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Tuesday 8 May 2018

गंगा, गीता और बीफ़!! न न न......Ganga Ghita & Beef na na na...... नीलम भागी








रात को सोने से पहले मैं, मेरी बेटी उत्कर्षिणी से विडियो कॉल करती हूँ। उस समय वह विदेश में अपनी बेटी गीता को स्कूल के लिये तैयार कर रही होती है। गीता मुझसे बातों में लग जाती है और उत्कर्षिणी उसके घुंघराले बाल सुलझा कर चोटी बना देती है। आज फोन गीता ने उठा कर कहा,’’नानी आज मम्मा स्कूल के लिये लंच बना रही है।’’उससे बातें करके फोन रख दिया। मैं सोचने लगी कि गीता के स्कूल में तो ब्रेकफास्ट, लंच, इवनिंग स्नैक्स सब मिलता है। फिर क्यों उत्कर्षिणी बना रही थी! गीता को स्कूल छोड़कर आते समय मेरी उत्कर्षिणी से बात हुई तो उसने बताया कि उसने स्कूल में गीता की टीचर से कह रक्खा है कि गीता को बीफ नहीं देना है। जिस दिन लंच में बीफ होता है। उसे खाने में उस दिन कार्बोहाइड्रेट, फाइबर में भी जो कुछ होता है, नहीं देते क्योंकि उसमें गलती होने की सम्भावना है। स्कूल से साप्ताहिक मैन्यू आ जाता है। जिस दिन लंच में बीफ होता है। उस दिन वह घर से खाना देती है।
 उत्कर्षिणी बोली,’’माँ, मैं दुनिया भर में घूमती हूँ पर मैं और मेरा परिवार, बीफ कभी नहीं खाता। गंगा का दूध पीकर बड़ी हुई हूँ न’’मैंने पूछा,’’गीता को कैसे समझाओगी? क्योंकि विदेश में संस्कृति में बदलाव बच्चों से ही होता है। वे स्कूल में एक दूसरे के दोस्त बनते हैं। उनके घरों में आते जाते हैं और उनमें परिवर्तन होता जाता है।’’ उत्कर्षिणी ने जवाब दिया,’’हम गीता के साथ घर में हिन्दी और पंजाबी बोलते हैं। इण्डिया में आप संयुक्त परिवार में रहती हो। इसलिये उसकी कई मौसियाँ हैं। उसकी माँ ने गंगा का दूध पिया है। इसलिये कोई भी गाय गंगा की बहन होती है यानि उसकी मौसी। यहाँ किसी को बुरा न लगे इसलिये इसे सीखा रक्खा है, ये बीफ को ’मासी’ बोलती है। जिसे नहीं खाते हैं। हमारे यहाँ तो गाय परिवार का हिस्सा होती है। इसलिये फैमिली फोटो में होती है। मेरे बचपन की फोटो में मैं माया मासी की गोद में हूं ,बीच में गंगा और पीछे अम्मा हैं। गीता के लिये तस्वीर की गाय गंगा है और दुनिया की सभी गाय गंगा की बहने हैं यानि मासी और मासी को नहीं खाते।’’

