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Wednesday, 29 November 2017

शिव जी की 76 फुट ऊँची दर्शनीय प्रतिमा जबलपुरSivji ke 76 ft unchi darshaniye pratima Jabalpur yatra 5 नीलम भागी

शिव जी की 76 फुट ऊँची दर्शनीय प्रतिमा जबलपुर यात्रा भाग 5
                                               नीलम भागी
सुबह नींद खुली, मैंने और डॉ. शोभा ने सोच लिया था कि बाथरूम जब खाली होगा, तब बिस्तर छोड़ेंगे। हम मोबाइल में लग गई। जब हम बाथरूम से निकली, तो महिलाएं जा चुकी थीं। हम भी जल्दी जल्दी तैयार होकर बाहर खड़े एक ऑटो से अधिवेशन स्थल पर पहुँचे। उसी ऑटो वाले मुकेश से हमने 400रू में छूटा हुआ जबलपुर घूमना तय कर लिया। आज लंच टाइम में पास की ही कोई जगह दिखाने को कहा। क्योंकि तीन बजे से शोभा यात्रा थी। उसका मोबाइल नम्बर ले लिया था। नाश्ता उठने वाला था। स्वादिष्ट पकौड़े, पतली पतली सुनहरी जलेबियाँ, पोहा नमकीन और न जाने क्या क्या था। नाश्ता करके साहित्य विर्मश में बैठे। लंच टाइम से थोड़ा पहले मुकेश को फोन कर दिया। उसने कहा कि वह आधे घण्टे में पहुँच जायेगा। नाश्ता बहुत हैवी कर लिया था इसलिये लंच मिस कर दिया। मुकेश के आते ही हम कचनार सिटी स्थित शिव मंदिर गए। चप्पल जमा करवा कर, टोकन सम्भाला। अन्दर 76 फुट ऊँची शिवजी की मूर्ति थी। पास ही नंदी विराजमान थे। हमने मुकेश को फोन कर दिया कि वो हमारा इंतजार न करे। अधिवेशन स्थल मंदिर के पास था इसलिये हमने पैदल जाने का मन बना लिया। भगवान जी तक जाने के लिये दोनो ओर कार्पेट बिछा था। मैं बीच में खड़ी होकर पूजा करना चाहती थी पर मेरे पैर जल रहे थे। हमें यहाँ बहुत अच्छा लग रहा था। हम यहाँ बरामदे में बैठ गये। किसी ने आकर पंखा चला दिया। हम निशब्द भगवान आशुतोष को निहारते रहे। हरियाली भी बहुत अच्छी से मेनटेन की हुई थी। खुले आकाश के नीचे भोले सब को आकर्षित कर रहे थे। जो भी आता पेड़ों की छाँव में, हरी हरी घास पर बैठ जाता और प्रतिमा को देखता रहता। मैंने डॉ. शोभा से कहा कि भगवान के चेहरे की भाव भंगिमा.......मेरी बात को पूरा किया एक स्थानीय सज्जन ने जो अपने मेहमानों को दर्शन कराने लाये थे बोले,’’जिस शिल्पकार के. श्रीधर ने इसे बनाया हैं, उसका भी यही कहना है कि उन्होंने अब तक 12 प्रतिमाएं बनाई हैं पर इस प्रतिमा की बात ही अलग है। उन्होंने बताया कि बिल्डर अरूण कुमार तिवारी 1996 में बेंगलूर में एक बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन देखने गये। वहाँ उन्होने 41 फीट की भोले की प्रतिमा देखी। जिसे वे मन में बसा कर लौटे। सन् 2000 में जब उन्होने कचनार सिटी की शुरूवात की तो सबसे पहले भोले के लिये भूखंड रक्खा। वे बैंगलूर गये। बड़ी मुश्किल से मूर्तिकार का पता लगाया, जो वहाँ से 300 किमी. की दूरी पर शिमोगा में रहता था। उसने भी नार्थ में आने से साफ मना कर दिया। काफी मिन्नतों के बाद, वह अपनी शर्तों पर आने को राजी हुआ। अरूण जी ने के. श्रीधर की सभी बाते मानी क्योंकि उन्होंने तो जबलपुर के गौरव को बढ़ाने में अपना योगदान देना था। शिल्पकार अपने 15 मजदूरों को लेकर आ गये और 2003 में निर्माण शुरू कर दिया। तीन वर्ष यानि 2006 में प्रतिमा तैयार हो गई। हम सुन रहे थे और ये अति सुन्दर भव्य प्रतिमा उनके शहर में होने से, उनके चेहरे से गर्व टपक रहा था ये महसूस भी कर रहे थे। इस परिसर में श्रीधर ने अन्य बेहतरीन प्रतिमाएं भी बनाई हैं। सुबह शाम यहाँ आरती होती है। महाशिवरात्री और मकरसंक्राति को यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है। अब हम यहाँ से पैदल अधिवेशन स्थल की ओर चल पड़े। जब से यहाँ से लौटी हूँ मेरे मन में शिवजी का यही रूप छा गया है।   क्रमशः     



