World Sparrow Day
विश्व गौरया दिवस
मेरी दादी चिड़िया के दाल के दाने और कैए के चावल के दाने से बनी, खिचड़ी की कहानी सुनाती थी कि जब खिचड़ी बन गई तो चिड़िया कौए से बोली,’’चलो, पहले नहा आते हैं फिर खिचड़ी खाते है।’’ उसने आप कटोरा लिया और कौए को छलनी दी। कौआ पानी भरे सारा पानी निकल जाये। आप जल्दी से नहा कर आ गई। कैसे चिड़िया ने कौए को बेवकूफ बना कर, सारी खिचड़ी खा ली थी और चूल्हे के पीछे छिप गई थी। भूखा कौआ बिना नहाये आया। खिचड़ी खत्म देखकर उसे बहुत गुस्सा आया। उसे छिपी हुई चिड़िया की पूंछ दिखाई दे गई। कौए ने चिमटा गरम करके चिड़िया की पूंछ पर लगाया। चिड़िया चिल्लाई,’’चीं चीं मेरा पूंछ जलया।’’ कौए ने जवाब दिया,’’क्यूं पराया खिचड़ी खाया।’’ मै छोटी थी, दादी आँगन में चावल, बाजरा मेरे हाथ से डलवाती, गौरैया झुण्डों में आतीं और सारा दाना चट कर जातीं। मैं सोचती कि वह कौए के साथ खिचड़ी बनाने गई है। अब न मेरठ में हूँ और न ही आँगन है, पर गौरैया प्रेम वैसा ही है। घर के आगे मौसम के अनुसार बदल-बदल कर दाना डालती हूँ । गौरैया के साथ कबूतर भी आ जाते हैं।
कॉरर्न का घर है, साइड लोगो ने पार्किंगं बना दी है। मैं बाजरा डालती हूँ। पक्षी दाना खाने में मश़गूल होते हैं और गाडियों के नीचे छिपी हुई बिल्लियाँ कबूतर, गौरैया जो भी, दाँव लगे झपट लेती हैं। यह देख मैंने दाना देर से डालना शुरु कर दिया है। जब लोग गाड़ियाँ ले काम पर निकल जाते हैं, रात से भूखी गौरैया बिजली के तारों पर बैठीं चीं ची करतीं रहतीं हैं। काफी जगह खाली होते ही मैं दाना डालती हूँ। वे दाने पर टूट पड़ती हैं। फिर भी बिल्ली गौरैया झपट ही लेती हैं। क्योंकि कुछ लोगों के पास फालतू गाड़ी के लिए जगह नही है, फिर भी कई गाड़ियाँ रखना उनके लिये स्टेटस सिम्बल है। इसलिए वे गाड़ियाँ खड़ी रहतीं हैं, और उनके नीचे बिल्लियाँ छिपी रहती हैं। बिल्ली चूहे का शिकार छोड़, गौरैया की शिकारी बन गई हैं। गौरैया की संख्या कम होती देख, मैंने 3 बोगनविलिया के पौधे लगवा दिए। बोगनविलिया फैलते गये, गाड़ियाँ दूर होती गई और गौरैया की संख्या बढ़ती गई। वे चौकन्ननी होकर दाना खाती, खतरा देखते ही झाड़ में छिप जातीं।
