कम उम्र के ड्राइवर शरद ने गाड़ी से उतरते ही जेब से गुटका निकाला, मैंने उसके हाथ से लेकर फेंक दिया और उस पर जूती समेत खड़ी हो गई। अब पर्स से दो चाकलेट निकाल कर उसके हाथ में पकड़ा कर कहा,’’तुम तीन दिन तक हमारे साथ हो, गुटका तंबाकू बिल्कुल नहीं चलेगा। दस दिन तक नहीं खाना, तब तक ये छूट जायेगा, बाद में दसवें दिन जब छोड़ दोगे तो ये चाकलेट खा लेना।’’उसने तंबाकू छोड़ने को हामी भर ली। वह हमारे गाइड का भी काम कर रहा था। मंदिर में प्रवेश करते ही हमारे मन की श्रद्धा और देश के कोने कोन से आये श्रद्धालओं की मन स्थिति और भाव से एक अलग सा भक्तिमय माहौल बना हुआ था। जिसे वर्णन करने की मेरी औकात नहीं है। सबसे पहले हमने नर्मदा कुण्ड के पवित्र जल को माथे से लगाया और मेरी आँखों के आगे यात्रा में बसों, गाड़ियों, दुकानों आदि पर लाल रंग से लिखी, नमामि देवी नर्मदे, माँ नर्मदे, नर्मदे हर हर, नर्मदा आने लगी। ये लोगों का माँ के प्रति प्यार ही तो व्यक्त करने का तरीका है, जो नर्मदा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होती हुई जाती है, उसके प्रति। कुंड में नहाने की मनाही है लेकिन पास में ही मंदिर परिसर के अन्दर ही तालाब है वहाँ श्रद्धालु नहाते हैं। रुद्राक्ष के पेड़ हैं। मैं तो नर्मदा उद्गम कुण्ड के पास वहीं बैठ गई, पास में ही एक हाथी बना हुआ था सब उसके नीचे से निकल रहे थे। ऐसी मान्यता है कि पापी नहीं निकल पायेगा, वह फंस जायेगा। जो भी निकलता उसके चेहरे की खुशी देखने लायक होती। एक एक करके सौ से ज्यादा लोग निकले पर एक भी पापी नहीं मेरे सामने था। और मैं देखती रही कि देशवासी मंदिर में शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, गुरूगोखनाथ मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, वंगेश्वर मंदिर, दुर्गामंदिर, शिव परिवार, सिद्धेश्वर मंदिर, श्री राधाकृष्ण मंदिर और ग्यारह रूद्र मंदिर आदि की पूजा कर रहे थे,साथ ही वे उसी प्रकार नर्मदा उद्गम कुण्ड की भी पूजा कर रहे थे। रात आरती के समय वहाँ से उठकर हम पहले जाकर मंदिर में खड़े हो गये,दोनों मंदिरों के कपाटों के बीच की जगह छोड़ कर एक ओर मैं आगे खड़ी हुई, सामने अंजना आगे और हम दोनों के पीछे श्रद्धालु खड़े हुए। समवेत स्वर में आरती के साथ ताल में हम सब तालियाँ बजा रहे थे। उस समय सभी मंदिरों में आरती चल रही थी। जिसका जो इस्टदेव है, वो उसी मंदिर में उनके आगे आरती कर रहा था। आरती सम्पन्न होने पर तंद्रा टूटी, आरती ली और मंदिर से बाहर आयें। गाड़ी में बैठे शरद ने बताया उसने अब तक गुटका नहीं खाया है । सुन कर अच्छा लगा।सुबह कबीर चबूतरा में सुबह 8.45 से 9.30 के बीच पानी में दूधधारा बनती है। इसलिये वो हमें सुबह 8.30 ले जायेगा। सुबह बड़ा सांबर दूध जलेबी का नाश्ता किया। शरद भी आ गया आते ही उसने कहाकि उसने कल से गुटखा नहीं खाया। खूबसूरत रास्ते से होते हुए हम कबीर चबूतरे पहुँचें। महेन्द्र पास मानिक पुरी जी के साथ कुण्ड पर गये। कुण्ड में पानी के बीच एक पतली सी सफेद लकीर बन रही थी। ंउन्होंने बताया कि कुण्ड में सन् 1569 से जल आ रहा है, जो कभी बंद नहीं हुआ। यह स्थान विशाल वृक्षों से घिरा हुआ था। सामने विशाल वट का पेड़ था जिसकेे नीचे कबीर दास जी महापुरूषों के साथ सत्संग करते थे। चबूतरे के पास खड़ी मैं मनोहारी प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रही थी। महेन्द्र जी बोले,’’आप दो राज्यों और तीन जिलों में खड़ी हैं। डिंडोरी और अनूपपुर मध्य प्रदेश(लाल टाइल्स), बिलासपुर छत्तीसगढ(बिना टाइल्स) मैंने देखा मेरा एक पैर मध्य प्रदेश में तो दूसरा छत्तीसगढ़ में और मन में मेरे स्कूल में पढ़े कबीर के दोहे चल रहे थे। जंगल से कपिलधारा की ओर लौटते हुए मन में एक ही प्रश्न उठ रहा था कि ये खूबसूरत जंगल बचा रहेगा? क्योंकि मैंने अपनी देखी जगह, हरियाली की दुहाई देकर, जब भी बच्चों को घूमने के लिये सजैस्ट किया, लौटकर उन्होंने ये ही कहा अब ऐसा नहीं है। मुझे समझ नहीं आता हर साल नये पेड़ लगाने के बाद उनकी देखभाल क्यों नहीं की जाती? क्रमशः
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Tuesday, 28 June 2016