Saturday, 25 November 2017

सड़क का सम्मान, ट्री गार्ड बना कूडेदान स्वच्छ भारत sadak ka samman Tree Gaurd bana kurey dan नीलम भागी

 सड़क का सम्मान, ट्री गार्ड बना कूडेदान
                                       नीलम भागी
लोगों को तरह तरह के शौक होते हैं। मसलन पड़ोसियों से लड़ना, नौकरानी से इश्क लड़ाना, आधी रात को गाड़ी में कानफोड़ू म्यूजिक बजाते हुए घर लौटना आदि। ये शौक कब आदत में बदल जाते हैं, पता ही नहीं चलता। ऐसे ही मेरा शौक है, सड़क पर पैदल चलना। ज्यादातर मैं चलते चलते कुछ न कुछ खाती भी रहती हूँ। खाने का तरीका भी मेरा अपने जैसे लोगों की ही तरह हैं। अब जैसे मैं चलते हुए मूंगफली खा रहीं हूँ, तो मूंगफली की गिरी मैं अपने मुंह में डालती जाती हूँ और छिलका सड़क पर फैंकती रहती हूँ। ऐसा ही मैं चिप्स, बिस्किट, चॉकलेट, आइस्क्रीम आदि के साथ करती हूँ।  इन सबके रैपर मैं सड़क पर ही फैंकती हूँ। केला खाते हुए, मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखती हूँ कि छिलका बीच सड़क पर न फैंक कर, फुटपाथ पर ही फैंकू। इसके पीछे मेरी एक थ्यौरी है, वो ये है कि  सड़क पर भीड़ होती है। यदि छिलके से कोई फिसला तो गिरने से किसी गाड़ी से टकरा सकता है। जिससे कोई दुर्घटना हो सकती है, लेकिन फुटपाथ पर फिसलने से वह उठ कर, हाथों से कपड़े झाड़ कर चल देगा। साथ ही मेरे जैसे लोग उसे नसीहत दे देंगें,’’भाई साहब देख कर चला करो। भगवान ने आंखे देखने के लिए दी हैं।’’
  हुआ यूं कि मैं अं उत्कर्षिनी के साथ टहलती हुई सड़क पर जा रही थी। फुटपाथ पर बढ़िया संतरों से लदा ठेला देख, मैंने संतरे खरीद लिए।  बैग से एक संतरा निकाल कर, मैंने उत्कर्षिनी को दिया। उसने नहीं लिया, बदले में थैंक्यू कह कर बोली,’’ उसे सड़क पर इस तरह खाते हुए, चलने की आदत नहीं है।’’ पर मुझे तो आदत है न और एक कहावत भी है कि आदत तो चिता के साथ ही जाती है। इसलिए मैं अपनी आदत के अनुसार एक संतरे को छिलती जा रही थी और साथ ही उसके छिलके चारों दिशाओं में फैंकती जा रही थी। मैंने उस संतरे की पहली फली को मुँह में डाल कर, उसके स्वाद का आनन्द लिया और बीजों को सड़क पर थू थू कर दिया। मेरी इस हरकत को देख कर, अं उत्कर्धि्नी उत्कर्षि उत्कर्षिनी को उपदेश देने का दौरा पड़ गया। वह बोली,’’तुम जैसे लोगों के कारण सड़क पर इतनी गंदगी रहती है। अपना घर साफ और कचरा सड़क पर। सड़क को तो डस्टबिन बना दिया है। सड़क पर खाना बुरा नहीं है पर रैपर, छिलके आदि तो कूड़ेदान में फैंकने चाहिए न।’’ अब मैं उसके भाषण से कनविंस भी होने लगी और बोर भी। पर मैं कहां हार मानने वाली!!  मैंने उसे कहा कि इतनी गंदगी क्या मेरे द्वारा ही फैली है? और सामने ट्री गार्ड दिखाया जिसको लोगो ने डस्टबिन की तरह इस्तेमाल किया था। वह बोली ये वो लोग हैं, जो सड़क पर कूड़ा नहीं फैलाना चाहते लेकिन आस पास कूड़ेदान न होने से उन्होंने यही कूड़ेदान बना दिया है। अब उसे प्रशासन पर भी  गुस्सा आने लगा क्योंकि जगह जगह कूड़ेदान न होने से लोगों ने सड़क पर कचरा न फैला कर सड़क का तो सम्मान किया, पर ट्री गार्ड को कूड़ेदान बना दिया।


Thursday, 23 November 2017

भेड़ाघाट का शि ल्प बाजार, चौंसठ योगिनी मंदिर, धुंआ धार जबलपुर Jabalpur Yatra 4Bheda Ghat ka shilp bazar, chaunsth yogini Mandir,Dhunaa Dhar जबलपुर यात्रा भाग 4 नीलम भागी

भेड़ाघाट का शि ल्प बाजार, चौंसठ योगिनी मंदिर, धुंआ धार जबलपुर यात्रा भाग 4
                                                      नीलम भागी
दो बच्चे लम्हेटाघाट से हमारी बस में चढ़े। कुछ दूरी पर उतर गये। बंदर कूदनी पर हमें आवाज आई। उपर देखा वही बच्चे जो बस में चढ़ेथे। ऊँची चट्टान पर वह नर्मदा जी में कूदने को तैयार थे। मैं उन्हें नहीं कूदने का इशारा कर रही थी और नाविक से भी कह रही थी कि प्लीज  आप उन बच्चों को कूदने से मना करे। जवाब में वह बोला,’’ डूबने वाले को चुल्लू भर पानी ही बहुत है, तैराक के लिये एक हजार रू. भी कम है। मैंने पूछा,’’मतलब।’’उसने समझाया कि तैराक संसार में कहीं भी तैर सकता है। इन बच्चों को इतनी़ ऊँचाई से कूद कर तैरने की आदत है। मैंने कहा कि मुझे बच्चों को इतनी ऊँचाई से कूदता देखने की आदत नहीं है। पर वह बच्चा कूदा, छोटे से विडियो में बच्चे का कूदना और उन जबरदस्ती विडियो में घूसे सज्जन की अदायें दोनो हैं। एक ही 3.33 मिनट का विडियों, उनकी सूरत के बिना मुझसे बन गया। किनारे पर लगने से पहले ही नर्मदा जी में लोगो ने फूल मालायें आदि चढ़ा कर उन्हें प्रदूषित करने का अभियान चला रक्खा था। शौचालय यहां भी बेहद गंदे थे। नाव से उतरते ही अब सीढ़ियों के दोनो ओर शिल्पियों की कलाकृतियों को देखना शुरू किया। सबसे पहले मेरी नज़र सफेद पत्थर के इयरिंग पर पड़ी जिसमें सुनहरे मोती पिरोये थे। पहने हुए इयरिंग्स को उतार कर, मैंने पत्थर के पहन लिये और उससे रेट पूछा। उसने 10 रू. बताया। सुनते ही मैं हैरानी से उसे देखने लगी क्योंकि इतने कम दाम की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मुझे चुप देखकर वह