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Saturday, 16 December 2017

गवार रजाइयां # Warmth of rustic razai Neelam Bhagi नीलम भागी



            रुई की रजाई तह लगा रही थी। इतने में उत्कर्षिणी आ गई। रजाई देखते ही बोली ’’तुम रूई से भरी रजाई में सोती हो? सुनते ही मन किया कि कहूँ कि नहीं तुम्हें दिखाने के लिए रखी है, पर मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोलने लगी,’’ सर्दी में रुई रजाई में सोने का स्वाद ही कुछ और है। मैं तो कभी भी रजाई में 5 किलो से कम रूई नहीं भरवाती थी। गर्माहट बरकरार रखने के लिए, दूसरे साल दोबारा से रजाई की भराई करवाती थी। एक रजाई जैसी मामूली चीज को देखकर, सम्पन्न घर की महिला ने रजाई पुराण ही शुरू कर दिया और मैं सुन-सुन कर बोर होती रही। मेरी रजाई को ऐसे देख रही थी जैसे कई दिनो का भूखा खाने को देखता है।
आजकल जगह-जगह खादी भंडार में छूट है। और वैसे ही दुकाने गद्दे, रजाई की खुल गई है। यहाँ शनील, कश्मीरी, सिंथेटिक रूई की जयपुरी, हर तरह की रजाईयाँ मिल रही हैं। रजाई भराई करने वाले लोगों ने भी मशीनें लगा रखी हैं। जैसी चाहो ले सकते हो। पता नहीं उत्कर्षिणी को क्यों कपास से बनी साधारण रूई की सस्ती रजाई पसन्द है?
कल मैं उत्कर्षिणी के घर गई। दीवारों के रंग  से मेल खाते खूबसूरत मुलायम कबंल को ओढ़े लेटी हुई ,वह टी.वी. देख रही थी। कमरा गर्म करने के लिए हीटर भी था। मैंने उसके  कबंल की तारीफ की, तो वह शुरू हो गई कि उसकी शादी की शनील की रजाइयाँ भी इसी रंग की थीं, उन्हें बहुत पसंद थीं। बहू ने रजाइयां मेड को दे दीं। लेकिन कबंल की तारीफ सुनकर उसकी बहु बहुत खुश हुई और बोली, ’’आंटी रजाई का लुक अच्छा नहीं लगता। रजाई भारी होती है और उसे तो ग्रामीण क्षेत्र के लोग ही अब पसंद करते हैं।’’सुन कर मैं चुप रही.
मैं अपने बेटे के घर गई। मेरे लेटने पर अंकुर  ने मुझ पर सुन्दर सा कंबल फैला दिया। हल्का सा कंबल पर खूब गर्म, आदतन मुझे अपनी ग्रामीण रूई की रजाई याद आने लगी। उसमें गर्मी लगती है तो एक लात मार कर हटा दो, फिर ठंड लगती है तो कस कर लपेट लो। मैंने बेटे से कहा, ’’मुझे तो तू रजाई दे दे। "श्वेता ने एक पैकेट निकाला उसमें से एक बहुत सुन्दर जयपुरी रजाई निकाली और मुझे औढ़ा दी। मैं उस खूबसूरत रजाई को ओढ़ कर लेटी थी और वो दोनों खुश होकर रजाई की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे। इन बातों में सबसे अच्छी बात मुझे  बहू कि यही लगी, ’’इसमें माँ का रंग भी गोरा लग रहा है।’’ क्योंकि मैं काली हूँ। अब मुझे यह फैंसी रजाई बहुत प्यारी लगी।
बत्ती बंद करते ही मुझे अपनी गवार रजाई याद आने लगी, साथ ही उत्कर्षिणी भी। बच्चे तो अपनी आमदनी के अनुसार हमें नई चीजें देते हैं शायद जरूरत और आदत हमें नया अपनाने नहीं देती। वे हमें साथ लेकर चलना चाहते हैं और हम....
अगले दिन मैं बाजार से अपनी पसन्द की ग्रामीण रजाई लाई। बेटा रजाई देखकर हंसने लगा और मैं भी मुस्करा दी।


10 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

मैं दिल्ली में पढ़ती थी जनवरी की शुरुआत बेहद ठंड अचानक मुझे इंडियन कांसिल आफ था वर्ड अफेयर लायब्रेरी में बैठे अपने घर की मोटी सफेद कवर वाली गुनगुनी रजाई याद आ गयी सुबह ही घर से आई थी किताबें बंद बस में बैठ कर घर लौट आई घर में सभी हैरान सुबह ही तो गयी थी बिस्तर पर तह लगी रजाई को लपेट लिया मेरी अम्मा सामने खड़ी थीं लेकिन मुझे उनकी गोद जैसी गुनगुनाहट रजाई में महसूस हो रही थी में अपनी बात कभी नहीं लिखती परन्तु आप के लेख ने मायके की याद दिला दी आँख में आंसू आ गये घर की लक झक सफेद रूई वाली रजाइयां याद आ गयीं हमारे घर में जबकि कोई फैंसी रजाई नहीं हैं रजाईयां मेरी यादें हैं

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Unknown said...

कम्बल कैसा भी हो रजाई के मुकाबले मुझे कमजोर ही लगता है। कम्बल में सोते सोते भी लगता है कि रजाई होती तो अच्छी नींद आती।

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार लेख पढ़ने के लिए

DHARM BHATIA said...

Good remembrance.

Unknown said...

Apki kahani bahut achchhi hoti hai
Aur kuch purani yaaden bhi yaad aa jati hai

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Unknown said...

शानदार अनुभव

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार