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Monday 29 July 2019

प्यार हुआ चुपके से...... उसने तो प्यार किया है न! Usney Toh Pyar Kiya Hai Na!! Part 5 नीलम भागी



सिंगापुर लौटते ही काजल ने घर सैट किया, उस दिन संडे था इसलिये सप्ताह की प्लानिंग की। पूरा सप्ताह हम बच्चों से अलग रहते हैं इसलिये शनिवार रविवार को बच्चे हमारे साथ रहते हैं। हमारा बाहर आना जाना खाना रहता है। तब काजल प्रेस वगैहरा कर लेती है अगर उसका मन होता है तो साथ भी चली जाती है। इस बार काजल ने सण्डे ऑफ लिया। शनिवार की रात उसने एक चम्मच भी जूठा नहीं छोड़ा। सुबह देर तक सोई फिर तैयार होकर चली गई। घर का काम और दो बच्चों के साथ भागदौड़ से उसकी फिटनैस गजब की थी। मैं तो उसे जाते हुए देखती ही रह गई। मुझे उसका छुट्टी बिताना, अपने लिये पहली बार घर से निकलना अच्छा लगा। मैंने और नमन ने भी सोमवार को उसे घर वैसा ही लौटाया, जैसा उसने हमें दिया था हमने भी सण्डे को कोई भी काम उसके लिये नहीं छोड़ा था। काजल तीनों भाइयों में सबसे बड़ी थी। लेकिन शादी, उससे छोटे  भाई कालू की कर दी गई। मुझे तो यह अच्छा नहीं लगा, शायद काजल को भी ठीक न लगा हो। अब सोना तो हमारे साथ प्ले और डे केयर में जाती है और हमारे साथ ही लौटती थी क्योंकि समर घिसटता हुआ पूरे घर में सामान इधर उधर फैंकता था इसलिये उसे ज्यादा देखभाल की जरूरत थी। वह शाम को समर को कौंडो के प्ले एरिया में ले जाती, जहाँ वह बच्चों को खेलता देख खुश होता। कभी अण्डरपास से इस्ट कॉस्ट पार्क ले जाती। वहाँ समुद्र और शिप देखकर वह बहुत खुश रहता। अब उसकी आसपास की मेट भी सहेलियाँ बन गई। शाम को गूगल से हमारी लोकेशन देख कर, हमारे आने पर वह मेज पर खाना लगा रखती थी। दरवाजा खुलते ही समर मेरे पास और सोना दीदी के पीछे पीछे रहती। वो बड़ी फुर्ती से उसका बैग डायरी सब चैक कर लेती। जो स्कूल में सिखाया जाता, सब सुन लेती। जब भी वह सण्डे बाहर घूम कर आती तो वह फेस बुक में अपनी देखी हुई जगह के साथ अपनी तस्वीरें जरूर पोस्ट करती। उन तस्वीरों को देखने का मुझे भी बड़ा चाव रहता। मेरी ऑफिस की रिटायर ड्रेस में वह बहुत अच्छी लगती थी। इतनी व्यस्त होने पर भी वह इंटरनेट के लिये समय निकाल ही लेती। कुकिंग का उसे बहुत शौक था। घर में इंगलिश ज्यादा बोली जाती थी इसलिये ये काम चलाउ अंग्रेजी बोल लेती थी। नई सहेलियाँ बनने से काजल उनके देश की किसी डिश की रैस्पी ले आती। वीक एंड पर बच्चे हमारे पास होते, ये पूरी लगन से कोई न कोई डिश बनाती। जिसका स्वाद लाजवाब होता था। एक दो दिन छोड़ कर, वही डिश हम रैस्टोरैंट से लाकर उसे खिलाते, अपनी कामयाबी पर वह बहुत खुश होती। दो साल का होने पर समर भी प्ले स्कूल जाने लगा। दोपहर को काजल ही उसे स्कूल से ले आती। थका हुआ समर आते ही सो जाता। उसके उठने तक वह खाने की तैयारी कर लेती। समर को भी सारा सेलेबस याद करवा देती। काजल के कारण मेरी कामकाजी सहेलियाँ मुझसे ईष्या करतीं थीं।
   काजल में मैं कुछ परिवर्तन महसूस करने लगी थीं। अब वह बहुत खुश रहती थी। मौहम्मद रफी के गीत हमेशा गुनगुनाती थी। बार बार मोबाइल चैक करती थी। शीशे में बार बार अपने को निहारती थी। आठ बजते ही वह अपने एरिया में जाकर दरवाजा बंद कर लेती थी। मैं चैक करती, वह ऑनलाइन रहती थी। मेरे सोने तक भी वह जगी होती थी। लेकिन सुबह कभी भी उसे लेट उठते नहीं देखा था सिवाय उसके ऑफ के। ये सब देख कर मैंने सिक्योरिटी में कह दिया कि मेरे यहाँ कोई भी आये, मेरे और नमन की परमीशन के बिना किसी को भी हमारे अर्पाटमेंट में न जाने दिया जाये। पहले काजल से इंटरकॉम पर पूछा जाता था। कैमरे में तस्वीर दिखाई जाती थी, तब वह जा सकता था,  जाता कौन था! कोरियर या डिलीवरी वाला। हमारे पास तीन कार्ड थे। उन्हें तीन जगह स्विप करके ही हम अर्पाटमेंट में आ सकते थे। एक कार्ड नमन के पास, एक मेरे पास और एक काजल के पास रहता था।
