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Thursday 18 October 2018

हम महिलाये राजा राम मोहन राय और बापू की ऋणी हैं Sabermati Aashram यात्रा भाग 5 नीलम भागी



हम महिलायेंं राजा राम मोहन राय और बापू की ऋणी हैं Sabermati यात्रा भाग 5
                                                              नीलम भागी
गाँधी जी के समय में महिलाओं को वह  आजादी नहीं थी, जिस आजादी की वह हक दार हैं। गाँधी जी कहते थे एक बेटी को पढा़ना ,पूरे कुल  को पढ़ाने जैसा है | पढ़ी लिखी माँ आगे अपनी सन्तान की शिक्षा का भी ध्यान रखेगी, तभी समाज में सुधार आयेगा. गाँधी जी ऐसे समाज की कल्पना करते थे, जिसमें बालिका को समान अधिकार हों. यदि स्त्रियाँ या बालिकायें अशिक्षित रहेंगी, देश उन्नति नहीं कर सकेगा | वह  पुत्र और पुत्री दोनों को समान मानते थे | गाँधी जी बालक बालिकाओं की सह शिक्षा के समर्थक थे | वे  कहते थे," मैं लड़कियों को सात तालों में बंद  रखने का बिलकुल समर्थन नहीं करता,  लड़के लड़कियों को साथ पढ़ने, मिलने जुलने का मौका मिलना चाहिए।" आश्रम में यदि कभी कभार लड़के लड़कियों में कोई  अनुचित व्यवहार की घटना हो जाती थी तो गाँधी जी प्रायश्चित में स्वयं उपवास करते थे . केवल शिक्षा ही नहीं, उनकी स्थिति में सुधार कर उन्हें आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत बनाना चाहिए उनके अनुसार हमारे कुछ ग्रन्थ महिलाओं को पुरुष के मुकाबले हीन  मानते हैं, ऐसा सोचना गलत है। स्त्री के लिए आजादी और स्वाधीनता जरूरी है। कई महिलाओं ने स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लिया। वे  विदेशी वस्तुओं की दुकानों में पिकेटिंग करती थी। उनका बहिष्कार करने के लिए लोगों को समझाती थी। स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका योगदान कम नहीं था । उसमें पुरुष के मुकाबले बौद्धिक क्षमता कम नहीं होती। गाँधी जी दहेज प्रथा के विरोधी थे। उनके अनुसार  अपनी बेटी को पढ़ने का अवसर दो, यही सबसे बड़ा दहेज हैं |
उन्होंने कालेज के छात्रों को फटकारा वे स्त्रियों को घर की दासी समझते हैं. उन्हें इस बात का बहुत दुःख था. दहेज ने योग्य पुरुषों को बिकाऊ बना दिया है | वह कहते थे,” यदि मेरे कोइ लड़की होती, मैं उसे जीवन भर कुवारी रख लेता लेकिन ऐसे पुरुष से विवाह नहीं करता जो दहेज में एक कोड़ी भी मांगे , वह  विवाह में तड़क भड़क के विरोधी थे. वह बाल विवाह के विरोधी थे। उनके अनुसार जब भी मैं किसी तेरह वर्ष के बालक को देखता हूँ, मुझे अपने विवाह की याद आ जाती है. गोद में बिठाने लायक बच्ची को पत्नी रूप में ग्रहण करने में मुझे कोई धर्म नजर नहीं आता | वे विधवाओं के पुनर्विवाह का वह  समर्थन करते थे, कुछ परिस्थितियों में वह  तलाक के भी पक्ष धर थे। उन्होंने जेल से एक हिन्दू स्त्री को अपना आशीष भेजा ,जो अपने पहले पति को त्याग कर दूसरा विवाह करने जा रही थी। गाँधी जी कट्टर सनातनी थे परन्तु जाति, संप्रदाय के बाहर विवाह का समर्थन करते थे| देश आजाद हुआ भारत के संविधान में स्त्रियों को समान अधिकार दिये। हम महिलाएं राजा राम मोहन राय की ऋणी हैं, जिन्होंने हमारी पूर्वज महिला समाज को चिता से उठाया . इतिहासकार इबनबतूता भारत की यात्रा पर आये थे। उन्होंने एक प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि मैं एक क्षेत्र से गुजर रहा था। मैंने देखा, एक लड़की उसकी उम्र मुझे अधिक नहीं लगी। वह पूरी तरह दुल्हन की तरह सजी हुई थी। लेकिन लड़खड़ा कर सहारे से चल रही थी। आगे -आगे एक अर्थी जा रही थी। एक श्मशान के पास जलूस रुक गया। वहाँ एक चिता चुनी गई, चिता में मृत शरीर के साथ उस लड़की को बिठाया गया, चारोंं तरफ लाठियाँ लेकर कुछ लोग खड़े थे और तेज बाजे बज रहे थे। उस लडकी ने भागने की कोशिश की ,उसे वहीं चिता में दबा कर ज़िंदा जला दिया गया। यह नजारा मैं सह नहीं सका. मैं बेहोश हो गया | राजाराम मोहन राय की बहन विधवा हुई। वह छोटी थी। उसके पति की मृत्यु के बाद उसे सती कर दिया गया। वह छोटे थे, कुछ नहीं कर सके, इसका उनके दिल पर बहुत असर पड़ा. उन्होंने इस कुरीति को जड़ से उखाड़ फेकने की प्रतिज्ञा की। उनके और अंग्रेज वायसराय लार्ड बैटिंक के प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप सती प्रथा पर रोक लगी। उनके समकालीन अनेक समाज सुधारकों ने बाल विवाह , पर रोक लगाने की कोशिश की विधवाओं की दशा सुधारने का, उनके दुबारा विवाह का प्रयत्न किया। राजाराम मोहनराय ने महिलाओं को चिता से उठाया तो महात्मा गाँधी ने महिलाओं को सम्मान से जीने का हक एवं अधिकार देने की वकालत की। 
गाँधी जी स्वस्थ शरीर पर बल देते थे उनके अनुसार स्वस्थ शरीर के लिए हृदय और मस्तिष्क से गंदे अशुद्ध और निकम्मे विचार निकाल देने चाहिए। यदि मन चंगा होगा तो शरीर भी स्वस्थ होगा इसलिए शरीर और मन में तालमेल जरूरी है। सभी को प्रात: कल उठ कर ताज़ी हवा का सेवन करना चाहिए अपने परिवेश को साफ़ सुथरा रखें. सदैव चुस्त रहें सीधे बैठें और खड़े भी सीधे रहें | भोजन उतना करें, जितना शरीर की जरूरत है. ठूस- ठूंस कर कभी न खायें । हर कौर को चबा – चबा कर खायें | खाना इसलिए खाना चाहिए शरीर में ताकत रहे। मानव बंधुओ की सेवा कर सकें | जैसा भोजन करेंगे, वैसा ही मन बनता हैं | वह शाकाहारी भोजन के पक्षधर थे उनकी पत्नी और बेटा बीमार था, डाक्टर ने उन्हें मांंस का शोरबा देने की सलाह दी. उन्होंने डाक्टर की बात नहीं मानी | उनके आश्रम में विभिन्न जातियों धर्मों के लोग रहते थे. सफाई का पूरा काम आश्रमवासी खुद करते थे, कहीं भी गंदगी या कूड़ा  दिखाई नहीं देता था | सब्जियों के छिलकों और जूठन को खाद बनाने वाले गढ्डे में डाल दिया जाता, उसे मिट्टी से ढक दिया जाता जिससे खाद बनाई जाती. इस्तेमाल  किये गये पानी से बाग़ की सिंंचाई होती | मल मूत्र दोनों के लिए अलग व्यवस्था थी. गाँधी जी के आश्रमवासियों स्त्री और पुरुष के मन से गंदगी के प्रति घृणा समाप्त हो चुकी थी | अब भी कुछ यहां आने वाले पर्यटक खा कर रेपर आश्रम परिसर में कहीं भी फेंक देते हैं. यह देख मुझे अच्छा नहीं लगा। साबरमती मेंं आना मुझे तीर्थ यात्रा लगा। अब मैं बापूधाम मोतीहारी , चम्पपारण जा रहीं हूं और आपसे अपनी यात्रा शेयर करूंगी.
         