बोला,’’50 रू. के 6’’ मैंने सभी ले लिये। डॉ. शोभा ने छोटे छोटे गणपति ले लिये, जितने हम उठा सकते थे। बाकि नायाब शिल्पकला देखने से तो मन ही नहीं भर रहा था। पास में ही ऊँची पहाडी पर ़चौंसठ योगिनी का मंदिर है। करीब 160 सीढ़ी चढ़कर यहाँ पहुँचें। लोगों का मानना है यह महर्षि भृगु की जन्मस्थली है। इसे दसवीं शताब्दी में कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने माँ दुर्गा के मंदिर  में स्थापित किया था। यहाँ मंदिर की गोल चारदीवारी के अंदर की ओर चौंसठ योगिनियों बहनों की जो तपस्विनियां थीं, उनकी विभिन्न मुद्राओं को पत्थर में तराश कर मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं।  चारदीवारी के दक्षिण में मंदिर का निर्माण किया गया है। सबसे पीछे के कक्ष में शिव पार्वती जी स्थापित हैं सामने चबूतरे पर शिवलिंग की स्थापना की गई है। जिनकी वहाँ भक्तजन पूजा करते हैं। धुआंधार जल प्रपात बहुत ही सुन्दर है। ऊँचाई से नर्मदा जी गिरती हैं, जिससे पानी के कण धुंआ की तरह लगते हैं। इसलिये इसका नाम धुंआधार पड़ा है। इस बार वर्षा कम होने से स्थानीय लोगों का कहना है कि धुंआ कम बन रहा था। मुझे तो इतना धुंआ ही विस्मय विमुग्ध कर रहा था। लौटने पर भी भेड़ा घाट की सुन्दरता, संगमरमर की चट्ानों का सौंदर्य मुझ पर छाया रहा। जब लौटे तो अधिवेशन स्थल पर चाय नाश्ता लगा था। सबसे पहले मेरी नज़र मुरमुरे पर पड़ी, मैंने थोड़ी चखी, वो तो बहुत कुरकुरी और उस पर गज़ब का मसाला लगा था। उसे वहाँ पर लइया बोल रहे थे। मुझे मीठी चाय के साथ लइया बहुत अच्छी लगी। इसके बाद प्रांतीय बैठक हुई। फिर कवि सम्मेलन शुरू हो गया। डिनर करके हम रात दस बजे डेरे पर चले गये। कवि सम्मेलन काफी रात तक चला क्योंकि हमारे अपार्टमेंट की चार महिलायें कविता पाठ करके ही आईं थीं। मैं तो लेटते ही सो गई थी।   क्रमशः https://youtu.be/jawrlIeEgAY          






