अनोखा मध्य प्रदेश पाण्ड्रा रोड से अमरकंटक भाग 11
नीलम भागी
स्टेशन पर उतरते ही सामने स्टाॅल पर चाय कुल्हड़ों में बिक रही थी और दोनों में वही दाल टिक्की जो अनहोनी के रास्ते में खाई थी, बिक रही थी। कुल्हड़ में चाय का स्वाद ही अलग था। दो कुल्हड़ चाय और स्वादिष्ट दाल टिक्की खाकर, अब हमने अमरकंटक के लिये गाड़ी देखनी शुरू की। एक परिवार और अमरकंटक जा रहा था। वह हमसे बोले,’’यहाँ पास से ही बस जाती है। उसमें चलते हैं। हम झट राजी हो गये। पास में ही बस स्टैण्ड था। छोटी बस जाने को तैयार खड़ी थी। कण्डक्टर ने सामान छत पर रखवा दिया और हम बस में सवार हुए। बस आबादी के अन्दर से गुजर रही थी। अब हमारा थोड़ा सा परिचय छत्तीसगढ़ से हो रहा था। जो साफ सुथरा लग रहा था। भिखारी नहीं थे। घनी आबादी से बाहर आते ही सड़क के दोनो ओर प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा पड़ा था। मैं तो दरवाजे के पास खिड़की की सीट पर बैठी थी, बाहर से नज़रें ही नहीं हट रहीं थी। बस में सत्तर के दशक के गाने बज रहे थे। मेरी सीट ऐसी थी कि सामने भी और बाँए भी देख राकती थी। मन में एक उत्साह था कि जिस देवी नर्मदा को हम होशंगाबाद में मिल कर आ रहें हैं। उनका उद्गम स्थल देखेंगे। उसे यहाँ माँ रेवा कहते हैं। सामने से मुझे जंगल के बीच में बहुत अच्छी सड़क दिख रही थी, जिस पर हमारी बस चल रही थी। सबसे ज्यादा मुझे जिस बात ने मोहा वह था, महिलाओं का अकेले बस में आना जाना। रास्ते में छोटे छोटे से बस स्टैण्ड, वहाँ महिला बैठी बस का इंतजार कर रही है। चेहरे पर कोई बेचैनी नहीं। ऐसे ही अकेली बस से उतर रहीं थी। अचानक आसमान में बादल छा गये और हल्की हल्की बूँदा बाँदी शुरू हो गई। जिसने रास्ते को और मोहक बना दिया। रास्ते में सड़क निर्माण कार्य जारी था। रास्ते में कुछ सफेद कपड़ों में कंधे पर झोला लटकाये पैदल लोग दिखे। मैं एकदम कण्डक्टर से बोली,’’भइया बस रूकवा कर, उन सवारियों को ले लो ना।’’जवाब में उसने उनकी ओर हाथ जोड़े और कहा,’’वे माँ की परिक्रमा के लिये निकले हैं।’’ 35 किमी की रोमांचक यात्रा पूरी कर हम अमरकंटक पहुँचे। बस से उतरते ही हमने शरद सोनी से अमरकंटक घुमाने का तय कर लिया। पहला होटल ही उसने दिखाया, हमें पसंद आ गया। नहाना खाना करके, सो गये। शरद ने कहा कि आज तो आपको नर्मदा जी का उद्गम स्थल दिखायेंगे। हमने उसे शाम पाँच बजे आने को कहा। यह सोच कर थोड़ा सोकर, उठे की रात भर सोना ही तो है। मै, अंजना, कार्तिक पैदल कपिल धारा की ओर निकल गये। रास्ता, हवा तो मन मोह ही रहे थे। साथ साथ पतली सी जल धारा भी चल रही थी। चलते हुए लोग उसमें से अंजुली भर कर पानी भी पी लेते। मैंने वहाँ पूछा,’’ ये पानी ठीक हैै न।’’ जवाब मिला,’’माँ रेवा ही तो है।’’ हमने भी चुल्लू भर भर के पानी पिया और समझ गये कि इन्हें माँ क्यों कहा जाता है। कहीं कहीं पर प्राकृतिक शेप को न छेड़ कर बैठने को बैंच रक्खे थे। रास्ते में कोई भिखारी नहीं था। चलते हुए हमारे कानों में कबीर के दोहों की मधुर आवाज आने लगी। देखा एक सूरदास विचित्र वाद्ययंत्र बजा कर गा रहें हैं। जिसे बजाने में उनकी दसों अंगुलियाँ काम कर रहीं थीं। उन्हें कुछ भेंट किये बिना आप जा नहीं सकेगें। वापिस लौटे क्योंकि शरद पहुँच गया था। गाड़ी में बैठे और माँ नर्मदा के उद्गम स्थल पर पहुँचे जिसके चारों ओर विशाल खुला सफेद मंदिर था। भगवान शिव की जटाओं से उनकी पुत्री माँ नर्मदा की उत्पत्ति हुई है। अमरकंटक में घूमते हुए माँ की कहीं भी जलधारा मिल जायेगी। इसीलिये कहते हैं ’नर्मदा के कंकर सब शिवशंकर।’ क्रमश
2 comments:
nice post-- keep it up
धन्यवाद
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