कस्तूरबा बा मैंने जात नहीं, पानी मांगा Sabermati Aashram यात्रा भाग 4 नीलम भागी


पेटिंग गैलरी में आठ अनोखी पेंटिंग हैं। एक पर लिखा था ’’मैंने जात नहीं पानी मांगा था।’’यहाँ रहने वाले सभी जाति के देशवासी बिना छूआछूत के रहते थे। मैं फिर से हृदयकुंज में आती हूं और बा के कमरे के आगे खड़ी हो जाती हूं। अक्षर ज्ञान न जानने वाली कस्तूरबा गज़ब का व्यक्तित्व था। अब कस्तूरबा बाकहलाती थीं. जिस तरह बापू को बापू बनाये रखने में बा का हाथ था इसी तरह आश्रम को आश्रम उन्हीं के प्रयत्नों ने बनाया था .गांधी जी के नजदीक रहना कठिन तपस्या से कम नहीं था. संयुक्त रसोई आश्रम में पैदा होने वाली सब्जी ,वह भी उबला कद्दू बिना मसाले का फीका जिसको जरूरत हो नमक डाल ले. बापू से बा ने कद्दू छोंकने के लिए मेथी और कुछ मसाले डालने की आज्ञा ली .महिलाओं को साबुन कम पड़ता बकायदा बा ने बापू को अर्जी दी. साबुन का प्रबंध हुआ. आश्रम में साफ़ सफाई रखना अनुशासन बनाये रखना, उनका काम था. जब भी बापू जेल जाते, बा का दायित्व बढ़ जाता. वह रोज साढ़े तीन बजे जगती और उनकी दिन चर्या शुरू हो जाती, बापू का भी ध्यान रखती थीं. हर मिनट का सदुपयोग करतीं .नागपुर के हरिजनों ने बापू के विरुद्ध सत्याग्रह किया .उनका तर्क था कि मध्यप्रदेश के मंत्री मंडल में एक भी हरिजन मंत्री नहीं है .साबरमती आश्रम वह प्रतिदिन पांच के जत्थे में आते, चौबीस घंटे बापू की कुटिया के सामने बैठ कर उपवास करते, बापू उनका सत्कार करते थे. उन्होंने बैठने के लिए बा का कमरा चुना, बा ने निसंकोच दे दिया, उनके पानी आदि का भी प्रबंध करतीं. वह पूरी तरह बापू मय हो चुकी थीं |  
वह साबरमती और सेवा ग्राम के आश्रम वासियों के लिए देवी थीं. ग्राम वासियों में जीवन का संचार करती, गांधी जी की जेल यात्रा के बाद सभी कार्यक्रम वही चलाती थीं. उनके आदेशों का अक्षरश: पालन करतीं. उन्होंने कहा सभी स्त्रियां अपने हाथ से कते सूत के वस्त्र पहने. चरखा कातना राष्ट्रीय कर्तव्य है और व्यापारी विदेशी कपड़ें न खरीदें, न बेचें, बा ने यही संदेश दिया  
फरवरी में महाशिवरात्रि का दिन था, बा का अंत आ चुका था. बापू चिंतित थे जानते थे. इस जन्म का साथ छूटने वाला है | बा ने बापू को बुलाया, बापू ने कहा,” मत सोचना मुझे तेरी चिंता नहीं है” बा ने बापू की गोद में सिर रख दिया. वह बोलीं,” हमने एक साथ सुख दुःख भोगे हैं अब अलग हो रहे हैं, शोक मत करना, मेरे मरण पर ख़ुशी मनाना. हे राम गिरधर गोपालतीन हिचकियाँ ली, प्राण पखेरू अनंत में विलीन हो गये. बापू विचलित हो कर सम्भल गये .उन्होंने राम धुन प्रारम्भ कर दी. बा को स्नान के बाद बापू के हाथ की काती गयी धोती पहनाई गयी, सुहागन थी, नारंगी शाल उढ़ाई  माथे पर कुमकुम गले और हाथों में बापू के हाथ की कती सूत की माला , जमीन गोबर से लीप कर उनके पार्थिव शरीर को लिटाया गया. सभी उनके अंतिम दर्शन कर अपने को धन्य मान रहे थे. अंतिम यात्रा मे आश्रमवासियों ने कंधा दिया , कुछ ने कहा बा की चंदन की लकड़ी की चिता होनी चाहिए, लेकिन बापू ने कहा,” मुझ दरिद्र, मेरे पास चन्दन कहा? एक दरोगा ने कहा,” मेरे पास चन्दन हैं.” बा की चिता पर  ब्राह्मण के द्वारा अंतिम क्रिया के मन्त्र पढ़ने के बाद गीता ,कुरान की आयते बाईबल एवं उपनिषदों का पाठ किया गया | पुत्र देवदास ने चिता की तीन परिक्रमा कर बा के नश्वर शरीर को अग्नि दी. बा का पंच तत्वों से बना शरीर उन्हीं में विलीन हो गया. शोक से सूर्य नारायण पर बदली छा गयी| कस्तूरबा गांधी महिला जगत के इतिहास में सदैव अमर रहेंगीं | 


