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Thursday 25 July 2019

क से कबूतर, ख से खतूतर, ग से गतूतर घ से घतूतर ल से लतूतर.......उसने तो प्यार किया है न! Usney Toh Pyar Kiya Hai Na!! Part 2 भाग 2 नीलम भागी


टीचर उम्र के साथ-साथ अनुभवी भी बहुत थी। उसका कहना था कि नीव मजबूत हो तो उस पर इमारत टिकी रहती है। किसी तरह अक्षरों की पहचान अच्छे से हो जाये तो, किताब पढ़ना कोई मुश्किल नहीं है। इसलिये वह अक्षर ज्ञान पर बहुत जोर देती थी। मैडम जी मेज पर किताब खोल कर रख, कुर्सी पर बैठ कर अक्षर ज्ञान सिखा रहीं थी। बच्चे भी किताब खोलकर, मैडम जो अक्षर बोल रही थी, उस पर अंगुली रख कर दोहरा रहे थे। काजल डण्डी लेकर खड़ी देख रही थी कि सब बच्चे मैडम जी के पीछे बोले और अंगुली ठीक अक्षर पर खिसकाते जायें। सब बच्चे ऐसा ही कर रहे थे। कारण यदि कोई बच्चा ऐसा नहीं करता, तो काजल मैडम जी से कहती और मैडम जी जितने डण्डे कहतीं, काजल उस बच्चे को उसकी सीट पर जाकर लगाकर आती। मैडम जी को कई सालों से एक ही किताब पढ़ाते हुए याद हो गई थी। वे किताब की बजाय बाहर बरामदे में देखते हुए पढ़ा रहीं थी। जैसे ही क तक पहुँची, वे बोली क से कबूतर,’ इतने में शैला जी नई साड़ी पहने उनकी कक्षा के आगे से निकली, मैडम जी ने किताब काजल के हाथ में पकड़ाई और चल दी, शैला जी की साड़ी की इनक्वायरी करने। आगे का मोर्चा काजल ने सम्भाला। क से कबूतर, ख से खतूतर, ग से गतूतर घ से घतूतर ल से लतूतर........समवेत स्वर में तूतर तूतर तूतर का कोरस बहुत अच्छा लग रहा था। मैडम जी जब आई तो बच्चों को उधम न मचाते देख बहुत खुश हुई और काजल को शाबाशी भी दी।
   कक्षा में जो भी पढ़ाया, जाता काजल तुरंत याद कर लेती। अब ठ से ठठेरा या ठग भला कितनी बार बोलती या लिखती। मैडम काम तो उससे सारे करवाती लेकिन पढ़ाती वही जो पहली के कोर्स में था। दूसरी कक्षा में जाने का समय आ गया, जिसे कोर्स आया वो भी पास जिसे नहीं आया, वो भी पास। घर में कमली काजल से काम नहीं करवाती थी। उसे कहती तूँ बस मेरे सामने बैठ कर पढ़। काजल परेशान रहती कि वो क्या पढ़े? अब काजल भी मिड डे मील के बाद इधर उधर घूमने लग गई। क्योंकि अगली कक्षाओं में उसे जवान मास्टर, मास्टरनियाँ मिले, जिन्हें काजल की सेवा की जरुरत नहीं थी। काजल का अब कक्षा में जरा मन नहीं लगता था। अब तो पढ़ने में भी नहीं लगता था इसलिये अब वह घूमती ज्यादा थी।
    सर्दियों में कोई एन.जी.ओ. कंबल बाँट जाता तो कोई स्वेटर, कोई बढ़िया भोजन करा जाता, फल दे जाता। बाल दिवस पर तो बच्चे घर से झोला लेकर आये क्योंकि न जाने कौन कौन सी समितियों से लोग चिल्ड्रन डे मनाने और मनाते हुए फोटो खिंचवाने आये थे। सब कुछ मिला, पर दसवें साल में पढ़ने गई काजल को ढंग से शिक्षा ही नहीं मिली। चौदह साल की काजल तो अपना नाम भी लिख लेती थी। कुछ लड़कियाँ तो अपना नाम भी नहीं लिख पाती थीं। इसमें क़सूर बच्चियों का नहीं था उनके घरवालों का था जिन्होंने उनके मुश्किल नाम रखे जैसे शकुन्तला, उर्मिला, कौशल्या आदि। कमली को काजल के घूमने का पता चला तो उसने उसे खूब पीटा और स्कूल भेजना बंद कर के अपने साथ काम पर लाने लगी।  कमली को काजल को स्कूल भेजने का बहुत दुख था। बाई ही बनना था तो क्यों समय खराब किया।
