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Tuesday, 28 April 2020

खूबसूरत रास्ते की मनोरंजक बातें! मथुरा जी की ओर Mathura Yatra भाग 2 नीलम भागी Khusurat Raste Ke Manoranjak batein Neelam Bhagi



छोटे लाल ने मेरे आगे पेड़ों का लिफाफा किया और खाने का आग्रह किया। मैंने एक पेड़ा लिया। खाते ही मैंने उसे कहा कि ये पेड़ा दिल्ली नौएडा का  तो नहीं हैं। उसने पूछा,’’आपको कैसे पता?’’ मैंने कहा कि गाय पालती थी न, जब दूध बहुत बच जाता तो चूलेह की आग पर खोया बना लेतीे थी। जो महक उस मावे से आती थी, वही इस पेड़े में है। उसने और लेने को कहा, मैंने मना कर दिया क्योंकि मथुरा जा रही थी। वहां की दूध की मिठाइयों का तो कोई जवाब ही नहीं है। इतने में सरसराती हुई बाइक निकलीं। मैंने रमेश से कहा,’’ये लड़के कितनी स्पीड से चला रहें थे!! अब दूर तक दिख भी नहीं रहें हैं।’’रमेश ने मेरा ज्ञान बढ़ाया कि ये रेस वाली बाइक है। इसमें शर्त लगती है इसलिए ये तेज से तेज चलाते हैं। आंखे तो मेरी बाहर गड़ी हुई थीं।
मेरे और रमेश की सीट के बीच में नीचे छोटे लाल आकर बैठ गया। उसने एक छोटी सी प्याज(उन दिनों प्याज का 100 रु किलो से ज्यादा का रेट था ) और चार हरी मिर्च को बारीक काटा फिर भीगे काले चने का डिब्बा खोला। उसमें नमक, प्याज और हरी मिर्च को मिलाया। पहले मेरे आगे डिब्बा किया, मैंने हाथ से लेकर मुंह में डाला, स्वाद बहुत अच्छा था। मैंने कहा कि मैं नाश्ता करके आई हूं, आप लोग खाइए। हाथों से रमेश ड्राइविंग और चने खा रहे थे और छोटे लाल खाते हुए बतिया रहे थे। मैं भी सुन रही थी। बीच बीच में गर्दन घूमा कर मैं पीछे चलने वाली गतिविधियां देख लेती थी। बस में सुरेश अग्रवाल जी ज्ञान चर्चा कर रहे थे। सब सुन रहे थे। फिर भजन और कबीर के दोहे गाये गये। इतने में पीछे से आवाज आई,’’ भइया कहीं टायलेट आये तो रोकना।’’ थोड़ी थोड़ी देर में पीछे से कुछ न कुछ खाने को आता रहता था। एक फूड र्कोट पर जाकर बस रुकी। सब उतर कर टॉयलेट की ओर दौड़े। फ़ारिग होने पर आस पास  घूमने लगे। वहां लाइन से टूरिस्ट बसें खड़ीं थीं। ज्यादातर आगरा, मथुरा, वृंदावन और जयपुर जाने वाले थे। महिला साा टॉयलेट  में ज्यादातर महिलाएं मेकअप धोकर फिर से मेकअप कर रहीं थीं। वहां की महिला कर्मचारी टायलेट साफ करने से ज्यादा मेकअप करने वाली महिलाओं पर ध्यान दे रही थी। कोई नई चीज को चेहरे पर इस्तेमाल होते देखकर पूछती,’’इसको मुंह पर लगाने से क्या होता है?’’ख़ैर मैं तो सवाल जवाब सुनने के लिए रुकी नहीं। बस में बैठी कुछ महिलाएं में अब चर्चा थी कि पहले वृंदावन बांके बिहारी के दर्शन करने जाया जाए या मथुरा। मैं तो जब पहली बार गई थी तो तीन दिन तक रुकी था। क्योंकि बारह से चार सभी मंदिर बंद रहते हैं। कान्हा आराम करते हैं। ये भूमि उनके बाल्यकाल और किशोरावस्था की है। आज तक उनका टाइम टेबल वैसा ही बना है। धार्मिक पर्यटन स्थल है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति का केन्द्र है। धर्म ,दर्शन, कला और साहित्य में इसका योगदान है। पहले हम सेवा भारती के कार्यक्रम में गये। ये स्थल शहर थोडा़ दूर था। हजारों की संख्या में वहां सेवक थे। तीन बजे हम वहां से  द्वारकाधीश के दर्शन के लिए चल पड़े। ब्रजभूमि में मुझे कहीं पढ़ी हुई ये लाइने याद आ गई
 सकल भूमि गोपाल की, जा में अटक कहां
 जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा
   यानि सारी दुनिया गोपाल की है। जिसके मन में संशय है, वही परेशान है। लौटते में हम दूर दूर तक मल्टीस्टोरी, मॉल्स वाली मथुरा से परिचित हो रहे थे, अब मंदिरों और यमुना जी के घाटों वाली मथुरा जी में आये। यहां भांग के ठेके भी दिखे पर ज्यादा भीड़ सरकारी भांग के ठेके पर दिखी। भीड़ और पतली सड़कों के कारण जाम लगने के डर से बस हमने छोड़ दी।