  इस संडे ऑफ पर वह एक नामी ब्रॉण्ड की पोशाक पहन कर जब जाने लगी, मैं उसे देखती ही रह गई। उस ब्राण्ड के कपड़ों के मैं तो दाम पढ़ कर ही छोड़ने को मजबूर हो जाती हूँ। काजल तो चली गई पर मेरे लिये प्रश्न उछाल गई कि इतने मंहगे कपड़ों के लिये इसके पास पैसा कहाँ से आया? क्योंकि जब से इस बार इण्डिया से लौटी है। तब से यह मुझसे पचास डॉलर लेती है। बाकी एकाउण्ट में ट्रांसफर करवा देती है। बस, बैंकिंग इसे नहीं आती। फिर ये पोशाक..!! दिन भर मेरे दिमाग में डिबेट चलती रही। अंत में मैंने ये सोच कर मन को समझाया कि हमारे यहाँ काम करती है। हमारी गुलाम नहीं है। अपना काम तो अच्छे से करती है। अपनी सहेलियों की मेट के किस्सों से मैं अपने आप को कितना लकी समझती हूँ। उनकी मेड रात को ड्यूटी ऑफ के बाद कभी भी घूमने चल देती हैं। जब तक रात में लौटती नही, तब तक सहेलियाँ अगले दिन के लिये यह सोच कर डरती हैं कि न आई तो! अगले दिन उन्हें ऑफ करना होगा। पर ऐसा यहाँ कभी किसी के साथ नहीं हुआ क्योंकि अपनी ड्यूटी के प्रति सभी बहुत सिंनसियर हैं। खैर, रात को शॉपिंग बैगस से लदी हुई काजल लौटी, मैं तो उसे हैरान होकर देखती रह गई। वो बिना कुछ बोले, एक नजर मुझ पर डाल कर, गर्वित सी अपने एरिया में चली गई। मैं भी अपने बैडरूम में आ गई।   
   आते ही मैंने नमन को आँखों देखा बताया। सुनते ही उसने कहाकि काजल अब बच्ची नहीं है। इसकी जगह कोई और मेट होती तो तुम ऐसा सोचती! उसकी भी अपनी जिंदगी है। अपराध यहाँ होते नहीं हैं। दिल का मामला होगा तो उसमें हम तुम कुछ नहीं कर सकते। ज्यादा तुम्हें बुरा लग रहा है तो तुम कांट्रैक्ट तोड़कर पैसे का नुकसान उठा कर इसे इण्डिया भेज दो। इस देखी भाली को कोई भी बुला लेगा। फिर भी मेरा सुझाव है कि इसकी सेवाओं को देखते हुए, इससे सहेलियों सा व्यवहार करो ताकि तुमसे अपने दिल की बात करे, कुछ गलत कर रही होगी तो तुम अगाह कर देना। मैं फिर सोच में पड़ गई। यहाँ सब मेट अपने एम्पलायर को सर मैडम कहतीं हैं। हमें ये दीदी भइया बोलती है। सोना समर भी काजल को दीदी कहते हैं। कभी खाने पीने में फर्क नहीं किया। अभी कुछ समय से इसने ही मुझसे बात करना कम कर दिया है। मेरी आदत है घर आते ही बच्चे को गोद में लेते ही बोलती हूँ,’’ दीदी को तंग तो नहीं किया।’’जवाब में ये हमें खाना परोसते हुए, बच्चों का कोई न कोई किस्सा जरूर सुनाती थी। अब नहीं नहींकह कर चुप हो जाती है। लगता है किसी दुसरी दुनिया में खो गई है। स्वभाव में फर्क आया है लेकिन उसके काम में, कोई कमी नहीं मैं निकाल सकती। सुबह मैं उससे बेमतलब बतियाती हुई ऑफिस गई उसने जवाब हाँ न में ही दिये। किसी भी बात को उसने आगे नहीं बढ़ाया। रात में मैंने उससे फिर समर की बात की। फिर उसे बताया कि कल मेरी सहेली के बेटे का जन्मदिन था वहाँ सब कुलीग अपनी फैमली के साथ आये थे। वहाँ सबसे अलग सोना समर रहे। कोई एक पोयम सुनाने को कहता, ये पूरी सीडी सुना देते। सब कुछ इन्हें आता था। जब मैंने सब को बताया कि मैंने तो कभी इनका बैग ही खोल कर नहीं देखा, सब इनकी काजल दीदी की मेहनत का फल है। पहले का समय होता तो वह सुनकर खुश होती,  कुछ जवाब देती। उसने बस हल्की सी मुस्कान दी। जल्दी जल्दी काम समेटा और आठ बजते ही अपने एरिया में चली गई और ऑनलाइन में व्यस्त हो गई। मैं अपना सा मुँह लेकर रह गई। सुबह मैं वैसे ही रही जैसे पहले रहती थी। रात वह नई पोशाक में कीमती परफ्यूम से महकती, पर्स उठाये जाने लगी तो मैंने पूछ ही लिया,’’काजल तुमने खाना खा लिया।’’वह जवाब में बोली,’’मैं बाहर खाउँगी।’’ और कार्ड उठा कर चल दी। लौटने पर यहाँ दरवाजा तो खोलना ही नहीं पड़ता, कार्ड जो है। मेरी आँखों में नींद नहीं थी। दो घण्टे बाद जब उसके लौटने की आवाज आई, तब मैं सोई। नमन को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। मेरे मायके से जो थी। उसे बचपन से जानती थी शायद इसलिये मुझे सब अजीब लग रहा था। सुबह उठी, बाहर वह वैसे ही रोज की तरह काम में लगी हुई थी। अब वह कभी कभी रात को जाती पर ज्यादा से ज्यादा साढ़े दस तक लौट आती। अगले ऑफ पर वह शनिवार रात को ही ट्रॉली बैग लेकर निकली। जाते जाते बोल गई, सोमवार तड़के आ जायेगी।   क्रमशः                          

