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Monday, 27 May 2019

रूक्मणी मंदिर, गोपी तालाब गुजरात यात्रा Rukmani Mandir, Gopi Taalab Gujrat Yatra Part 18 भाग 18 नीलम भागी


Rukmani Mandir
नीलम भागी
गुगल की मदद से मैं पैदल होटल पहुंच गई। पेमेंट हो चुकी थी। मैनेजर ने कहा कि आप सामान मेरे पास रख दीजिये, शाम को ले लीजिगा। जाने तक रूम में आराम कर लीजिए। त्यागी जी ने 1बजे बताया था जबकि बस दो बजे जाती थी। अब हमें डेढ़ बजे निकलना था। सामान तो था नही, ंहम पैदल भद्रकाली चौक जाकर बस में बैठ गये। मुझे तो मनपसंद सीट मिल गई, गेट के साथ वाली अब मैं सामने साइड जहाँ मर्जी देखंू। यहाँ गाइड पंण्डित जी थे। बस र्स्टाट हुई साथ ही पण्डित जी का उद्बोधन शुरू हो गया। उन्होंने बताया कि बेट द्वारका के दर्शन के बिना द्वारकापुरी की यात्रा अधूरी होती है। ये बस शाम सात बजे हमें इसी स्थान पर छोड़ेगी। जितना समय दिया जायेगा, उसी समय पर बस चल देगी फिर यात्री को टैक्सी से हमेें फौलो करना होगा। अब आप रूक्मणी मंदिर जा रहें हैं। ब्राह्मण और देवताओं की मर्यादा को पालने वाले श्रीकृष्ण का यह चरित्र कुछ भी विचित्र नहीं है। हुआ यूं कि द्वारकाधीश सभा में विराज रहे थे। उद्धव ने आकर खबर दी कि र्दुवासा ऋषि यात्रा करते हुए यहाँ पधारे हैं। सुनते ही भगवान प्रसन्न होकर रूक्मणी जी के पास पहुंचे और उन्हें दुर्वासा जी के आने की ख़बर देकर कहाकि चलो हम दोनों ऋषि को भोजन के लिए आमंत्रित करने चलते हैं, क्योंकि ब्राह्मणों का सम्मान करने से गृहस्थों को पुण्य की प्राप्ति होती है। अपने पति का ऐसा वचन सुनकर रूक्मणी भी बहुत खुश हुई। दोनों ने जाकर ऋषि को दण्डवत प्रणाम किया। ऋषि ने आर्शीवाद देकर उनकी कुशलता जानी। भगवान ने मथुरा छोड़ने से द्वारकाधीश बनने तक का सफ़र सुनाया। सुनकर ऋषि ने विस्मित और खुश होते हुए पूछा कि मेरे पास क्यों आए हो? भगवान ने जवाब दिया कि हमारे घर पधार कर, घर को पवित्र करो। ऋषि ने जवाब दिया कि जैसे आग में शीतलता नहीं होती, ऐसे ही दुर्वासा में क्षमा का गुण नहीं है। भगवान बोले,’’आप जैसा कहेंगे, वैसा ही होगा।’’इसके बाद मुनि को रथ पर बिठाया और स्वयं भी बैठे। रास्ते में मुनि बोल,’’तुम तो मेरी आदत से परिचित हो न, अब घोड़ों को हटाओ और तुम दोनों जुत के रथ खींचो तो मैं आऊं।’’श्री कृष्ण रूक्मणी जी के साथ रथ खींचने लगे। आकाश से देवता यह देख कर, जयजयकार करने लगे कि भगवान का ब्राह्मणों पर कितना प्रेम है कि रूक्मणि जी के साथ रथ खींच रहें हैं। रास्ते में रूक्मणी जी भगवान से बोलीं,’’मुझे बहुत प्यास लगी है। भगवान ने पाँव से धरती को दबा कर गंगा जी प्रकट कीं और रूक्मणी को जल पिलाया। यह देख ऋषि ने रूक्मणी को श्राप दिया कि तुमने बिना मुझसे पूछे जल पिया है। इससे तुम्हारा श्री कृष्ण के साथ वियोग होगा और रथ से उतर गये। तब से यहाँ का पानी खारा है। पट खुलने से पहले पुजारी बताते हैं कि यहाँ पर जल दान होता है। टैंकर आते हैं। लोग अपने पूर्वजों, पितरों के नाम पर जल दान करते है। यहाँ हमें बीस मिनट रूकने का समय मिला। कपाट खुलने पर दर्शन किये और परिक्रमा की। पीछे जल से लबालब भरा तालाब था।
Gopi Talab
गोपी तालाब 13 किमी. दूर था। पण्डित जी ने बताया श्रीकृष्ण ने द्वारका त्यागने से पहले अर्जुन को रानियों को सुरक्षित ले जाने के लिये बुलाया था। अर्जुन को अपने गांडीव का अहंकार हो गया था। रास्ते में काबा जाति के लोगो ने हमला कर दिया। उस समय गांडीव ने काम नहीं किया। रानियां उसमें डूब गई। अब इसकी मिट्टी पीली है। इसके आस पास बहुत से मंदिर हैं। हमें यहाँ 20 मिनट रूकने का समय मिला। बहुत गर्मी थी। कुल 20 रू का नारियल पानी मिल रहा था। तालाब के पास भी कोई कथा सुना रहा था कि उद्धव जब भगवान का समाचार लेकर गए तो गोपियों ने उन्हें घेर लिया। तो उद्धव ने उन्हें कहा कि मैं तो तुम्हें बुलाने आया हूं। वे खुशी खुशी उद्धव के साथ चल दीं। कथा कहानियां करते हुए द्वारका के पास पहुंच गए। तो उद्धव ने उन्हें इस सरोवर के पास ठहरा कर कहा कि मैं भगवान को ख़बर देता हूं। वे स्वयं यहाँ आकर दर्शन द्रेगे। तब गोपियों ने पूछा कि यह सरोवर किसने बनाया है? उद्धव ने बताया कि महामायावी दैत्य ने इसे बनाया है। इसलिये इसे मय सरोवर कहते हैं। वे बोली,’’जल्दी जाओ हमें भगवान से शीघ्र्र मिलना है। उद्धव ने जाकर श्रीकृष्ण को सब बताया। भगवान सबको लेकर मिलने आये। उनके दर्शन पाकर वे अनेक सम्बोधन से उन्हे अपना वियोग बताने लगीं। इस स्थान पर उनका गोपियों के साथ समागम हुआ था। तो इसका नाम गोपी तालाब हो गया। भगवान ने कहा कि तुम्हारी प्रसन्नता के लिये प्रत्येक वर्ष श्रावण सुदी एकादशी के दिन द्वारका से सब वाहनो के साथ मैं यहाँ स्नान करने आऊँगा। अब हम नागेश्वर के लिये चल दिए।    क्रमशः    

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