Wednesday 17 October 2018

उद्योग मंदिर, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, एवं दांडी यात्रा Dandi March SABERMATI Aashram PART 3 Neelam Bhagi नीलम भागी




मैं आश्रम में घूमती जा रहीं हूं और मेरे दिमाग में कुछ पढ़े और विद्वानों द्वारा सुने बापू पर व्याख्यान भी घूम रहे थे। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद 25 मई 1915 में बापू ने कोचरब में जीवन लाल के बंगले में सत्याग्रह आश्रम खोला था। आर्थिक, राजनीतिक क्रान्ति की जो प्रयोगशाला उनके मस्तिष्क में थी वो वहाँ पर उस बंगले में सम्भव नहीं था। खेती बाड़ी, पशु पालन का प्रयोग भी मुश्किल था। बापू को तो सत्य, अहिंसा, आत्मसंयम, विराग एवं समानता के सिद्धांत पर महान प्रयोग करना था जो यहाँ सम्भव था। चालीस लोगों के साथ सामुदायिक जीवन को विकसित करने के लिये बापू ने 1917 में यह प्रयोगशाला शुरू की यानि साबरमती आश्रम। यहाँ के प्रयोग विभिन्न धर्मावलंबियों में एकता स्थापित करना, चरखा, खादी ग्रामोद्योग द्वारा जनता की आर्थिक स्थिति सुधारना, अहिंसात्मक असहयोग या सत्याग्रह द्वारा जनता में  स्वाधीनता की भावना जाग्रत करने के लिये किए गये।
उद्योग भवन को उद्योग मंदिर कहना कितना उचित है! जाने पर, देखने और मनन करने पर पता चलेगा। वहाँ जाकर एक अलग भाव पैदा होता है। यहीं से चरखे द्वारा सूत कात कर खादी वस्त्र बनाने की शुरूआत की गई। देश के कोने कोने से आने वाले बापू के अनुयायी यहाँ से खादी के वस्त्र बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त करते थे। तरह तरह के चरखे, धागा लपेटने की मशीने, रंगीन धागे, कपड़ा आदि वहाँ देख रही थी। कताई बुनाई के साथ साथ चरखे के भागों का निर्माण कार्य भी यहाँ होने लगा। मैंने ये महसूस किया कि यहाँ कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। सब चुपचाप देख रहे थे या सेल्फी ले रहे थे। लगभग सभी तरह के यहाँ चरखे थे।  ये देख कर मुझे अपने बचपन के दिन याद आने लगे जब घरों में चरखा रखना आम बात थी। दो तवे जैसा चरखा जिसे गांधी चरखा कहते हैं। वो बहुत प्रचलित था। जिसे उठा कर महिलाएं कहीं पर भी सखियों में बैठ कर गाती, बतियाती सूत कात लेती थीं।
अहमदाबाद के टैक्सटाइल मालिकों और मजदूरों में 21 दिन से हड़ताल चल रही थी। जिसको सुलझाने के लिए गांधी जी ने  अनशन कर दिया। जिसके प्रभाव से, उसे तीन दिन में समाप्त कर दिया गया। यहीं से गांधी जी ने खेड़ा सत्याग्रह का सूत्रपात किया। रालेट समिति की सिफारिशों  का विरोध करने के लिए गांधी जी ने यहाँ राष्ट्रीय नेताओं का सम्मेलन आयोजित किया। 2 मार्च को वायसराय को पत्र लिख कर अवगत कराया कि वे नौ दिन का सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने जा रहें हैं। 12 मार्च 1930 को नमक कानून तोड़ने के लिए, बापू ने यहीं से अपने 78 साथियों के साथ दांडी यात्रा शुरू की थी। 330 मील पैदल चल कर, 6 अप्रैल 1930 को यह यह कानून तोड़ा था।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन  एवं दांडी यात्रा – –नमक बनाने पर  थोड़ा सा टैक्स बढाया गया हमारे समुद्रों में नमक बनता है इस सुअवसर का गांधी जी ने लाभ उठाया इसे जन जाग्रति आन्दोलन में बदल दिया गाँधी जी ने तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन से  नमक कानून रद्द करने के लिए कहा 12 मार्च 1930 के दिन सावर मती के आश्रम से 78 चुने हुए स्त्री पुरुष सहयोगियों के साथ गांधी जी का काफिला पैदल  ऐतिहासिक यात्रा पर निकल पड़ा आगे- आगे रास्ते में पड़ने वाले गावों में सरदार पटेल जन समर्थन जुटा रहे थे | वह  रास्ते के हर गावं में ठहरते सबको आजादी का अर्थ समझाते  गाँधी जी पैदल चल कर उनके पास से गुजर रहें हैं छोटा सा समूह बढ़ता गया –बढ़ता गया ,330 किलोमीटर की ऐतिहासिक यात्रा रास्ते में रुक – रुक कर गाँधी जी जन समूह को सम्बोधित कर आजादी की अलख जगा रहे थे | 6 अप्रैल के दिन बिना कर चुकाए गांधी जी ने अपनी झोली में नमक भर लिया  ऐतिहासिक यात्रा की गूंज पूरे देश में फैल गई जगह – जगह नमक कानून तोड़ा गया ब्रिटिश साम्राज्य हिल गया |गांधी जी कैद कर लिये  गये सरकार का जितना दमन चक्र चला उतना ही विरोध बढ़ गया.नमक सत्याग्रह दुनिया के सबसे प्रभावशाली आंदोलन में शामिल है। इस सत्याग्रह में राजा गोपालाचारी, पं. जवाहरलाल नेहरू के अलावा 8000 भारतीयों को सत्याग्रह के दौरान जेल में ठूंसा। देश विदेश में वाइस आफ अमेरिका के माध्यम से प्रस्तुति कि कानून भंग के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियां खायीं, पर पीछे नहीं मुड़े। मजबूर होकर लार्ड एर्विन ने गांधी जी से बातचीत का प्रस्ताव भेजा |  






Wednesday 10 October 2018

या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। नवरात्र नीलम भागी Navratra Neelam Bhagi




                                                   जबसे मैंने होश सम्भाला है, अपनी अम्मा के पास एक भजनों की कापी जो अब डायरी में तब्दील हो गई है, उसे देखा है। यह नवरात्रों में हमेशा बाहर नज़र आती है और इसमें नवरात्रों में भजनों में इजा़फा हो जाता । अम्मा को चिकनगुनिया हुआ था। जिसका असर ये हुआ कि 94 वर्षीय अम्मा, अब नवरात्रों के र्कीतन में नहीं जा पातीं। मेरी तरफ देखती रहतीं हैं कि मैं जाऊँ और आकर ,उन्हें आँखों देखा हाल सुनाऊं। मैं जाती हूं और कुछ अम्मा की प्रिय भजन गायिकाओं के विडियों बना लाती हूं। वे उसे देखती हैं फिर दिन भर भजन गुनगुनातीं हैं। हमारे सेक्टर में तीन शिफ्ट में नवरात्र का र्कीतन होता है। 11 से 1 बजे, 3 से 5 बजे और मंदिरों में कहीं दोपहर में तो कहीं सायं 6 से 8 बजे तक। इन शुभ दिनों में घरेलू और कामकाजी लोगो को अपनी सुविधानुसार  पूजा  भजन में जाने का मौका मिल जाता है। मेरी अम्मा इन दिनों बहुत व्यस्त रहतीं थीं। हर जगह बुलावे पर कीर्तन में जो जाना होता था। डायरी पकड़े यहाँ से वहाँ जातीं थी। नवमीं के दिन बड़ी उदासी से घर आतीं और अपनी डायरी सम्भाल के रख देतीं, अगले नवरात्र के  इंतजार में। जब मैं इस सेक्टर में आई थी ,तब से आशा जी  अपने यहाँ महीने के पहले मंगलवार को 11से 1 कीर्तन रखतीं आ रही हैं। इस तरह महिलाएं एक जगह मिलती हैं । समापन  के बाद बतियातीं हैं। इस दिन का सबको इंतजार रहता है। कुछ सालो बाद, मैंने अम्मा से पूछा कि आप लोगो का र्कीतन कैसा चल रहा है? वे बोलीं कि सबकी उम्र बढ़ गई है, अब ढोलक नहीं बजती, जो नई बहू बेटियाँ आ रहीं हैं वे ढोलक बजाना नहीं जानती हैं। जैसे मैं अम्मा का भजन सत्संग का लगाव, देखती वैसे ही औरों का भी होगा। ये सोच कर मैंने एक ढोलक वाला ढूंढा। उसे कहाकि तुझे घरेलू महिलाओं के साथ ढोलक बजानी है। वो सुर में गायें, बेसुरा गायें, तुझे उनके साथ ताल मिलानी है। साउंड सिस्टम उन्होंने अपना ले रखा है। वो तुरंत राजी हो गया क्योंकि प्रोफैशनल के साथ बजाने में तो वो दस कमियां इसमें निकालते यहां तो जैसे मर्जी ढोलक पर थाप दो। आशा जी को बताया, वे बहुत खुश हुईं। तब से वही ढोलक वाला ढोलक बजा रहा है और र्कीतन बढ़िया चल रहा है। पिछले साल रात को मनपसंद किताब मिल गई। मैं उसे पढ़ने में लीन थी। अम्मा ने देखा कि किताब के कारण मैं रात को भी कम सोई हूं। 12 बजे उनसे नहीं रहा गया वे बोलीं,’’एक बजे र्कीतन में आरती होगी। मैं जल्दी से भार्गव परिवार के घर गई। वहाँ श्रद्धा भक्ति से महिलाएं गा रहीं, नाच रहीं थीं। भजन के बाद एक ही बात दोहरातीं आज पहला नवरात्र हैं न, गला खुला नहीं हैं, धीरे धीरे खुल जायेगा। मैं वीडियो , तस्वीरें लेती हूं। समापन पर सबने अम्मा के बारे में पूछा। घर आकर अम्मा ने मोबाइल में वीडियो और तस्वीरें देखीं। फिर अपनी इच्छा बोली कि उनके मरने के बाद उनके भजनों की डायरी आशा को दे देना। तूं तो किताब पढ़ने के चक्कर में नवरात्र भी भूल गई। कोविड काल में पहले नवरात्र की पूजा अर्चना कर के अम्मा कह रही थी कि  मेरे 92 वें साल की उम्र में कोरॉना से बचाव के लिए, सब घर में परिवार के साथ नवरात्र की पूजा अर्चना कर रहे हैं। अगले नवरात्र पर सब पहले की तरह मनाएंगे, कीर्तन, जागरण और माता की चौंकिया होंगी। 
   आज 2 साल बाद नवरात्र का पहला कीर्तन डॉ बबीता शर्मा ने अपने घर सेक्टर 50 में करवाया।  हम गए और सभी महिलाएं बहुत खुश थी और एक ही बात बोल रही थी कि दो साल बाद हम इस तरह बैठे हैं और अपना भजन भूल जाती थी फिर  मोबाइल में से निकालती। कोई किसी को गाने को नहीं कह रहा था। पर एक के बाद एक भजन छोड़ रही थी। अपने आप उठ उठ के नाच रही थी और सब ने बहुत आनंद से कीर्तन किया और करोना को कोसा।










Sunday 7 October 2018

सफर में सामान कम रखने का यह फायदा !! SABERMATI Aashram साबरमती यात्रा भाग 2 नीलम भागी