Thursday, 9 November 2017

नज़र के सामने ये क्या हुआ!! Nazar k samne ye Kya hua!! नीलम भागी



प्रभावशाली व्यक्तित्व के एक युवक ने मेरी दुकान में प्रवेश किया। वह मोबाइल पर किसी से पूछ रहा था, ‘‘पाँच रूपये के सिक्कों की कितनी थैलियाँ? दो रूपये के सिक्कों की कितनी? और एक रूपये के सिक्कों की कितनी थैलियां ?
रेज़गारी सुनते ही मेरा रेज़गारी के प्रति मोह बुरी तरह जाग जाता है। मैं उतावली होकर उसका मुंह ताकने लगी और इंतजार करने लगी कि इसका फोन बंद हो। जैसे ही फोन बंद हुआ, मैंने पूछा,’’ आप बैंक में काम करते हैं ? उसने उत्तर प्रश्न में दिया,’’ क्यों, कोई काम है? ‘‘मैंने कहा,’’ रेज़गारी चाहिए ? वह बोला, ‘‘पचास हजार रूपये की दे दूँ’’? इतनी रेज़गारी सुनकर मैं बहुत खुश हो गई। पर मेरे पास पचास हजार नहीं थे। मैंने कहा, ‘‘मेरे पास इतने रूपए नहीं हैं। वह मुझे हिकारत से देखकर दुकान से बाहर चला गया। मानो कह रहा हो बिजनेस कर रहे हैं, गल्ले में पचास हजार रूपये भी नहीं हैं।
फिर एक दम पलटा और आकर बोला, ‘‘ कोई बात नहीं जितने की भी चाहिए,  अमुक बैंक में रूपया लेकर फटाफट पहुँचों।’’मैंने कहा कि मेरे पास दस, बीस हजार रुपए ही है। उसने जवाब दिया,"कोई बात नहीं।"
 दस हजार रूपए लेकर, मैं अमुक बैंक के पास पहुँचने ही वाली थी। वह युवक पीछे से मोटर साइकिल पर आया और बोला, ‘‘आ गई आप?’’ और फोन पर किसी से कहने लगा, ‘‘पचास हजार के सिक्के बाहर ही ले आओ, लाइन पर रहते हुए मुझसे पूछने लगा, मैम आपको कितने की चाहिए?’’ मैं झट से बोली,’’ दस हजार की, पाँच के सिक्के ही देना’’ उसने फोन पर निर्देश दिया,’’ पाँच के सिक्कों की थैली पहले बाहर ले आओ। लेडी हैं, कहाँ परेशान होंगी। महिलाओं के प्रति उसके ऐसे विचार सुनकर मैं बहुत प्रभावित हुई। ‘‘लाओ मैडम दस हजार’’ वह बोला। मैंने कहा,’’ सिक्के।’’  ’’वो आ रहे हैं न’’ बैंक की तरफ इशारा करके वह बोला। बैंक से एक आदमी थैला लेकर निकल रहा था। थैले वाले की ओर इशारा करके, युवक बोला,’’ जाइए, ले लीजिए।’’ मैं खुशी से उसे दस हजार देकर, तेज कदमों से थैला लेने को लपकी। जैसे ही उसका थैला छूआ। थैले वाला बोला,’’ अरे ........! क्या कर रही हैं आप? मैने पीछे मुड़कर देखा। सभ्य मोटर साइकिल सवार युवक नोट लेकर गायब था। थैले वाला आदमी कथा बाँचने लगा, ‘‘बैंक आ रहा था, देशी टमाटर का ठेला जा रहा था। सस्ते मिल रहे थे, दो किलो ले लिए थे। देशी टमाटर से सब्जी बहुत स्वाद बनती है। हाइब्रिड टमाटर का रंगरूप तो सुंदर, पर सब्ज़ी में वो जाय़का भला कहाँ?’’ वो देसी टमाटर के फायदो पर निबंध सुनाने लगा और कोई समय होता तो मैं उससे सुने देसी टमाटरों के फायदों पर थीसिस लिख सकती थी, पर मेरी उड़ी हुई रंगत देखकर, उसने एक दम पूछा, ‘‘बहिन जी क्या हुआ?  ऐसे मौके पर जैसे वेदपाठी के मुँह से श्लोक निकलता है , हमेशा की तरह मेरे मुँह से सड़क साहित्य यानि ट्रक के पीछे पर लिखी चेतावनी निकली ‘नजर हटी, दुर्घटना घटी’।

Sunday, 5 November 2017

शराबी बहुत खुले दिल के होते हैं !!! Sharabi bahut khuley dil ke hote hein! नीलम भागी


