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Friday 21 December 2018

मैंने क्या जुल्म किया आप ख़फा़ हो बैठे Meine Kya Julm Kiya aap khafa ho baithe Neelam Bhagi नीलम भागी

                                                                                               
                                      नीलम भागी
हुआ यूं कि मेरे घर और मार्किट जहाँ हमारी दुकान है वहाँ सड़क के किनारे एक विद्यालय की बाउण्ड्री वॉल है। पुरूष समूह ने दीवार के थोड़े से हिस्से को मू़त्रालय में तब्दील कर दिया था। वहां हमेशा कोई न कोई मूत्र विसर्जन करता रहता था। बहुत चलती हुई सड़क है। जिससे महिलाओं को वहाँ से गुजरने में असुविधा होती थी। बाकि दीवार के साथ साथ अस्थायी दुकाने लग गई हैं। दीवार मूत्रालय के बारे में मैंने कई बार संवाद में लिखा था कि मूत्रगंध के कारण वहाँ से निकलना दुश्वार है। अब एक दिन मैं जब वहाँ से दोपहर को गुजर रही थी तो मूत्रगंध के बजाय कुछ तलने की खूशबू आ रही थी पर उधर  देखने की तो आदत ही नहीं थी इसलिये नहीं देखा। अब रोज  गुजरती तो खाने की महक से वह जगह महकती। कुछ दिन बाद पता चला कि वहाँ परांठे का ठेला, सुबह नौ बजे से तीन बजे तक लग गया है। अगले दिन मैंने देखा कि एक महिला परांठे बना रही है। मंदी आंच पर सिंके लाल परांठे, दो आदमी खा रहें हैं। साथ में बूंदी के रायते का गिलास था। ठेले के एक हिस्से में उनका छ या सात महीने का बच्चा गहरी नींद में सड़क के शोरगुल से बेखबर सो रहा था। उसका सेहतमंद पति स्टूल पर बैठा ग्राहक अटैण्ड कर रहा था। मैं उसी समय समझ गई कि इस महिला के परांठों का स्वाद, ग्राहकों को खींच कर लायेगा। इसका भी एक कारण था। दिल्ली नौएडा सड़क किनारे परांठे वालों को मैंने जब भी परांठे बनाते देखा है। वे तेज आंच पर काले चकत्ते वाले जल्दी जल्दी परांठे बना रहे होते हैं। उनका घी परांठे में कम धूंए में ज्यादा तब्दील होता है। ये महिला राजरानी आसपास की दुनिया से बेख़बर, बड़ी लगन से परांठा सेक रही होती हैं। कुछ दिन बाद उसके पति सेवाराम ने एक लड़का परांठे बेलने के लिए रख दिया। ग्राहक बड़ गये तो राजरानी ने दो तवे लगा लिए पर परांठा उसी प्रीत से सेकती। सेवाराम सेल पर और बेटे राजकुमार का ध्यान रखता। जब मैं उनके ठेले के आगे से निकलती, वे मुझे अभिवादन में ’’दीदी, रामराम जी ’’ कहना नहीं भूलते। अपने बड़े परिवार के सबसे छोटे बच्चे की वॉकर, प्रैम मैं राजकुमार के लिए ले आई। वह बैठा खाने वालों को और काम करते माँ बाप को देखता रहता और खुश होता रहता है। तीन बजते ही सेवाराम हाथ में चार सौ रूपये ताश के पत्तों की तरह पकड़ कर खुशी से कूदता हुआ, हमारी मार्किट में आता है। मैं सोचती कि ये कल के लिये सामान लेने आता है। राजरानी इतनी देर में वहाँ बरतन साफ कर लेती। सफाई कर लेती। क्योंकि उसके बाद उस जगह पर किसी साउथ इंडियन का डोसे का ठेला लगता है। सेवाराम के आते ही ये अपने घर चल पड़ते। एक दिन सेवाराम उसी स्टाइल में नोट पकड़े चला आ रहा था। मैंने दिनेश मकैनिक से पूछा कि ये नोट ऐसे पकड़ कर क्यों आता है? उसने जवाब दिया,’’दीदी, इसको तो पीने को थैली भी नसीब नहीं होती थी, अब परांठे मशहूर हो गये हैं तो ये अंग्रेजी पीता है। इससे अपनी खुशी नहीं संभलती। देखना, ये बोतल हाथ में लेकर सबसे बतियाता, दिखाता आयेगा।’’ हमारे बाजू की दुकान ही तो इंगलिश वाइन शॉप है। वहाँ पीने की मनाही है। वरांडे में हमने टैंपरेरी दीवार लगा रक्खी है। ताकि उस तरफ का कुछ न दिखे। जब मैंने ध्यान दिया, सेवाराम हाथ में बोतल पकड़े दुकान के आगे से गुजरा, मेरी आँखे उसका पीछा करती रहीं। वह बोतल दिखाता, रेड़ी ठेले वालों से दुआ सलाम करता, उनके पास रूक रूक कर जा रहा था। ये देखते ही मेरे दिमाग में कुछ प्रश्न खड़े हो गये हो गये, जिसका जवाब राजरानी ही दे सकती थी पर सेवाराम तो उसके सिर पर हमेशा सवार रहता है। अगले दिन जैसे ही दूर से नोट पकड़े सेवाराम आता दिखा। मैंने जगदीश से कहा,’’दुकान का ध्यान रखना, मैं अभी आई।’’ राजरानी के पास जाकर मैंने उसकी दिनचर्या पूछी, उसने बताया कि लौटते हुए वे कल के लिए सामान खरीद लेते हैं। घर पहुंच कर वह घर के काम निपटाती है। सेवाराम बच्चे को देखता है। मैं जल्दी रात का खाना बना लेती हूं। फिर मैं राजकुमार को संभाल लेती हूं। ये आराम से अपना पीना खाना कर लेते हैं। सुबह मैं जल्दी उठ कर आटा गूदंना, पराठों का मसाला तैयार करना, रायता बनाना करती हूं। तब तक इनका नशा टूट जाता है और ये उठ जाते हैं। इनके लिए चाय नाश्ता तैयार करती हूं। ये तैयार हो जाते हैं फिर मैं राजकुमार की तैयारी करती हूं। मैंने पूछा कि ये दारू क्यों पीता है? जवाब में वह बोली,’’दीदी, इनका दिमाग बहुत थक जाते हैं, पैसे गिनना, परांठे गिनना हिसाब रखना और इनको बहुत टैंशन है।’’मैंने पूछा,’’क्या टैंशन है?’’वो बोली,’’दीदी, फटाफट महीना बीत जाता है। कोठरी का किराया देना पड़ता है। मीटर चलता जाता है, बिजली का बिल बढ़ता जाता है। इनका दिल है राजकुमार को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने का, इसकी भी टैंशन।’’वो तो इतनी टैंशन बता रही थी कि मैं उस पर थिसिस लिख सकती थी। दिल तो किया कि इसे कहूं कि तूं भी तो दिन भर खटती है। तूं भी टैंशन की दवा पी लिया कर। पर उसी समय मुझे शौक़ बहराइची की लाइन याद आ गई ’र्बबाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था’ न जाने कब से सेवा राम पीछे खड़ा हमारी बातें सुन रहा था। उसे देखते ही मैं दुकान पर चल दी। अगले दिन से मैं ठेले के आगे से गुजरी, उन्होंने मुझे रामराम जी करना बंद कर दिया है। मैंने किया तो मुहं फेर लिया। मैं ऐसी क्यूं हूं?  जब पुरानी मार्केट मेंं हलवाई के लिए एलौट दुकान मेंं अंग्रेजी शराब की दुकान खुलेगी, तो यही सब देखने को तो मिलेगा न।   
  बहुमत मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में यह लेख प्रकाशित हुआ।


