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Thursday 4 May 2017

वर्ण्डस ऑफ ड्रीम्स, कोटाई, मकाओ Macao यात्रा भाग 2 नीलम भागी


      लिफ्ट से बाहर आते ही गीता  की आँखें हर जगह अटक रहीं थीं। कारण ये जगह इनसानों द्वारा बनाई गई बेहद खूबसूरत थी। कुछ देर के लिये हम वण्डर्स ऑफ ड्रीम्स में रूके। हमने देखा कोई भी बच्चा वहाँ से जाने को तैयार नहीं था। इसलिये हमने गीता को प्रैम से नहीं उतारा और बाहर आये। यहाँ का गारमेंट, इलैक्ट्रनिक्स उपकरण, खिलौने और पर्यटन मुख्य उद्योग है। इसलिये यह विश्व के सबसे धनी शहरो में से एक है। यहाँ जुआ खेलना जुर्म नहीं है। मकाओ का 50%राजस्व जुए के पैसे से आता है। 20% मकाउनिस कैसीनों में काम करते हैं। सड़क पर आते ही देखा, वहाँ तो बहुत बड़ा जंगशन था। उत्तकर्षिनी ने गूगल बाबा से सुपर मार्किट का रास्ता देखा, बोली,’’माँ, टैक्सी लेते हैं।’’मैंने पूछा,’’बहुत ज्यादा दूर है क्या?’’वह बोली,’’नहीं।’’ मैं बोली,’’ इस स्वप्न लोक में और उद्योगों में काम करने वाले लोग भी तो कहीं न कहीं रहते होंगे। चलने से मकाओ से परिचय भी हो जायेगा, थकने पर टैक्सी है ही।’’सड़कों पर बस और प्राइवेट गाड़ियाँ थी। लिफ्ट से हम फुटब्रिज पर पहुँचे। मैं तो चलना भूल कर, काफी देर तक नीचे ही देखती रही। मौसम काफी ठंडा था। खूब चले। दो चार लोग सैर भी करते दिखे। नीचे उतरते ही हम फुटपाथ पर थे। ये क्या! हमसे आगे एक लड़की मोबाइल में शायद पिक्चर देखती जा रही थी। फुटपाथ वन वे था। कुत्ते थे नहीं। इसलिये वो समय का सदुपयोग करती जा रही थी क्योंकि न तो सामने वाले से टकरा सकती थी, न ही उसको डर था कि उसका पैर कुत्ते की पॉटी पर पड़ जायेगा। सड़क लगातार चल रही थी। मैप के अनुसार हमने सिगनल पर लैफ्ट टर्न लिया। एकदम रिहायशी कॉलौनी शुरू, तरह तरह के रैस्टोरैंट, पुर्तगाली रैस्टोरैंट देखते ही हमने डिसाइड कर लिया कि हम शॉपिंग करके, यहाँ से डिनर करके जायेंगे। इन सड़कों पर बस नहीं चल रही थी। पेड़ों के चारों ओर ऊंचाई में एक मीटर का घेरा छोड़ा हुआ था। हमारे यहाँ जैसे घर के आगे स्वास्तिक चिन्ह या गणपति विराजमान होते हैं, कुछ वैसे ही मुझे यहाँ भी कुछ घरों के आगे लगा। जिसके मैंने चित्र ले लिये। सुपर मार्किट में पहुँचते ही देखा गीता सो रही थी। मैं उसे लेकर बिलिंग की जगह खड़ी हो गई। हमारी तरह ही लोग लिस्ट देख देख कर ट्रॉली में सामान रख रहे थे। यहाँ भी मिर्च खाते हैं। उत्तकर्षिनी ने गीता की जरूरत के सामान के साथ, मिर्च के तरह तरह के सॉस, कूकिंग की शौकीन ने तरह तरह के इनग्रीडैंट से ट्रॉली भर ली। कई बैग प्रैम पर लटका कर हम बाहर आये। बाहर हम पुर्तगाली रैस्टोरैंट खोजने लगे। रात के दस बज रहे थे। बारिश आने लगी। हम एक शेड के नीचे खड़े हो गये। उत्तकर्षिनी दूसरी ओर रेस्टोरेंट्स खोजने चल दी। दूर से एक लड़का बारिश में भीगता लगभग दौड़ता हुआ, हमारे पास आया और बोला,’’इण्डिया।’’। मैं बोली,’’हाँ।’’हाँ सुनते ही वह लगातार बोलता जा रहा था। "आप यहाँ रहते हो या घूमने आये हो। " मैंने जवाब दिया,’’घूमने।’’वह बोला ,"मैं यहाँ जॉब करता हूँ। मैंने दूर से देखा, ये तो अपने लोग हैं।" गीता जाग गई, मम्मा मम्मा का जाप करने लगी। उसने पूछा,’’दीदी कहाँ है?’’मैंने कहा,’’पुर्तगाली रैस्टोरैंट खोजने।’’उसने मुझे रास्ता समझा दिया। दूर इशारा करके उसने बताया कि उस सोसाइटी में वह मेनटेनेंस देखता है। इस एरिया में तो कोई घूमने नहीं आता क्योंकि यहाँ कोई दर्शनीय स्थल नहीं है। मेरा जी नहीं भरा हिन्दी बोल कर, डयूटी पर हूँ न, चलता हूँ। बाय। गीता जब तक वह दिखता रहा, हाथ हिलाकर बाय करती रही। वह भी खिले चेहरे से मुड़ मुड़ कर बाय करता रहा। उत्तकर्षिनी ने आते ही कहा कि नहीं मिला। मैंने उसे उस भारतीय युवक के बारे में बताया। उसके बताये रास्ते पर हम मुश्किल से दो सौ कदम चले। हमें पुर्तगाली रैस्टोरैंट मिल गया। उत्तकर्षिनी को अपनी पसंद की डिश मिल गई। मैंने मैन्यू कार्ड खंगाला और एक कैप्सीकम डिश और एक साइड डिश, बींस विद राइस आर्डर की। र्स्टाटर में ब्रैड के स्क्वायर साथ में कई तरह के सॉस और मक्खन। मक्खन के स्वाद ने तो मुझे गंगा यमुना के दूध से अपने हाथ से बनाये मक्खन की याद दिला दी। मेरी डिश थी लाल, हरी और पीली ऑलिव ऑयल में सौटे की ,पतली पतली कटी नमकीन शिमला मिर्च, दूसरी डिश देखते ही मेरे मुंह से निकला, अरे! ये तो राजमां चावल हैं। उत्तकर्षिनी अपनी डिश से बहुत खुश थी। जिस जिस देश में उसे खाया था, उसके स्वाद की तुलना  करती जा रही थी और बार बार मुझसे स्वाद देखने का आग्रह कर रही थी। मैंने नहीं चखा।  क्रमशः