परिवार मित्रों के साथ भोजन कर त्यौहार का आनंद लेते हैं। कई रोचक और पौराणिक कथाएं इस त्योहार के महत्व को दर्शाती हैं। दो कथाएं बहुत प्रचलित हैंः

बचपन में छोड़े गए कर्ण, महान धर्नुधारी और कुशल योद्धा बने। यह जानने पर कि सूर्यदेव उनके पिता हैं। वे बहुत खुश हुए। उन्होंने अपने पिता के सम्मान में भव्य यज्ञ का आयोजन किया। ऐसा माना जाता है कि यही दिन मंडला पूजा के रूप में मनाया जाने लगा।

दूसरी कथाः देवताओं और दानवों में लम्बे समय तक युद्ध चला। देवताओं ने सूर्यदेव की सहायता से विजय प्राप्त की। देवताओं ने सूर्यदेव का आभार प्रकट करने के लिए और उनकी शक्ति का सम्मान करने के लिए मंडला पूजा की शुरूआत की।

इस उत्सव पर खरीफ़ की फसल की कटाई होनेे के बाद किसान अच्छी फसल के लिए सूर्य देव का धन्यवाद करते हैं। कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। पतंग उड़ाना, रंगोली बनाना, लोकगीत और लोकनृत्य इस उत्सव के प्रमुख आर्कषण हैं।               

विष्णुपुर महोत्सव 27 से 31 दिसम्बर के बीच मदनमोहन मंदिर, विष्णुपुर के पास पश्चिमी बंगाल में आयोजित यह महोत्सव, अपने खूबसूरत टेराकोटा मंदिरों, सिल्क की साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी विशेषता स्थानीय हस्तशिल्प और संगीत है। विष्णुपुर अपने स्वयं के शास्त्रीय संगीत के घराने के लिए भी प्रसिद्ध है।

 सांस्कृतिक उत्सवों का दिसम्बर, जाने पर और जनवरी महीने के आने की पूर्व संध्या पर कुछ लोग नववर्ष मनाते हैं। पर मेरी 95वें वर्षीय अम्मा कहतीं हैं कि ये हमारा नया साल नहीं है। हमारा नया साल तो चैत्र प्रतिप्रदा को होता है। अब अम्मा की बात तो माननी है न। 

यह लेख  प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से प्रकाशित प्रेरणा विचार पत्रिका के दिसंबर अंक में प्रकाशित हुआ है।

नीलम भागी(लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर,




ट्रेवलर)