Saturday 27 July 2019

इक नई राह पर, उसने रखे कदम,टेक्नो सेवी मेड उसने तो प्यार किया है न! Usney Toh Pyar Kiya Hai Na!! Part 4 नीलम भागी



गाड़ी में सामान रक्खा और हम घर की ओर चल पड़े। जैसे मैं पहली बार विस्मय विमुग्ध सिंगापुर देख रही थी, वैसे ही आज काजल देख रही थी। घर पहुँचते ही काजल को उसका कमरा दिखाया। अर्पाटमेंट में ये हिस्सा ड्राइंगरूम के साथ है। दरवाजा बंद होते ही अलग हो जाता है। वहीं बाथरूम है। कपड़ा सूखाने की जगह है और वाशिंग मशीन रक्खी है। काजल का सामान उसने अपने कमरे में रक्खा। मम्मा ने उसको खाना परोसा। हम सब भी खाने पर बैठे। खाने के बाद मैंने काजल को सोने को कहा क्योंकि आज सफर की थकान है। जैसे ही वो अपने कमरे में गई, मैंने दस मिनट के बाद उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया। उसको साबुन शैंपू, कपड़े और उसकी जरूरत का सामान दिया। उसे समझाया कि ये बाथरूम उसका है। ड्राइंगरूम और इस ओर का दरवाजा वो इधर आने पर बंद कर लिया करे। मैं नहीं चाहती थी कि उसके पर्सनल समय में उसकी प्राइवेसी में व्यवधान हो। उसे समझा दिया कि रात आठ बजे से सुबह सात बजे तक उसे कोई काम नहीं कहा जायेगा। वो अपने एरिया में रह सकती है। बाकि उसकी मर्जी वो घर में जहाँ चाहे घूमे। सुबह सात बजे वह नहा धो कर बाहर आई। मम्मा जैसे कहतीं गई, वो काम करती रही। उसने हमारा नाश्ता डाइनिंग टेबल पर लगाया। मैंने उसे कहाकि वो भी अपना नाश्ता लेले। वो लेकर अपने एरिया में चली गई। मम्मा भी काजल से बहुत खुश हुईं।    
काजल के साथ कुछ दिन बिता कर उसके भरोसे सासू माँ भी लौट गई। जाने से पहले सोना की मालिश, नहलाना यानि उसके सभी काम काजल को सिखा गई। मैं मैटरनिटी लीव पर थी। नमन के ऑफिस जाते ही मैं, काजल और सोना रह जाते, नवजात सोना तो सोती रहती, मैं समय से उसे फीड कराती इसलिये ताकि ऑफिस जाने पर उसे कोई परेशानी न आये। कई घरों में काम करने वाली काजल को यहाँ का काम बहुत हल्का लगता था। साफ सुथरा देश, धूल न मिट्टी, गेट से अपने अर्पाटमेंट तक पहुँचने तक ऐसी व्यवस्था थी कि जूते के तलवे तक चमक जाते, घर से बाहर शू रैक। घर साफ करने को वह हंस कर कहती कि साफ घर की सफाई। मैं घर की व्यवस्था सोमवार से शुक्रवार तक इस तरह करती जा रही थी कि काजल को मेरे ऑफिस जाने पर सोना के साथ परेशानी न हो। सुबह आठ बजे नमन के साथ आसानी से बनने वाला नाश्ता यानि दूध या मिल्कशेक, आमलेट ब्रेड, पोहा, उपमा आदि। शनिवार इतवार वह अपनी पसंद के व्यंजन हमें बनाकर खिलाती। दोपहर को दाल, सब्जी, रायता, सलाद, दोपहर को अपने लिये वो साथ में चावल बना लेती थी। वही रात को, बस रोटी उसी वक्त सेकी जातीं थी। हम दोनो को तो लंच ऑफिस में सर्व होता था। आठ बजे डिनर निपट जाता। आठ बजे मैं उसे उसके कमरे में भेज देती। सुबह सात बजे नहा कर वह अपने आप उठ कर लग जाती। वीक एंड पर कपड़े प्रेस आदि काम वह निपटाती। मैं खाली रहती जैसे ही वह खाली होती, मैं उसे अंग्रेजी पढ़ाने लगती साथ ही लैपटॉप चलाना सिखाती, रीडिंग सिखाते ही उसे मेल करना आदि सिखा दिया। सीखने की इतनी शौकीन लड़की! जल्दी जल्दी काम खत्म करके, वह इंटरनेट पर बैठ जाती। दो सण्डे ऑफ न लेने पर उसे मैंने चालीस डॉलर दिये, उसने मुझे लौटा दिये, जिसे मैंने उसके पर्सनल एकाउंट में डाल दिये। घर में जो सामान खत्म होता वो ऑनलाइन मंगा लेती। जब उसकी माँ, इण्डिया में अम्मा घर के पर सफाई करने आती तो कभी कभी स्काइप पर अम्मा और माँ से बात कर लेती। कमली उसे वैस्टर्न पोशाक में देख कर हंसते हुए कहती कि जब देश आयेगी तो ये पहन कर मत आना। लीव खत्म होने से पहले मैंने उसे वाई फाई लगा कर स्मार्टफोन दिया, व्हॉट्स अप सिखाया ताकि नमन, मेरा और उसका संवाद बना रहे। ऑफिस जाते समय मैंने उसे एक ही बात समझाई की हमारी अनुपस्थिति में टी.वी. नहीं देखना। शाम सात बजे लौटने पर हमारे पास साफ सुथरी सोना को लाड करने के सिवाय कोई काम नहीं था। रात को एक बार सोना रोई, काजल उठकर आई मैंने उसे तुरंत डांटा कि रात में जब तक मैं न बुलाऊं आना नहीं, नमन मेरी  हैल्प करेंगें। रात को बेफिक्र सोयेगी तो इसका स्वास्थ ठीक रहेगा, तो मेरी गृहस्थी, नौकरी ठीक से चलेगी। देखते देखते ग्यारह महीने बीतने को आयें। हमने भी काजल के साथ ही इंडिया आने का प्रोग्राम बना लिया। मैंने उसे बताया कि उसकी सैलरी दस परसेंट बढ़ गईं। सुनकर वह खुश हुई और बोली,’’दीदी मैं वापिस आपके साथ आऊँगी।’’ सुनते ही मैंने दूसरे बेबी का प्लान कर लिया। इधर अथॉरिटी की ओर से दो कमरों के फ्लैट निकले थे। अम्मा लाइन में लग कर काजल के लिये फॉर्म ले आई। मैंने सुना तो पूछा,’’आप काजल के भाई को लाइन में लगने भेज देतीं न।’’ अम्मा बोली,’’हाँ, बता देती! फ्लैट लॉटरी से निकलता है। वो मिलता न मिलता लेकिन उसके घर वाले सोचते, पता नहीं हमसे छिपाकर कितना पैसा रखकर बैठी है। चालीस साल की उम्र में बेटी का पैसा आते ही, बाप ने काम पर जाना बंद कर दिया है और चारपाई पर टाँगे फैलाकर बैठा बतियाता रहता है। कोई पूछे कि मुन्नालाल काम पर नहीं जाते। वह कहता है,’’ हमने बहुत कर लिया है, अब तो औलाद करेगी।’’आने से पहले त्योहारों पर मैं उसे जो पैसा देती थी, उससे काजल ने अपने परिवार के लिये  गिफ्ट लिये। इण्डिया आते ही मैंने काजल को उसके घर भेजा और मैं अपने ससुराल गई। काजल अम्मा से मिलने गई तो अम्मा ने फॉर्म को भरने की कार्यवाही पूरी की और उसे समझाया जब तक फ्लैट न निकले किसी को बताना मत। निकलने पर सब को हैरान करेंगे। उसने पूछा,’’घर तो बड़ा मंहगा आता है। इतना पैसा कहाँ से आयेगा?’’ अम्मा बोली,’’पहले निकले तो सही, तभी तो छोटा घर भरा है।’’बैंक से बैलैंस पता किया तो कमली के साथ ज्वांइट एकाउंट में कुछ नहीं, उसके पर्सनल एकाउंट में इतने पैसे,  लाख से ज्यादा। अब काजल ने कहा कि माँ को भी मत बताना। जबकि कमली उसी तरह घरों में काम कर रही थी। छुट्टी बिताने आई काजल के लिये रोज पकवान बनाती। मुन्नालाल अपने बेटों कालू, मोनू और सोनू को बार बार बाजार दौड़ाता बिटिया के लिये तरह तरह के नमकीन, मिठाइयां मंगवाता। इतनी आवभगत और प्यार मिल रहा था पर काजल को अपनी बस्ती नरक जैसी लग रही थी जहाँ इफरात में बच्चे और मक्खियाँ थीं। लौटने का समय आ गया। 
  मुन्ना लाल ने चलते समय बेटी के आगे इच्छा रक्खी कि गांव का घर पक्का करना चाहता है ताकि बुढ़ापे में अपने गांव में चैन से रह सके। काजल के आगे इस बार सिंगापुर आने का मकसद था, माँ बाप को झुग्गी बस्ती से निकालकर गाँव में पक्के मकान में रखना। जमीन तो थी ही। वह बड़ी खुशी से लौटी। आते ही हमने सोना का अलग रूम तैयार किया। हम पहले ही यहाँ के रिवाज के अनुसार बेबी को अलग सुलाने में लेट हो चुके थे। सोना के कमरे में कैमरा लगा दिया, जिससे हम सोना को अपने कमरे से देखते रहते। काजल सोना को बहुत प्यार करती थी। वो हमें सोया जानकर रात में अकेली सोयी सोना को देखने जाती। कैमरे में ये देखकर मन को बड़ा सकून मिलता। समर के पैदा होने पर उसने कह दिया कि वह अकेली मैनेज़ कर लेगी। मैंने भी किसी को परेशान करना उचित नहीं समझा। पंद्रह दिन के पितृ अवकाश पर नमन का भी बड़ा सहारा था। सोना प्ले स्कूल जाने लगी। मैं मातृ अवकाश पर थी। काजल ही उसे स्कूल वैन में छोड़ने और लेने जाती थी। वहाँ पर उसकी कुछ मेट सहेलियाँ भी बन  गईं। सहेलियों के होते हुए भी काजल ने अब तक कोई छुट्टी नहीं ली। वो कैसे फिजूलखर्ची कर सकती, उसे दो घर जो बनाने थे। कुछ काम उसने खुद ही ले लिये मसलन सोना की डायरी देख कर उसे होमवर्क आदि कराना। कोई मेरे घर आता तो वो सोना को एक पोयम सुनाने को कहता वो दस सुनाये बिना रूकती ही नहीं थी। ये देख मेरी ऑफिस की सहयोगी कहतीं," हमें भी इण्डिया से ऐसी लड़की ला दो।" काजल का प्लैट निकल आया था। जब उसे पजैशन मिलना था तब हमने इण्डिया आने का प्रोग्राम बनाया। उसके गाँव का घर तो बन ही गया था। उसके माता पिता घर दिखाने के लिये उसे बुला रहे थे। जो भी उसका घर न आने का पैसा और छुट्टियों का बन रहा था मैं अम्मा को देती रहती। अम्मा उसके चालान भरती रहती। रजिस्ट्री की तारीख से पहले हम पहुँच गये। उसके पर्सनल एकाउंट से पैसा निकालकर रजिस्ट्री करवाई फिर उसे गाँव भेजा। वहाँ अपने कालू भाई की शादी में भी वह शामिल हुई। लौटने से पहले  उसने अपना फ्लैट देखा, अब उसके चेहरे की खुशी देखने लायक थी।      
  लौटते समय उसने अपनी माँ को फ्लैट की चाबी देकर कहा कि इसे भाड़े पर उठाकर इसका किराया खाओ। अब मैं पैसा नहीं भेजूंगी। मुझे इसकी किश्त भी चुकानी है। और झूठ बोली,’’ इसे लेने में जो दीदी जी ने पैसा दिया है, वो भी लौटाना है।’’ ये सुनते ही उसके परिवार का चेहरा देखने लायक था। दादी नानी के घर से लौटे बच्चे काजल को देखते ही एयरपोर्ट पर उसके साथ लिपट गये। क्रमशः
 

