गरीब आदमी के लिए लड़ाई Garib aadmi k liye ladai
नीलम भागी
अपना स्टॉप आने से पहले मैं बस की सीट छोड़ कर उतरने के लिए खड़ी हो गई। मेरे आगे सिर्फ एक सवारी थी। बस रुकते ही आगे वाला आदमी बस के गेट से एक सीढ़ी ही उतरा, शायद इरादा बदलने से वैसे ही बैक गियर लगा, कर बस में चढ़ा। उसके जूते की एड़ी से मेरे पैर का अंगूठा दब गया। उस सवारी ने पीछे मुड़ कर देखा, सॉरी बोला, मुझे रास्ता दिया। भयानक र्दद सहती, मैं बस से उतरी। बस स्टैण्ड की सीट पर बैठ कर पैर का मुआयना किया। उस पर से सवारी के जूते की लगी गन्दगी को रुमाल से साफ किया। र्दद ज्यादा था, लेकिन ज़ख्म मामूली सा था, जो ध्यान से देखने पर ही दिखाई देता था। शाम तक वह भी दिखना बंद हो गया। अब अंगूठा दबाने पर ही र्दद होता था। कुछ दिन बाद नाखून के नीचे पस पड़ गई। डॉक्टर को दिखाया, उसने दवा दी मैंने खाई। दवा का कोर्स ख़त्म और अंगूठा भी ठीक हो गया। अब कुछ दिन बाद फिर से अंगूठे में र्दद शुरु हो गया। मैं फिर से डॉक्टर के पास गई। उसने फिर दवा का कोर्स लिखा। मैंने खाया, अंगूठा ठीक हो गया। कुछ दिनों बाद फिर अंगूठा पक गया। अब मैंने दूसरे डॉक्टर को दिखाया उसने भी दवा दी, मैंने खायी फिर अंगूठा ठीक हो गया। दवा बंद करने के कुछ दिन बाद अंगूठा फिर पक गया। यह सिलसिला तीन महीने तक चला। अब मैंने डॉक्टर बदलना बंद कर दिया। दवा खा-खाकर, र्दद से मैं तंग आ गई थी। डॉक्टर ने मुझे कहा,’’ नाखून निकलवाना होगा। कब की डेट दूँ?’’मैंने जवाब दिया,’’कल।’’
अगले दिन ऑपरेशन हो गया। छुट्टी मिलते ही, अंजना को बाहर कोई भी ऑटो, टैक्सी नहीं मिली। वह मैनुअल रिक्शा ले आई। रिक्शा पर बैठने से पहले, मैंने रिक्शावाले को ध्यान से और धीरे रिक्शा चलाने की नसीहत दी। उसने भी गर्दन हिला कर हामी भरी कि वह मेरी नसीहत का पालन करेगा। अब मैं रिक्शा पर बैठ गई। मेरा ध्यान पैर पर था। कुछ दूरी पर दो लड़के, खड़ी बाइक के पास बतिया रहे थे। खड़ी बाइक से हमारी रिक्शा टकराई। बाइक वाला चिल्लाया, ’’देख कर नहीं चला सकता, खड़ी बाइक पर टक्कर मार दी।’’मैं उससे भी जोर से अपने पैर पर बँधी पट्टी दिखा कर, उस पर चिल्लाई कि तुमने घर से बाहर बाइक क्यों खड़ी की? वे चुप हो गये। रिक्शावाला चुप रहा। वह तो गलती कर ही नहीं सकता था क्योंकि उसको तो मैं नसीहत दे ही चुकी थी।
घर के रास्ते में जितनी भी लाल बत्ती आई। प्रत्येक लाल बत्ती पर, लाल बत्ती होने पर, हमारा रिक्शा जे़ब्रा क्रॉसिंग से आगे ही होता। जैसे ही रिक्शा रुकती, दूसरी ओर की गाड़ियाँ रिक्शा को लगभग छूती हुई निकलती और मैं 3 महीने और उस दिन के भोगे हुए कष्ट के कारण, गाड़ी वालों को कोसती जा रही थी। जब तक रिक्शावाला उतर कर रिक्शा पीछे करता, उसके पीछे वाहनों की लाइन लगी होती। अब हरी बत्ती का इन्तजार, ऊपर वाले का जाप करते हुए और अपने पैर को देखते हुए गुजारती। लेकिन दिमाग में डॉ. की कही बात घूमती कि नया नाखून आने में एक महीना लगेगा। उस समय दिमाग में एक ही प्रश्न उठ खड़ा होता कि अगर किसी वाहन से टकराकर रिक्शा पलट गई तो मेरे पैर का क्या होगा?
