गाड़ी में सामान
रक्खा और हम घर की ओर चल पड़े। जैसे मैं पहली बार विस्मय विमुग्ध सिंगापुर देख रही
थी, वैसे ही आज काजल देख रही
थी। घर पहुँचते ही काजल को उसका कमरा दिखाया। अर्पाटमेंट में ये हिस्सा ड्राइंगरूम
के साथ है। दरवाजा बंद होते ही अलग हो जाता है। वहीं बाथरूम है। कपड़ा सूखाने की
जगह है और वाशिंग मशीन रक्खी है। काजल का सामान उसने अपने कमरे में रक्खा। मम्मा
ने उसको खाना परोसा। हम सब भी खाने पर बैठे। खाने के बाद मैंने काजल को सोने को
कहा क्योंकि आज सफर की थकान है। जैसे ही वो अपने कमरे में गई, मैंने दस मिनट के बाद उसके कमरे का दरवाजा
खटखटाया। उसको साबुन शैंपू, कपड़े और उसकी
जरूरत का सामान दिया। उसे समझाया कि ये बाथरूम उसका है। ड्राइंगरूम और इस ओर का
दरवाजा वो इधर आने पर बंद कर लिया करे। मैं नहीं चाहती थी कि उसके पर्सनल समय में
उसकी प्राइवेसी में व्यवधान हो। उसे समझा दिया कि रात आठ बजे से सुबह सात बजे तक
उसे कोई काम नहीं कहा जायेगा। वो अपने एरिया में रह सकती है। बाकि उसकी मर्जी वो
घर में जहाँ चाहे घूमे। सुबह सात बजे वह नहा धो कर बाहर आई। मम्मा जैसे कहतीं गई,
वो काम करती रही। उसने हमारा नाश्ता डाइनिंग
टेबल पर लगाया। मैंने उसे कहाकि वो भी अपना नाश्ता लेले। वो लेकर अपने एरिया में
चली गई। मम्मा भी काजल से बहुत खुश हुईं।
काजल के साथ कुछ
दिन बिता कर उसके भरोसे सासू माँ भी लौट गई। जाने से पहले सोना की मालिश, नहलाना यानि उसके सभी काम काजल को सिखा गई। मैं
मैटरनिटी लीव पर थी। नमन के ऑफिस जाते ही मैं, काजल और सोना रह जाते, नवजात सोना तो सोती रहती, मैं समय से उसे फीड कराती इसलिये ताकि ऑफिस जाने पर उसे कोई
परेशानी न आये। कई घरों में काम करने वाली काजल को यहाँ का काम बहुत हल्का लगता
था। साफ सुथरा देश, धूल न मिट्टी,
गेट से अपने अर्पाटमेंट तक पहुँचने तक ऐसी
व्यवस्था थी कि जूते के तलवे तक चमक जाते, घर से बाहर शू रैक। घर साफ करने को वह हंस कर कहती कि साफ घर की सफाई। मैं घर
की व्यवस्था सोमवार से शुक्रवार तक इस तरह करती जा रही थी कि काजल को मेरे ऑफिस
जाने पर सोना के साथ परेशानी न हो। सुबह आठ बजे नमन के साथ आसानी से बनने वाला
नाश्ता यानि दूध या मिल्कशेक, आमलेट ब्रेड,
पोहा, उपमा आदि। शनिवार इतवार वह अपनी पसंद के व्यंजन हमें बनाकर खिलाती। दोपहर को
दाल, सब्जी, रायता, सलाद, दोपहर को अपने लिये वो
साथ में चावल बना लेती थी। वही रात को, बस रोटी उसी वक्त सेकी जातीं थी। हम दोनो को तो लंच ऑफिस में सर्व होता था। आठ
बजे डिनर निपट जाता। आठ बजे मैं उसे उसके कमरे में भेज देती। सुबह सात बजे नहा कर
वह अपने आप उठ कर लग जाती। वीक एंड पर कपड़े प्रेस आदि काम वह निपटाती। मैं खाली
रहती जैसे ही वह खाली होती, मैं उसे अंग्रेजी
पढ़ाने लगती साथ ही लैपटॉप चलाना सिखाती, रीडिंग सिखाते ही
