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Saturday, 26 January 2019

जनकपुर नेपाल से मुज्जफरपुर बिहार यात्रा भाग 13 Janakpur se Muzaffarpur Bihar yatra नीलम भागी


जनकपुर नेपाल से मुज्ज्फरपुर बिहार यात्रा भाग 13


                                नीलम भागी

 जनकपुर नेपाल और नौलखा मंदिर का लेख पढ़कर गोविंद मिश्रा जी का कमेंट आया कि वहाँ सौर्न्दयीकरण किया जा रहा है। इसलिये हमें ऐसा रास्ता मिला था। खराब सड़क जीरो माइलेज़ से शुरू हो रही थी। वहाँ तक हम जल्दी से पहुँचे। आगे वही बिना स्ट्रीट लाइट के धूल मिट्टी की सड़क थी, सूरज डूब रहा था। गाय बकरियाँ झुण्डों में अपने डेरों में लौट रहीं थी। धूप नहीं थी शायद इसलिये जगह जगह साप्ताहिक बाजार लगे हुए थे। जहाँ लोग अपनी जरूरत का सामान ले रहे थे। हमने ठान रक्खा था कि लौटते समय भी उस छप्पर वाले की चाय पियेंगे। पर लौटते समय राजा बहुत जल्दी स्लिप लौटा कर आ गया। हम छप्पर खोज ही नहीं पाये। रात हो गई थी।  अब हमें लीचियों, आम और शहद के लिए मशहूर शहर मुज्जफरपुर जाना था। जिसे स्वीटसिटी भी कहते हैं, वहाँ पहुँचना था। मोड़ पर गाड़ी रोक, राजा उतर कर न जाने कहाँ चला गया? हमारे पीछे जाम लगना शुरू हो गया। अचानक एक आदमी ने गाड़ी का दरवाजा खोला, ड्राइविंग सीट पर बैठा और उसने गाड़ी र्स्टाट कर दी। मैं दरवाजा खुलते ही एकदम बोली,’’आप क्या कर रहे हो?’’ उसने जवाब गाड़ी र्स्टाट करके ही दिया,’’टेंशन काहे ले रहीं हैं। गाड़ी साइड में लगा रहें हैं। आपकी गाड़ी के चक्कर में, हम पूरे देश को तो नहीं रोक सकते न।’’ गाड़ी साइड में लगा, वो ये जा, वो जा। मैं दूर दूर तक नज़रें दौड़ा कर राजा को खोज रही थी। कुछ देर बाद राजा आया। सबने उस पर कोरस में प्रश्न दागा,’’कहाँ थे?’’उसने सबके चेहरों पर एक नज़र डाली, अपनी सीट पर बैठा और तब जवाब दिया,’’ र्चाजर खराब हो गए थे, नया लायें हैं न
।’’ अब मेरी समझ में आया कि लौटते समय गाने क्यों नहीं सुनने को मिले?’’ अब हमें थोड़ा टूटे पुलों और कच्ची सड़कों का रास्ता पार कर फिर हाई वे से 103 किमी की दूरी तय करके मुज्जफरपुर पहुंचना था।1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद ये क्षेत्र सीधे अंग्रेजी हुकूमत के आधीन हो गया था। इसका नाम ब्रिटिश राजस्व अधिकारी मुज्जफर खान के नाम पर मुज्जफरपुर पड़ा। यहाँ गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती और लखनदेई नदियों के कारण ही भूमि बहुत उर्वरक है। यहाँ सड़क बहुत अच्छी मिली। रात नौ बजे हम होटल र्मौया रेजी़डेंसी, गोबरशाही चौक पहुँचे। चाय पी कर थोड़ा आराम किया। फिर डाइनिंग हॉल में गये और लाजवाब खाने का आनन्द उठाया। दिनभर के थके थे ,सो गये। सुबह नाश्ते में खस्ता कचौड़ी, स्वादिष्ट सब्जी और अफगान जलेबी खायी। बिहार और नेपाल में जलेबी का आकार कुछ अलग सा देखने को मिला। मुझे अफगान जलेबी का गाना बहुत अच्छा लगता है। इसलिये यहाँ की जलेबी के लिए मुंह से अफगान जलेबी ही निकला। बापू पर संगोष्ठी में श्री संजय पंकज जैसे लाजवाब वक्ताओं को सुना। लंच भी बढ़िया मिला। अगर मैं कभी दोबारा मुज्जफरपुर गई तो इसी होटल में खाना खाउंगी।    


यहाँ भी बापू दो बार आये थे और अपनी दो यात्राओं में इस क्षेत्र के लोगों में स्वाधीनता की चाह की नई जान फूंकी। स्वतंत्रता सेनानी खुदी राम बोस, जुब्बा साहनी, योगेन्द्र शुक्ल, शुक्ल बंधु, रामसंजीवन ठाकुर, पण्डित सहदेव झा और इनके क्रांतिकारी साथियों ने नमक सत्याग्रह 1930 और भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। जुब्बा साहनी ने 16 अगस्त 1942 को मीनापुर थाने के इंर्चाज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था।  बाद में पकड़े जाने पर 11 मार्च 1944 को जुब्बा साहनी को फांसी दे दी गई। उनकी याद में यहाँ अमर शहीद जुब्बा साहनी पार्क बनाया गया है। शहीद खुदीराम स्मारक भी। इस शहर ने देश को नामी साहित्यकार  बाबू देवकी नंदन खत्री, दिनकर, रामवृक्ष, बेनीपुर, जानकी बल्लभ शास्त्री आदि भी दिए हैं। बसोकुंड जैनियों का र्तीथस्थल है। जैन धर्म  के तीर्थांकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली के निकट बसोकुंड में लिच्छवी कुल में हुआ था। यहाँ अहिंसा एवं प्राकृत शिक्षा संस्थान भी हैं। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह अत्यंत पवित्र स्थान है। बाबा गरीबनाथ मंदिर से लोगों की बहुत आस्था जुड़ी हुई है। इस शिव मंदिर की देवघर के समान ही श्रद्धा है। सावन के महिने में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने वालों की भीड़ लगी होती है। सूती वस्त्र और लोहे की चूड़ियों के लिये मुज्जफरपुर मशहूर है। हिंदु मुस्लिम दोनों सभ्यतायें यहाँ गहरे से मिली हुई हैं। यही यहाँ की सांस्कृतिक पहचान है। अब हमें दरभंगा के लिये निकलना है।      




5 comments:

Unknown said...

यात्रा प्रसंगों के साथ साथ इतिहास की जानकारी बहुत आन्दनदायक है । आप सबकी आगे की यात्रा भी और मंगलमय हो।

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

अनुराग चतुर्वेदी said...

आपके लेख आते है तो पढ़ने और अप्रुव की होड़ में हमेशा पहले पढ़ना ही जीतता है। माफ कजिए इसी स।वार्थ में आपको प्री अप्रुवल भी नहीं करता..����

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार