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Thursday, 23 November 2017

भेड़ाघाट का शि ल्प बाजार, चौंसठ योगिनी मंदिर, धुंआ धार जबलपुर Jabalpur Yatra 4Bheda Ghat ka shilp bazar, chaunsth yogini Mandir,Dhunaa Dhar जबलपुर यात्रा भाग 4 नीलम भागी

भेड़ाघाट का शि ल्प बाजार, चौंसठ योगिनी मंदिर, धुंआ धार जबलपुर यात्रा भाग 4
                                                      नीलम भागी
दो बच्चे लम्हेटाघाट से हमारी बस में चढ़े। कुछ दूरी पर उतर गये। बंदर कूदनी पर हमें आवाज आई। उपर देखा वही बच्चे जो बस में चढ़ेथे। ऊँची चट्टान पर वह नर्मदा जी में कूदने को तैयार थे। मैं उन्हें नहीं कूदने का इशारा कर रही थी और नाविक से भी कह रही थी कि प्लीज  आप उन बच्चों को कूदने से मना करे। जवाब में वह बोला,’’ डूबने वाले को चुल्लू भर पानी ही बहुत है, तैराक के लिये एक हजार रू. भी कम है। मैंने पूछा,’’मतलब।’’उसने समझाया कि तैराक संसार में कहीं भी तैर सकता है। इन बच्चों को इतनी़ ऊँचाई से कूद कर तैरने की आदत है। मैंने कहा कि मुझे बच्चों को इतनी ऊँचाई से कूदता देखने की आदत नहीं है। पर वह बच्चा कूदा, छोटे से विडियो में बच्चे का कूदना और उन जबरदस्ती विडियो में घूसे सज्जन की अदायें दोनो हैं। एक ही 3.33 मिनट का विडियों, उनकी सूरत के बिना मुझसे बन गया। किनारे पर लगने से पहले ही नर्मदा जी में लोगो ने फूल मालायें आदि चढ़ा कर उन्हें प्रदूषित करने का अभियान चला रक्खा था। शौचालय यहां भी बेहद गंदे थे। नाव से उतरते ही अब सीढ़ियों के दोनो ओर शिल्पियों की कलाकृतियों को देखना शुरू किया। सबसे पहले मेरी नज़र सफेद पत्थर के इयरिंग पर पड़ी जिसमें सुनहरे मोती पिरोये थे। पहने हुए इयरिंग्स को उतार कर, मैंने पत्थर के पहन लिये और उससे रेट पूछा। उसने 10 रू. बताया। सुनते ही मैं हैरानी से उसे देखने लगी क्योंकि इतने कम दाम की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मुझे चुप देखकर वह बोला,’’50 रू. के 6’’ मैंने सभी ले लिये। डॉ. शोभा ने छोटे छोटे गणपति ले लिये, जितने हम उठा सकते थे। बाकि नायाब शिल्पकला देखने से तो मन ही नहीं भर रहा था। पास में ही ऊँची पहाडी पर ़चौंसठ योगिनी का मंदिर है। करीब 160 सीढ़ी चढ़कर यहाँ पहुँचें। लोगों का मानना है यह महर्षि भृगु की जन्मस्थली है। इसे दसवीं शताब्दी में कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने माँ दुर्गा के मंदिर  में स्थापित किया था। यहाँ मंदिर की गोल चारदीवारी के अंदर की ओर चौंसठ योगिनियों बहनों की जो तपस्विनियां थीं, उनकी विभिन्न मुद्राओं को पत्थर में तराश कर मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं।  चारदीवारी के दक्षिण में मंदिर का निर्माण किया गया है। सबसे पीछे के कक्ष में शिव पार्वती जी स्थापित हैं सामने चबूतरे पर शिवलिंग की स्थापना की गई है। जिनकी वहाँ भक्तजन पूजा करते हैं। धुआंधार जल प्रपात बहुत ही सुन्दर है। ऊँचाई से नर्मदा जी गिरती हैं, जिससे पानी के कण धुंआ की तरह लगते हैं। इसलिये इसका नाम धुंआधार पड़ा है। इस बार वर्षा कम होने से स्थानीय लोगों का कहना है कि धुंआ कम बन रहा था। मुझे तो इतना धुंआ ही विस्मय विमुग्ध कर रहा था। लौटने पर भी भेड़ा घाट की सुन्दरता, संगमरमर की चट्ानों का सौंदर्य मुझ पर छाया रहा। जब लौटे तो अधिवेशन स्थल पर चाय नाश्ता लगा था। सबसे पहले मेरी नज़र मुरमुरे पर पड़ी, मैंने थोड़ी चखी, वो तो बहुत कुरकुरी और उस पर गज़ब का मसाला लगा था। उसे वहाँ पर लइया बोल रहे थे। मुझे मीठी चाय के साथ लइया बहुत अच्छी लगी। इसके बाद प्रांतीय बैठक हुई। फिर कवि सम्मेलन शुरू हो गया। डिनर करके हम रात दस बजे डेरे पर चले गये। कवि सम्मेलन काफी रात तक चला क्योंकि हमारे अपार्टमेंट की चार महिलायें कविता पाठ करके ही आईं थीं। मैं तो लेटते ही सो गई थी।   क्रमशः https://youtu.be/jawrlIeEgAY