उसने तो प्यार
किया है न !भाग -1 बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ
नीलम भागी
इ मेल खोलते ही काजल की मेल सबसे पहले देखी,
जिसमें उसने अपनी शादी की फोटो भेजी थी और उसकी शादी पर मैं नहीं पहुँच सकी,
इसका गिला किया था। पति नमन को तुरन्त बताया और
अपनी सहेलियों को उसकी शादी की फोन से सूचना दी। सभी को काजल की शादी की बहुत खुशी
थी। वीकेंड था, सब एंजॉय कर रहे
थे पर मैं आकर अपने कमरे में लेट गई। आँखें बंद करते ही सामने काजल का चेहरा आ
जाता, उसके साथ बिताया समय याद
आ रहा था और दिल से उसके लिए आशीर्वाद निकलता था। उसके बहकने से जो मुझे कष्ट हुआ,
उसे मैं उसकी जवानी की नादानियाँ समझ कर बहुत
पहले ही माफ़ कर चुकी हूँ। फिर भी अगर तराज़ू से उसके कर्म तोले जा सकें, तो उसकी अच्छाइयों का पलड़ा बहुत ही भारी है।
काजल इण्डिया में हमारे घर की र्पाट टाईम मेड,
कमली की बेटी है। कमली हमारे घर में झाड़ू पोछा
बरतन साफ़ करने आती थी। कमली जब कभी काजल को काम पर हमारे घर लाती, तो मेरी अम्मा बहुत खुश होती थी। काजल को देखते
ही अम्मा कमली से कहती,’’ कमली तू औरों के
घर के काम निपटा आ। मैं काजल से काम करवा लूँगी।’’ कमली चल देती और अम्मा उससे दबा के काम लेती। एक दिन छुट्टी
थी, कमली काजल को ले आई।
अम्मा काजल से फर्श इस कद़र साफ करवा रही थी जैसे शीशा हो। मैं पढ़ रही थी, मेरी पढ़ाई खराब न हो इसलिए धीरे बोल रही थीं और
काजल को भी हिदायत दे रक्खी थी कि शांति से काम करे जिससे दीदी की पढ़ाई खराब न हो।
जब पोछा लगाते हुए काजल ने मुझे धीरे से पैर ऊपर करने को कहा, ताकि मेरे पैरों के नीचे की जगह गन्दी न रह
जाये तो मैंने गुस्से से अम्मा से पूछा,’’ ये पोछा क्यों लगा रही है? कमली क्यों नहीं
लगा रही है?’’ अम्मा ने बड़ी
शांति से जवाब दिया,’’ बेटी ये कमली से
अच्छा काम करती है। क्योंकि काजल बच्ची है न, जैसा कहो वैसा करती जाती है।’’अम्मा का जवाब सुनते ही मुझे गुस्सा आ गया। मैं बोली,’’आपको शर्म नहीं आती, बच्ची से काम करवाते। आपकी बेटी पढ़े तो आपको खुशी मिलती है।
दूसरे की बेटी पढ़ने लिखने की उम्र में आपके घर का, काम आपकी पसंद के अनुसार करे, तो आपको बहुत अच्छा लगता है। कमली से कह कर इसे स्कूल क्यों
नहीं पढ़ने भेजती।’’ अम्मा की एक ही
बात ने मुझे चुप करा दिया। ’शर्म नहीं आती,
माँ से इस तरह बात करते।’ मैं चुप हो गई। अम्मा जानती है, युवा आर्दशवादी होता है। अम्मा ने उसी समय
काजल से काम लेना बंद कर, उसे कमली को
बुलवाने भेज दिया।
कमली के आते ही अम्मा ने उस पर प्रश्नों की
बौछार करते हुए पूछा,’’ तू काजल को काम
पर क्यों लाती है?’’ कमली ने जवाब
दिया,’’दीदी हमारी झुग्गियों का
माहौल बच्चियों के लिए ठीक नहीं है। सुबह औरते तो घरों में काम करने निकल जाती
हैं। ज्यादातर आदमी भी मेहनत मजदूरी करने चले जाते हैं। अकेली बच्ची को झुग्गी में
देखकर कोई भी घुस कर मुहँ काला करने की हिम्मत कर
जाता है।’’ अम्मा ने अगला
प्रश्न दागा,’’इसके तीनों भाई
कहाँ होते हैं?’’ कमली बोली,’’
भईया स्कूल जाते हैं न।’’ अम्मा ने पूछा,’’ काजल को स्कूल क्यों नही भेजती?’’ कमली ने कहा,’’इसके पापा ने मना किया है।’’ अम्मा ने कमली से
कहा कि शाम को इसके पापा को मेरे पास भेजना।
कमली भी प्रत्येक माँ की तरह अपनी बेटी को
पढ़ाना चाहती थी। इसलिए शाम होते ही अपने पति मुन्नालाल को लेकर अम्मा के पास आ गई।
अम्मा ने अब मुन्नालाल की क्लास लेनी शुरु की। छूटते ही उसे कहा कि कल से काजल को
स्कूल भेजना। वह बोला,’’ काजल पढ़ कर क्या
करेगी? करना तो वही है, जो इसकी माँ कर रही है झाड़ू, पोछा, बर्तन। इस काम में भला पढ़ाई की क्या जरुरत? और पढ़ कर इसका दिमाग न चढ़ जायेगा।’’ अम्मा ने पूछा,’’तो इसके भाइयों को स्कूल क्यों भेजते हो? जैसे तुम अनपढ़ मजदूर हो वैसे ही वे तीनों बन जायेंगे।’’
उसने दुखी होकर जवाब दिया,’’ हममें और बोझा ढोनवाले पशु में क्या फर्क है?
चाहता हूँ ये ससुरे इंसान बन जाये, तभी तो इन्हें पढा रहा हूँ।’’ अम्मा बोली,’’ मैं ज्यादा पढ़ी नहीं हूँ इसलिए नौकरी नहीं करती, सिर्फ घर सम्भालती हूँ, और ये भी, मेरी ओर इशारा करके कहाकि बड़ी होकर घर सम्भालेगी
तो मैं इसे क्यों पढ़ाऊँ भला? मैं तो ऐसा नहीं
सोचती। पर मैं तो अपनी बेटी को खूब पढ़ाऊँगी, ये सोचकर की ये हमसे अच्छी जिन्दगी जिये।’’ कमली ने अम्मा की बात का सर्मथन करते हुए कहा कि
हमारी माँ हमें पढ़ाती तो हम कामवाली थोड़े बनती। मैं अपनी बिटिया को कामवाली न
बनाऊँगी।’’अब मुन्नालाल भी राजी हो
गया और नौ साल की काजल का नाम दसवें साल में पहली कक्षा में लिखवाने को तैयार हो गया।
मुन्नालाल अगले दिन अपनी दिहाड़ी का नुकसान
करके काज़ल का नाम स्कूल में लिखवाने गया। मास्टर जी ने काजल का जन्म प्रमाण पत्र
माँगा। जो उसने बनवाया ही नहीं था। कमली दौड़ती हुई अम्मा के पास आई। अम्मा उसके
साथ स्कूल गई। मास्टर जी बहुत भले थे। उन पर सरकार के नारे ’सब पढ़ें, सब बढ़ें’ और बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ ’ का प्रभाव था। वे
चाहते थे कि बच्ची पढ़े और आगे बढ़े। इसलिए उन्होंने बताया कि इसका एफीडैविट बनवा
लाओ। पाँच साल उम्र लिखवा कर उसका उसका एफीडेविट बनवाया गया और नाम लिखवाया गया।
सरकारी स्कूल था, वर्दी, किताब कापी सब कुछ मुफ्त में मिला। दसवें साल
में लगी काजल, कक्षा में छात्रा
कम टीचर की सहायिका ज्यादा थी इसलिए मॉनिटर बना दी गई। साठ साल की टीचर, इस उम्र में घुटनों में वैसे ही तकलीफ़ थी। वह
बार-बार कैसे उठती भला! गरीब घरों के गंदे, गाली बकने वाले बच्चे, इनसान बनने आए थे। काजल तो टीचर के लिए वरदान साबित हुई।
भाग दौड़ के सारे काम मॉनिटर के जिम्मे थे। मसलन बच्चों को लाइन बना के प्रार्थना
में ले जाना और प्रार्थना से कक्षा में लाना, मिड डे मील बाँटना, कक्षा कंट्रोल करना, मैडम बोलती,’’परशोतम तुम्हारे मुहँ पर तमाचा मारुँगी।’’
काजल तुरंत जाकर परशोतम के गाल पर चाँटा जड़
आती। सर्दी में टीचर के जोड़ों में र्दद रहता है और जोड़ों के र्दद के लिए धूप बहुत
मुफ़ीद होती है। काजल सब बच्चों को धूप में लाइन से बिठाती। मैडम की मेज कुर्सी
बाहर लगाती। ये सब काम मॉनिटर ही तो देखेगा न।
मिड डे मील तक बच्चों की संख्या का ध्यान
रखना पढ़ाने से ज्यादा जरुरी था ताकि मिड डे मील बच्चों को कम न पड़ जाये। बच्चो को
स्कूल आने की तैयारी का तो झंझट ही नहीं था। जो मिला खा लिया जैसे सोये थे,
वैसे ही उठ कर, बस्ता उठाया और चल
दिये। लघुशंका और पॉटी जहाँ लगी वहाँ कर ली। जब से मिड डे मील शुरु हुआ तब से
हाजिरी बहुत जरुरी हो गई है। प्रार्थना बहुत देर तक चलती है। ख़त्म होने तक सब टीचर
भी पहुँच जाते हैं। अब प्रार्थना के बाद
से ही बच्चो को मिड डे मील की चिंता हो जाती, न जाने आज क्या मिलेगा? जो भूखे आते वे मिड डे मील का ख्वाब देखते रहते और सुस्त
बैठे रहते। मिड डे मील मिलते ही कुछ बच्चो में गज़ब की ऊर्जा का संचार होता,
वे पढ़ाई के नाम पर कक्षा में कई घंटे घिरे हुए
बैठना नहीं पसन्द करते इसलिए वे स्कूल से भाग जाते। बाकि बचे बच्चों को टीचर
समझाती कि वे जो भाग गये हैं, उनके भाग्य में
पढ़ना नहीं है। जिनके भाग्य में पढना था, वे छुट्टी तक कक्षा में बैठे रहते। क्रमशः