 
 


Friday 26 July 2019

उई अम्मा! मैं काहे को बाजार गई थी? लेडीज संगीत, लोकगीत उसने तो प्यार किया है न! Usney Toh Pyar Kiya Hai Na!! Part 3 3 नीलम भागी


  1. मेरी भी पढ़ाई पूरी हो गई साथ ही सिंगापुर में जॉब लग गईं। मेरे साथ में काम करने वाले नमन के साथ शादी तय हुईं। नमन का परिवार भी इंडिया में रहता था। मेरी शादी में पूरा घर काजल और कमली ने संभाल रक्खा था। मेरी शादी पर लेडीज संगीत का अम्मा ने आयोजन किया। सबसे कह दिया कि उस समय ये तुम्हारा कान फोड़ू डी.जे. नहीं बजेगा। महिला संगीत के बाद तुम सब जो मरजी हो करना। काजल से पूछा कि तेरे घर के पास कोई ढोलक वाला हो तो उसे तीन घण्टे के लिये बुक कर लेना। काजल तुरंत बोली," है न, हमारी झुग्गी से पाँचवीं झुग्गी में राजकिशोर रहता है। दो सौ रूपया घण्टा लेता है पर बजाता गज़ब का है। उसकी बजाने की खासियत ये है कि सब के पैर उसकी ताल पर चलते हैं। मैं तो उसे ले आउंगी।" अम्मा मुझसे बोली,”बेटी, शादी ब्याह के या किसी भी शुभ संस्कार के गीतो का हम घरेलू महिलाओं के जीवन में बड़ा महत्व है। इस मौके पर वे अपने अन्दर की रचनात्मकता निकालती हैं। जिसमें उनके मन के उद्गार होते हैं। उनकी डायरियाँ निकलती हैं। जिसमें होते हैं लोकगीत। लोकगीत प्रकृति के उद्गार हैं। जनसामान्य की कला है। लोक रचित लोकगीतों में कोई नियम कायदे नहीं होते। ऐसा सुनने में आता है कि  जिस समाज में लोक गीत नहीं होते। वहाँ पागलों की संख्या अधिक होती है। रिश्तेदार आते हैं। वे अपने गीत गाते हैं और यहाँ सुने गीतों को ले जाते हैं यानि गीतों का आदान प्रदान होता है। और बरसों महिलाएं याद रखती हैं कि ये गीत अमुक की शादी में बहुत जमा।“ हर शादी ब्याह में एक महिला ऐसी गुणवान होती है, जो शुभ अशुभ का भय दिखा कर सबका नेतृत्व कर लेती है और गुणवंती बहन बन जाती है। गुणवंती बहन से पूछ पूछ कर ही फिर सब काम होते हैं। खैर लेडीज संगीत में सज सज कर डायरी कॉपी ले लेकर महिलाएं बिल्कुल समय से आ गईं। लेडीज संगीत में सभी महिलाओं की भागीदारी थी। विदेश में रहने के कारण मुझे ये सब बहुत अच्छा लग रहा था। अम्मा आतीं धीरे से मेरे कान में कहती कि विवाह वाली लड़की शरमाई सकुचाई एक कोने में बैठी रहती है। रिश्तेदार बातें बनायेंगे। पर मैं सबके बीच ही बैठी। संगीत में गुणवंती बहन बोली,”पहले पाँच सुहाग गाये जायेंगे।“ ये खण्ड बेसुरा गानेवालियों का था जिसके साथ देश का प्रख्यात ढोलकवादक भी ढोलक नहीं बजा सकता। इस ओपेरा का मकसद होता हैं। शादी वाली लड़की यानि बन्नी की माँ, मासी और भुआ को खूब रूलाना, अगर अरेंज मैरीज है तो बन्नी भी रोती है। लव मैरिज में लड़की मुंह नीचे करके हंसती है जैसे मैं और होने वाले पति को मोबाइल पर मैसेज कर जवाब मांगती है। क्योंकि वो बतातीं हैं कि शादी के बाद ससुराल के नियम कायदे मानने होंगे यानि बंधन, मायके में तुम मेहमान की तरह होगी। पाँच सुहाग निपटते ही महिलायें खिल गई। अब गीत शुरू लगभग सभी गीतों में ननद, खलनायिका होती है। गीत के अंत में उसका इलाज बताती है कि ननदोई तो लुच्चा होता है। तुम उससे नैन मट्टका करो। ननद तो सुधर जायेगी वो मायके आना कम कर देगी। जो बहुत सुरीली महिलायें होती हैं। वो फिल्मी धुनों पर अपने बनाये गीत गाती हैं। जिसका मतलब कुछ भी हो, पर वे सुर से नहीं भटकती। मसलन मौहम्मद रफी का गीत है उनसे इज़हार हार कर बैठे, बेखुदी में कमाल कर बैठे हैं...... उस पर बन्नी बनाई,  बन्नी तुम तो कमाल कर बैठी हो तुम तो बन्ने से प्यार कर बैठी हो।
हमने बाग लगवाया तुम्हारे लिए, तुम तो माली से प्यार कर बैठी हो।
हमने जेवर बनवाये तुम्हारे लिये, तुम सुनार से प्यार कर बैठी हो।
हमने कपड़े सिलवाये तुम्हारे लिए, तुम तो दर्जी से प्यार  कर बैठी हो।
यानि बन्नी इतनी दिल फैंक है कि अच्छी भली बन्ने को प्यार कर बैठी थी अब विवाह के अवसर पर जो भी उसे सेवा देता वो उसी से प्यार कर बैठती। जिन्हें नाचने का शौक था वो नाच रहीं थी हर गाने पर देसी ठुमके लगा रहीं थी। महिला संगीत का आनन्द उठाते, मेरी नजर काजल पर पड़ी जो ताल पर चलते हुए गुनगुनाते हुए, सबको चाय पानी पिला रही थी। मेरे अंदर का समाजवाद जाग गया। मैं बोली,”अब काजल कुछ सुनायेगी। ये सुनते ही कमली बोली,” ये तो नाचती भी बहुत सुन्दर है। काजल तो जैसे तैयार बैठी थी। उसने दुपट्टा कमर पर बांधा। सर्किल के बीच में खड़ी हुई। कमली ढोलक वाले के पास गाने बैठ गई। राजकिशोर ने अपनी ढोलक को फिर से कसा और हाथों में पाउडर लगाकर एकदम तैनात बैठ गया जैसे उसे सारी अपनी कलाकारी, इसी गीत पर दिखानी हो। माँ बेटी के गीत के बोल थे, उई ! अम्मा मैं काहे को बाजार गई थी। वो तो पहली लाइन पर ही जम गई।
उई! अम्मा मैं काहे को बाजार गई थी।
उई! अम्मा मैं काहे को बाजार गई थी।
 बाजार गई थी, जी बाजार गई थी। उई अम्मा....
हाथ में थैला लेकर मैं तो लेने गई खजूरें, मारे शरम के मर गई मैं तो दुनिया वाले घूरें।
मैं तो मारे शरम के लाल हुई थी........उई! अम्मा....
आगे गई तो इक हलवाई भून रहा था हलुआ, मेरे रूप का देख के जलवा, जल गया उसका हलुवा।
मैं तो हाथों में लेकर रूमाल गई थी... उई अम्मा....
चौराहे के मोड़ पे मुझको मिल गये चार शराबी, बीड़ी फैंक कर मुझसे बोले,” कहाँ चली मेरी भाभी?”
मैं तो घर से बड़ी होशियार गई थी....उई...अम्मा....
आगे गई तो रूम्मन झुम्मन खेल रहे थे कलवा, मेरी ख़ातिर चक्कू चल गये शहर में हो गया बलवा।
मैं तो घर से बड़ी होशियार गई थी.....उई....अम्मा
 काजल के लटके झटके राजकिशोर की ढोलक की थाप में, काजल के पैरों की थाप और महिलाओं की तालियों की ताल ने बलवा कर देना था अगर इस गीत का प्रदर्शन महिला संगीत में न होकर कहीं और होता तो। सबने काजल को घेर लिया और उससे गीत लिया। अब मेट मजदूर की झुग्गी की लड़की से कुचीपुड़ी नृत्य की  उम्मीद तो नहीं कर सकते न। पर गज़ब की मनोरंजक तुकबंदी थी जिसे काजल ने बखूबी निभाया था।         
इसके बाद डी.जे. पर जम कर डांस हुआ वो याद भी नहीं है मुझे और लेडीज संगीत आज तक याद है।      

 किसी भी मेहमान को माँ बेटी ने शिकायत का मौका नहीं दिया था। शादी के धूमधड़ाके से हम सिंगापुर लौटे। अपने रोजर्मरा के काम में लगे। मैं नाश्ता बनाती, नमन बाकि काम समेटता लंच की चिंता नहीं थी वह ऑफिस की तरफ से था। सुबह सात बजे घर से निकलते और शाम सात बजे घर लौटते। दोनो मिलकर डिनर तैयार करते। फाइव डे वीक था। फ्राइडे शाम को ही हम पार्टटाइम मेड बुला लेते, वो घंटे के हिसाब से चार्ज करती थी। सफाई, साथ ही में कपड़े धोना, हाइड्रो से निकले सूखे कपड़े, साथ साथ प्रेस करती जाती। हफ्ते की सबि़्ज़याँ काट जाती। फ्राइडे लेट नाइट से संडे रात तक हम वीक एंड मनमुताबिक ढंग से बिताते। इण्डिया आती तो काजल अपने रेगुलर काम निपटा कर दोपहर हमारे घर में ही काटती और रसोई के काम में अम्मा की मदद करती। बाकी घर के काम तो उसकी माँ ही करती है। मेरे कहने से काजल की माँ ने उसकी कमाई का नुकसान उठा कर जब उसे स्कूल भेजा, तब से मुझे काजल से विशेष लगाव हो गया था। मैं अगर पढ़ाई के सिलसिले में घर से बाहर नहीं जाती तो शायद काजल भी एक पढ़ी लिखी लड़की होती। मेरे लिये वो जो भी डिश बनाती, मैं चखते ही उसे इनाम जरुर देती। गिफ्ट के साथ मैं अपने सभी पुरानी ड्रेसेस काजल के लिये लाती। वो अपनी शादी के लिये बड़ी शिद्त से पैसा जोड़ रही थी। मेरे पहले बच्चे सोना के जन्म पर अम्मा चाहती थी मैं इण्डिया में डिलीवरी के लिये उनके पास आऊँ और सासू माँ चाहती थीं उनके पास रहूँ। यहाँ हमारा सारा खर्च कम्पनी उठा रही थी और पंद्रह दिन की नमन को पैटरनटी लीव थी। मेरी सहेलियों ने समझाया कि इस समय मैं अम्मा को बुला लूँ क्योंकि बच्चे के जन्म पर सब खुशी में अपना ध्यान बच्चे पर लगाते हैं। लेकिन माँ को बेटी के स्वास्थ्य की चिंता रहती है। खै़र हम दोनो ने अपनी अपनी सासों को निमंत्रण भेजा कि आपस में डिसाइड करके एक एक करके आओ। पहले अम्मा आने को तैयार हो गई। रसोई की इंचार्ज काजल को बना कर, अम्मा सोना के जन्म से पहले आ गई। अम्मा मेरी गृहस्थी देखकर बहुत खुश थी। इस खुशी का एक बहुत बड़ा कारण ये भी था कि वे हमारे खुद के खरीदे फ्लैट में आईं थीं। खूब बड़ा फेसिंग सी फ्लैट, तीनों कमरों, रसोई से सागर दर्शन और उसमें खड़े शिप। अम्मा ने पहली बार समुद्र देखा था। रात को अपने बैड पर लेटे लेटे खिड़की से गोलाई में जहाज की बत्तियाँ उन्हें बहुत भाती थीं। अम्मा का चेहरा देख कर लगता था कि बेटी पर की गई उनकी मेहनत सार्थक हो गई, हम बहुत जोर शोर से फुल टाइम एजेंसी से मेट तलाश रहे थे। मेट की तनखाह पाँच सौ डॉलर महीना, रहना खाना, मैडिकल, महीने में दो संडे छुट्टी, दो सण्डे ऑफ न लेने पर बीस डॉलर प्रति सण्डे मेड को देने पड़ते, साल में एक महीना छु्ट्टी और घर आने जाने का किरायां देना होगा। मेट हमें मैडिकल चैकअप के बाद ही मिलेगी। अगर वह प्रैगनेंट हो जाती है तो उसका खर्च हमें उठाना होगा। सारी बातें तो अम्मा को ठीक लगी। पर प्रैगनेंसी वाली बात पर अम्मा उबल पड़ी कि महीने में दो बार मटर गश्ती करने जायेगी और कहीं भी मुँह काला करेगी तो उसकी जिम्मेवारी क्या हमारी होगी! ज्यादातर मेट इंण्डोनेशियन, श्रीलंकन, फिलिपीनो या चाइना की मिल रहीं थीं। जो इंडियन कूकिंग नहीं जानती थीं। इंडियन में नॉर्थ इस्ट की। एक महीने की सेलरी का कमीशन हमसे और एक महीने का मेट से यानि दो महीने का एजेंसी को कमीशन का लाभ था। साल बाद फिर नया एग्रीमेंट। अगर हम कहीं बाहर जा रहें हैं और मेट को नहीं ले जा रहे हैं तो उसे ऐजेंट के यहाँ छोड़ सकते हैं, बदले में बीस डॉलर प्रतिदिन ऐजेंट को देने होंगे। कानून व्यवस्था सख्त होने के कारण चोरी चकारी का वहाँ कोई डर नहीं था। बस कुछ दिन बाहर जाने पर मेट को घर में छोड़ कर जाने में एक ही डर सताता था कि हमारे पीछे अपना ब्वॉयफैंड न बुला कर रख ले। अम्मा चाहती थी कि मेट आ जाये तो वे उसे कुकिंग में ट्रेंड कर देगी। मैंने भी अपना फैसला सुना दिया कि रक्खूँ तो मैं अपने देश की मेट। सासू जी के आते ही अम्मा लौट गई, ये आश्वासन देकर कि वे जल्द ही मेट का इंतजाम करके भेज देंगी। इण्डिया लौटते ही उन्होंने काजल और उसकी माँ से मेट लाने को कहा लेकिन वेतन पाँच सौ डॉलर की बजाय, चार सौ डॉलर को रूपये में बदल कर यानि बीस हजार रू महीना, खर्च कुछ नहीं बचत ही बचत समझाया। अगले दिन कमली ने आते ही कहा कि वह काजल को सिंगापुर भेज देगी। सुनते ही काजल के जाने की तैयारियाँ शुरू करदी। तत्काल में पासपोर्ट बनवाया। अम्मा ने कमली और काजल का ज्वाइंट एकाउंट खुलवाया और एक काजल का अलग से खुलवाया, साथ ही उसे समझाया कि चार सौ डालर तूं जैसे मर्जी खर्च करना पर सौ डॉलर तेरे खाते में हर महीने आयेंगे, अगर इन सौ डॉलर के बारे में तूने किसी को बताया तो तेरी पगार चार सौ डालर कर दूंगी। उसने पूछा कि सौ डॉलर मतलब कितने रूपये? अम्मा ने कैल्कुलेशन करके उसे बताया। सुनते ही काजल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने काजल को फोन कर दिया था कि कपड़ों की टेंशन न ले। यहाँ सब इंतजाम हो जायेगा। सीधी फ्लाइट थी यहाँ से अम्मा ने उसे समझा दिया और वहाँ हम एअरपोर्ट के बाहर शीशे से काजल का खोज करता हुआ चेहरा देख रहे थे। अचानक उसकी हम पर नज़र पड़ी। उसका तो चेहरा खिल गया। अब वह इत्मीनान से सब फारमैल्टी पूरी कर रही थी। बैगेज़ लेकर वह बाहर निकली। हम पार्किंग की ओर चल पड़े। क्रमशः



