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Saturday, 18 June 2016

तीन लंगड़ियाँ एक बैसाखी



मेरे  सेक्टर से पहले जो चोराहा है न, वहाँ लाल बत्ती पर गाड़ी रूकते ही, एक बड़ी प्यारी सी पंद्रह सोलह साल की लड़की, जिसने जेब वाली कमीज़, पैरों तक का घाघरा पहना हुआ था, बैसाखी पर चलती आई। उसके मोहने से चेहरे पर मैल थी और रूखे बाल थे। गाड़ी के शीशे को वह खटखटाने लगी और साथ अपने प्रोफैशन के अनुसार दयनीय मुहं बनाने लगी। हांलाकि उसे ऐसा करने की जरूरत नहीं थी। उस अपंग बच्ची को देख कर तो वैसे ही कष्ट हो रहा था। उसने हाथ फैलाया, साथ ही मैंने विंडो का शीशा हटाया। पर्स में हाथ डालकर मेरे हाथ में जो भी नोट आया, मैंने उसकी हथेली पर रख दिया। उसने दोनों हाथ वैसे ही फैलाये रक्खे, उसके चेहरे के भाव तक नहीं बदले, मानों रूपये उसके लिये मात्र कागज के टुकड़े हों और मैं थी कि बैग में जो रूपये थे उसके फैले हाथों में रखती गई। रुपए खत्म होने पर, ढूंढ कर सिक्के ही डाल रही थी साथ ही उसके चेहरे को निहार रही थी , जो इतने पैसे मिलने पर भी निर्वीकार रहा। अंकुर बोला ,’’माँ, ए. टी. म. कार्ड ही दे दो न।’’ पर्स भी खाली हो गया, साथ ही सिंगनल भी ग्रीन हो गया। अब मैं रास्ते भर उस लड़की के बारे में सोचती रही। कल्पना में उसे देखती रही कि उसके बैसाखी नहीं है। उसका मुंह धुला हुआ है। बाल संवरे हुए हैं। साफ सुथरी कितनी सुन्दर लगेगी! काश ऐसा हो। अब मुझे भगवान जी पर गुस्सा आने लगा। उसका रूप चाहे कम कर देते, मसलन नाक चौड़ी कर देते, रंग काला कर देते पर टाँगे साबुत लगा देते तो उनको क्या फर्क पड़ जाता!! लड़की तो लंगड़ी न होती न। चलो, मैं जिस जरुरी काम के लिये गई थी, मेरा वह अटका हुआ काम  पूरा हो गया। इस खुशी में, मैं लौटते हुए शाम को, घर आने से पहले मंदिर में भगवान का धन्यवाद करने गई। मंदिर के बाहर भण्डारा वितरण हो रहा था। पूजा करके बाहर आई तो क्या देखती हूँ! सुबह वाली लंगड़ी लगभग दौड़ती हुई भण्डारा लेने आ रही है। उसके साथ उसी की तरह ड्रेसअप(पैरों तक घाघरा पहने) दो लड़कियाँ और हैं। लेकिन अब उनमें से सबसे छोटी लड़की ने बगल में छाते की तरह, बैसाखी दबा रक्खी थी। भण्डारा न खत्म हो जाये इसलिये तीनों इतनी तेज चली आ रहीं थी, मानो मैराथन में भाग ले रहीं होंं। उन्हें चलता देख कर मुझे खुशी  हुई। साथ ही दुख और क्षोभ भी हुआ। ऐसा क्यों! 


12 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

हैरानी हुई इन्सान की भावनाओं से खेलना

Unknown said...

मन हवस तन को गुनाहगार बना देती है
भूखों इंसान को गद्दार बना देती है
:-अज्ञात

Unknown said...

मन हवस तन को गुनाहगार बना देती है
भूखों इंसान को गद्दार बना देती है
:-अज्ञात

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Sangeeta said...

Ye ab aam baat ho gai hai. Berojgari aur bhookh insaan ke vivek ko bhi har leti hai aksar. .

Neelam Bhagi said...

लाजवाब कमेंट

Kkataria said...

चलो भगवान ने आप की सुन ली। कलयुग में भिखारियों पर इतना भाव भी सही नहीं।

Kkataria said...

इतना दया भाव

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

JITENDRA SACHDEVA said...

At least we should know the inside story of that little girl & try to overcome her from that situation

yosom.rajnesh@gmail.com said...

सत्य कहा आपने। अवश्य प्रसन्नता हुई होगी कि वह लड़की लंगडी नहीं थी। पर यह भी आश्चर्य और दुख की बात है। कि बड़े। और शरीर से समर्थ लोग। अपंगता का स्वांग करके। भीख मांगने का कार्य कर रहे हैं। अब तो छोटे मासूम बच्चों को हाथ फैलाने पर विवश कर रहे हैं बहुत दुख होता है।