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Tuesday, 8 January 2019

गांधी स्मारक संग्राहलय मोतीहारी, बापू का पहनावा बदलना और स्कूल खोलना Gandhi Smarak Motihari Bihar yatra 8लम भागी


गांधी स्मारक संग्राहलय के वाचनालय में प्रवेश करते ही सामने बड़ी सी मेज है। सब ओर बापू के चंपारण आंदोलन के समय के चित्र लगे हैं। 
उनके नीचे बापू के कथन हैं। वहाँ वह पोशाक भी है जो दरिद्र वेश धारण करने से पहले उन्होंने पहनी थी। सामने बा और बापू की मूर्तियाँ हैं। जिसमें बा की मूर्ति बापू से बड़ी है।  गांधीवादी श्री बृजकिशोर सिंह पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बिहार सरकार संप्रतिः मंत्री, गांधी संग्राहलय ने मुझे गांधी जी पर पुस्तक दी। मैंने वाचनालय से बाहर आकर तस्वीरें लीं। उन्होंने मुझे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का, तिथिवार 15 अप्रैल 1917 को मोतीहारी में कदम रखने से लेकर, 24 मई 1918 में मोतीहारी में आश्रम की नींव रखने के बाद , अहमदाबाद प्रस्थान और चम्पारण सत्याग्रह आंदोलन पूरा होने तक उनके चंपारण भ्रमण की तारीखें दे दी। मैंने उन्हें अपने मोबाइल पर अपने ब्लॉग में साबरमती आश्रम की यात्रा लिखी दिखाई तो उन्होंने उसे पढ़ कर मुझे आर्शीवाद दिया। गांधी जी तो चंपारण में अंग्रेजों द्वारा किसानों मजदूरों पर होने वाले अत्याचारों को देखने समझने आये थे। परन्तु तत्कालिन जिलाधिकारी ने उन्हें जिला छोड़ने का आदेश दिया। पर बापू ने अपनी अर्न्तआत्मा की आवाज पर सरकारी आदेश की अवहेलना कीं। ये उनका भारत में सत्याग्रह पर पहला प्रयोग था। उन पर मुकदमा चला। जिस जगह पर आदेश न मानने कारण बता कर अपना वचान दिया था। उसी स्थान पर सत्याग्रह स्मारक स्तंभ का निर्माण 


किया गया। इस 48 फीट ऊँचे स्मारक की आधारशिला 10 जून 1972 को तत्कालिन राज्यपाल देवकांत बरूआ ने रखी थी। और गांधीवादी विधाकर कवि ने इसे 18 अप्रैल 1978 को देश को समर्पित किया। इस स्मारक स्तंभ्भ का डिजाइन प्रसिद्ध वास्तुविद नंदलाल बोस ने किया था। ये सत्याग्रह स्मारक देश के पहले सफल सत्याग्रह की याद दिलाता है। यहाँ नील का पौधा देखने को मिला। हरा भरा खूबसूरत पार्क इसके परिसर में है। बापू के तीन बंदर भी आपका ध्यान आकर्षित करते हुए संदेश देते हैं बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो। चंपारण बापू की र्कमभूमि रही है। निल्हों के अत्याचार से असहाय किसानों और मजदूरों में आत्मविश्वास जगाने के लिए बापू ने उन्हे शिक्षा, स्वच्छता और अच्छे स्वास्थ्य और जाति प्रथा मिटाने के लिये प्रेरित किया था। इन कामों के प्रसार के लिए स्वयं सेवकों का गठन किया। बापू चंपारण में काठियावाड़ी पोशाक में थे यानि शर्ट, धोती, घड़ी, गमझा, चमड़े का जूता और टोपी या पगड़ी पहने होते थे। उन्होंने देखा कि निम्न जाति के महिला पुरूष को जूता पहनने की मनाही थी। बापू ने तुरंत जूते का त्याग कर दिया।
 बापू की सभाओं में महिलायें नहीं होती थीं। या खेतों में मजदूरी करने वाली मैली कुचैली आती थीं। बापू ने बा को उन्हें समझाने उनके घर भेजा। उन महिलाओं ने बा को कहा कि आपको हमारे घर में कोई संदूक या ट्रंक दिखाई दे रहा है। हमारे पास यही धोती है जो हमने पहन रखी है। दूसरा पहनने को हो तो हम इसे धो कर नहा लें। बापू से कहो कि ऐसा करने के लिए हमें एक धोती दे दें। बा ने अब दूसरे घर का दरवाजा खटखटाया, उस घर की बर्जुग महिला दरवाजे से बाहर आई। बा ने उस महिला से कहा कि आप अपने घर की महिलाओं को भी बापू की सभा में लाया करो। वो महिला बा को अंदर ले गई। बा उस घर की पैबंदों वाली धोती से लाज ढकी महिलाओं को देख कर, चुपचाप लौट आई। आकर आँखों देखा हाल बापू को सुनाया। जिसे सुनते ही बापू ने भी उस समय के दरिद्र भारतीय का वेश धारण कर लिया। 8 नवम्बर 1917 को बापू , बा और स्वयंसेवकों को लेकर शिक्षा प्रसार के लिए मोंतिहारी पहुंचे। 14 नवम्बर 1917 को गांधी जी ने ढाका के समीप बड़हरवा लखनसेन में प्रथम स्कूल यानि पाठशाला की स्थापना की। 20 नवम्बर 1917 को भितिहरवा में दुसरी पाठशाला की स्थापना की। 17 जनवरी 1918 को मधुवन में तीसरी पाठशाला की स्थापना की।  क्रमशः      













4 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

सचित्र उत्तम जानकारी के लिए धन्यवाद

डॉ शोभा भारद्वाज said...

लेख पढने के बाद आँखों में आंसू आ गये आज देश कहां से कहां पहुंच गया

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार