कुछ साल पहले मेरे एक छात्र के पापा महेश मेरे पास आये और बोले,’’दीदी हमारी फैक्टरी के पीछे दिल्ली शुरु होता है। वहाँ झोपड़ पटृी वालों को नामालूम कौन सी जगह से, उनकी झोपड़ियां हटा कर, उन्हें ढाई हजार रुपए में झुग्गी के बदले पच्चीस स्क्वायर मीटर का प्लॉट सरकार ने दिया है। मैंने भी साइड रोड पर उनसे दस हजार रु में एक प्लॉट खरीद लिया है। मेन रोड के प्लॉट तो सभी बिक चुके हैं। आपके यहाँ से तो पैदल का रास्ता है। आप भी ले लो न। और सुनने में तो ये भी आ रहा है कि प्लॉट ज्यादातर दिल्ली के होलसेल मार्किट के व्यापारियों ने खरीदे हैं। इसलिए यहाँ होलसेल मार्किट बनेगी। महेश की बात मेरे दिमाग में घुस गई। छुट्टी के बाद मैं वहाँ गई। रास्ते में महेश को भी बुला लिया। वहाँ जाकर देखती हूं कि दूर तक छोटे छोटे प्लॉट नज़र आ रहे थे। हर प्लॉट में टॉयलेट सीट लगी हुई थी। एक प्लॉट पर प्राधिकरण ने दो मंजिला सैंपल मकान बना कर दिया था। जिसमें हवा, धूप का पूरा ध्यान रक्खा गया था। जो भी मकान बनाना चाहे उसकी कॉपी कर ले। इस कॉलौनी के बराबर में सैल्फ फाइनैंस के तीन बॉलकोनी वाले मल्टी स्टोरी अर्पाटमैंट थे। दो आदमी मैले कपड़ों में, जिनकी आंखों में दोपहर को भी कीचड़ था, वहाँ घूम रहे थे। मुझे देख कर मेरे पास आकर बोले,’’ आपको प्लॉट खरीदना है?’’ मैने कहा,’’हां।’’ उसने जवाब दिया,’’मेरा ले लो, चौदह हजार में।’’ महेश मुझसे बोले,’’दीदी टोकन मनी दे दो। सोचना घर जाकर।’’पर्स मैं लेकर नहीं गई थी। मुटठी में बीस रुपए थे। मैंने उसके हाथ में ब्याना दिया, वो बोला,’’कुछ और दो न।’’ मैंने कहा,’’ देखो तुमने जो मांगा, हमने मोल भाव नहीं किया। जुबान दे दी बस। कल फाइल ले आना और लिखा पढ़ी करके पूरी पेमेंट ले लेना।’’वो बोला,’’ कुछ तो और दो न।’’ मैंने अपनी चोटी से दो बाल तोड़ कर दे दिए। अगले दिन प्लॉट हमारा हो गया। मैंने महेश से पूछा,’’इनसान का अपने घर का सपना होता है। दिल्ली में इनडिपैंडैंट घर बनाने का इनको मौका मिला है, और ये बेच रहें हैं।’’ रमेश ने जवाब दिया,’’कुछ लोग ऐसे भी हैं उन्होने रोड का एक प्लाट बेच कर, अंदर के दो प्लाट ले लिए हैं।’’ मैंने पूछा,’’जो बेच रहें हैं उन्हें नहीं घर चाहिए।’’ रमेश बोले,’’ ये वो लोग हैं। जो मिलजुल के कहीं और झुग्गी डाल लेंगे और इन पैसों की दारु पी लेंगे। किस्मत में होगा तो फिर इन्हें हटाया जायेगा और बसाया जायेगा। दीदी आप कोशिश करके अपने पीछे वाला भी खरीद लो, समझ लो आपका पचास मीटर रोड पर हो जायेगा।’’कुछ दिन बाद पता चला कि मेरे पीछे के प्लॉट पर घर बन रहा है। मॅैं ये सोच कर आई कि उनसे बेचने की बात करुंगी। आकर क्या देखतीं हूं! एक महिला और उसका चौदहा पंद्रहा साल का बेटा था। महिला सरोजा देखते ही बोली,’’दीदी घरों में काम हो तो बताना। घर के पास ही अर्पाटमेंट में काम मिल जाय तो मुझे परशोतम की चिंता नहीं रहेगी। मैंने देखा उसका बेटा नेत्रहीन था। मेरी सहेली अराधना दो दिन पहले ही वहाँ शिफ्ट हुई थी। मैंने दोनो को मिलवा दिया। अराधना तो बहुत ही खुश हुई। उसे अपना मकान बहुत लकी लगा क्योंकि उसे आते ही बाई मिल गई। और मेरा इरादा बदल गया।दो चार महीने बाद दो महिलायें एक बच्चे का एडमीशन करवाने मेरे पास आईं। उसने मेरे प्लॉट के बराबर का पता लिखवाया। मैंने कहा कि आपके बराबर का प्लॉट मेरा है। वो तुरंत बोली,’’बेचना है?’’ मैं मेरठ से शिफ्ट हुई थी। वहाँ प्रोपर्टी के रेट बहुत धीरे बढ़ते थे। मैंने बहुत सोच कर कहा कि जब पचास हजार का होगा तब निकाल दूंगी। वो महिला मुस्कुराकर चल दी। क्रमशः
Search This Blog
Monday, 18 November 2019