उसे मेल करना आदि सिखा दिया। सीखने की इतनी शौकीन लड़की! जल्दी जल्दी काम खत्म करके,
वह इंटरनेट पर बैठ जाती। दो सण्डे ऑफ न लेने पर
उसे मैंने चालीस डॉलर दिये, उसने मुझे लौटा
दिये, जिसे मैंने उसके पर्सनल
एकाउंट में डाल दिये। घर में जो सामान खत्म होता वो ऑनलाइन मंगा लेती। जब उसकी माँ, इण्डिया में अम्मा घर के पर सफाई करने आती तो कभी कभी स्काइप पर अम्मा
और माँ से बात कर लेती। कमली उसे वैस्टर्न पोशाक में देख कर हंसते हुए कहती कि जब
देश आयेगी तो ये पहन कर मत आना। लीव खत्म होने से पहले मैंने उसे वाई फाई लगा कर
स्मार्टफोन दिया, व्हॉट्स अप
सिखाया ताकि नमन, मेरा और उसका
संवाद बना रहे। ऑफिस जाते समय मैंने उसे एक ही बात समझाई की हमारी अनुपस्थिति में
टी.वी. नहीं देखना। शाम सात बजे लौटने पर हमारे पास साफ सुथरी सोना को लाड करने के
सिवाय कोई काम नहीं था। रात को एक बार सोना रोई, काजल उठकर आई मैंने उसे तुरंत डांटा कि रात में जब तक मैं न
बुलाऊं आना नहीं, नमन मेरी हैल्प करेंगें। रात को बेफिक्र सोयेगी तो इसका
स्वास्थ ठीक रहेगा, तो मेरी गृहस्थी,
नौकरी ठीक से चलेगी। देखते देखते ग्यारह महीने
बीतने को आयें। हमने भी काजल के साथ ही इंडिया आने का प्रोग्राम बना लिया। मैंने
उसे बताया कि उसकी सैलरी दस परसेंट बढ़ गईं। सुनकर वह खुश हुई और बोली,’’दीदी मैं वापिस आपके साथ आऊँगी।’’ सुनते ही मैंने दूसरे बेबी का प्लान कर लिया।
इधर अथॉरिटी की ओर से दो कमरों के फ्लैट निकले थे। अम्मा लाइन में लग कर काजल के
लिये फॉर्म ले आई। मैंने सुना तो पूछा,’’आप काजल के भाई को लाइन में लगने भेज देतीं न।’’ अम्मा बोली,’’हाँ, बता देती! फ्लैट लॉटरी से
निकलता है। वो मिलता न मिलता लेकिन उसके घर वाले सोचते, पता नहीं हमसे छिपाकर कितना पैसा रखकर बैठी है। चालीस साल
की उम्र में बेटी का पैसा आते ही, बाप ने काम पर
जाना बंद कर दिया है और चारपाई पर टाँगे फैलाकर बैठा बतियाता रहता है। कोई पूछे कि
मुन्नालाल काम पर नहीं जाते। वह कहता है,’’ हमने बहुत कर लिया है, अब तो औलाद करेगी।’’आने से पहले त्योहारों पर मैं उसे जो पैसा देती थी, उससे काजल ने अपने परिवार के लिये गिफ्ट लिये। इण्डिया आते ही मैंने काजल को उसके
घर भेजा और मैं अपने ससुराल गई। काजल अम्मा से मिलने गई तो अम्मा ने फॉर्म को भरने
की कार्यवाही पूरी की और उसे समझाया जब तक फ्लैट न निकले किसी को बताना मत। निकलने
पर सब को हैरान करेंगे। उसने पूछा,’’घर तो बड़ा मंहगा आता है। इतना पैसा कहाँ से आयेगा?’’ अम्मा बोली,’’पहले निकले तो सही, तभी तो छोटा घर
भरा है।’’बैंक से बैलैंस पता किया
तो कमली के साथ ज्वांइट एकाउंट में कुछ नहीं, उसके पर्सनल एकाउंट में इतने पैसे, लाख से ज्यादा।
अब काजल ने कहा कि माँ को भी मत बताना। जबकि कमली उसी तरह घरों में काम कर रही थी।
छुट्टी बिताने आई काजल के लिये रोज पकवान बनाती। मुन्नालाल अपने बेटों कालू,