Thursday 25 July 2019

क से कबूतर, ख से खतूतर, ग से गतूतर घ से घतूतर ल से लतूतर.......उसने तो प्यार किया है न! Usney Toh Pyar Kiya Hai Na!! Part 2 भाग 2 नीलम भागी


टीचर उम्र के साथ-साथ अनुभवी भी बहुत थी। उसका कहना था कि नीव मजबूत हो तो उस पर इमारत टिकी रहती है। किसी तरह अक्षरों की पहचान अच्छे से हो जाये तो, किताब पढ़ना कोई मुश्किल नहीं है। इसलिये वह अक्षर ज्ञान पर बहुत जोर देती थी। मैडम जी मेज पर किताब खोल कर रख, कुर्सी पर बैठ कर अक्षर ज्ञान सिखा रहीं थी। बच्चे भी किताब खोलकर, मैडम जो अक्षर बोल रही थी, उस पर अंगुली रख कर दोहरा रहे थे। काजल डण्डी लेकर खड़ी देख रही थी कि सब बच्चे मैडम जी के पीछे बोले और अंगुली ठीक अक्षर पर खिसकाते जायें। सब बच्चे ऐसा ही कर रहे थे। कारण यदि कोई बच्चा ऐसा नहीं करता, तो काजल मैडम जी से कहती और मैडम जी जितने डण्डे कहतीं, काजल उस बच्चे को उसकी सीट पर जाकर लगाकर आती। मैडम जी को कई सालों से एक ही किताब पढ़ाते हुए याद हो गई थी। वे किताब की बजाय बाहर बरामदे में देखते हुए पढ़ा रहीं थी। जैसे ही क तक पहुँची, वे बोली क से कबूतर,’ इतने में शैला जी नई साड़ी पहने उनकी कक्षा के आगे से निकली, मैडम जी ने किताब काजल के हाथ में पकड़ाई और चल दी, शैला जी की साड़ी की इनक्वायरी करने। आगे का मोर्चा काजल ने सम्भाला। क से कबूतर, ख से खतूतर, ग से गतूतर घ से घतूतर ल से लतूतर........समवेत स्वर में तूतर तूतर तूतर का कोरस बहुत अच्छा लग रहा था। मैडम जी जब आई तो बच्चों को उधम न मचाते देख बहुत खुश हुई और काजल को शाबाशी भी दी।
   कक्षा में जो भी पढ़ाया, जाता काजल तुरंत याद कर लेती। अब ठ से ठठेरा या ठग भला कितनी बार बोलती या लिखती। मैडम काम तो उससे सारे करवाती लेकिन पढ़ाती वही जो पहली के कोर्स में था। दूसरी कक्षा में जाने का समय आ गया, जिसे कोर्स आया वो भी पास जिसे नहीं आया, वो भी पास। घर में कमली काजल से काम नहीं करवाती थी। उसे कहती तूँ बस मेरे सामने बैठ कर पढ़। काजल परेशान रहती कि वो क्या पढ़े? अब काजल भी मिड डे मील के बाद इधर उधर घूमने लग गई। क्योंकि अगली कक्षाओं में उसे जवान मास्टर, मास्टरनियाँ मिले, जिन्हें काजल की सेवा की जरुरत नहीं थी। काजल का अब कक्षा में जरा मन नहीं लगता था। अब तो पढ़ने में भी नहीं लगता था इसलिये अब वह घूमती ज्यादा थी।
    सर्दियों में कोई एन.जी.ओ. कंबल बाँट जाता तो कोई स्वेटर, कोई बढ़िया भोजन करा जाता, फल दे जाता। बाल दिवस पर तो बच्चे घर से झोला लेकर आये क्योंकि न जाने कौन कौन सी समितियों से लोग चिल्ड्रन डे मनाने और मनाते हुए फोटो खिंचवाने आये थे। सब कुछ मिला, पर दसवें साल में पढ़ने गई काजल को ढंग से शिक्षा ही नहीं मिली। चौदह साल की काजल तो अपना नाम भी लिख लेती थी। कुछ लड़कियाँ तो अपना नाम भी नहीं लिख पाती थीं। इसमें क़सूर बच्चियों का नहीं था उनके घरवालों का था जिन्होंने उनके मुश्किल नाम रखे जैसे शकुन्तला, उर्मिला, कौशल्या आदि। कमली को काजल के घूमने का पता चला तो उसने उसे खूब पीटा और स्कूल भेजना बंद कर के अपने साथ काम पर लाने लगी।  कमली को काजल को स्कूल भेजने का बहुत दुख था। बाई ही बनना था तो क्यों समय खराब किया।
मैं भी विदेश पढ़ने चली गई थी। जब भी घर जाती, काजल की पढ़ाई के बारे में जरुर पूछती। अम्मा तो सारा दिन घर में रहती थी, इसलिए सबसे बाद में काम करने काजल हमारे घर आती थी। जल्दी से काम खत्म करके कोई पत्रिका की कहानी खोल कर पढ़ने बैठ जाती। जहाँ अटकती अम्मा से पूछ लेती। अम्मा के मन में काजल के लिए बड़ा अपराधबोध था। कमली उसे अपने से ऊपर देखना चाहती थी। पर काजल को भी वही करना पड़ रहा है, जो कमली कर रही है। कमली के शब्दों में काजल अगर स्कूल न जाकर, चार साल कमाती तो अपनी शादी के लिए कुछ जोड़ लेती। काजल दोपहर हमारे घर गुजारती, शाम को लोगो के घरों के बर्तन साफ़ करके, तब घर जाती, इससे वह बार बार आने जाने से बच जाती थी। कमली शाम को अपने घर के काम निपटाती।
     अम्मा पाक कला में पारंगत हैं। पत्रिकाओं में जो रेस्पीज़ पढ़ती, पसंद आने पर उन्हें भी बनाकर देखती। काजल तो अम्मा की सहयोगिनी थी ही, दोनों लगी रहती थीं। अम्मा फुलके सेक रही होती, कोई आ जाये या फोन आ जाये, अम्मा तवे पर रोटी छोड़ चल देती बाकी रोटी काजल सेंक देती। चाय तो अम्मा की और अपनी वही बनाती थी। अम्मा की तबियत खराब होने पर अम्मा जैसे समझाती वैसे ही सब्ज़ी छौंक देती। खाना ठीक बनने पर, अम्मा उसे इनाम जरुर देतीं। इससे वह जो भी बनाती मन लगा के बनाती थी।
   हमारा फर्स्ट फ्लोर मेरे और भइया के बाहर जाने से खाली हो गया। उसे भाड़े पर शर्मा जी को दे दिया। मिसेज़ शर्मा भी ऑफिस जाती हैं। उन्होंने अम्मा से पूछा कि आप किसी खाना बनाने वाली को भेज सकती हैं? अम्मा ने काजल की ओर इशारा करके जवाब दिया कि जैसा हम खाते हैं, वैसा तो ये बना लेती है। तुरन्त बात बन गई। जितने लोग उतने हज़ार दो वक्त का खाना बनाना। दो शर्मा जी के बच्चे। सुबह आठ बजे घर पर ताला लग जाता था। अतः सुबह छ बजे काजल के पिता जी उसे साइकिल पर बिठा कर छोड़ जाते। आठ बजे से पहले ही काजल खाली हो जाती। शाम पाँच बजे जब वह खाना बनाने आती तो, काफी तैयारी अगली सुबह की कर जाती ताकि सुबह किसी को शिकायत न हो। अम्मा से उसकी ट्रेनिंग भी साथ साथ चलती रहती थी। मोहल्ले में  तीन लड़कियाँ मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थीं। ब्रेकफास्ट वे इंगलिश करती थीं। लंच ऑफिस में मिलता था। उन्हें डिनर बनवाना था। अम्मा मोहल्लेदारी करती थी, इसलिए उनके पास सारी न्यूज़ रहती थी। अम्मा ने झट से उनकी मकान मालकिन से कह कर, काजल का बायोडेटा उन्हें भिजवा दिया। काजल का जॉब यहाँ भी लग गया। खाना बनाने का काम उसके पसंद का था, जिसे वह मन से करती थी। तीन घरों में खाना बनाकर भी वह थकी नहीं लगती थी। इसका भी एक कारण था। एक दिन उन लड़कियों की सहेली आई। तीनो खाना खा रहीं थीं। उनके आग्रह पर वह भी खाने लग गई। उसने खाने की तारीफ़ करते हुए पूछा,’’किसने बनाया है?’’ तीनों एक साथ बोली,’’हमारी कुक ने।’’ काजल अन्दर रसोई समेट रही थी। अपने लिए कुक सुन कर वह फूली नहीं समाई। खुशी से उसकी आँखें भर आई। उसकी माँ उसे सफाईवाली नहीं बनाना चाहती थी। अपने से आगे देखना चाहती थी। जिसके लिये कमाने के समय, उसे पाठशाला भेज कर उसने उसकी कमाई का नुकसान भी उठाया था। आज उसने अपनी माँ का सपना पूरा किया, एक सोपान ऊपर उठ कर, यही तो माँ चाहती थी कि वह कुछ बने। अब वह कुक है। उसे मेरी अम्मा की बात याद आई कि खाना बनाना एक कला है, वह अपनी इस कला को निखारेगी। क्रमशः


