- मेरी भी पढ़ाई पूरी हो गई साथ ही सिंगापुर में जॉब लग गईं। मेरे साथ में काम करने वाले नमन के साथ शादी तय हुईं। नमन का परिवार भी इंडिया में रहता था। मेरी शादी में पूरा घर काजल और कमली ने संभाल रक्खा था। मेरी शादी पर लेडीज संगीत का अम्मा ने आयोजन किया। सबसे कह दिया कि उस समय ये तुम्हारा कान फोड़ू डी.जे. नहीं बजेगा। महिला संगीत के बाद तुम सब जो मरजी हो करना। काजल से पूछा कि तेरे घर के पास कोई ढोलक वाला हो तो उसे तीन घण्टे के लिये बुक कर लेना। काजल तुरंत बोली," है न, हमारी झुग्गी से पाँचवीं झुग्गी में राजकिशोर रहता है। दो सौ रूपया घण्टा लेता है पर बजाता गज़ब का है। उसकी बजाने की खासियत ये है कि सब के पैर उसकी ताल पर चलते हैं। मैं तो उसे ले आउंगी।" अम्मा मुझसे बोली,”बेटी, शादी ब्याह के या किसी भी शुभ संस्कार के गीतो का हम घरेलू महिलाओं के जीवन में बड़ा महत्व है। इस मौके पर वे अपने अन्दर की रचनात्मकता निकालती हैं। जिसमें उनके मन के उद्गार होते हैं। उनकी डायरियाँ निकलती हैं। जिसमें होते हैं लोकगीत। लोकगीत प्रकृति के उद्गार हैं। जनसामान्य की कला है। लोक रचित लोकगीतों में कोई नियम कायदे नहीं होते। ऐसा सुनने में आता है कि जिस समाज में लोक गीत नहीं होते। वहाँ पागलों की संख्या अधिक होती है। रिश्तेदार आते हैं। वे अपने गीत गाते हैं और यहाँ सुने गीतों को ले जाते हैं यानि गीतों का आदान प्रदान होता है। और बरसों महिलाएं याद रखती हैं कि ये गीत अमुक की शादी में बहुत जमा।“ हर शादी ब्याह में एक महिला ऐसी गुणवान होती है, जो शुभ अशुभ का भय दिखा कर सबका नेतृत्व कर लेती है और गुणवंती बहन बन जाती है। गुणवंती बहन से पूछ पूछ कर ही फिर सब काम होते हैं। खैर लेडीज संगीत में सज सज कर डायरी कॉपी ले लेकर महिलाएं बिल्कुल समय से आ गईं। लेडीज संगीत में सभी महिलाओं की भागीदारी थी। विदेश में रहने के कारण मुझे ये सब बहुत अच्छा लग रहा था। अम्मा आतीं धीरे से मेरे कान में कहती कि विवाह वाली लड़की शरमाई सकुचाई एक कोने में बैठी रहती है। रिश्तेदार बातें बनायेंगे। पर मैं सबके बीच ही बैठी। संगीत में गुणवंती बहन बोली,”पहले पाँच सुहाग गाये जायेंगे।