मैं नौएडा की बांस बल्ली मार्किट से मैट्रो स्टेशन की ओर जा रही थी। मेरे दाएं ओर सड़क के पार अस्थायी दुकानों में बिकने के लिये अनगिनत तिरंगे लहरा रहे थे। भीड़ बहुत थी इसलिये मैं वहाँ से तस्वीर नहीं ले पा रही थी। मैंने ऑटो का बिल चुका कर, सड़क पार की। सड़क पर आगे अस्थाई दुकाने और पीछे दोनो ओर झुग्गियां हैं। मैं ये देख कर हैरान की जाम न लग जाये इसलिये शेयरिंग ऑटोवाले ऑटो रोकते, बिना गाड़ी से उतरे, बिना दाम पूछे, जल्दी से पैसे देते तिरंगा लेते और चल पड़ते। जो दाम पूछते वे नहीं लेते और ये कहते हुए जाते कि भाई सवारी मिलती रही तो शाम तक यही वाला झण्डा लूंगा। सड़क पार एक ऑटो वाला ऑटो स्लो करके जोर से दहाड़ा,’’अरे मेरा झण्डा नहीं लाया न।’’दुकानदार ने भी फुल वॉल्यूम में जवाब दिया,’’जनाब, बहुत मंहगा है। रेट सुनकर आपको बहुत जोर का झटका लगेगा।’’वो जवाब में बोला,’’रेट तो मेरी जेब से जायेगा न, तुझे काहे का रोना।’’ मैंने उसे रूकने का इशारा किया, वह रूका और उसने पूछा,’’कहाँ जाना है?’’ मैंने कहा कि मैट्रो स्टेशन। सवारियों से भरे हुए ऑटो में उसने सीट पर बैठे बच्चे को मां की गोद में बिठवाया। सवारियों को आगे पीछे खिस्कवा कर , तीन के बैठने की जगह में चौथी मुझे सीट पर बिठवाया। मैं भी पचास प्रतिशत कूल्हे सीट पर टिका कर, ऑटो को पकड़ कर हवा में लटक गई। उसका गाड़ी चलाते हुए व्याख्यान साथ साथ चलता जा रहा था कि बस ये सवारियां उतरने ही वाली हैं। सवारियां उतरती जा रहीं थीं और उसे दस रूपये देती जा रहीं थी। आराम से बैठने की जगह होते ही मैंने उसका नाम पूछा, उसने अपना नाम पुरषोत्तम बताया। मैंने उस पर अगला प्रश्न दागा,’’तुम्हें कैसा झण्डा चाहिए?’’उसने जवाब दिया,’’मैडम जी, झण्डा तो तिरंगा ही होता है। पर मुझे तो बड़ा और ऊँचा चाहिये। ताकि दूर से पता चले कि पुरषोत्तम का झण्डा सबसे ऊँचा है।’’और शुर्तुगर्मुग की तरह गर्दन को आगे पीछे करके गाता जा रहा था ’झण्डा ऊंचा रहे हमारा।’ इतने में चार छात्र उतरें, उन्होंने उसे पाँच पाँच के सिक्के दिए। मैंने कहाकि ये ज्यादा दूर तक आयें हैं, इनसे तुमने पाँच रूपये लिये हैं। वह बोला,’’हमने नेताओं की तरह प्रचार नहीं किया है। जब किराया पाँच से दस रूपया हुआ तो अगले दिन स्कूलों के बच्चों ने पाँच रूपये पकड़ाये हमने कुछ नहीं कहा, चुपचाप रख लिये। सभी ऐसा ही करते हैं। हम सब ये सोच लेते हैं कि इनके माँ बाप पढ़ाई पर भी तो खर्च करते हैं। किराया बढ़ गया तो इनकी पढ़ाई न छूट जाये इसलिये रख लेते हैं।’’ सुन कर मैं हैरान!! फिर मैंने पूछा,’कल तो 15 अगस्त है। दुकानदार तुम्हारा झण्डा मंगा देगा!!’’उसने कहा कि उसे शक है कि यदि मैं नहीं खरीदूंगा तो वो 26 जनवरी तक झण्डा कहाँ झुग्गी में संभालेगा? चूहे काट देंगे न। मैं लौटते हुए उसे एडवांस दे दूंगा। फिर तो उसे लाना ही पड़ेगा।’’स्टेशन आते ही मैं उतर गई। मेट्रो स्टेशन की ओर जा रही हूं और ज़हन में दादी आ रही है। मेरी दादी मलिका ए तरन्नुम नूरजहाँ का हमजोली(1946) फिल्म का गाना, हमें सिखाती थी। मैं चलती जा रहीं हूं और मन में उस देशभक्ति के गीत को गुनगुनाती जा रहीं हूं-
ये देश हमारा प्यारा, हिन्दुस्तान जहाँ से न्यारा।
हिन्दुस्तान के हम हैं प्यारे, हिन्दुस्तान हमारा प्यारा। यें......
जाग उठें हैं हिंद के वासी, हम ये जग जाहिर कर देंगे।
वक्त पड़ा तो देश पर अपनी, जान न्यौछावर कर देंगे। ये......
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हिन्दुस्तान के हम हैं प्यारे, हिन्दुस्तान हमारा प्यारा। यें......
जाग उठें हैं हिंद के वासी, हम ये जग जाहिर कर देंगे।
वक्त पड़ा तो देश पर अपनी, जान न्यौछावर कर देंगे। ये......
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कल मेरे साथ शाश्वत, अदम्य जा रहे थे। सड़क किनारे जहां तिरंगे बिकते देखते दोनों "भारत माता की जय" जयकार करने लगते।😀
3 comments:
Nice writing Neelam .
हार्दिक धन्यवाद
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