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Monday, 22 May 2017

द वैनेशियन मकाओ The Vanacian Macao मकाओ भाग 5 नीलम भागी










द वैनेशियन मकाओ                                  मकाओ   भाग 5  नीलम भागी
गीता के उठने से पहले हम तैयार हो गये थे। रूम से बाहर उसके लिये मकाओ था। उठते ही बोली,’’मकाओ चलो।’’उसे जल्दी से तैयार किया। कॉनराड के अंदर से ही हम वैनेशियन की ओर चल पड़े। इवेंट समाप्त हो गया था। राजीव हमें बाहर ही मिल गये थे। बाहर रात थी। हम अन्दर गये। अरे!!! ये क्या !ऐसा लग रहा था जैसे सुबह होने वाली हो । मैं तो विस्मय विमुग्ध सी कुदरत को मात देती हुई, इस नकली छत को देख रही हूँ। पता नहीं कितनी देर तक उसे निहारती रही। मेरी तंद्रा तब टूटी ,जब नीचे बहने वाली नहर से गंडोला पास से गुजरा। मैंने नीचे नहर में झांका, उसे एक लड़की खेते हुए गा रही थी। उस पर सवार जोड़ा भी उसके स्वर में स्वर मिला रहा था। मुझे लगा मैं किसी स्वप्न लोक में आ गई हूँ। दुनियाँ का सबसे बड़ा कैसीनो भी इसमें है। यहाँ भी सर्दी थी। अब हमने शॉपिंग शुरू कर दी। जब तक हम बुरी तरह से थक नहीं गये। यहाँ घूमते ही रहे। डिनर के लिये हम इम्पीरियल हाउस डिम सम में बैठे। इतने बड़े मैन्यू में मेरे लिये वैज खोजना रूई में सूई ढूंढने जैसा था। मुझे पाँच वैज डिश मिली। तीन मैंने यहाँ नहीं खाई थीं। वो आर्डर की। वॉक फ्राइड नूडल विद सुपीरियर सोया सॉस, क्रिस्पी वैजिटेबल स्प्रिंग रोल, स्टिर फ्राइड सीज़नल वैजिटेबल। उत्तकर्षिनी राजीव को नॉनवेज की बहुत सारी वैराइटी में से ऑर्डर करना था उन्होंने किया। जब तक हमारा ऑर्डर आया हम जैस्मिन चाय पीते रहे। टर्निप केक और चिल्ड स्वीटैंड मैंगो सूप से हमने डिनर का समापन किया। रात 12.50 पर 813 हांग कांग डालर, हमने बिल पे किया। उन्होंने हमें कहा कि हमारे यहाँ जिसका बिल 500 हांगकांग डॉलर से ज्यादा होता है। उसे कैसीनों में कम्प्लीमैंट्री हम भेजते हैं। इतना सुनते ही उत्तकर्षिनी राजीव मुझसे बोले,’’ मम्मी आप लक्की हो, दाव लगा कर आओ, जरूर जीतोगी।’’ मैंने मना कर दिया। दोनों ने जिद की तब भी मैं नहीं गई। कंप्लीमैंट्री कैसीनो गिफ्ट , हमने छोड़ दिया। अब हम पैदल पैदल अंदर से ही कॉनरॉड चल पड़ें। हम रात दो बजे अपने रूम में पहुँचे। कारण  बीच बीच में रास्ता बड़ी विनम्रता से बदल दिया जाता था। इस पदयात्रा में ,मेरे सभी प्रश्नों का उत्तर मिल गया कि जहाँ इतने पर्यटक हर समय नज़र आते हों, वहाँ साफ सफाई कब होती होगी। सफाई भी ऐसी कि सब कुछ नया लगता है। जो उस समय आधी रात को हो रही थी। रूम में पहुँचते ही हम सो गयें। देर से सोकर उठे। ब्रेकफास्ट के लिये गये। जल्दी जल्दी पैकिंग की। ऑन लाइन फैरी की टिकट बुक की। कार में मैं आगे की सीट पर बैठी। फैरी टर्मिनल तक मैं मकाओ की सुंदरता , हरियाली को ऑखों में समेटे लौट रही हूँ। टर्मिनल में पहुँचते ही  हमारा सामान चैकइन में चला गया। हमारे स्टिकर लगा दिये गये। फैरी में सवार हुए। धूप खिली हुई थी। दर्शनीय मकाओ पीछे छूटता जा रहा था। रंग बदलते हुए समुद्र में हम जा रहे थे। जिधर देखो पानी और कभी कभी  कोई फैरी क्रास कर जाती। सामने टी.वी. चल रहा था पर मेरी आँखे विंडो पर टिकी सागर को निहार रहीं थीं। सामने हांगकांग एयरर्पोट दिखने लगा। फेैरी से हम उतरे। हमारी सिक्योरिटी जाँच आदि हुई। बोर्डिंग पास मिला। अब हम अपने घर अपने देश लौट रहे थे, जिसकी खुशी अनोखी थी।

2 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

में कभी मकाओं नहीं देख सकूंगी परन्तु आपने सैर करा दी

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad