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हम महिलायेंं राजा राम मोहन राय और बापू की ऋणी
हैं Sabermati यात्रा भाग 5
नीलम भागी
गाँधी जी के समय में महिलाओं को वह आजादी नहीं थी, जिस आजादी की वह हक दार हैं। गाँधी जी कहते थे
एक बेटी को पढा़ना ,पूरे कुल को पढ़ाने जैसा है | पढ़ी लिखी माँ आगे अपनी सन्तान की शिक्षा का
भी ध्यान रखेगी, तभी समाज में सुधार आयेगा. गाँधी जी ऐसे समाज की कल्पना करते थे, जिसमें
बालिका को समान अधिकार हों. यदि स्त्रियाँ या बालिकायें अशिक्षित रहेंगी, देश उन्नति
नहीं कर सकेगा | वह पुत्र और पुत्री दोनों को समान मानते थे | गाँधी जी बालक
बालिकाओं की सह शिक्षा के समर्थक थे | वे कहते थे," मैं लड़कियों को सात तालों में बंद
रखने का बिलकुल समर्थन नहीं करता, लड़के लड़कियों को साथ पढ़ने, मिलने जुलने का
मौका मिलना चाहिए।" आश्रम में यदि कभी कभार लड़के लड़कियों में कोई अनुचित
व्यवहार की घटना हो जाती थी तो गाँधी जी प्रायश्चित में स्वयं उपवास करते थे . केवल शिक्षा ही नहीं, उनकी स्थिति
में सुधार कर उन्हें आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत बनाना चाहिए। उनके अनुसार
हमारे कुछ ग्रन्थ महिलाओं को पुरुष के मुकाबले हीन मानते हैं, ऐसा सोचना
गलत है। स्त्री के लिए आजादी और स्वाधीनता जरूरी है। कई महिलाओं ने स्वतन्त्रता संग्राम में
हिस्सा लिया। वे विदेशी वस्तुओं की दुकानों में पिकेटिंग करती थी। उनका
बहिष्कार करने के लिए लोगों को समझाती थी। स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनका योगदान कम नहीं
था । उसमें पुरुष के मुकाबले बौद्धिक क्षमता कम नहीं होती। गाँधी जी दहेज प्रथा के विरोधी थे। उनके अनुसार अपनी बेटी को पढ़ने का अवसर दो, यही सबसे बड़ा दहेज हैं |
उन्होंने कालेज के छात्रों को फटकारा वे
स्त्रियों को घर की दासी समझते हैं. उन्हें इस बात का बहुत दुःख था. दहेज ने योग्य
पुरुषों को बिकाऊ बना दिया है | वह कहते थे,” यदि मेरे कोइ लड़की होती, मैं उसे जीवन भर कुवारी रख लेता लेकिन
ऐसे पुरुष से विवाह नहीं करता जो दहेज में एक कोड़ी भी मांगे , वह विवाह में तड़क भड़क के विरोधी थे. वह बाल विवाह के विरोधी थे। उनके अनुसार जब भी मैं किसी तेरह वर्ष के बालक को
देखता हूँ, मुझे अपने विवाह की याद आ जाती है. गोद में बिठाने लायक बच्ची को पत्नी
रूप में ग्रहण करने में मुझे कोई धर्म नजर नहीं आता | वे विधवाओं के
पुनर्विवाह का वह समर्थन करते थे, कुछ परिस्थितियों में वह
तलाक के भी पक्ष धर थे। उन्होंने जेल से एक हिन्दू स्त्री को अपना आशीष भेजा ,जो अपने पहले पति को त्याग कर दूसरा विवाह करने जा रही थी। गाँधी जी कट्टर सनातनी थे परन्तु जाति, संप्रदाय के बाहर विवाह का समर्थन करते थे| देश आजाद हुआ भारत के संविधान में स्त्रियों को समान अधिकार दिये। हम महिलाएं राजा
राम मोहन राय की ऋणी हैं, जिन्होंने हमारी पूर्वज महिला समाज को चिता से उठाया . इतिहासकार
इबनबतूता भारत की यात्रा पर आये थे। उन्होंने एक प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि
मैं एक क्षेत्र से गुजर रहा था। मैंने देखा, एक लड़की उसकी उम्र मुझे अधिक नहीं लगी। वह पूरी तरह दुल्हन की तरह सजी हुई थी। लेकिन लड़खड़ा कर सहारे से चल रही थी। आगे
-आगे एक अर्थी जा रही थी। एक श्मशान के पास जलूस रुक गया। वहाँ एक चिता चुनी गई,
चिता में मृत शरीर के साथ उस लड़की को बिठाया गया, चारोंं तरफ लाठियाँ लेकर कुछ लोग
खड़े थे और तेज बाजे बज रहे थे। उस लडकी ने भागने की कोशिश की ,उसे वहीं चिता में
दबा कर ज़िंदा जला दिया गया। यह नजारा मैं सह नहीं सका. मैं बेहोश हो गया | राजाराम मोहन राय की बहन विधवा हुई। वह छोटी
थी। उसके पति की मृत्यु के बाद उसे सती कर दिया गया। वह छोटे थे, कुछ नहीं कर सके, इसका उनके दिल पर बहुत असर पड़ा. उन्होंने इस कुरीति को जड़ से उखाड़ फेकने की
प्रतिज्ञा की। उनके और अंग्रेज वायसराय लार्ड बैटिंक के प्रयत्नों के परिणाम
स्वरूप सती प्रथा पर रोक लगी। उनके समकालीन अनेक समाज सुधारकों ने बाल
विवाह ,
पर रोक लगाने की
कोशिश की विधवाओं की दशा सुधारने का, उनके दुबारा विवाह का प्रयत्न किया। राजाराम मोहनराय ने महिलाओं को चिता से उठाया तो महात्मा गाँधी ने महिलाओं को सम्मान से जीने
का हक एवं अधिकार देने की वकालत की।
गाँधी जी स्वस्थ शरीर पर बल देते थे उनके
अनुसार स्वस्थ शरीर के लिए हृदय और मस्तिष्क से गंदे अशुद्ध और निकम्मे विचार
निकाल देने चाहिए। यदि मन चंगा होगा तो शरीर भी स्वस्थ होगा इसलिए शरीर
और मन में तालमेल जरूरी है। सभी को प्रात:
कल उठ कर ताज़ी हवा का सेवन करना चाहिए अपने परिवेश को साफ़ सुथरा रखें. सदैव चुस्त
रहें सीधे बैठें और खड़े भी सीधे रहें | भोजन उतना करें, जितना शरीर की जरूरत है.
ठूस- ठूंस कर कभी न खायें । हर कौर को चबा – चबा कर खायें | खाना इसलिए खाना चाहिए शरीर में ताकत रहे। मानव बंधुओ की सेवा कर सकें | जैसा भोजन करेंगे, वैसा ही मन बनता हैं | वह शाकाहारी भोजन के पक्षधर थे उनकी पत्नी और
बेटा बीमार था, डाक्टर ने उन्हें मांंस का शोरबा देने की सलाह दी. उन्होंने डाक्टर
की बात नहीं मानी |
उनके आश्रम में
विभिन्न जातियों धर्मों के लोग रहते थे. सफाई का पूरा काम आश्रमवासी खुद करते थे,
कहीं भी गंदगी या कूड़ा दिखाई नहीं देता था | सब्जियों के
छिलकों और जूठन को खाद बनाने वाले गढ्डे में डाल दिया जाता, उसे मिट्टी से ढक दिया
जाता जिससे खाद बनाई जाती. इस्तेमाल किये गये पानी से बाग़ की सिंंचाई होती | मल मूत्र दोनों
के लिए अलग व्यवस्था थी. गाँधी जी के आश्रमवासियों स्त्री और पुरुष के मन से
गंदगी के प्रति घृणा समाप्त हो चुकी थी | अब भी कुछ यहां आने वाले पर्यटक खा कर रेपर आश्रम परिसर में
कहीं भी फेंक देते हैं. यह देख मुझे अच्छा नहीं लगा। साबरमती मेंं आना मुझे तीर्थ यात्रा लगा। अब मैं बापूधाम मोतीहारी , चम्पपारण जा रहीं हूं और आपसे अपनी यात्रा शेयर करूंगी.