मेरी दुकान के बराबर में अंग्रेजी शराब की दुकान खुली है। जिसे सब इंग्लिश वाइन शॉप कहते हैं। इस दुकान ने खुलते ही मेरे दिमाग में कई प्रश्न खड़े किये हैं। मसलन बिना किसी महूर्त के, बिना किसी सजावट और प्रचार के, दुकान खुलते ही ग्राहकों को अपनी ओर खींचने लगी है!! व्यापार के बारे में एक कहावत बचपन से सुनती आ रही हूं' पहले साल चट्टी(यानी पैसा लगाओ, वैरायटी बढ़ाओ ) ,दूसरे साल हट्टी(दुकान जमती है), तीसरे साल खट्टी(अच्छे से कमाई)' यहां तो खुलते ही खट्टी(कमाई) शुरू हो गई। जैसे जैसे दुकान पुरानी होती जा रही है। वैसे वैसे मेरे दिमाग के खड़े प्रश्न बैठते जा रहें हैं। उन प्रश्नों का ज़िक्र फिर कभी। मेरे घर के सदस्यों ने वाइन पीना तो दूर, यहाँ तो कभी किसी ने  बोतल छुई भी नहीं है। लेकिन अब देखने से ही, मैं बात बात पर जो उदाहरण देती हूँ, उसका संबंध वाइन शॉप से ही होता है। जैसे मैं घर में तीन सौ रूपये का दूध ले कर गई। किसी ने कह दिया कि दूध तो अभी रखा था। मेरा दिमाग गर्म होने लगता है। मैं चिल्लाने लगती हूँ कि तुम्हारी उम्र के लड़के लड़कियाँ दो ढाई हजार की वाइन की बोतल ले जाते हैं, पीने के लिये। तुमसे 60-65रू की दूध की थैली नहीं पी जाती! हाँ तो मैंने देखा, वाइन शॉप के लगभग रैगुलर आने वाले ग्राहक कभी कभी विचित्र हरकत करते हैं। मसलन इस दुकान तक पहुँचने के दो रास्ते हैं। ये ग्राहक किसी को तो देख कर दूसरे रास्ते पर चल देते हैं। किसी वाइन खरीदने वाले को एक अंगुली के इशारे से बुलाते हैं। वह उनके पास जाता है, तो उन्हें बुलाने वाला कहता है कि आज क्वाटर में बीस रूपये कम पड़ गये हैं। वह शराबी से कोई प्रश्न नहीं करता, कोई नसीहत नहीं देता। चुपचाप वॉलेट खोलता है। उसे बीस रूपये दे देता है। इसी तरह वह अलग अलग लोगों से(सिर्फ वाइन के ग्राहकों से) पैसे लेता है। है न खुले दिल की बात!! जैसे ही क्वाटर के पैसे पूरे हो जाते हैं। वह क्वाटर खरीद कर चल देता है। अब उस दिन मैं एक काव्यगोष्ठी में गई। अमुक कवि जी वहाँ छा गये। उनके कुछ शिष्यों ने भी वाहवाही लूटी। अमुक जी के बराबर मैं बैठी थी। दो छात्र उनसे आकर बोले,’’सर हमें भी अपना शिष्य बना लीजिये न।’’सर ने जवाब दिया,’’मेरा आर्शीवाद तुम्हारे साथ है पर अब मैं शिष्य नहीं बनाता।’’ मैंने अमुक जी से कहा,’’सर आज के शराबी को, जब पहली बार, जिस शराबी ने शराबी बनाने के लिये, दीक्षित किया होगा, उसने अपनी जेब से वाइन का खर्च उठाया होगा, तब तक जब तक उनका शौक आदत में नहीं बदला होगा।’’ ये तो खुद रचना करेंगे, आपको सुनायेंगे आपको इन्हें मोटिवेट ही तो करना है। कौन सा दारू पीने की दीक्षा दे रहें। जिसमें आपका खर्च होगा।’’ सब मुझे घूरने लगे। बाद मेंं मुझे भी लगा कि मैंने शायद गलत उदाहरण दे दिया है।
 मैं अब साहित्यिक बैठकों में चुप रहती हूँ, बोलने से डरती हूँ। स्कूल में लिखा सत्संगति का निबंध हमेशा याद आता है, जिसमें किसी कवि की पंक्तियाँ लिखी थीं
अगर आग के पास बैठोगे जाकर, तो उठोगे एक रोज़ कपड़े जलाकर।
ये माना कि कपड़े बचाते रहे तुम, मगर सेक तो रोज खाते रहे तुम।
ख़ैर कपड़े तो कभी नहीं जलेंगे, मगर सेक का क्या करूँ क्योंकि चर्चा में भाग लेते ही मेरे उदाहरण ठेके पर चले जाते हैं। कॉलौनी की पुरानी मार्किट मेंं हलवाई की दुकान में जब अचानक वाइन शॉप खुल जाये तो शायद ऐसा ही होता है।

Friday, 3 November 2017

भेड़ा घाट, संगमरमर की चट्टानों के बीच माँ नर्मदा में नौका विहार, बंदर कूदनी Jabalpur Yatra3 Bheda Ghat, sangmermer ke chattano mein Narmada nauka vihar, Bander kudani जबलपुर यात्रा भाग 3 नीलम भागी





भेड़ा घाट, संगमरमर की चट्टानों के बीच माँ नर्मदा में नौका विहार, बंदर कूदनी
                                                             नीलम भागी
1.30 बजे हमारी बस ’प्रहलाद बाजपयी जिन्दाबाद’ के नारे लगाती भेड़ाघाट की ओर चल पड़ी। इसमें सभी कानपुर से थे। गन्दी सी गर्मी अचानक 1.ः50 पर बारिश आने से सुहाने मौसम में बदल गई। मैं कण्डक्टर को अपनी सीट पर बिठा कर उसकी ड्राइवर राहुल के बराबर वाली सीट पर बैठ गई। उसने मुझे कहाकि आप भीग जाओगी, शीशा टूटा है। पर मुझे तो शहर से परिचय करना था। सामने से सब ओर दिखता है। एक जगह पानी देख मैं तस्वीर लेने लगी तो राहुल बोला,’’अरे यहाँ तो 50-52 ताल हैं किसकिस की फोटो लेंगी!’’ उसे अपने शहर से इतना मोह था कि मुझे जबलपुर के बारे में बताता भी जा रहा था। बरसात के पानी को सड़क के गड्डों में भरा देख मैंने पूछा,’’यहाँ सड़कों का यही हाल है।’’ वह बोला,’’नही जी, बस ये भी बनने वाली हैं। आगे जाकर जब साफ सड़क आई तो तुरंत बोला,’’अब अच्छी है न सड़क, ये हाइवे है।" सड़क के दोनो ओर हरियाली से भरे खेत, इतनी उपजाऊ जमीन! एक जगह बोर्ड लगा था, प्लॉट लें 480रू प्रति स्क्वायर फीट किसी नई कालोनी का नाम लिखा था। पढ़ का अच्छा नहीं लगा, क्यों इतनी हरी भरी जमीन को कंकरीट के जंगल में बदला जायेगा। ऐसी जगह में तो बहुमंजिली इमारते होनी चाहिये। जमीन खेती के लिये बचानी चाहिये। रात गाड़ी में मैं बहुत ही कम सोई थी पर यहाँ की ताज़गी के कारण बिल्कुल फ्रेश थी। राहुल बोला," ये लम्हेटा घाट है।" सब कोरस में बोले,’’पहले भेड़ा घाट।’’मैंने राहुल से पूछा से पूछा,’’स्टेशन से भेड़ाघाट की बस सर्विस कैसी है?’’ वो बोला,’’वहाँ से हमेशा आपको बस मिलेगी, कुल 23 किमी दूर है। बस का किराया बहुत सस्ता है ऑटो टैक्सी में आपकी बारगेनिंग का हुनर काम आयेगा ।’’ स्टेशन से विजय नगर तक का किराया कुल 15रू लगा था। क्यूंकि सुबह हमने अधिवेशन की सवारी का इंतजार नहीं किया था। यानि बहुत कम किराया । बस रूकी हम सब भेड़ाघाट की ओर चल दिये। सड़क के दोनो ओर दुकानो में र्माबल की मूर्तियाँ, शो पीस, हल्के पत्थर के इयररिंग न जाने क्या क्या कलाकृतियाँ थी, जो मुझे रूकने को मजबूर कर रहीं थी इसलिये मैंने दायं बायं देखना बंद कर दिया। सीढ़ियाँ उतरने लगी सामने नर्मदा जी!! जो मुझे सांवली लग रहीं थी मैं उन्हें देखती हुई किनारे किनारे चलती जा रहीं हूँ, फर्श खत्म हुआ तो खड़ी होकर सोचने लगी, माँ तो यहाँ होशंगाबाद, अमरकंटक से अलग लग रही हैं। अब मैंने चारो ओर देखा वे तो काले संगमरमर की चट्टानों के बीच से जा रहीं हैं और आसमान में भी बादल थे इसलिये वे सांवली लग रहीं थी। साथियों ने नाव तय कर ली। सौ रू प्रति सवारी। हरिद्वार में जबसे डूबने से बची थी। तब से मैं पानी के किनारे ही रहती हूँ। मैंने नाव में बैठने से मना कर दिया। शोभा मुझे डाँट लगाते हुए बोली,’’नौएडा में मरेगी, तो भी तेरी अस्थियाँ विर्सजन के लिये गंगा जी जाना पड़ेगा। यहाँ सदेह तूं नमामि देवी नर्मदे की गोद में होगी।’’