200-250 गौरैया देख, मैं खुशी से फूली न समाती। पार्किंग करने वालों को मेरे बोगनविलिया दुश्मन दिखाई देते। बसन्त के मौसम में रंग बिरंगे फूलों से लदे, बोगनविलिया ने अतिक्रमण नहीं किया। वह उद्यान विभाग द्वारा लगाये, 4 अमलतास के पेडों में से इकलौते बचे, पेड़ की सीध से आगे नहीं बढ़ते। कुछ लोग पार्किंग से परेशान, लोगो को सलाह देते कि यदि ये झाड कट जाये,ं तो यहाँ 6 गाड़ियाँ खड़ी हो सकती हैं। एक दिन हृदय विदारक चीं चीं की आवाज सुनकर मैं बाहर गई। एक कार प्रेमी, झाड़ की छटाई कम, कटाई ज्यादा करवा रहे थे। मुझे देखते ही वाणी में मिश्री घोल कर, बोले, ’’यहाँ बच्चे खेलते हैं और साँप रहते हैं। इसलिए मैं इनकी छटाई करवा रहा हूँ।’’ मैंने जवाब दिया कि गौरैया चिड़िया खत्म होती जा रही हैं। यहाँ उनकी संख्या बढ़ रही है। और बड़े शरीफ साँप हैं, जो गौरैया के अण्डे बच्चे, खाना छोड कर, दिन भर उपवास करते हैं कि शाम को बच्चे खेलने आएँ और साँप उन्हें खाए।’’ फिर वे बोले, ’’यहाँ कोई आतंकवादी भी तो बम रख सकता है।’’ उनके सारे कुर्तकों के मैंने जवाब दिए। अंतिम अस़्त्र उन्होने छोड़ा कि माली के पैसे भी वे देंगे साथ ही टहनियाँ भी उठवा देंगे। पर मैंन गौरैया का घर नहीं उजड़नें दिया।
मैं कुछ दिनों के लिए बाहर गई। लौटी तो मेरे बोगनविलिया साफ थे। बस चार-छ इंच जड़े दिख रहीं थीं। वहाँ लाइन से गाड़ियाँ खड़ी थीं। सबसे पहले मैंने उन बची हुई जड़ों में पानी डाला फिर स्वयं पानी पी कर अपना गुस्सा शांत किया। काफी दिनों के बाद उनमें से कोंपले फूटी हैं। बोगनविलिया फिर फैलेंगे और चीं चीं करती चिड़ियाँ, उम्मीद करती हूँ, उन पर फिर से चहकेंगी।
विश्व गौरया दिवस
मेरी दादी चिड़िया के दाल के दाने और कैए के चावल के दाने से बनी, खिचड़ी की कहानी सुनाती थी कि जब खिचड़ी बन गई तो चिड़िया कौए से बोली,’’चलो, पहले नहा आते हैं फिर खिचड़ी खाते है।’’ उसने आप कटोरा लिया और कौए को छलनी दी। कौआ पानी भरे सारा पानी निकल जाये। आप जल्दी से नहा कर आ गई। कैसे चिड़िया ने कौए को बेवकूफ बना कर, सारी खिचड़ी खा ली थी और चूल्हे के पीछे छिप गई थी। भूखा कौआ बिना नहाये आया। खिचड़ी खत्म देखकर उसे बहुत गुस्सा आया। उसे छिपी हुई चिड़िया की पूंछ दिखाई दे गई। कौए ने चिमटा गरम करके चिड़िया की पूंछ पर लगाया। चिड़िया चिल्लाई,’’चीं चीं मेरा पूंछ जलया।’’ कौए ने जवाब दिया,’’क्यूं पराया खिचड़ी खाया।’’ मै छोटी थी, दादी आँगन में चावल, बाजरा मेरे हाथ से डलवाती, गौरैया झुण्डों में आतीं और सारा दाना चट कर जातीं। मैं सोचती कि वह कौए के साथ खिचड़ी बनाने गई है। अब न मेरठ में हूँ और न ही आँगन है, पर गौरैया प्रेम वैसा ही है। घर के आगे मौसम के अनुसार बदल-बदल कर दाना डालती हूँ । गौरैया के साथ कबूतर भी आ जाते हैं।
कॉरर्न का घर है, साइड लोगो ने पार्किंगं बना दी है। मैं बाजरा डालती हूँ। पक्षी दाना खाने में मश़गूल होते हैं और गाडियों के नीचे छिपी हुई बिल्लियाँ कबूतर, गौरैया जो भी, दाँव लगे झपट लेती हैं। यह देख मैंने दाना देर से डालना शुरु कर दिया है। जब लोग गाड़ियाँ ले काम पर निकल जाते हैं, रात से भूखी गौरैया बिजली के तारों पर बैठीं चीं ची करतीं रहतीं हैं। काफी जगह खाली होते ही मैं दाना डालती हूँ। वे दाने पर टूट पड़ती हैं। फिर भी बिल्ली गौरैया झपट ही लेती हैं। क्योंकि कुछ लोगों के पास फालतू गाड़ी के लिए जगह नही है, फिर भी कई गाड़ियाँ रखना उनके लिये स्टेटस सिम्बल है। इसलिए वे गाड़ियाँ खड़ी रहतीं हैं, और उनके नीचे बिल्लियाँ छिपी रहती हैं। बिल्ली चूहे का शिकार छोड़, गौरैया की शिकारी बन गई हैं। गौरैया की संख्या कम होती देख, मैंने 3 बोगनविलिया के पौधे लगवा दिए। बोगनविलिया फैलते गये, गाड़ियाँ दूर होती गई और गौरैया की संख्या बढ़ती गई। वे चौकन्ननी होकर दाना खाती, खतरा देखते ही झाड़ में छिप जातीं।
200-250 गौरैया देख, मैं खुशी से फूली न समाती। पार्किंग करने वालों को मेरे बोगनविलिया दुश्मन दिखाई देते। बसन्त के मौसम में रंग बिरंगे फूलों से लदे, बोगनविलिया ने अतिक्रमण नहीं किया। वह उद्यान विभाग द्वारा लगाये, 4 अमलतास के पेडों में से इकलौते बचे, पेड़ की सीध से आगे नहीं बढ़ते। कुछ लोग पार्किंग से परेशान, लोगो को सलाह देते कि यदि ये झाड कट जाये,ं तो यहाँ 6 गाड़ियाँ खड़ी हो सकती हैं। एक दिन हृदय विदारक चीं चीं की आवाज सुनकर मैं बाहर गई। एक कार प्रेमी, झाड़ की छटाई कम, कटाई ज्यादा करवा रहे थे। मुझे देखते ही वाणी में मिश्री घोल कर, बोले, ’’यहाँ बच्चे खेलते हैं और साँप रहते हैं। इसलिए मैं इनकी छटाई करवा रहा हूँ।’’ मैंने जवाब दिया कि गौरैया चिड़िया खत्म होती जा रही हैं। यहाँ उनकी संख्या बढ़ रही है। और बड़े शरीफ साँप हैं, जो गौरैया के अण्डे बच्चे, खाना छोड कर, दिन भर उपवास करते हैं कि शाम को बच्चे खेलने आएँ और साँप उन्हें खाए।’’ फिर वे बोले, ’’यहाँ कोई आतंकवादी भी तो बम रख सकता है।’’ उनके सारे कुर्तकों के मैंने जवाब दिए। अंतिम अस़्त्र उन्होने छोड़ा कि माली के पैसे भी वे देंगे साथ ही टहनियाँ भी उठवा देंगे। पर मैंन गौरैया का घर नहीं उजड़नें दिया।
मैं कुछ दिनों के लिए बाहर गई। लौटी तो मेरे बोगनविलिया साफ थे। बस चार-छ इंच जड़े दिख रहीं थीं। वहाँ लाइन से गाड़ियाँ खड़ी थीं। सबसे पहले मैंने उन बची हुई जड़ों में पानी डाला फिर स्वयं पानी पी कर अपना गुस्सा शांत किया। काफी दिनों के बाद उनमें से कोंपले फूटी हैं। बोगनविलिया फिर फैलेंगे और चीं चीं करती चिड़ियाँ, उम्मीद करती हूँ, उन पर फिर से चहकेंगी।