अनोखा मध्य प्रदेश दर्शनीय अमरकंटक नर्मदा उद्गम , कबीर चबूतरा और जंगल Madhya Pradesh Part 12 यात्रा भाग 12
कम उम्र के ड्राइवर शरद ने गाड़ी से उतरते ही जेब से गुटका निकाला, मैंने उसके हाथ से लेकर फेंक दिया और उस पर जूती समेत खड़ी हो गई। अब पर्स से दो चाकलेट निकाल कर उसके हाथ में पकड़ा कर कहा,’’तुम तीन दिन तक हमारे साथ हो, गुटका तंबाकू बिल्कुल नहीं चलेगा। दस दिन तक नहीं खाना, तब तक ये छूट जायेगा, बाद में दसवें दिन जब छोड़ दोगे तो ये चाकलेट खा लेना।’’उसने तंबाकू छोड़ने को हामी भर ली। वह हमारे गाइड का भी काम कर रहा था। मंदिर में प्रवेश करते ही हमारे मन की श्रद्धा और देश के कोने कोन से आये श्रद्धालओं की मन स्थिति और भाव से एक अलग सा भक्तिमय माहौल बना हुआ था। जिसे वर्णन करने की मेरी औकात नहीं है। सबसे पहले हमने नर्मदा कुण्ड के पवित्र जल को माथे से लगाया और मेरी आँखों के आगे यात्रा में बसों, गाड़ियों, दुकानों आदि पर लाल रंग से लिखी, नमामि देवी नर्मदे, माँ नर्मदे, नर्मदे हर हर, नर्मदा आने लगी। ये लोगों का माँ के प्रति प्यार ही तो व्यक्त करने का तरीका है, जो नर्मदा मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होती हुई जाती है, उसके प्रति। कुंड में नहाने की मनाही है लेकिन पास में ही मंदिर परिसर के अन्दर ही तालाब है वहाँ श्रद्धालु नहाते हैं। रुद्राक्ष के पेड़ हैं। मैं तो नर्मदा उद्गम कुण्ड के पास वहीं बैठ गई, पास में ही एक हाथी बना हुआ था सब उसके नीचे से निकल रहे थे। ऐसी मान्यता है कि पापी नहीं निकल पायेगा, वह फंस जायेगा। जो भी निकलता उसके चेहरे की खुशी देखने लायक होती। एक एक करके सौ से ज्यादा लोग निकले पर एक भी पापी नहीं मेरे सामने था। और मैं देखती रही कि देशवासी मंदिर में शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, गुरूगोखनाथ मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, वंगेश्वर मंदिर, दुर्गामंदिर, शिव परिवार, सिद्धेश्वर मंदिर, श्री राधाकृष्ण मंदिर और ग्यारह रूद्र मंदिर आदि की पूजा कर रहे थे,साथ ही वे उसी प्रकार नर्मदा उद्गम कुण्ड की भी पूजा कर रहे थे। रात आरती के समय वहाँ से उठकर हम पहले जाकर मंदिर में खड़े हो गये,दोनों मंदिरों के कपाटों के बीच की जगह छोड़ कर एक ओर मैं आगे खड़ी हुई, सामने अंजना आगे और हम दोनों के पीछे श्रद्धालु खड़े हुए। समवेत स्वर में आरती के साथ ताल में हम सब तालियाँ बजा रहे थे। उस समय सभी मंदिरों में आरती चल रही थी। जिसका जो इस्टदेव है, वो उसी मंदिर में उनके आगे आरती कर रहा था। आरती सम्पन्न होने पर तंद्रा टूटी, आरती ली और मंदिर से बाहर आयें। गाड़ी में बैठे शरद ने बताया उसने अब तक गुटका नहीं खाया है । सुन कर अच्छा लगा।सुबह कबीर चबूतरा में सुबह 8.45 से 9.30 के बीच पानी में दूधधारा बनती है। इसलिये वो हमें सुबह 8.30 ले जायेगा। सुबह बड़ा सांबर दूध जलेबी का नाश्ता किया। शरद भी आ गया आते ही उसने कहाकि उसने कल से गुटखा नहीं खाया। खूबसूरत रास्ते से होते हुए हम कबीर चबूतरे पहुँचें। महेन्द्र पास मानिक पुरी जी के साथ कुण्ड पर गये। कुण्ड में पानी के बीच एक पतली सी सफेद लकीर बन रही थी। ंउन्होंने बताया कि कुण्ड में सन् 1569 से जल आ रहा है, जो कभी बंद नहीं हुआ। यह स्थान विशाल वृक्षों से घिरा हुआ था। सामने विशाल वट का पेड़ था जिसकेे नीचे कबीर दास जी महापुरूषों के साथ सत्संग करते थे। चबूतरे के पास खड़ी मैं मनोहारी प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार रही थी। महेन्द्र जी बोले,’’आप दो राज्यों और तीन जिलों में खड़ी हैं। डिंडोरी और अनूपपुर मध्य प्रदेश(लाल टाइल्स), बिलासपुर छत्तीसगढ(बिना टाइल्स) मैंने देखा मेरा एक पैर मध्य प्रदेश में तो दूसरा छत्तीसगढ़ में और मन में मेरे स्कूल में पढ़े कबीर के दोहे चल रहे थे। जंगल से कपिलधारा की ओर लौटते हुए मन में एक ही प्रश्न उठ रहा था कि ये खूबसूरत जंगल बचा रहेगा? क्योंकि मैंने अपनी देखी जगह, हरियाली की दुहाई देकर, जब भी बच्चों को घूमने के लिये सजैस्ट किया, लौटकर उन्होंने ये ही कहा अब ऐसा नहीं है। मुझे समझ नहीं आता हर साल नये पेड़ लगाने के बाद उनकी देखभाल क्यों नहीं की जाती? क्रमशः
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