इस लेख को लिखने
का मकसद ये है कि आप मेरे जैसी गलती न करें। नवंबर 2013 से मैं तकरीबन हर महीने यात्रा करती हूँ और लिखती हूँ। जिसमें
मैंने दिल्ली से मुंबई और मुंबई से दिल्ली यात्रा को फिलहाल नहीं लिखने का सोचा
है। पर इस यात्रा के एक भाग को लिखे बिना मेरा मन नहीं मान रहा है। अगस्त क्रांति
राजधानी से मैं ज्यादातर सफ़र करती हूँ। नौएडा से निजामुद्दीन स्टेशन पास है,
मुम्बई में यह गाड़ी दो मिनट के लिये अंधेरी
रूकती है, वहाँ से लोखण्डवाला पास
है। हमेशा मेरी लोअर विंडो सीट होती है। दिल्ली से मथुरा तक सीटें खाली होती हैं।
मैं तकिया लगाकर लेट जाती हूँ। मथुरा आते
ही उठ कर बैठ जाती हूँ और अपनी सीट पर सिमट जाती हूँ। ऐसे ही मुंबई में अंधेरी से
बोरीवली में या सूरत से गाड़ी भर जाती है। लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। इस बार मेरा
सीट नम्बर 68, ए.सी.3 में था। अंधेरी में मैं अपनी सीट पर जाकर खड़ी
हुई देखा, एक अत्यंत सुन्दरी,
तकिया लगाये, उस पर तह किया कंबल, चादर और एक चादर ओढ़े, इयरफोन कान में ठूसे हुए लेटी थी, मोबाइल चार्ज हो रहा था, वह उस पर लगी हुई थी, देखकर ऐसा लगा जैसे वह कोई ऑफिस साथ में लेकर चल रही हो।
मुझे देखकर जब वह नहीं उठी, तो लोअर विंडो
सीट नम्बर 65 की बुर्जुग महिला
जो सुकड़ी हुई बैठी थी क्योंकि बाकि कि दो सीटों पर सुन्दरी की बेटी लेटी थी। थोड़ी सी जगह में
मैं उसके पैरों के पास बैठ गई। गोपीनाथ टाॅवल दे गया, पानी की बोतल मिली, जलपान की ट्रे, सब मैं गोदी में
रख कर खाती पीती रही। इतने में टी.टी. आ गया। तो पता चला कि उनकी कुल साढ़े तीन
टिकट, 66, 67 और 69 यानि तीन सीट नम्बर हैं। तीन ही रात को सोने को बर्थ
मिलेंगी, जिसके पैरों पर मैं बैठी थी, वो हाफ टिकट पर थी यानि माँ की गोद। कुल तीन सुंदरियां और एक बारह साल की बेबी थी। उनमें से एक सुन्दरी साइड लोअर बर्थ 71 पर लेटी थी और एक
सुन्दरी अपर 67 पर लेटी थी और
लेपटाॅप चार्ज हो रहा था, हाफ टिकट बेबी की मां तो मेरी सीट पर पसरी ही थी। टी.टी. के जाते ही उनका वार्तालाप लेटे लेटे चालू कि
सीधे जम्मू जाना है या रात दिल्ली में रूकना है, तो किसके यहाँ? डिनर तक वे किसी नतीजे पर नहीं पहुँची। डिनर के बाद सब सीट वाले अपनी सीटों पर
आकर खड़े हो गये, तब सुन्दरियों ने
तुरंत मिडल बर्थ खोल कर बिस्तर लगा कर, लाइट ऑफ कर दी। मेरे ऊपर की बर्थ पर माँ बेटी सो गई। सामने 66 और 67 पर दोनो सुन्दरियाँ सो गई। अचानक पानी की बौछार से मेरी नींद खुल गई। मैं
घबराकर उठी कि खिड़की का शीशा कैसे टूट गया! या सुन्दरी की छटी क्लास में पढ़ने
वाली बेबी ने सू सू तो नहीं कर दिया! देखा तो, ऊपर ग्रिल पर गीले कपड़े फैले हुए थे। उसमें से पानी की
बूंदे टपक कर टेबल पर गिर कर आस पास बौछार कर रहीं थीं। मैं चिल्लाई,’’ ये गीले कपड़े किसने फैलाये?’’67 सीट की सुन्दरी बोली,’’आपकी प्राब्लम क्या है? और किसी को तो परेशानी नहीं है।’’ मैं बोली,’’ मुझे है, मैं इतनी यात्रा करती हूँ ,पर कभी राजधानी में धोबी घाट और कपड़े सूखते नहीं देखे।
नींद खराब कर दी , कल का दिन खराब
हो गया, हटाओ इसे।’’ मैंने देखा पानी की बौछार से बचने के लिए सामने 65 वाली बुजुर्ग महिला ने उठ कर अपने पैर खिड़की की ओर करके उस
पर कंबल डाल लिया और सिर दूसरी ओर करके लेट गई। सुन्दरियाँ मुझसे भी यही उम्मीद कर
रहीं थी। कपड़े हटा तो उन्होंने लिये, पर उन्हें टोका
गया, इसकी सजा उन्होंने मुझे यात्रा खत्म होने तक दी। उन्होंने सुबह 69 बर्थ मेरे ऊपर की मिडिल बर्थ नहीं हटाई।
मैंने अधलेटी ही बेड टी पी। टेढ़ी होकर नाश्ता किया। मथुरा में साइड सीट 71
खाली हुई, मैं तुरंत उस पर बैठ गई। मेरे उठते ही उन्होंने मिडिल बर्थ हटा दी। अब वे
बार बार मुझे सुना कर, आपस में अरे! तुम
पहली बार राजधानी में सफर कर रही हो, मैं तो रहती ही राजधानी में आदि बोलती रहीं। मेरे मोबाइल में 1% चार्जिंग थी पर दोनों प्वाइंट उन्होंने दखल कर रक्खे थे।
स्टेशन से काफी पहले मैं गेट पर खड़ी हो गई। कर्मचारी गोपीनाथ ने कहा,’’मैम आपकाआखिरी स्टेशन है। अभी काफी देर हैं। आप आराम से सीट पर बैठती न’’
मैंने उन्हें कपड़े सुखाने की घटना सुनाई। वे
बोले,’’ मुझे बुला लेती।’’
मैं बोली,’’मैं तो रात से पछता रहीं हूँ कि तस्वीर क्यों नहीं खींची,
इस अविस्मरणीय घटना की। शायद गहरी नींद के
कारण।
2 comments:
ghatiya log with no sanskar first generation money holders
हार्दिक आभार
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