अपने घर का सपना, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला!! भाग 1 नीलम भागी Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part Neelam Bhagi
कुछ साल पहले मेरे एक छात्र के पापा महेश मेरे पास आये और बोले,’’दीदी हमारी फैक्टरी के पीछे दिल्ली शुरु होता है। वहाँ झोपड़ पटृी वालों को नामालूम कौन सी जगह से, उनकी झोपड़ियां हटा कर, उन्हें ढाई हजार रुपए में झुग्गी के बदले पच्चीस स्क्वायर मीटर का प्लॉट सरकार ने दिया है। मैंने भी साइड रोड पर उनसे दस हजार रु में एक प्लॉट खरीद लिया है। मेन रोड के प्लॉट तो सभी बिक चुके हैं। आपके यहाँ से तो पैदल का रास्ता है। आप भी ले लो न। और सुनने में तो ये भी आ रहा है कि प्लॉट ज्यादातर दिल्ली के होलसेल मार्किट के व्यापारियों ने खरीदे हैं। इसलिए यहाँ होलसेल मार्किट बनेगी। महेश की बात मेरे दिमाग में घुस गई। छुट्टी के बाद मैं वहाँ गई। रास्ते में महेश को भी बुला लिया। वहाँ जाकर देखती हूं कि दूर तक छोटे छोटे प्लॉट नज़र आ रहे थे। हर प्लॉट में टॉयलेट सीट लगी हुई थी। एक प्लॉट पर प्राधिकरण ने दो मंजिला सैंपल मकान बना कर दिया था। जिसमें हवा, धूप का पूरा ध्यान रक्खा गया था। जो भी मकान बनाना चाहे उसकी कॉपी कर ले। इस कॉलौनी के बराबर में सैल्फ फाइनैंस के तीन बॉलकोनी वाले मल्टी स्टोरी अर्पाटमैंट थे। दो आदमी मैले कपड़ों में, जिनकी आंखों में दोपहर को भी कीचड़ था, वहाँ घूम रहे थे। मुझे देख कर मेरे पास आकर बोले,’’ आपको प्लॉट खरीदना है?’’ मैने कहा,’’हां।’’ उसने जवाब दिया,’’मेरा ले लो, चौदह हजार में।’’ महेश मुझसे बोले,’’दीदी टोकन मनी दे दो। सोचना घर जाकर।’’पर्स मैं लेकर नहीं गई थी। मुटठी में बीस रुपए थे। मैंने उसके हाथ में ब्याना दिया, वो बोला,’’कुछ और दो न।’’ मैंने कहा,’’ देखो तुमने जो मांगा, हमने मोल भाव नहीं किया। जुबान दे दी बस। कल फाइल ले आना और लिखा पढ़ी करके पूरी पेमेंट ले लेना।’’वो बोला,’’ कुछ तो और दो न।’’ मैंने अपनी चोटी से दो बाल तोड़ कर दे दिए। अगले दिन प्लॉट हमारा हो गया। मैंने महेश से पूछा,’’इनसान का अपने घर का सपना होता है। दिल्ली में इनडिपैंडैंट घर बनाने का इनको मौका मिला है, और ये बेच रहें हैं।’’ रमेश ने जवाब दिया,’’कुछ लोग ऐसे भी हैं उन्होने रोड का एक प्लाट बेच कर, अंदर के दो प्लाट ले लिए हैं।’’ मैंने पूछा,’’जो बेच रहें हैं उन्हें नहीं घर चाहिए।’’ रमेश बोले,’’ ये वो लोग हैं। जो मिलजुल के कहीं और झुग्गी डाल लेंगे और इन पैसों की दारु पी लेंगे। किस्मत में होगा तो फिर इन्हें हटाया जायेगा और बसाया जायेगा। दीदी आप कोशिश करके अपने पीछे वाला भी खरीद लो, समझ लो आपका पचास मीटर रोड पर हो जायेगा।’’कुछ दिन बाद पता चला कि मेरे पीछे के प्लॉट पर घर बन रहा है। मॅैं ये सोच कर आई कि उनसे बेचने की बात करुंगी। आकर क्या देखतीं हूं! एक महिला और उसका चौदहा पंद्रहा साल का बेटा था। महिला सरोजा देखते ही बोली,’’दीदी घरों में काम हो तो बताना। घर के पास ही अर्पाटमेंट में काम मिल जाय तो मुझे परशोतम की चिंता नहीं रहेगी। मैंने देखा उसका बेटा नेत्रहीन था। मेरी सहेली अराधना दो दिन पहले ही वहाँ शिफ्ट हुई थी। मैंने दोनो को मिलवा दिया। अराधना तो बहुत ही खुश हुई। उसे अपना मकान बहुत लकी लगा क्योंकि उसे आते ही बाई मिल गई। और मेरा इरादा बदल गया।दो चार महीने बाद दो महिलायें एक बच्चे का एडमीशन करवाने मेरे पास आईं। उसने मेरे प्लॉट के बराबर का पता लिखवाया। मैंने कहा कि आपके बराबर का प्लॉट मेरा है। वो तुरंत बोली,’’बेचना है?’’ मैं मेरठ से शिफ्ट हुई थी। वहाँ प्रोपर्टी के रेट बहुत धीरे बढ़ते थे। मैंने बहुत सोच कर कहा कि जब पचास हजार का होगा तब निकाल दूंगी। वो महिला मुस्कुराकर चल दी। क्रमशः
Subscribe to:
Posts (Atom)