’’आप अब सो जाओ बहुत रात हो गई’’, यह कह कर उत्कर्षिणी ने फोन काट दिया। और मेरी स्मृति में गंगा आ गई।
  जब गोमती मरी तो गंगा छ महीने की थी। हम सब बिन माँ की छोटी सी बछिया को बहुत लाड़ करते थे। इतनी दूधारू गाय एक दम मर गई। पिताजी ने फैसला सुना दिया कि हमारे यहाँ तो पहली गाय की बछिया ही बड़ी होती है। नई गाय नहीं खरीदी जायेगी। गंगा ही पाली जायेगी। हमारा घर छोटा था। परिवार बड़ा था। दो गाय रखने की जगह नहीं थी। चारे की दुकान, स्कूल कॉलिज, पिताजी का ऑफिस सब पास था। सुबह का दूध निकाल कर, सड़क पर लगे खूंटे से गाय बांध देते। दिन भर गाय राजू ग्वाले के साथ आउटिंग पर जाती। शाम को सड़क पर बांध लेते। दूध दूहने के समय आंगन में ले आते। रात को बाहर नहीं बांध सकते थे, चोरी का जो डर था। उन दिनों पहली बार हमारा घर धारोष्ण दूध के बिना रहा था। मैं तब बी.एड कर रही थी। सर्दियों के दिन थे। रात दस बजे की सानी हमेशा मैं ही बनाती थी। इस समय मुझे गोमती बहुत याद आती थी। अगर मैं कोर्स की किताब पढ़ती तो मुझे नींद आ जाती, जिससे कई बार गोमती भूखी रह जाती और वह भी आधी रात को मां मां करने लगती। तब अम्मा पिताजी मुझे कोसते कि बेजुबान को मैंने भूखा रक्खा, जिसकी सजा थी एक हफ्ते तक सुबह पाँच बजे की सानी भी मुझे बनानी पड़ती थी। अच्छी कहानी पढ़ते समय मुझे कभी भी नींद नहीं आती इसलियेे मैं एक कहानी की किताब छिपा कर रखती थी। डीडी समाचार के बाद सब सो जाते थे तो मैं कहानी की किताब पढ़ने लगती और गोमती को समय पर सानी मिलती थी। गोमती के न रहने पर मैं सबके सोने पर गर्म कपड़े में लिपटी गंगा को कमरे में लाकर अपनी चारपाई के पाये से बांध देती। उसके नीचे जूट की बोरियां बिछा देती। पास ही बाल्टी रख लेती। मैं चकाचक सफेद कवर की रजाई  ओढ़ कर पढ़ती,  गंंगा उस पर गर्दन टिका कर बड़े लाड़ से खड़ी रहती। मैं पढ़ती रहती और ध्यान रखती की गोबर मूत्र न कर  दे। जब करने लगती तो मैं नीचे बाल्टी लगा देती। वह उसमें कर देती। बहुत समझदार थी। बाल्टी बाहर रख कर, मैं उसको अच्छे से लपेट देती। लाइट ऑफ करते ही वह अपने बोरे पर बैठ जाती और मैं सो जाती। कभी उसने कमरे में गोबर, मूत्र नहीं किया। सुबह उठते ही अम्मा उसे बाहर ले जाती कि कमरे में गोबर मूत्र न करदे। सूखा बिछौना देख अम्मा खुश हो जातीं। सर्दी खत्म होते ही वह भी राजू के साथ दस से चार घूमने जाने लगी। लौटने पर वह चारा नहीं खाती थी। पहले कमरे में आती, पंखे के नीचे पसरती थी। आंगन में अम्मा उसके लिये सानी व पानी रख कर आवाज लगातीं, तब बड़े नखरे से जाती। आंगन में लगे नीम के पेड़ की निबौली मैं उसे खिलाती वो खा लेती। परीक्षा से बीस दिन पहले मेरी शादी हो गई। जब भी मायके आती पहले उससे मिलती, वो जुगाली वाली झाग कपड़ों में लगाकर प्यार जताती। अगर मैं उससे मिलने नहीं गई तो वह मां मां करके खूंटा तोड़ने लगती। मेरठ छूटने पर गंगा के नखरे सुनने को मिलते रहे। गंगा ने यमुना को जन्म दिया। हमारे यहाँ गाय का नाम नदियों के नाम पर रक्खा जाता है। आठ महीने की उत्कर्षिणी को मुझे अम्मा के पास छोड़ कर नौकरी ज्वाइन करनी थी। मैं घर आते ही बेटी को गोद में लेकर गंगा के पास खड़ी हुई। उसने अपनी जीभ से उत्कर्षिणी के बाल चाट कर गीले कर दिये। मैंने भी यमुना के माथे पर हाथ फेरा। बैठते ही अम्मा मेरे लिये दूध का गिलास और गुड़ ले आई। साथ ही बोतल में उत्कर्षिणी के लिये दूध लाई। बोतल देखते ही मैं बोली,’’अम्मा इसने कभी ऊपर का दूध नहीं पिया है।’’अम्मा बोली,’’तेरे जाने के बाद यही पीना है तो अभी से क्यों नहीं’’, कहते हुए उसके मुंह में बोतल लगा दी। वह पी गई। माँ के दूध के बाद उसने पहला बोतल में दूध गंगा का पिया। मेरी तो चिंता दूर हो गई। पहली बार में उसे पच भी गया। एक सप्ताह बाद बड़े भारी मन से दिल में यह प्रण करके लौटी कि कुछ ऐसा काम करूंगी, जिससे बेटी अलग न हो। जब भी गोलमटोल बेटी मिलने आती साथ ही बड़े बड़े दूध दहीं के डिब्बे आते। अगर इसने बाहर का दूध नहीं पिया तो! गंगा का दूध तो मां का दूध था न। बेटी की फोटो आतीं, जिसमें गंगा यमुना जरूर होतीं। पोज़ थे बेटी यमुना पर सिर टिका कर लेटी है।