Monday 22 July 2019

उसने तो प्यार किया है न ! भाग -1 Usney tToh Pyar Kiya Hai Na बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ नीलम भागी


उसने तो प्यार किया है न !भाग -1  बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ
 नीलम भागी
  इ मेल खोलते ही काजल की मेल सबसे पहले देखी, जिसमें उसने अपनी शादी की फोटो भेजी थी और उसकी शादी पर मैं नहीं पहुँच सकी, इसका गिला किया था। पति नमन को तुरन्त बताया और अपनी सहेलियों को उसकी शादी की फोन से सूचना दी। सभी को काजल की शादी की बहुत खुशी थी। वीकेंड था, सब एंजॉय कर रहे थे पर मैं आकर अपने कमरे में लेट गई। आँखें बंद करते ही सामने काजल का चेहरा आ जाता, उसके साथ बिताया समय याद आ रहा था और दिल से उसके लिए आशीर्वाद निकलता था। उसके बहकने से जो मुझे कष्ट हुआ, उसे मैं उसकी जवानी की नादानियाँ समझ कर बहुत पहले ही माफ़ कर चुकी हूँ। फिर भी अगर तराज़ू से उसके कर्म तोले जा सकें, तो उसकी अच्छाइयों का पलड़ा बहुत ही भारी है।
  काजल इण्डिया में हमारे घर की र्पाट टाईम मेड, कमली की बेटी है। कमली हमारे घर में झाड़ू पोछा बरतन साफ़ करने आती थी। कमली जब कभी काजल को काम पर हमारे घर लाती, तो मेरी अम्मा बहुत खुश होती थी। काजल को देखते ही अम्मा कमली से कहती,’’ कमली तू औरों के घर के काम निपटा आ। मैं काजल से काम करवा लूँगी।’’ कमली चल देती और अम्मा उससे दबा के काम लेती। एक दिन छुट्टी थी, कमली काजल को ले आई। अम्मा काजल से फर्श इस कद़र साफ करवा रही थी जैसे शीशा हो। मैं पढ़ रही थी, मेरी पढ़ाई खराब न हो इसलिए धीरे बोल रही थीं और काजल को भी हिदायत दे रक्खी थी कि शांति से काम करे जिससे दीदी की पढ़ाई खराब न हो। जब पोछा लगाते हुए काजल ने मुझे धीरे से पैर ऊपर करने को कहा, ताकि मेरे पैरों के नीचे की जगह गन्दी न रह जाये तो मैंने गुस्से से अम्मा से पूछा,’’ ये पोछा क्यों लगा रही है? कमली क्यों नहीं लगा रही है?’’ अम्मा ने बड़ी शांति से जवाब दिया,’’ बेटी ये कमली से अच्छा काम करती है। क्योंकि काजल बच्ची है न, जैसा कहो वैसा करती जाती है।’’अम्मा का जवाब सुनते ही मुझे गुस्सा आ गया। मैं बोली,’’आपको शर्म नहीं आती, बच्ची से काम करवाते। आपकी बेटी पढ़े तो आपको खुशी मिलती है। दूसरे की बेटी पढ़ने लिखने की उम्र में आपके घर का, काम आपकी पसंद के अनुसार करे, तो आपको बहुत अच्छा लगता है। कमली से कह कर इसे स्कूल क्यों नहीं पढ़ने भेजती।’’ अम्मा की एक ही बात ने मुझे चुप करा दिया। शर्म नहीं आती, माँ से इस तरह बात करते।मैं चुप हो गई। अम्मा जानती है, युवा आर्दशवादी होता है। अम्मा ने उसी समय काजल से काम लेना बंद कर, उसे कमली को बुलवाने भेज दिया।
   कमली के आते ही अम्मा ने उस पर प्रश्नों की बौछार करते हुए पूछा,’’ तू काजल को काम पर क्यों लाती है?’’ कमली ने जवाब दिया,’’दीदी हमारी झुग्गियों का माहौल बच्चियों के लिए ठीक नहीं है। सुबह औरते तो घरों में काम करने निकल जाती हैं। ज्यादातर आदमी भी मेहनत मजदूरी करने चले जाते हैं। अकेली बच्ची को झुग्गी में देखकर कोई भी घुस कर मुहँ काला करने की हिम्मत कर  जाता है।’’ अम्मा ने अगला प्रश्न दागा,’’इसके तीनों भाई कहाँ होते हैं?’’ कमली बोली,’’ भईया स्कूल जाते हैं न।’’ अम्मा ने पूछा,’’ काजल को स्कूल क्यों नही भेजती?’’ कमली ने कहा,’’इसके पापा ने मना किया है।’’ अम्मा ने कमली से कहा कि शाम को इसके पापा को मेरे पास भेजना।
    कमली भी प्रत्येक माँ की तरह अपनी बेटी को पढ़ाना चाहती थी। इसलिए शाम होते ही अपने पति मुन्नालाल को लेकर अम्मा के पास आ गई। अम्मा ने अब मुन्नालाल की क्लास लेनी शुरु की। छूटते ही उसे कहा कि कल से काजल को स्कूल भेजना। वह बोला,’’ काजल पढ़ कर क्या करेगी? करना तो वही है, जो इसकी माँ कर रही है झाड़ू, पोछा, बर्तन। इस काम में भला पढ़ाई की क्या जरुरत? और पढ़ कर इसका दिमाग न चढ़ जायेगा।’’ अम्मा ने पूछा,’’तो इसके भाइयों को स्कूल क्यों भेजते हो? जैसे तुम अनपढ़ मजदूर हो वैसे ही वे तीनों बन जायेंगे।’’ उसने दुखी होकर जवाब दिया,’’ हममें और बोझा ढोनवाले पशु में क्या फर्क है? चाहता हूँ ये ससुरे इंसान बन जाये, तभी तो इन्हें पढा रहा हूँ।’’ अम्मा बोली,’’ मैं ज्यादा पढ़ी नहीं हूँ इसलिए नौकरी नहीं करती, सिर्फ घर सम्भालती हूँ, और ये भी, मेरी ओर इशारा करके कहाकि बड़ी होकर घर सम्भालेगी तो मैं इसे क्यों पढ़ाऊँ भला? मैं तो ऐसा नहीं सोचती। पर मैं तो अपनी बेटी को खूब पढ़ाऊँगी, ये सोचकर की ये हमसे अच्छी जिन्दगी जिये।’’ कमली ने अम्मा की बात का सर्मथन करते हुए कहा कि हमारी माँ हमें पढ़ाती तो हम कामवाली थोड़े बनती। मैं अपनी बिटिया को कामवाली न बनाऊँगी।’’अब मुन्नालाल भी राजी हो गया और नौ साल की काजल का नाम दसवें साल में पहली कक्षा में लिखवाने को तैयार  हो गया।
   मुन्नालाल अगले दिन अपनी दिहाड़ी का नुकसान करके काज़ल का नाम स्कूल में लिखवाने गया। मास्टर जी ने काजल का जन्म प्रमाण पत्र माँगा। जो उसने बनवाया ही नहीं था। कमली दौड़ती हुई अम्मा के पास आई। अम्मा उसके साथ स्कूल गई। मास्टर जी बहुत भले थे। उन पर सरकार के नारे सब पढ़ें, सब बढ़ेंऔर बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का प्रभाव था। वे चाहते थे कि बच्ची पढ़े और आगे बढ़े। इसलिए उन्होंने बताया कि इसका एफीडैविट बनवा लाओ। पाँच साल उम्र लिखवा कर उसका उसका एफीडेविट बनवाया गया और नाम लिखवाया गया। सरकारी स्कूल था, वर्दी, किताब कापी सब कुछ मुफ्त में मिला। दसवें साल में लगी काजल, कक्षा में छात्रा कम टीचर की सहायिका ज्यादा थी इसलिए मॉनिटर बना दी गई। साठ साल की टीचर, इस उम्र में घुटनों में वैसे ही तकलीफ़ थी। वह बार-बार कैसे उठती भला! गरीब घरों के गंदे, गाली बकने वाले बच्चे, इनसान बनने आए थे। काजल तो टीचर के लिए वरदान साबित हुई। भाग दौड़ के सारे काम मॉनिटर के जिम्मे थे। मसलन बच्चों को लाइन बना के प्रार्थना में ले जाना और प्रार्थना से कक्षा में लाना, मिड डे मील बाँटना, कक्षा कंट्रोल करना, मैडम बोलती,’’परशोतम तुम्हारे मुहँ पर तमाचा मारुँगी।’’ काजल तुरंत जाकर परशोतम के गाल पर चाँटा जड़ आती। सर्दी में टीचर के जोड़ों में र्दद रहता है और जोड़ों के र्दद के लिए धूप बहुत मुफ़ीद होती है। काजल सब बच्चों को धूप में लाइन से बिठाती। मैडम की मेज कुर्सी बाहर लगाती। ये सब काम मॉनिटर ही तो देखेगा न।
     मिड डे मील तक बच्चों की संख्या का ध्यान रखना पढ़ाने से ज्यादा जरुरी था ताकि मिड डे मील बच्चों को कम न पड़ जाये। बच्चो को स्कूल आने की तैयारी का तो झंझट ही नहीं था। जो मिला खा लिया जैसे सोये थे, वैसे ही उठ कर, बस्ता उठाया और  चल दिये। लघुशंका और पॉटी जहाँ लगी वहाँ कर ली। जब से मिड डे मील शुरु हुआ तब से हाजिरी बहुत जरुरी हो गई है। प्रार्थना बहुत देर तक चलती है। ख़त्म होने तक सब टीचर भी पहुँच जाते हैं।  अब प्रार्थना के बाद से ही बच्चो को मिड डे मील की चिंता हो जाती, न जाने आज क्या मिलेगा? जो भूखे आते वे मिड डे मील का ख्वाब देखते रहते और सुस्त बैठे रहते। मिड डे मील मिलते ही कुछ बच्चो में गज़ब की ऊर्जा का संचार होता, वे पढ़ाई के नाम पर कक्षा में कई घंटे घिरे हुए बैठना नहीं पसन्द करते इसलिए वे स्कूल से भाग जाते। बाकि बचे बच्चों को टीचर समझाती कि वे जो भाग गये हैं, उनके भाग्य में पढ़ना नहीं है। जिनके भाग्य में पढना था, वे छुट्टी तक कक्षा में बैठे रहते। क्रमशः