अपने ब्लॉक में रिक्शा पहुँचा, मुझे सकून आया। मेरे घर का न0 24 है। अपने गेट से पहले ही, मैं चिल्लायी,’’रोको भइया, रोको।’’रिक्शा रुका, मगर न0 30 पर। रिक्शावाला कूद कर उतरा, पैदल खींचते हुए रिक्शा मेरे गेट के अन्दर लाया। मैंने पूछा,’’तुम्हें यहाँ रोकने को कहा, तुम रिक्शा वहाँ क्यों ले गये?’’ उसने जवाब दिया,’’इसमें हमारा कौनों कसूर नाहिं, रिस्का का बिरेक फैल है।’’ मैंने पूछा कि तुम ब्रेक ठीक क्यों नहीं करवाते। उसने शांति से जवाब दिया,’’जब सवारी ढोने से र्फुसत मिलेगी, जभी तो ठीक करवाऊँगा न।’’वो तो पैसे लेकर ये जा वो जा। और मैं उस गरीब आदमी के लिये सबसे लड़ती आई।
नीलम भागी
अपना स्टॉप आने से पहले मैं बस की सीट छोड़ कर उतरने के लिए खड़ी हो गई। मेरे आगे सिर्फ एक सवारी थी। बस रुकते ही आगे वाला आदमी बस के गेट से एक सीढ़ी ही उतरा, शायद इरादा बदलने से वैसे ही बैक गियर लगा, कर बस में चढ़ा। उसके जूते की एड़ी से मेरे पैर का अंगूठा दब गया। उस सवारी ने पीछे मुड़ कर देखा, सॉरी बोला, मुझे रास्ता दिया। भयानक र्दद सहती, मैं बस से उतरी। बस स्टैण्ड की सीट पर बैठ कर पैर का मुआयना किया। उस पर से सवारी के जूते की लगी गन्दगी को रुमाल से साफ किया। र्दद ज्यादा था, लेकिन ज़ख्म मामूली सा था, जो ध्यान से देखने पर ही दिखाई देता था। शाम तक वह भी दिखना बंद हो गया। अब अंगूठा दबाने पर ही र्दद होता था। कुछ दिन बाद नाखून के नीचे पस पड़ गई। डॉक्टर को दिखाया, उसने दवा दी मैंने खाई। दवा का कोर्स ख़त्म और अंगूठा भी ठीक हो गया। अब कुछ दिन बाद फिर से अंगूठे में र्दद शुरु हो गया। मैं फिर से डॉक्टर के पास गई। उसने फिर दवा का कोर्स लिखा। मैंने खाया, अंगूठा ठीक हो गया। कुछ दिनों बाद फिर अंगूठा पक गया। अब मैंने दूसरे डॉक्टर को दिखाया उसने भी दवा दी, मैंने खायी फिर अंगूठा ठीक हो गया। दवा बंद करने के कुछ दिन बाद अंगूठा फिर पक गया। यह सिलसिला तीन महीने तक चला। अब मैंने डॉक्टर बदलना बंद कर दिया। दवा खा-खाकर, र्दद से मैं तंग आ गई थी। डॉक्टर ने मुझे कहा,’’ नाखून निकलवाना होगा। कब की डेट दूँ?’’मैंने जवाब दिया,’’कल।’’
अगले दिन ऑपरेशन हो गया। छुट्टी मिलते ही, अंजना को बाहर कोई भी ऑटो, टैक्सी नहीं मिली। वह मैनुअल रिक्शा ले आई। रिक्शा पर बैठने से पहले, मैंने रिक्शावाले को ध्यान से और धीरे रिक्शा चलाने की नसीहत दी। उसने भी गर्दन हिला कर हामी भरी कि वह मेरी नसीहत का पालन करेगा। अब मैं रिक्शा पर बैठ गई। मेरा ध्यान पैर पर था। कुछ दूरी पर दो लड़के, खड़ी बाइक के पास बतिया रहे थे। खड़ी बाइक से हमारी रिक्शा टकराई। बाइक वाला चिल्लाया, ’’देख कर नहीं चला सकता, खड़ी बाइक पर टक्कर मार दी।’’मैं उससे भी जोर से अपने पैर पर बँधी पट्टी दिखा कर, उस पर चिल्लाई कि तुमने घर से बाहर बाइक क्यों खड़ी की? वे चुप हो गये। रिक्शावाला चुप रहा। वह तो गलती कर ही नहीं सकता था क्योंकि उसको तो मैं नसीहत दे ही चुकी थी।
घर के रास्ते में जितनी भी लाल बत्ती आई। प्रत्येक लाल बत्ती पर, लाल बत्ती होने पर, हमारा रिक्शा जे़ब्रा क्रॉसिंग से आगे ही होता। जैसे ही रिक्शा रुकती, दूसरी ओर की गाड़ियाँ रिक्शा को लगभग छूती हुई निकलती और मैं 3 महीने और उस दिन के भोगे हुए कष्ट के कारण, गाड़ी वालों को कोसती जा रही थी। जब तक रिक्शावाला उतर कर रिक्शा पीछे करता, उसके पीछे वाहनों की लाइन लगी होती। अब हरी बत्ती का इन्तजार, ऊपर वाले का जाप करते हुए और अपने पैर को देखते हुए गुजारती। लेकिन दिमाग में डॉ. की कही बात घूमती कि नया नाखून आने में एक महीना लगेगा। उस समय दिमाग में एक ही प्रश्न उठ खड़ा होता कि अगर किसी वाहन से टकराकर रिक्शा पलट गई तो मेरे पैर का क्या होगा?
अपने ब्लॉक में रिक्शा पहुँचा, मुझे सकून आया। मेरे घर का न0 24 है। अपने गेट से पहले ही, मैं चिल्लायी,’’रोको भइया, रोको।’’रिक्शा रुका, मगर न0 30 पर। रिक्शावाला कूद कर उतरा, पैदल खींचते हुए रिक्शा मेरे गेट के अन्दर लाया। मैंने पूछा,’’तुम्हें यहाँ रोकने को कहा, तुम रिक्शा वहाँ क्यों ले गये?’’ उसने जवाब दिया,’’इसमें हमारा कौनों कसूर नाहिं, रिस्का का बिरेक फैल है।’’ मैंने पूछा कि तुम ब्रेक ठीक क्यों नहीं करवाते। उसने शांति से जवाब दिया,’’जब सवारी ढोने से र्फुसत मिलेगी, जभी तो ठीक करवाऊँगा न।’’वो तो पैसे लेकर ये जा वो जा। और मैं उस गरीब आदमी के लिये सबसे लड़ती आई।