“ ये खण्ड बेसुरा गानेवालियों का था जिसके साथ देश का प्रख्यात ढोलकवादक भी ढोलक नहीं बजा सकता। इस ओपेरा का मकसद होता हैं। शादी वाली लड़की यानि बन्नी की माँ, मासी और भुआ को खूब रूलाना, अगर अरेंज मैरीज है तो बन्नी भी रोती है। लव मैरिज में लड़की मुंह नीचे करके हंसती है जैसे मैं और होने वाले पति को मोबाइल पर मैसेज कर जवाब मांगती है। क्योंकि वो बतातीं हैं कि शादी के बाद ससुराल के नियम कायदे मानने होंगे यानि बंधन, मायके में तुम मेहमान की तरह होगी। पाँच सुहाग निपटते ही महिलायें खिल गई। अब गीत शुरू लगभग सभी गीतों में ननद, खलनायिका होती है। गीत के अंत में उसका इलाज बताती है कि ननदोई तो लुच्चा होता है। तुम उससे नैन मट्टका करो। ननद तो सुधर जायेगी वो मायके आना कम कर देगी। जो बहुत सुरीली महिलायें होती हैं। वो फिल्मी धुनों पर अपने बनाये गीत गाती हैं। जिसका मतलब कुछ भी हो, पर वे सुर से नहीं भटकती। मसलन मौहम्मद रफी का गीत है उनसे इज़हार हार कर बैठे, बेखुदी में कमाल कर बैठे हैं...... उस पर बन्नी बनाई, बन्नी तुम तो कमाल कर बैठी हो तुम तो बन्ने से प्यार कर बैठी हो।
हमने बाग लगवाया तुम्हारे लिए, तुम तो माली से प्यार कर बैठी हो।
हमने जेवर बनवाये तुम्हारे लिये, तुम सुनार से प्यार कर बैठी हो।
हमने कपड़े सिलवाये तुम्हारे लिए, तुम तो दर्जी से प्यार कर बैठी हो।
यानि बन्नी इतनी दिल फैंक है कि अच्छी भली
बन्ने को प्यार कर बैठी थी अब विवाह के अवसर पर जो भी उसे सेवा देता वो उसी से प्यार कर बैठती। जिन्हें नाचने
का शौक था वो नाच रहीं थी हर गाने पर देसी ठुमके लगा रहीं थी। महिला संगीत का
आनन्द उठाते, मेरी नजर काजल पर पड़ी जो ताल पर चलते हुए गुनगुनाते हुए, सबको चाय पानी पिला रही थी। मेरे अंदर का समाजवाद जाग गया।
मैं बोली,”अब काजल कुछ सुनायेगी। ये सुनते ही कमली बोली,” ये तो नाचती भी बहुत सुन्दर है। काजल तो
जैसे तैयार बैठी थी। उसने दुपट्टा कमर पर बांधा। सर्किल के बीच में खड़ी हुई। कमली
ढोलक वाले के पास गाने बैठ गई। राजकिशोर ने अपनी ढोलक को फिर से कसा और हाथों में पाउडर लगाकर एकदम तैनात बैठ गया जैसे उसे सारी अपनी
कलाकारी, इसी गीत पर दिखानी हो। माँ बेटी के गीत के बोल थे, उई ! अम्मा मैं काहे
को बाजार गई थी। वो तो पहली लाइन पर ही जम गई।
उई! अम्मा मैं काहे को बाजार गई थी।
उई! अम्मा मैं काहे को बाजार गई थी।
बाजार गई थी, जी बाजार गई थी। उई अम्मा....
हाथ में थैला लेकर मैं तो लेने गई खजूरें, मारे शरम के मर गई मैं तो दुनिया वाले
घूरें।
मैं तो मारे शरम के लाल हुई थी........उई!
अम्मा....
आगे गई तो इक हलवाई भून रहा था हलुआ, मेरे रूप का देख के जलवा, जल गया उसका हलुवा।
मैं तो हाथों में लेकर रूमाल गई थी... उई अम्मा....
चौराहे के मोड़ पे मुझको मिल गये चार शराबी, बीड़ी फैंक कर मुझसे बोले,” कहाँ चली मेरी भाभी?”
मैं तो घर से बड़ी होशियार गई
थी....उई...अम्मा....