नर्मदा जी को प्रणाम कर दिल से उन्हें कहा कि माँ ,मैं भारत भ्रमण करना चाहती हूँ, मरना नहीं चाहती और सब के बीच में दुबक कर बैठ गई। नर्मदा मइया की जै बोल कर नाव चली, साथ ही मेरा डर भी चला गया। हल्की बूंदे भी कभी पड़ जातीं, मोबाइल खराब होगा, कोई परवाह नहीं पर मैं विडियों बनाने में लगी रही। रंग बदलती संगमरमर की चठ्टानों के साथ माँ का भी रूप बदलता जाता था। नाविक का नाव खेते हुए वर्णन करना, कमाल का! उसने कहा,’’ऊपर झाड़, नीचे पहाड़, बीच में आप करते नौका विहार।’’ साहित्यिक साथियों ने इसे समवेत स्वर में नौटंकी स्टाइल में गाया। अब वह उत्साहित होकर सीधी सरल मनोरंजक तुकबंदियां कर रहा था और मंच के विद्वान वक्ता ठहाके लगाते हुए, उसे जिज्ञासु श्रोता की की तरह सुन रहे थे। बंदर कूदनी एक ऐसी जगह थी जहाँ पहले सतपुड़ा और विंघ्याचल की पहाड़ियाँ इतनी पास थीं कि बीच में से नर्मदा जी संकरी होकर बहती थीं और ऊपर से बंदर कूदकर दूसरी ओर चले जाते थे। लेकिन अब पानी के कटाव ने दूरी बढ़ा दी है। उसे बंदरों द्वारा अब कूद कर पार लायक नहीं छोड़ा। नाविक ने बताया कि हमारी यात्रा 50 फीट की गहराई से शुरू हुई थी, अब नर्मदा जी 600 फीट गहरी हैं और संगमरमरी चट्टाने 120 फीट तक ऊँची थी। उनमें तरह तरह की आकृतियाँ अपने आप बन गई थीं। जिधर इशारा नाविक का होता सबकी गर्दन वहीं घूम जाती थी। नाविक ने दोनों हाथों से कटोरा बनाकर नर्मदा जी का पानी पीना शुरू किया। मैंने भी तुरंत अपनी बोतल का पानी, नर्मदा जी में पलट कर उसमें नर्मदा जल भर कर पिया। उस बोतल को भर भर कर सभी ने पवित्र जल को पिया। ढाई किमी. दूर हम घाट से आ गये थे। अब लौटे यानि कुल पाँच किमी का नौका विहार। विडियो बनाने के लिये खड़े हाने पर नाव का बैलेंस बिगड़ता था, मैं बीच मैं बैठी थी। इसलिये बाँह उठा कर बना रही थी। बाँह दुखने लगती थी। एक सज्जन मेरे पीछे ऊँचाई पर बैठे थे। वे मेरी मदद के लिये बीच में मोबाइल ले लेते थे। घर लौट कर जब मैंने विडियो देखे, मजाल है कोई भी विडियो उनकी सूरत और अदाकारी से छूटा हो। अपने मोबाइल में अपना विडियो बना कर अपनी सूरत को निहारते रहो, कौन मना करता है? जबरदस्ती दूसरे के विडियो में घुसना! पर ये तो  अच्छा हुआ बीच बीच में मैं उनसे मोबाइल ले लेती थी। नही ंतो मुझे विडियो में नर्मदा जी के सौन्दर्य के स्थान पर उनकी सूरत देखनी पड़ती।https://youtu.be/2rCmBjI0hRI
https://youtu.be/2rCmBjI0hRI क्रमशः