मोनू और सोनू को बार बार बाजार दौड़ाता बिटिया
के लिये तरह तरह के नमकीन, मिठाइयां
मंगवाता। इतनी आवभगत और प्यार मिल रहा था पर काजल को अपनी बस्ती नरक जैसी लग रही
थी जहाँ इफरात में बच्चे और मक्खियाँ थीं। लौटने का समय आ गया।
मुन्ना लाल ने चलते समय बेटी के आगे इच्छा
रक्खी कि गांव का घर पक्का करना चाहता है ताकि बुढ़ापे में अपने गांव में चैन से रह
सके। काजल के आगे इस बार सिंगापुर आने का मकसद था, माँ बाप को झुग्गी बस्ती से निकालकर गाँव में पक्के मकान
में रखना। जमीन तो थी ही। वह बड़ी खुशी से लौटी। आते ही हमने सोना का अलग रूम तैयार
किया। हम पहले ही यहाँ के रिवाज के अनुसार बेबी को अलग सुलाने में लेट हो चुके थे।
सोना के कमरे में कैमरा लगा दिया, जिससे हम सोना को अपने कमरे से देखते रहते। काजल सोना
को बहुत प्यार करती थी। वो हमें सोया जानकर रात में अकेली सोयी सोना को देखने
जाती। कैमरे में ये देखकर मन को बड़ा सकून मिलता। समर के पैदा होने पर उसने कह दिया
कि वह अकेली मैनेज़ कर लेगी। मैंने भी किसी को परेशान करना उचित नहीं समझा। पंद्रह
दिन के पितृ अवकाश पर नमन का भी बड़ा सहारा था। सोना प्ले स्कूल जाने लगी। मैं मातृ
अवकाश पर थी। काजल ही उसे स्कूल वैन में छोड़ने और लेने जाती थी। वहाँ पर उसकी कुछ
मेट सहेलियाँ भी बन गईं। सहेलियों के होते
हुए भी काजल ने अब तक कोई छुट्टी नहीं ली। वो कैसे फिजूलखर्ची कर सकती, उसे दो घर जो बनाने थे। कुछ काम उसने खुद ही ले
लिये मसलन सोना की डायरी देख कर उसे होमवर्क आदि कराना। कोई मेरे घर आता तो वो
सोना को एक पोयम सुनाने को कहता वो दस सुनाये बिना रूकती ही नहीं थी। ये देख मेरी
ऑफिस की सहयोगी कहतीं," हमें भी इण्डिया से ऐसी लड़की ला दो।" काजल का प्लैट निकल आया
था। जब उसे पजैशन मिलना था तब हमने इण्डिया आने का प्रोग्राम बनाया। उसके गाँव का
घर तो बन ही गया था। उसके माता पिता घर दिखाने के लिये उसे बुला रहे थे। जो भी
उसका घर न आने का पैसा और छुट्टियों का बन रहा था मैं अम्मा को देती रहती। अम्मा
उसके चालान भरती रहती। रजिस्ट्री की तारीख से पहले हम पहुँच गये। उसके पर्सनल
एकाउंट से पैसा निकालकर रजिस्ट्री करवाई फिर उसे गाँव भेजा। वहाँ अपने कालू भाई की
शादी में भी वह शामिल हुई। लौटने से पहले
उसने अपना फ्लैट देखा, अब उसके चेहरे की
खुशी देखने लायक थी।
लौटते समय उसने अपनी माँ को फ्लैट की चाबी देकर
कहा कि इसे भाड़े पर उठाकर इसका किराया खाओ। अब मैं पैसा नहीं भेजूंगी। मुझे इसकी
किश्त भी चुकानी है। और झूठ बोली,’’ इसे लेने में जो दीदी जी ने पैसा दिया है, वो भी लौटाना है।’’ ये सुनते ही उसके परिवार का चेहरा देखने लायक था। दादी नानी के घर से लौटे
बच्चे काजल को देखते ही एयरपोर्ट पर उसके साथ लिपट गये। क्रमशः
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