तब हम शाम को मथुरा पहुंचे थे। जाते ही घूमना, मंदिरों के दर्शन करना शुरु कर दिया था। गाड़ियों में होने से समय नहीं लगा। कंस किले का निर्माण जयपुर के महाराज मानसिंह ने 16वीं शताब्दी में करवाया था। बाद में महाराजा सवाई जयसिंह ने इसमें वेधशाला का निर्माण करवाया। यमुना के उत्तरी तट पर बड़े क्षेत्र में बना ये किला वास्तुशास्त्र का बेहतरीन नमूना है। इसकी संभाल राज्य पुरातत्व विभाग कर रहा है। इसके बाद द्वारकाधीश, विश्रामघाट में यमुना जी की आरती देख कर, कृष्णजन्मभूमि के दर्शन किए। अब हम एक ठेले पर चाट खाने खड़े हुए। वो बतियाते हुए लाजवाब टिक्की सेक रहा था। इतने सारे ग्राहक देख कर भी, उसे जरा भी जल्दी नहीं थी। बस उसकी टिक्की की क्वालिटी नहीं गिरनी चाहिए। दबा दबा कर कुरकुरी टिक्की सेक रहा था, उतनी ही प्रीत से पत्ता लगा रहा था। जितना वो चाट बनाने में काबिल था, उतना ही बातें बनाने में भी। हमने उससे ठहरने की जगह पूछी। उसने राह चलते किसी को बुला कर कहा,’’बंसी, अमुक होटल में पता करके आ कि कमरे मिल जायेंगे।’’कुछ देर बाद उसने लौट कर बताया कि मिल जायेंगे। अब हम जितनी वैराइटी की उसकी चाट थी, आराम से स्वाद लेकर खाने लगे। कुछ साथी बंसी के साथ होटल में चैक इन करने, गाड़ी पार्क करने चले गये। टिकने की जगह मिल गई। अब कोई जल्दी तो थी नहीं। टमाटर की चाट यहां पहली बार खाई थी। गोल गप्पे का पानी गज़ब, साथ में खिलाने का तरीका स्वाद और बढ़ा रहा था। नियम कायदे वाले साथी चाट के साथ, डिनर की गुंजाइश छोड़ रहे थे। मेरी आत्मा तो लजी़ज चाट से तृप्त हो गई थी। ऐसी चाट तो मेरठ में ही मिलती थी। मैं बोली,’’हम तो जींम ली, अब मैं सोना चाहती हूं। चाट वाले ने बंसी को हमारे साथ हमें होटल में छोड़ने को भेजा। जिन्होंने चाट खाने का शगुन किया था, वे डिनर के लिए रुक गए। अब मैं तो सोने को चल दी। रास्ते में बंसी ने मेरे जींमने शब्द को पकड़ कर कहा कि आपने जितना खाया, वो जीमना थोड़ी है। जीमना मथुरा के हिसाब से ब्रह्मभोज, शादी, ब्याह, जनेउ, तेरहवीं, श्राद्ध आदि में होता है। हमारे यहां एक नई नवेली बहू आई। दो चार दिन बाद उसके ससुर जीमने गए। सास ने नई बहू से कहा,’’दुल्हिन जरा आंगन में खाट डाल के, उस पर बिस्तर बिछा दे। तेरे ससुर जी जींम के आ रहें हैं। आते ही खाट पर गिरेंगे।’’यह सुनते ही बहू माथे पे हाथ मार के रोने बैठ गई और बोलने लगी,’’ हाय!! बंसरी वारे, मैं किन भूखे नंगों के ब्याही गई। ये तो खाना भी नहीं जानते। मेरे मायके वालों को तो जीमने के बाद खाट पर डाल कर घर लाते हैं।’’ अभी हम ये सुन कर हंस ही रहे थे। बंसी ने कहा कि असली जीमने वाले को जीमने के बाद इलायची या पान दोगे तो वो साफ इनकार करते हुए कहेगा,’’पेट में इलायची की गुंजाइश होती तो एक लड्डू और न खा लेते।’’ इतने में होटल आ गया। हम अपने रुम की चाबी लेकर और लगेज के साथ चले गए और सो गए। जल्दी सोए थे इसलिए जल्दी आंख खुल गई। ज्यादातर सीनियर सीटीजन थे। वे देर से सोते थे और जल्दी उठते थे। उनसे हमें सूचना मिल गई थी कि यहां से बारह बजे मथुरा संग्राहलय के लिए निकलेंगे और गोकुल, बरसाना होते हुए गोर्वधन गिरिराज जी चलेंगे। हम बहने जल्दी से तैयार होकर निकल लीं कि बारह बजे तक लौट आयेंगी।