कटोरी हाथ में लेकर गंगा का दूध दुहने की कोशिश कर रही है आदि। मेरा भी स्कूल खुल गया। मैंने उत्कर्षिणी को बुलाया वो अम्मा और गंगा यमुना के बिना आने को, किसी भी तरह तैयार नहीं थी। अम्मा दूध बिलोती मक्खन का बड़ा पेड़ा मट्ठे से निकाल लेती। मथनी जिस पर ढेर सा मक्खन लगा होता, यह चाटती फिरती। नौएडा में भाई की दुकान का पोजैशन मिलते ही हम गंगा यमुना ले आये। बड़ी दुकान में पीछे उनको बांध सकते थे। आस पास खाली प्लाट, पार्क थे। लोग कम थे। अब और समस्याएं शुरू। पशु यहाँ रख नहीं सकते पर किसी ने शिकायत नहीं की थी। गोबर का ढेर लगता जा रहा था। चारा बहुत दूर से लाना पड़ता था। पर सब बहुत खुश थे कि परिवार एक जगह हो गया है। अब बिन बुलाये जर्सी नस्ल की शानदार गंगा के लिये खरीदार आने लगे। हम उन्हें कहते हमें नहीं बेचनी है। वे कीमत बढ़ाने लग जाते। किसी तरह उनसे पीछा छुड़ाते। अचानक हमारे आसपास गाय भैंसों का झुण्ड चरवाने के लिये लाने लगे। एक दिन उस झुण्ड में हमारी गंगा यमुना भी ले गये। जिस दिन हमारी गंगा यमुना चोरी हुईं। उसी रात को कोई गोबर का ढेर भी उठा कर ले गया। गंगा यमुना के लिये इनाम भी रक्खा, पड़ोसियों ने भी खूब ढूंढा पर वे नहीं मिली। अब तस्वीरों में हमारी गंगा यमुना रह गई हैं।         
एक दिन मेरे मन में एक प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि अगर मेरी बेटी विदेश पढ़ने गई और वहाँ नॉनवेज ही खाने को मिला तो ये क्या करेगी? हम तो शाकाहारी ब्राह्मण हैं। मैंने अपनी पड़ोसन भाभी जी से दिल की बात बताई। उन्होंने कहा,’’दीदी जब मैं बनाउंगी तो उत्कर्षिणी को अपने घर में खिला दूंगी।’’ मैंने कहा कि बस वक्त पड़ने पर खा ले। उन भाभी जी ने उसे नॉनवेज खिला दिया। हम इस सेक्टर में आ गये और वो भाभी परिवार घर बेच कर चले गये। बिटिया विदेश पढ़ने भी गई।
मैं जब भी उत्कर्षिणी के साथ विदेश गई। मैं अपने लिये वेज ऑर्डर कर देती, वो खाने का ऑर्डर करने से पहले इनग्रीडैंट जरूर बहुत ध्यान से पढ़ती है। मैंने पूछा,’’तूं क्या पढ़ती है?’’ वो बोली,’’मां, नया खाना किसी देश का ट्राई करना मेरा शौक है पर मैं देखती हूं, जो मैं आर्डर कर रहीं हूं उसमें बीफ तो नहीं है! गंगा मेरे दिल में है। मैं तो बीफ को छू भी नहीं सकती न।’’विदेश में पढ़ी मेरी बेटी आज भी गंगा को नहीं भूली है और उसने गीता को भी गंगा से परिचित करवा दिया है।   

   
पारिवारिक फोटो में परिवार की सदस्य गंगा, अम्मा,मास्सी की गोद में उत्कर्षिनी 

Thursday 3 May 2018

ऑर्गेनिक करेले रसोई के कचरे से मुफ़्त में उगाना नीलम भागी


         
मैंने आटे की खाली थैली ली। उसमें फल सब्जियों, अण्डे के छिलके, धुली चाय की पत्ती आदि डालती रही और पेड़ की सूखी पत्तियाँ भी। जब यह आधी से ज्यादा भर गई, तो इसको अच्छी तरह दबाया। अब मिट्टी में 20%वर्मी कम्पोस्ट मिला कर और थोड़ी सी नीम की खली मिला कर 6 इंच भर दिया। समतल करके 6 करेले के बीज आधा इंच गहरे बो कर पानी डाला और बोरी के नीचे छेद कर दिया ताकि जब भी फालतू पानी हो, वह बह जाये। बोरी को ऐसी जगह रक्खा जहाँ कम से कम तीन चार घण्टे धूप आती है। 6 में से 5 बीजों से पौधे निकल आये। अब मैंने कचरे से दो इसी प्रकार थैलियाँ और तैयार कर लीं। जब पाँचों पौधे 15 दिन के हो गये तो मैंने उन्हें अलग बड़ी थैली में दो दो और छोटी थैली में एक पौधे को लगा दिया। जब इसे सहारे की जरूरत हुई, मैंने प्लास्टिक डोरी बांधी वे नहीं लिपटीं। जैसे ही सूती डोरी सें बांधा वे लिपट गईं। अब उनमें फूल और छोटे छोटे करेले आ गये हैं और मैं आपके साथ शेयर कर रहीं हूँ।   
वजन कम होने से छत पर रख दिया|

मुझें ये मुफ्त के करेले कड़वे नहीं लगते| एक दो करेले मिलते रहते हैं| जब मैं दाल सब्जी छोंकने लगती हूँ तो करेला तोड़ कर, धो पोंछ कर बिना छीले, इसके पेट में चीरा लगा कर छोंक में डाल देती हूँ| मसाले के साथ यह भी भुन जाता हैं| जहां चीरा लगाया था वहीं करेले का पेट खोल कर, स्वादनुसार चाट मसाला डाल देती हूँ| दाल के साथ लाजवाब लगता है|
किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा और बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो।#Kitchen waste management