                                           
हमारा लगेज़ हमारे साथ था। सफर में सामान कम रखने का यह फायदा हुआ कि अचानक बने प्रोग्राम में हम दोनो अपना अपना ट्रॉली बैग खींचते हुए चल रहे थे। बाहर एकदम व्यस्त सड़क, पर उस व्यस्त सड़क पर स्थित आश्रम में प्रवेश करते ही एकदम मौहोल बदल जाता है। वृक्षों से घिरे, सादगी और आश्रम की शांति ने हमारे अंदर एक अलग सा भाव पैदा किया। मेरे अंदर तो ये भाव था कि जिस बापू के नाम का जाप, मेरी दादी करती थीं, वो यहाँ रहते थे और मैं यहाँ खड़ी हूँ। काश! मेरी दादी होती तो कितनी खुश होती! 17 जून 1917 को इस आश्रम की स्थापना हुई थी। हमारे बाईं ओर लाल दीवार पर बापू हैं और कई भाषाओं में साबरमती आश्रम लिखा था। साथ में आश्रम का साइट मैप। आश्रम सैंट्रल जेल और दूधेश्वर श्मशान के बीच स्थित है और ऐसा कहा जाता है कि इसी स्थान पर महर्षि दधिची का आश्रम था, जिन्होंने देव दानव युद्ध में देवताओं को दानवों के नाश के लिए अपनी अस्थियाँ दान कर दीं थी। पीछे साबरमती बहती है इसलिये इसे साबरमती आश्रम कहतें हैं। यहाँ आने वाले देश विदेश के पर्यटक अपनी तस्वीरें लेते हैं। हम फिर गांधी स्मृति संग्राहलय जाते हैं। हममे से एक बाहर दोनों बैग के साथ बाहर खड़ी रहती और एक घूम आती थी। इसमें बापू की बचपन से लेकर मृत्यु तक के फोटोग्राफ, दस्तावेज़, 400 लेखों की मूल प्रतियाँ, भाषणों के सौ संग्रह, साबरमती आश्रम की 4000 पुस्तकें तथा महादेव देसाई की 3000 पुस्तकें हैं। इसमें बापू द्वारा लिखे गये पत्रों या उनको लिखे गये 30000 पत्रों की अनुक्रमणिका है। इन पत्रों में कुछ तो मूल रूप में हैं कुछ के माइक्रोफिल्म सुरक्षित हैं। यहाँ से बाहर आते हैं।
उस समय  पेयजल की आपूर्ति करने वाला कुआं भी बीचो बीच है।
 विनोबा भावे 1918 से 1921 तक यहाँ रहे उनकी कुटिया का नाम विनोबा कुटीर है। ब्रिटिश युवती मेडलीन स्लेड 1925 से 1933 तक यहाँ रहीं। बापू ने उनका नाम मीराबेन रक्खा था। उनके निवास का नाम मीरा कुटीर है। वैसे दोनों कुटीर को मित्र कुटीर कहते हैं। इसके पीछे साबरमती बहती है। विनोबा कुटीर के बराबर से  साबरमती में सीढ़ियाँ जाती हैं। आखिरी सीढ़ी से पहले लोहे का बड़ा सा गेट लगा कर उसे बंद किया गया है ।
हृदय कुंज में बापू ने 12 वर्ष तक कस्तूरबा के साथ निवास किया। यह आश्रम के बीचो बीच है। इसका नामकरण काका साहब कालेकर ने किया था। 1919 से 1930 तक वे यहाँ रहे। कस्तूरबा का कमरा उनकी रसोई बर्तन भांडे सब लगे हैं। यहाँ बापू का चरखा है। उनके लेखन सामग्री और लिखने की डेस्क है।
मगन निवास और हृदय कुंज के बीच खुला स्थान प्रार्थना भूमि है। यहाँ सब सुबह शाम एकत्रित होते थे। बापू यहाँ अपने अनुयायिओं के प्रश्नों के उत्तर देते थे। इस स्थान पर कई एतिहासिक निर्णय लिए गये। इसलिये यह स्थान कई एतिहासिक निर्णयों का साक्षी है।
हृदय कुंज के बाईं ओर स्थित नंदिनी अतिथी गृह है, यहाँ देश के जाने माने स्वतंत्रता सेनानी जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सी राजागोपालाचारी, दीनबंधु एंड्रयूज, रवीन्द्र नाथ टैगोर आदि जब भी अहमदाबाद आते थे तो यहीं आकर ठहरते थे। मगन निवास  मैनेजर का था। मगन मैनेजर बापू के प्रिय लोगो में से एक हैं।             