15 comments:

rakesh kumar said...

हेलो मैम बहुत ही अच्छी कहानी है किसी का अच्छा सोचना भी गलत है आजकल किसी को अच्छी सलाह देना भी गलत है अच्छा समझने के बजाय गलत समझने लगता है दारू व्हिस्की और रम से मिटाते हैं हम गम, गम तो नहीं मिलते एक दिन मिट जाते हैं हम

Neelam Bhagi said...

लाजवाब कमेंट

सुरेश शर्मा said...

एक कहावत यहां सटीक होती है कि "गधे की आंख में काजल डालो वो कहता है मेरी आँख फोड़ दी"

Unknown said...

Bhut badhiya mam. Keep up the good work

Good Indian Girl said...

Zabardast 😂😂😂

Unknown said...

बहुत सुन्दर बर्डन किया है

Unknown said...

आपकी कहानी से हमें प्रोत्साहन मिलता है

पूजा त्रिवेदी रावल said...

मेम, माफ़ी चाहती हूं, पर यह किया धराया राजरानी का ही तो है। और उपर से उसे अपना वजूद ही नहीं पता।
आपका तिरस्कार इसलिए क्यूक कहीं आपको मिलने से वह अपना वजूद ना जान ले।
पर उसे यह नहीं पता कि

किस्मत सबकी लिखी होती है ऊपरवाले ने
राह बदलने के इशारे भी किते होते हैं ऊपरवाले ने
निमित्त बनाकर हमको उसने सराहा है आशना बनाकर
वरना इनायत कहां नसीब होती है सबको, कायनात की डोर संभाली है ऊपरवाले ने।

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

लाज़वाब , हाय मेरी इ्ज़त का रखवाला भी पढ़ो

Madhu Tripathi said...

हर जगह यही दुर्दशा है

Neelam Bhagi said...

सच मधु