आगे गई तो रूम्मन झुम्मन खेल रहे थे कलवा, मेरी ख़ातिर चक्कू चल गये शहर में हो गया बलवा।
मैं तो घर से बड़ी होशियार गई
थी.....उई....अम्मा
काजल के लटके झटके राजकिशोर की ढोलक की थाप में, काजल के
पैरों की थाप और महिलाओं की तालियों की ताल ने बलवा कर देना था अगर इस गीत का
प्रदर्शन महिला संगीत में न होकर कहीं और होता तो। सबने काजल को घेर लिया और उससे
गीत लिया। अब मेट मजदूर की झुग्गी की लड़की से कुचीपुड़ी नृत्य की उम्मीद तो नहीं कर सकते न। पर गज़ब की मनोरंजक
तुकबंदी थी जिसे काजल ने बखूबी निभाया था।
इसके बाद डी.जे. पर जम कर डांस हुआ वो याद
भी नहीं है मुझे और लेडीज संगीत आज तक याद है।
किसी भी मेहमान को माँ बेटी ने शिकायत का मौका
नहीं दिया था। शादी के धूमधड़ाके से हम सिंगापुर लौटे। अपने रोजर्मरा के काम में
लगे। मैं नाश्ता बनाती, नमन बाकि काम
समेटता लंच की चिंता नहीं थी वह ऑफिस की तरफ से था। सुबह सात बजे घर से निकलते और
शाम सात बजे घर लौटते। दोनो मिलकर डिनर तैयार करते। फाइव डे वीक था। फ्राइडे शाम
को ही हम पार्टटाइम मेड बुला लेते, वो घंटे के हिसाब
से चार्ज करती थी। सफाई, साथ ही में कपड़े
धोना, हाइड्रो से निकले सूखे
कपड़े, साथ साथ प्रेस करती जाती।
हफ्ते की सबि़्ज़याँ काट जाती। फ्राइडे लेट नाइट से संडे रात तक हम वीक एंड
मनमुताबिक ढंग से बिताते। इण्डिया आती तो काजल अपने रेगुलर काम निपटा कर दोपहर
हमारे घर में ही काटती और रसोई के काम में अम्मा की मदद करती। बाकी घर के काम तो
उसकी माँ ही करती है। मेरे कहने से काजल की माँ ने उसकी कमाई का नुकसान उठा कर जब
उसे स्कूल भेजा, तब से मुझे काजल
से विशेष लगाव हो गया था। मैं अगर पढ़ाई के सिलसिले में घर से बाहर नहीं जाती तो
शायद काजल भी एक पढ़ी लिखी लड़की होती। मेरे लिये वो जो भी डिश बनाती, मैं चखते ही उसे इनाम जरुर देती। गिफ्ट के साथ
मैं अपने सभी पुरानी ड्रेसेस काजल के लिये लाती। वो अपनी शादी के लिये बड़ी शिद्त
से पैसा जोड़ रही थी। मेरे पहले बच्चे सोना के जन्म पर अम्मा चाहती थी मैं इण्डिया
में डिलीवरी के लिये उनके पास आऊँ और सासू माँ चाहती थीं उनके पास रहूँ। यहाँ
हमारा सारा खर्च कम्पनी उठा रही थी और पंद्रह दिन की नमन को पैटरनटी लीव थी। मेरी
सहेलियों ने समझाया कि इस समय मैं अम्मा को बुला लूँ क्योंकि बच्चे के जन्म पर सब
खुशी में अपना ध्यान बच्चे पर लगाते हैं। लेकिन माँ को बेटी के स्वास्थ्य की चिंता
रहती है। खै़र हम दोनो ने अपनी अपनी सासों को निमंत्रण भेजा कि आपस में डिसाइड
करके एक एक करके आओ। पहले अम्मा आने को तैयार हो गई। रसोई की इंचार्ज काजल को बना
कर, अम्मा सोना के जन्म से
पहले आ गई। अम्मा मेरी गृहस्थी देखकर बहुत खुश थी। इस खुशी का एक बहुत बड़ा कारण ये
भी था कि वे हमारे खुद के खरीदे फ्लैट में आईं थीं। खूब बड़ा फेसिंग सी फ्लैट,
तीनों कमरों, रसोई से सागर दर्शन और उसमें खड़े शिप। अम्मा ने पहली बार
समुद्र देखा था। रात को अपने बैड पर लेटे लेटे खिड़की से गोलाई में जहाज की
बत्तियाँ उन्हें बहुत भाती थीं। अम्मा का चेहरा देख कर लगता था कि बेटी पर की गई