Tuesday 2 October 2018

मैंने जात नहीं, पानी मांगा साबरमती आश्रम यात्रा भाग 1 SABERMATI नीलम भागी


किसी आवश्यक काम से डॉ. शोभा भारद्वाज और मैं अहमदाबाद जा रहे थे। वहां सुबह दस बजे हम पहुंच कर, रात रूक कर, अगले दिन शाम को हमें लौटना था। हमारी नौ और बारह न0 सीट थी। 10,11,13,14 न0 सीट पर आई.टी. के युवा लड़के थे। वे बैंगलौर में नौकरी करते थे। गुजरात में चुनाव था और उनके घर आने का मकसद, घर आने के साथ साथ मतदान का प्रयोग था। 15 न0 सीट पर कोई रिर्पोटर चुनाव की रिर्पोटिंग के लिए जा रहा था। 16 न0 वाला लोकल अहमदाबाद का था। राजधानी गाड़ी थी। शोभा राजनीति में डॉक्टरेट, चाय पे चुनाव चर्चा शुरू हुई जो रात आइसक्रीम मिलने तक चली। रिर्पोंटर और शोभा कोई न कोई टॉपिक उछाल देते, युवा लाल पीले होकर उस पर बहस करते रहते। राजनीति की कम समझ  रखने वाली मैं, बीच बीच मेंं पता नहीं क्या बोल जाती, सब हंसने लग जाते। रिर्पोटर सोने से पहले मुझे से बोला कि अहमदाबाद में मैं आपकी उस लोकेशन में कुछ बाइट्स लूंगा। मैंने कहा कि मैं दे दूंगी, कहकर सो गई।  सुबह नाश्ते के समय पता नहीं कहाँ से बहस में गांधी जी आ गये। 16 न0  वाले के अंदर, न जाने  कितना बापू के प्रति विष भरा हुआ था! वह बोला कि वह रोज साबरमती आश्रम के आगे से गुजरता है। लेकिन वह कभी उसके अंदर नहीं गया। मैंने उससे आश्रम जाने का रास्ता समझा और वहाँ से अहमदाबाद कैसे जाना है समझा। ऑटो टैक्सी के रेट समझे। साबरमती स्टेशन के आते ही, मैंने शोभा से कहा कि हमें उतरना है। उसने छोटी की आ़ज्ञा का पालन किया। हम उतर कर स्टेशन से बाहर आये। ऑटो वाले से साठ रूपये में साबरमती आश्रम के लिये भाड़ा तय किया और पहुँच गये बापू धाम। हम बहुत खुश थीं। शोभा तो बापू को जीवन भर पढ़ती आई है और उन पर लेख लिखती है। मैं उससे सुनकर और उनके लेखों और बचपन से आस पास के माहौल के कारण बापूमय हूं। मैंने नानी दादी को  खाली समय में हमेशा चरखा कातते देखा था। बड़े मामा को छोड़ कर छोटे तीनों मामा को जीवनपर्यन्त खादी पहने देखा था। कपूरथला मेंं छोटे मामा निरंजन दास जोशी, वे बैंक मैनेजर थे। बैंक भी खादी की धोती कुर्ता और टोपी लगा कर जाते थे। उनके  संपर्क मेंं ज्यादा रहीं थीं इसलिए मेरा भी खादी से बहुत लगाव है। मेरठ में हमारे पड़ोस में एक विधवा महिला सुबह सुबह जल्दी से घर के काम निपटा कर, चरखा कातने  बैठ जाती थी। चरखे के लोकगीत गुनगुनाती रहती और हाथ चलाती रहती थी। दोपहर में पास पड़ोस की महिलाएं इस चरखे वाली मौसी के पास जाकर बतियाने बैठ जातीं। अब वह सुनने का भी काम करती पर परिवार की जिम्मेवारियां उसे हाथ रोकने की इजा़जत नहीं देतीं थीं। मेरी दादी हमेशा कहती कि गांधी चरखे ने इसके बच्चे पाल दिये। दादी का अपने काते सूत से सब नाती पोतियों को शादी में देने के लिए एक एक खेस बनाने का मिशन था। जिसमें वह लगी रहती थीं। नानी ने एक एक दरी देने की ठानी थी। हमारे दोनों परिवारों में इसलिये चरखा जरूर चलता था। ये महिलाएं और इनकी सहेलियां मजा़ल है, अपना एक मिनट भी व्यर्थ कर दें। इनका कहना था कि जब इतना विलायत का पढ़ा, महात्मा गांधी चरखा कात सकता है तो हमने तो स्कूल की शक्ल भी नहीं देखी। इसमें सबको मोटिवेट करने में,  मेरी दादी का भी बड़ा योगदान था। वह पढ़ना जानती थी, लिखना नहीं। अखबार या कुछ भी छपा हुआ ले जाकर, उन्हें पढ़ कर सुनाती, विषय उनका चरखा और गांधी ही होता था। मुझे वह हमेशा साथ रखती थी ताकि अम्मा घर के काम निपटा ले। दादी गांधी जी से इतनी प्रभावित थीं कि शाम चौरासी (पंजाब में हमारा गांव), इलाहाबाद और मेरठ जहाँ भी रहीं, उन्होंने महिलाओं को चरखे में व्यस्त रक्खा। यही कारण है कि गांधी जयंती पर आयोजकों के आमंत्रण पर मैं कोशिश करती हूं,  सब जगह पहुंचने की। बापू पर सबके विचार सुनना मुझे अच्छा लगता है। गांधी पिक्चर को मैं जब भी देखती हूं, ऐसे देखती हूं, जैसे पहली बार देख रहीं हूं। साबरमती आश्रम जाये बिना मैं भला कैसे रह सकती थी!! क्रमशः