मैं भी विदेश पढ़ने चली गई थी। जब भी घर जाती, काजल की पढ़ाई के बारे में जरुर पूछती। अम्मा तो सारा दिन घर में रहती थी, इसलिए सबसे बाद में काम करने काजल हमारे घर आती थी। जल्दी से काम खत्म करके कोई पत्रिका की कहानी खोल कर पढ़ने बैठ जाती। जहाँ अटकती अम्मा से पूछ लेती। अम्मा के मन में काजल के लिए बड़ा अपराधबोध था। कमली उसे अपने से ऊपर देखना चाहती थी। पर काजल को भी वही करना पड़ रहा है, जो कमली कर रही है। कमली के शब्दों में काजल अगर स्कूल न जाकर, चार साल कमाती तो अपनी शादी के लिए कुछ जोड़ लेती। काजल दोपहर हमारे घर गुजारती, शाम को लोगो के घरों के बर्तन साफ़ करके, तब घर जाती, इससे वह बार बार आने जाने से बच जाती थी। कमली शाम को अपने घर के काम निपटाती।
     अम्मा पाक कला में पारंगत हैं। पत्रिकाओं में जो रेस्पीज़ पढ़ती, पसंद आने पर उन्हें भी बनाकर देखती। काजल तो अम्मा की सहयोगिनी थी ही, दोनों लगी रहती थीं। अम्मा फुलके सेक रही होती, कोई आ जाये या फोन आ जाये, अम्मा तवे पर रोटी छोड़ चल देती बाकी रोटी काजल सेंक देती। चाय तो अम्मा की और अपनी वही बनाती थी। अम्मा की तबियत खराब होने पर अम्मा जैसे समझाती वैसे ही सब्ज़ी छौंक देती। खाना ठीक बनने पर, अम्मा उसे इनाम जरुर देतीं। इससे वह जो भी बनाती मन लगा के बनाती थी।
   हमारा फर्स्ट फ्लोर मेरे और भइया के बाहर जाने से खाली हो गया। उसे भाड़े पर शर्मा जी को दे दिया। मिसेज़ शर्मा भी ऑफिस जाती हैं। उन्होंने अम्मा से पूछा कि आप किसी खाना बनाने वाली को भेज सकती हैं? अम्मा ने काजल की ओर इशारा करके जवाब दिया कि जैसा हम खाते हैं, वैसा तो ये बना लेती है। तुरन्त बात बन गई। जितने लोग उतने हज़ार दो वक्त का खाना बनाना। दो शर्मा जी के बच्चे। सुबह आठ बजे घर पर ताला लग जाता था। अतः सुबह छ बजे काजल के पिता जी उसे साइकिल पर बिठा कर छोड़ जाते। आठ बजे से पहले ही काजल खाली हो जाती। शाम पाँच बजे जब वह खाना बनाने आती तो, काफी तैयारी अगली सुबह की कर जाती ताकि सुबह किसी को शिकायत न हो। अम्मा से उसकी ट्रेनिंग भी साथ साथ चलती रहती थी। मोहल्ले में  तीन लड़कियाँ मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थीं। ब्रेकफास्ट वे इंगलिश करती थीं। लंच ऑफिस में मिलता था। उन्हें डिनर बनवाना था। अम्मा मोहल्लेदारी करती थी, इसलिए उनके पास सारी न्यूज़ रहती थी। अम्मा ने झट से उनकी मकान मालकिन से कह कर, काजल का बायोडेटा उन्हें भिजवा दिया। काजल का जॉब यहाँ भी लग गया। खाना बनाने का काम उसके पसंद का था, जिसे वह मन से करती थी। तीन घरों में खाना बनाकर भी वह थकी नहीं लगती थी। इसका भी एक कारण था। एक दिन उन लड़कियों की सहेली आई। तीनो खाना खा रहीं थीं। उनके आग्रह पर वह भी खाने लग गई। उसने खाने की तारीफ़ करते हुए पूछा,’’किसने बनाया है?’’ तीनों एक साथ बोली,’’हमारी कुक ने।’’ काजल अन्दर रसोई समेट रही थी। अपने लिए कुक सुन कर वह फूली नहीं समाई। खुशी से उसकी आँखें भर आई। उसकी माँ उसे सफाईवाली नहीं बनाना चाहती थी। अपने से आगे देखना चाहती थी। जिसके लिये कमाने के समय, उसे पाठशाला भेज कर उसने उसकी कमाई का नुकसान भी उठाया था। आज उसने अपनी माँ का सपना पूरा किया, एक सोपान ऊपर उठ कर, यही तो माँ चाहती थी कि वह कुछ बने। अब वह कुक है। उसे मेरी अम्मा की बात याद आई कि खाना बनाना एक कला है, वह अपनी इस कला को निखारेगी। क्रमशः


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