उनकी मेहनत सार्थक हो गई, हम बहुत जोर शोर
से फुल टाइम एजेंसी से मेट तलाश रहे थे। मेट की तनखाह पाँच सौ डॉलर महीना, रहना खाना, मैडिकल, महीने में दो
संडे छुट्टी, दो सण्डे ऑफ न
लेने पर बीस डॉलर प्रति सण्डे मेड को देने पड़ते, साल में एक महीना छु्ट्टी और घर
आने जाने का किरायां देना होगा। मेट हमें मैडिकल चैकअप के बाद ही मिलेगी। अगर वह
प्रैगनेंट हो जाती है तो उसका खर्च हमें उठाना होगा। सारी बातें तो अम्मा को ठीक
लगी। पर प्रैगनेंसी वाली बात पर अम्मा उबल पड़ी कि महीने में दो बार मटर गश्ती करने
जायेगी और कहीं भी मुँह काला करेगी तो उसकी जिम्मेवारी क्या हमारी होगी! ज्यादातर
मेट इंण्डोनेशियन, श्रीलंकन,
फिलिपीनो या चाइना की मिल रहीं थीं। जो इंडियन
कूकिंग नहीं जानती थीं। इंडियन में नॉर्थ इस्ट की। एक महीने की सेलरी का कमीशन
हमसे और एक महीने का मेट से यानि दो महीने का एजेंसी को कमीशन का लाभ था। साल बाद
फिर नया एग्रीमेंट। अगर हम कहीं बाहर जा रहें हैं और मेट को नहीं ले जा रहे हैं तो
उसे ऐजेंट के यहाँ छोड़ सकते हैं, बदले में बीस
डॉलर प्रतिदिन ऐजेंट को देने होंगे। कानून व्यवस्था सख्त होने के कारण चोरी चकारी
का वहाँ कोई डर नहीं था। बस कुछ दिन बाहर जाने पर मेट को घर में छोड़ कर जाने में
एक ही डर सताता था कि हमारे पीछे अपना ब्वॉयफैंड न बुला कर रख ले। अम्मा चाहती थी
कि मेट आ जाये तो वे उसे कुकिंग में ट्रेंड कर देगी। मैंने भी अपना फैसला सुना
दिया कि रक्खूँ तो मैं अपने देश की मेट। सासू जी के आते ही अम्मा लौट गई, ये आश्वासन देकर कि वे जल्द ही मेट का इंतजाम
करके भेज देंगी। इण्डिया लौटते ही उन्होंने काजल और उसकी माँ से मेट लाने को कहा
लेकिन वेतन पाँच सौ डॉलर की बजाय, चार सौ डॉलर को
रूपये में बदल कर यानि बीस हजार रू महीना, खर्च कुछ नहीं बचत ही बचत समझाया। अगले दिन कमली ने आते ही कहा कि वह काजल को सिंगापुर
भेज देगी। सुनते ही काजल के जाने की तैयारियाँ शुरू करदी। तत्काल में पासपोर्ट
बनवाया। अम्मा ने कमली और काजल का ज्वाइंट एकाउंट खुलवाया और एक काजल का अलग से
खुलवाया, साथ ही उसे समझाया कि चार
सौ डालर तूं जैसे मर्जी खर्च करना पर सौ डॉलर तेरे खाते में हर महीने आयेंगे,
अगर इन सौ डॉलर के बारे में तूने किसी को बताया
तो तेरी पगार चार सौ डालर कर दूंगी। उसने पूछा कि सौ डॉलर मतलब कितने रूपये?
अम्मा ने कैल्कुलेशन करके उसे बताया। सुनते ही
काजल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने काजल को फोन कर दिया था कि कपड़ों की टेंशन
न ले। यहाँ सब इंतजाम हो जायेगा। सीधी फ्लाइट थी यहाँ से अम्मा ने उसे समझा दिया
और वहाँ हम एअरपोर्ट के बाहर शीशे से काजल का खोज करता हुआ चेहरा देख रहे थे।
अचानक उसकी हम पर नज़र पड़ी। उसका तो चेहरा खिल गया। अब वह इत्मीनान से सब फारमैल्टी
पूरी कर रही थी। बैगेज़ लेकर वह बाहर निकली। हम पार्किंग की ओर चल पड़े। क्रमशः
2 comments:
द्धारकाधीश जी की यात्रा का अतिरोचक विवरण.
हार्दिक आभार त्यागी जी
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