कविता बेरी को फरवरी 2013 को पता चला कि उन्हें कैंसर है और वो भी सेकण्ड स्टेज में है। जब वे इलाज के लिये जा रहीं थीं तो मुड़मुड़ के अपने लगाए पौधों को देख रहीं थीं और मैं अपने घर से उन्हें जाते हुए देख रही थी।
सालों से मैं सुबह सोकर उठती और बाहर नज़र जाते ही, उन्हें पौधों में पानी लगाते या देखभाल करते हुए देखती। अब परिवार का कोई सदस्य अपनी सुविधानुसार पौधों को पानी देता था और मैं उन्हें याद करती थी। उनके पौधे भी जरूर उनको मिस करते होंगे, तभी तो उन दिनों उनके पौधों की चमक फीकी पड़ गई थी। हो सकता है ये मेरी सोच हो| उन दिनों मुझे उनके पौधों को देख कर उनमें कुछ कमी लगती थी। क्या लगती थी!! जो महसूस करती थी, उसे लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीँ हैं| इलाज के बाद वे घर लौटीं तो सबसे पहले वे अपने पौधों के पास कुछ देर खड़ी र्हुइं, फिर अपने कमरे में गई। चलने फिरने लायक होते ही वे पौधों में लग गई। जगह नहीं है पर गमलों से बगिया बना रक्खी है। बीज और पौधे कभी खराब नहीं होने देतीं, उन्हें पर्यावरण प्रेमियों में बांट देती हैं।1985 को यहाँ रहने आई, पहले गुलाब लगातीं थी पर फूल तोड़ने वालों से परेशान होकर अब वे दूसरे पौधों में मन लगाने लगीं। सुबह पौधों को पानी देने का नियम है। जिस दिन नहीं दिखतीं, सबको उनकी चिंता होने लगती है। उनका पौधों से लगाव उन्हें खुश रखता है और पौधों को स्वस्थ। पौधे लगाएं और अपने हिस्से का वायु प्रदूषण घटाएं इस विचार के अंर्तगत उन्हें हमारे सेक्टर की आरडब्लूए ने 26 जनवरी को सम्मानित किया है।
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